(83)गीता और दैवी सम्पदा-युक्त आचरण
“गीता – केवल ग्रंथ नहीं, मानवता की आचार संहिता | योगी बनो, भोगी नहीं”
1. प्रस्तावना – गीता का वास्तविक संदेश
गीता केवल धार्मिक पुस्तक नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला सिखाने वाली आचार संहिता है।
धर्म का अर्थ है धारणा – ऐसे गुण और आचरण को अपनाना जो हमें दैवी सम्पदा से युक्त करे।
2. गीता: आचरण की श्रेष्ठता का शास्त्र
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गीता के सिद्धांत केवल दार्शनिक चर्चा के लिए नहीं हैं।
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ये जीवन को सात्विक, संयमित और महान बनाने का मार्ग बताते हैं।
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गीता आत्मा, परमात्मा और कर्म का गूढ़ ज्ञान देती है जो विचारों की शुद्धि व संस्कारों की पवित्रता लाता है।
उदाहरण:
गीता सिखाती है – शरीर नश्वर है, पर आत्मा अविनाशी है।
इससे सीख मिलती है कि हमारे कर्मों का परिणाम मृत्यु के बाद भी आत्मा के साथ जाता है।
जबकि चार्वाक दर्शन कहता है – “ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत” – अर्थात् उधार लेकर भी सुख भोगो।
पर गीता हमें स्वार्थ से ऊपर उठाकर कल्याणकारी जीवन की राह दिखाती है।
3. ‘अनिकेतः’ का भाव – संसार सराय है, घर नहीं
गीता में वर्णन है कि दैवी सम्पदा सम्पन्न व्यक्ति ‘अनिकेतः’ होता है।
अर्थात् – वह इस संसार को स्थायी घर नहीं मानता, केवल कर्म और संस्कार को साथ ले जाता है।
उदाहरण:
जैसे यात्री सराय में रुककर आगे बढ़ता है, वैसे ही हमें भी संसार में रहते हुए आत्मिक यात्रा करनी है।
4. योगी बनो – भोगी नहीं
गीता के हर अध्याय में योगी बनने का संदेश है।
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योगी का जीवन सात्विक, संयमित और कल्याणकारी होता है।
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भोगी का जीवन इन्द्रिय सुखों में उलझा हुआ, स्वार्थी और दुखदायी होता है।
उदाहरण:
योगी सेवा, तपस्या और ज्ञान से सुख अनुभव करता है।
भोगी क्षणिक सुखों में फँसकर दुख का कारण बनता है।
5. मुरली का संदेश
साकार मुरली – 17 जुलाई 2025:
“बच्चे, तुम्हें दैवी सम्पदा को धारण करना है। यह ज्ञान तुम्हें योगी बनाता है, भोगी नहीं। जो अनिकेत भाव में रहते हैं, वही मेरा घर पाते हैं।”
6. निष्कर्ष – गीता का सच्चा सार
गीता हमें दार्शनिक सिद्धांतों के साथ-साथ श्रेष्ठ आचरण का मार्ग दिखाती है।
यही आचरण हमें दैवी सम्पदा से युक्त, योगी और कल्याणकारी बनाता है।
“गीता – मानवता की आचार संहिता पर 10 गहरे प्रश्न व उत्तर”
प्रश्न 1: गीता को केवल धार्मिक ग्रंथ मानने की बजाय आचार संहिता क्यों कहा गया है?
उत्तर: क्योंकि गीता जीवन जीने की कला, श्रेष्ठ कर्म, योग और दैवी गुणों को धारण करने की शिक्षा देती है। यह केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं, बल्कि व्यवहारिक मार्गदर्शन देती है।
प्रश्न 2: गीता में धर्म का वास्तविक अर्थ क्या है?
उत्तर: धर्म का अर्थ है धारणा – ऐसे गुण, मूल्य और आचरण को अपनाना जो आत्मा को दैवी सम्पदा से युक्त करें।
प्रश्न 3: गीता आत्मा और शरीर के संबंध को कैसे स्पष्ट करती है?
उत्तर: गीता कहती है कि शरीर नश्वर है, पर आत्मा अविनाशी है। इसलिए कर्मों का फल केवल इस जन्म तक सीमित नहीं रहता, बल्कि आत्मा के साथ आगे भी जाता है।
प्रश्न 4: गीता में ‘अनिकेतः’ का क्या अर्थ है?
उत्तर: ‘अनिकेतः’ का अर्थ है – संसार को सराय मानना, स्थायी घर नहीं। आत्मा यात्री है जो केवल कर्म और संस्कार अपने साथ ले जाती है।
प्रश्न 5: योगी और भोगी में क्या अंतर है?
उत्तर: योगी आत्म-संयम, तपस्या और सेवा से सुख अनुभव करता है। भोगी इन्द्रिय सुखों में उलझा रहता है और दुख का कारण बनता है।
प्रश्न 6: गीता हमें कर्म के बारे में क्या सिखाती है?
उत्तर: गीता सिखाती है कि निष्काम भाव से, कल्याणकारी दृष्टि से और आत्मिक पहचान में रहकर कर्म करना ही श्रेष्ठ कर्म है।
प्रश्न 7: गीता का ज्ञान संस्कारों को कैसे शुद्ध करता है?
उत्तर: आत्मा की अविनाशी प्रकृति और कर्मफल सिद्धांत को समझकर व्यक्ति अपने विचारों और आचरण को सात्विक और पवित्र बनाता है।
प्रश्न 8: गीता का संदेश केवल भारतवासियों के लिए है या पूरी मानवता के लिए?
उत्तर: गीता का संदेश सम्पूर्ण मानवता के लिए है क्योंकि यह आत्मा के स्तर पर सार्वभौमिक मूल्य और आचार संहिता सिखाती है।
प्रश्न 9: मुरली में गीता के बारे में क्या कहा गया है?
उत्तर: मुरली (17 जुलाई 2025) में कहा गया –
“बच्चे, तुम्हें दैवी सम्पदा को धारण करना है। यह ज्ञान तुम्हें योगी बनाता है, भोगी नहीं।”
प्रश्न 10: गीता का अंतिम उद्देश्य क्या है?
उत्तर: गीता का उद्देश्य है – आत्मा को दैवी गुणों से युक्त करना, उसे परमात्मा से जोड़ना और योगी जीवन जीकर विश्व कल्याणकारी बनाना।
Disclaimer
यह वीडियो गीता के गहरे आध्यात्मिक अर्थों पर आधारित है, जो ब्रह्माकुमारीज़ मुरली ज्ञान से प्रेरित हैं। इसका उद्देश्य केवल आत्मिक जागरूकता, जीवन मूल्यों और योगिक जीवनशैली को प्रोत्साहित करना है। किसी भी धर्म, संप्रदाय या आस्था की भावनाओं को ठेस पहुँचाना हमारा उद्देश्य नहीं है।
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