गीता का भगवान काैन है(68)गोवर्द्धन पर्वत उठाना – श्रीकृष्ण का नहीं, परमात्मा शिव का कार्य
“क्या श्रीकृष्ण ने सचमुच गोवर्द्धन पर्वत उठाया था? | गोवर्धन लीला का गुप्त आध्यात्मिक रहस्य |
भाषण – गोवर्द्धन पर्वत उठाने का गुप्त अर्थ
1. क्या पर्वत सचमुच उठाया गया?
प्रश्न: क्या श्रीकृष्ण ने सचमुच गोवर्द्धन पर्वत अपनी छोटी अंगुली पर उठाया था?
उत्तर: यदि यह घटना भौतिक रूप से हुई होती, तो यह वैज्ञानिक दृष्टि से असंभव प्रतीत होती।
वास्तव में, यह एक मुहावरा है, एक आध्यात्मिक संकेत है।
उदाहरण:
जैसे हम कहते हैं — “उसने तो पहाड़ जैसा काम कर डाला” — तो क्या वह सचमुच पहाड़ उठा लाया? नहीं।
यह किसी महान कार्य को सहजता से कर डालने की प्रतीकात्मक भाषा है।
2. ‘गोवर्द्धन पर्वत’ का प्रतीकात्मक अर्थ
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‘गो’ = गौ (गाय) = धर्म, संपत्ति, सौम्यता, सात्त्विकता की प्रतीक
-
‘वर्द्धन’ = वृद्धि
⇒ “गोवर्द्धन” अर्थात वह शक्ति जिससे धर्म और समृद्धि की वृद्धि होती है।
आध्यात्मिक अर्थ:
वह स्थिति या कार्य जिससे सत्य धर्म की स्थापना हो और आत्माएं पुनः सतोप्रधान बनें।
3. श्रीमद्भागवत की कथा में आध्यात्मिक संकेत
कथा में आता है — “इन्द्र के प्रकोप से जब वर्षा हुई, तब श्रीकृष्ण ने गोवर्द्धन पर्वत को अंगुली पर उठाकर सबको उसकी छाया में सुरक्षित रखा।”
प्रश्न: क्या वास्तव में एक बालक या मानव शरीर पर्वत उठा सकता है?
आध्यात्मिक व्याख्या:
जब परमात्मा शिव इस सृष्टि पर अवतरित होते हैं, तो वे—
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ब्रह्मा तन में प्रवेश करते हैं,
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विकारों के तूफान में फंसी आत्माओं को,
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राजयोग व सत्य ज्ञान की छत्रछाया देकर,
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संघर्षों व संकटों से रक्षा करते हैं।
4. परमात्मा शिव ही हैं सत्य धर्म की स्थापना करने वाले
मुरली 21 नवम्बर 2023:
“बच्चे, यह पर्वत-जैसा कार्य मैं ही करता हूँ। ब्रह्मा के तन में प्रवेश कर तुम आत्माओं को विकारों की वर्षा से बचाकर सतोप्रधान बनाता हूँ।”
मुरली 30 अक्टूबर 2023:
“यह है गोवर्द्धन पर्वत उठाने की वास्तविकता — सत्य धर्म की छत्रछाया देना।”
प्रतीकात्मक अर्थ:
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छोटी अंगुली = परमात्मा की सहज शक्ति
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वर्षा = अज्ञान, विकार, भौतिक संकट
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पर्वत = सत्य धर्म की स्थापना का महान कार्य
5. श्रीकृष्ण नहीं, परमात्मा शिव हैं मूल कर्ता
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श्रीकृष्ण सतयुग में जन्मा हुआ देवता है, जो परमात्मा शिव द्वारा गीता ज्ञान से बना।
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परमात्मा शिव ही—
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सृष्टि के पुनर्निर्माता,
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सच्चे ज्ञानदाता,
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सभी आत्माओं के मुक्तिदाता,
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ब्रह्मा द्वारा यज्ञ रचकर गोप-गोपियों (अर्थात आत्माओं) को ज्ञान छत्रछाया देने वाले हैं।
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6. निष्कर्ष
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गोवर्द्धन पर्वत उठाना = आत्मा को विकारों से सुरक्षा देना
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पर्वत = धर्मस्थापना का महान कार्य
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वर्षा = कलियुगी अज्ञान, अधर्म, संकट
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छोटी अंगुली = परमात्मा की सहज शक्ति
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छाया = परमात्मा की मुरली से प्राप्त सुरक्षा
मुख्य मर्म:
गोवर्द्धन पर्वत उठाने की कथा एक आध्यात्मिक प्रतीक है, जो दर्शाती है—
परमात्मा शिव ने विकारों की वर्षा से आत्माओं की रक्षा कर, सत्य धर्म की छत्रछाया दी।
और यह सारा कार्य मुरली ज्ञान और राजयोग के द्वारा हुआ।
क्या श्रीकृष्ण ने सचमुच गोवर्द्धन पर्वत उठाया था? | गोवर्धन लीला का गुप्त आध्यात्मिक रहस्य |
Q1: क्या श्रीकृष्ण ने सचमुच गोवर्द्धन पर्वत अपनी छोटी अंगुली पर उठाया था?
