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“आत्मा-परमात्मा का सच्चा परिचय |”
1. भूमिका (Introduction)
प्यारे भाईयों और बहनों,
आज हम एक ऐसे विषय पर चिंतन करेंगे जो हर आत्मा के जीवन का सबसे बड़ा प्रश्न है— मैं कौन हूँ और परमात्मा कौन हैं?
यह प्रश्न ही हमें सत्य ज्ञान और ईश्वरीय रहस्य की ओर ले जाता है।
2. आत्मा का परिचय (Who am I?)
शिवबाबा मुरली में बार-बार स्मरण कराते हैं—
“मीठे बच्चे, तुम शरीर नहीं, आत्मा हो।”
आत्मा एक अविनाशी ज्योति बिंदु है।
न उसका जन्म है, न मृत्यु।
जब हम अपने वास्तविक स्वरूप को पहचानते हैं, तो जीवन की हर उलझन सरल हो जाती है।
3. परमात्मा का परिचय (Who is God?)
परमात्मा भी आत्मा के समान बिंदुरूप हैं, परंतु वे हैं सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञानी, करुणामयी पिता।
उनका नाम है— शिव, जो सदा कल्याणकारी हैं।
वे जन्म-मरण में नहीं आते और सदा परमधाम में रहते हैं।
वे ही इस कलियुग में आकर हमें अपना सच्चा परिचय देते हैं।
4. आत्मा और परमात्मा का संबंध (Relationship between Soul & Supreme Soul)
जैसे पिता और बच्चे का अटूट संबंध होता है, वैसे ही आत्मा और परमात्मा का भी है।
परंतु आत्मा भूल गई और संसार में भटक गई।
अब शिवबाबा हमें याद दिलाते हैं—
“मीठे बच्चे, मैं तुम्हारा सत्य पिता, शिक्षक और सतगुरु हूँ।”
5. सहज राजयोग का महत्व (Power of Easy Rajyoga)
सच्चा मिलन आत्मा और परमात्मा का होता है योग के द्वारा।
राजयोग से आत्मा अपनी आदि शक्ति, शांति और पवित्रता प्राप्त करती है।
यही आत्मा का असली धर्म और परमात्मा का संदेश है।
6. निष्कर्ष (Conclusion)
प्यारे साथियो,
यदि हम रोज़ाना इस सत्य को याद करें—
“मैं आत्मा हूँ, शिवबाबा मेरा परमपिता है,”
तो जीवन की हर कठिनाई सहज हो जाएगी और आत्मा पुनः अपनी दिव्य स्थिति को प्राप्त करेगी।
“क्या वास्तव में मृत्यु के बाद आत्मा तक हमारे दुख पहुँचते हैं?”
प्रश्न 1: क्या मृत्यु के बाद आत्मा अपने परिवार वालों का दुख-सुख अनुभव करती है?
उत्तर: नहीं। मुरली में बाबा स्पष्ट समझाते हैं कि जब आत्मा शरीर छोड़ देती है तो वह अपने अगले जन्म की यात्रा में चली जाती है। पुराने संबंध, शरीर और परिस्थितियों से उसका कोई सीधा अनुभव नहीं रहता।
प्रश्न 2: लोग कहते हैं कि आत्मा अपने परिवार की रक्षा करती है, क्या यह सच है?
उत्तर: आत्मा अपनी नई यात्रा में चली जाती है। रक्षा और मार्गदर्शन करने का कार्य केवल परमपिता परमात्मा करते हैं। departed soul (मृत आत्मा) का कार्य केवल अपने कर्म अनुसार नए शरीर में प्रवेश करना होता है।
प्रश्न 3: मृत्यु के बाद हम अपने पूर्वजों को श्राद्ध या पिंडदान क्यों करते हैं?
उत्तर: यह प्रथा भावनाओं और परंपरा पर आधारित है। मुरली में बताया गया है कि आत्मा को भोजन, जल, दान आदि की आवश्यकता नहीं होती। वह केवल अपने कर्म संचित संसकारों के आधार पर नया जीवन प्राप्त करती है।
प्रश्न 4: अगर आत्मा को हमारे दुख-सुख का अनुभव नहीं होता, तो क्या उसे हमारी यादें पहुँचती हैं?
उत्तर: आत्मा का अगला जन्म तय हो जाता है। इसलिए वह हमारे द्वारा किए गए कर्मों या यादों को महसूस नहीं करती। हाँ, हमारी याद और भावना का प्रभाव हमारे मन पर पड़ता है, जिससे हमें शक्ति या दुर्बलता महसूस हो सकती है।
प्रश्न 5: इस ज्ञान से हमें क्या सीख मिलती है?
उत्तर: हमें यह समझना चाहिए कि मृत आत्मा को दुखी करने के बजाय, हम राजयोग, सत्कर्म और प्रार्थना से स्वयं को मजबूत बनाएँ। इससे हम और परिवार दोनों को शांति का अनुभव होता है।
Disclaimer (डिस्क्लेमर):
यह वीडियो केवल आध्यात्मिक शिक्षा और आत्मिक जागृति के उद्देश्य से बनाया गया है। इसका उद्देश्य किसी भी धार्मिक परंपरा, मत या विश्वास का खंडन करना नहीं है। प्रस्तुत विचार ब्रह्माकुमारीज़ के ईश्वरीय ज्ञान और मुरली पर आधारित हैं। दर्शकों से निवेदन है कि इस ज्ञान को स्वयं अनुभव कर सत्यता की पुष्टि करें।
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