(07) “Kalyug vs. Satyug: The Cycle of Life and Purity

(07)”कलयुग बनाम सतयुग: जीवन और पवित्रता का चक्र

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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परिचय: समय का गहन रहस्य

नमस्ते प्रिय आत्माओं,
आज हम जीवन, युग परिवर्तन और पवित्रता के शाश्वत चक्र पर चिंतन करेंगे।

यह विषय केवल धार्मिक या ऐतिहासिक नहीं है —
बल्कि यह हर आत्मा के वास्तविक जीवन और लक्ष्य से जुड़ा हुआ है।

हम इस गहन यात्रा में पहुँच चुके हैं सातवें अध्याय में, जिसका शीर्षक है:

“राम राज्य बनाम रावण राज्य”
“कलयुग बनाम सतयुग”
“जीवन और पवित्रता का चक्र”


जीवन और पवित्रता का चक्र: क्या है सच्चा जीवन?

जब आत्मा इस शरीर में प्रवेश करती है, तो उसे “जीवन” कहा जाता है।

जब आत्मा शरीर से अलग होकर अपने स्वधर्म में स्थित होती है, तो वह “पवित्रता” कहलाती है।

  • संसार में आना = जीवन की शुरुआत

  • संसार से अलग होना = पवित्रता की वापसी

इस चक्र में आत्मा दोनों युगों से गुजरती है — सतयुग और कलयुग।
परन्तु दोनों में जीवन की गुणवत्ता और आत्मा की स्थिति बिलकुल भिन्न होती है।


रावण राज्य: भोग और अशुद्धता का युग – कलयुग

1.  छोटा और पीड़ादायक जीवनकाल

आज के युग में औसतन जीवन 30–45 वर्ष माना जाता है।
हम उन करोड़ों आत्माओं को भी गिनते हैं जिनका कोई रिकॉर्ड ही नहीं।

2.  शरीर रोगों से ग्रस्त, मन अशांत

  • रोग, चिंता, अवसाद – जीवन का सामान्य हिस्सा बन गए हैं।

  • योग, प्राणायाम और दवाइयाँ केवल अस्थायी समाधान बन गए हैं।

3.  प्राकृतिक असंतुलन

  • पृथ्वी के पंचतत्व अशुद्ध हो गए हैं।

  • असंतुलन का प्रभाव हर प्राणी पर स्पष्ट है।

4.  कर्मों और जन्मों का बोझ

  • आत्मा पर जन्मों-जन्मों के भोगों का भार है।

  • हर जन्म कर्म बंधन बढ़ाता है, जिससे आत्मा थकी हुई और अशांत हो जाती है।


राम राज्य: पवित्रता और दिव्यता का युग – सतयुग

1.  दीर्घायु और तेजस्वी शरीर

  • देवताओं की आयु ~150 वर्ष थी।

  • रोग, थकान या मृत्यु का कोई भय नहीं।

2.  प्राकृतिक सौंदर्य और संतुलन

  • पंचतत्व पूर्ण संतुलन में रहते हैं।

  • प्रकृति स्वयं सजीव, शुभ और सहयोगी होती है।

3.  दुख, आकस्मिक मृत्यु और संघर्ष का अभाव

  • जीवन सहज, स्थिर और सुखद होता है।

  • कोई भी आत्मा किसी भी प्रकार से पीड़ित नहीं होती।


बदलाव का मार्ग: क्या फिर लौट सकते हैं सतयुग में?

हां! लेकिन केवल तब जब आत्मा अपने स्वरूप को पहचाने और परमात्मा से जुड़ जाए।

भक्ति और तप की सीमाएँ

  • जब तक शरीर को “मैं” मानते हैं,
    भक्ति, ध्यान, साधना सब सीमित ही रह जाते हैं।

सच्चा मार्ग: परमात्मा की याद और मार्गदर्शन

  • परमात्मा की शक्ति + आत्मा की स्मृति = शुद्धता और पुनर्जन्म का अंत


राम राज्य बनाम रावण राज्य – आत्मा का निर्णय

राज्य विशेषताएं
रावण राज्य अशुद्धता, दुख, विकार, मृत्यु का भय
राम राज्य पवित्रता, सुख, शांति, जीवन की दिव्यता

अब आत्मा को चुनाव करना है:

  • क्या हम दुख, संघर्ष और जन्म-मरण के चक्र में ही रहेंगे?