A: वैज्ञानिक दृष्टि से यह घटना भौतिक रूप से असंभव है। यह एक आध्यात्मिक संकेत और प्रतीकात्मक भाषा है।
उदाहरण: जैसे हम कहते हैं – “उसने पहाड़ जैसा काम कर दिया” – इसका अर्थ है बहुत बड़ा काम, न कि सचमुच पहाड़ उठाना।
Q2: ‘गोवर्द्धन पर्वत’ का प्रतीकात्मक अर्थ क्या है?
A:
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गो = गौ (गाय) = धर्म, सात्त्विकता, शांति, समृद्धि
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वर्द्धन = वृद्धि
⇒ “गोवर्द्धन” = वह शक्ति जिससे धर्म और समृद्धि की वृद्धि हो।
आध्यात्मिक अर्थ: वह कार्य जिससे आत्माएं पुनः सतोप्रधान बनें और सत्य धर्म की स्थापना हो।
Q3: कथा में वर्षा और पर्वत के बीच क्या संबंध है?
A: श्रीमद्भागवत में वर्णित वर्षा = विकारों और अज्ञान की बाढ़।
पर्वत = सत्य धर्म की स्थापना का महान कार्य।
छोटी अंगुली = परमात्मा की सहज शक्ति।
परमात्मा शिव, ब्रह्मा तन में प्रवेश कर, विकारों के तूफान से आत्माओं को ज्ञान-छत्रछाया देते हैं।
Q4: परमात्मा शिव की भूमिका क्या है?
A:
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मुरली 21 नवम्बर 2023: “बच्चे, यह पर्वत-जैसा कार्य मैं ही करता हूँ। ब्रह्मा के तन में प्रवेश कर आत्माओं को विकारों की वर्षा से बचाता हूँ।”
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मुरली 30 अक्टूबर 2023: “गोवर्द्धन पर्वत उठाना = सत्य धर्म की छत्रछाया देना।”
Q5: श्रीकृष्ण और परमात्मा शिव में क्या अंतर है?
A:
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श्रीकृष्ण = सतयुग का पहला सतोप्रधान देवता, जो परमात्मा शिव के ज्ञान से बना।
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परमात्मा शिव = सृष्टि के पुनर्निर्माता, सच्चे ज्ञानदाता, और सभी आत्माओं के मुक्तिदाता।
Q6: निष्कर्ष
गोवर्द्धन पर्वत उठाने का अर्थ:
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आत्माओं को विकारों से सुरक्षा देना
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सत्य धर्म की स्थापना करना
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ज्ञान की छाया में सभी को शांति और सुरक्षा प्रदान करना
मुख्य मर्म: यह कथा एक आध्यात्मिक संकेत है कि परमात्मा शिव ने विकारों की वर्षा से आत्माओं की रक्षा कर, मुरली ज्ञान और राजयोग के द्वारा सत्य धर्म की स्थापना की।
Disclaimer
यह वीडियो ब्रह्मा कुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की शिक्षाओं और मुरली के आधार पर बनाया गया है।
इसका उद्देश्य केवल आध्यात्मिक ज्ञान और प्रतीकात्मक अर्थ को समझाना है।
यह किसी भी धार्मिक, पौराणिक या ऐतिहासिक मान्यता का अपमान नहीं करता, बल्कि उसके गुप्त आध्यात्मिक रहस्य को स्पष्ट करता है।
मुरली का अधिकार ब्रह्मा कुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय, माउंट आबू, राजस्थान के पास सुरक्षित है।
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