  • या परमात्मा के निर्देशन में पवित्रता का मार्ग चुनेंगे?


निष्कर्ष: आत्मा का जागरण ही समाधान है

“राम राज्य बनाम रावण राज्य” यह केवल धार्मिक कथाएँ नहीं हैं —
बल्कि यह हमारी चेतना की स्थिति का सूचक है।

  • जब आत्मा पवित्र होती है — राम राज्य आता है।

  • जब आत्मा विकारों में खो जाती है — रावण राज्य छा जाता है।


Q1: ‘जीवन’ और ‘पवित्रता’ में क्या अंतर है?

उत्तर:जब आत्मा इस शरीर में प्रवेश करती है, तो उसे ‘जीवन’ कहा जाता है।
और जब आत्मा शरीर से अलग होती है, तो वह ‘पवित्र’ कहलाती है।
इस संसार में आना = जीवन
इस संसार से अलग होना = पवित्रता।


Q2: रावण राज्य (कलयुग) में जीवन कैसा होता है?

उत्तर:कलयुग में जीवन छोटा, पीड़ादायक और अशुद्ध होता है।
शरीर रोगग्रस्त और कमजोर होते हैं।
प्रकृति असंतुलित होती है।
मनुष्य का औसत जीवनकाल भी घटकर लगभग 30-45 वर्ष रह गया है।
भोग-विलास आत्मा की शक्ति को कमजोर करता है और जन्म-जन्मान्तर का चक्र बढ़ता है।


Q3: सतयुग में जीवन कैसा होता है?

उत्तर:सतयुग में जीवन दिव्य, दीर्घायु और आनंदमय होता है।
देवताओं की औसत आयु 150 वर्ष होती थी।
शरीर रोगरहित और तेजस्वी होते थे।
प्रकृति पाँचों तत्वों में शुद्ध होती है — पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश।
ना मनुष्य को और ना पशु को कोई पीड़ा होती थी।


Q4: क्या सतयुग में लौटना संभव है?

उत्तर:हाँ, लेकिन इसके लिए आत्मा को शुद्ध बनाना होगा।
भक्ति और ध्यान केवल सीमित सहायता करते हैं।
सच्ची पवित्रता तभी संभव है जब आत्मा परमात्मा की सच्ची स्मृति में स्थित हो।


Q5: आत्मा की शुद्धता कैसे संभव है?

उत्तर:न ध्यान से,
न भक्ति से,
बल्कि —
परमात्मा की दिशा पर चलकर।
जब आत्मा अपने को आत्मा माने और परमात्मा की शक्ति को स्वीकार करे,
तभी वह पवित्र बनती है।
यह सच्चा योग है — आत्मा + परमात्मा।


Q6: राम राज्य और रावण राज्य में क्या मूलभूत अंतर है?

उत्तर:रावण राज्य:
दुख, भोग, मृत्यु और अशुद्धता का युग।
राम राज्य:
शांति, पवित्रता, दीर्घायु और दिव्यता का युग।

एक में शरीर प्रधान है, दूसरे में आत्मा प्रधान।
एक में मोह और माया है, दूसरे में योग और शांति।


Q7: हमें क्या करना चाहिए?

उत्तर:हमें अपने जीवन को समझना है,
आत्मा को पहचानना है,
और परमात्मा से जुड़कर
सच्चे “राम राज्य” की ओर बढ़ना है।
यही आत्मा की सच्ची यात्रा है।


अंतिम संदेश (Call to Action):

अब समय है —
 आत्म जागृति का
 परमात्मा से जुड़ने का
 और पवित्रता के मार्ग पर चलने का।

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