समभाव योगऔर कर्म की श्रेष्ठता-श्रीमद्भगवद्गीता श्लोक2.31-2.38 कीआध्यात्मिक व्याख्या
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
“गीता में समभाव योग: बुद्धियोग, निष्काम कर्म और आत्मिक दृष्टि का रहस्य | Brahma Kumaris Gyan”
गीता की तीसरी अनमोल कुंजी – समभाव योग
आज हम गीता के दूसरे अध्याय के श्लोक 39 से 53 तक के गूढ़ ज्ञान को समझेंगे –
जिसमें भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को “समभाव योग” की शिक्षा दे रहे हैं।
यह समभाव का अर्थ है –
सबको समान दृष्टि से देखना, बिना भेदभाव के व्यवहार करना।
मुख्य विषय –
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बुद्धि योग की नींव
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समता में रहकर कर्म करना
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फल की आशा छोड़कर कर्म
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तीन गुणों से ऊपर की स्थिति
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ब्रह्मा कुमारीज की मुरलियों में इसकी व्याख्या
1. श्लोक 39 – बुद्धि योग: निर्णय की शक्ति से कर्म बंधन से मुक्ति
एते विहिता सा बुद्धि…
हे अर्जुन! अब सुनो वह बुद्धियोग, जिससे तुम कर्म के बंधनों से मुक्त हो जाओगे।
🔹 बुद्धि योग क्या है?
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बुद्धि का कार्य है निर्णय लेना
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सत्य की पहचान कर बुद्धि उससे जुड़ती है
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यह जुड़ाव ही बुद्धि योग है
BK मुरली भाव:
“बुद्धि का योग बाप से लगाने से ही कर्मों के बंधन समाप्त होते हैं।”
2. समभाव का अर्थ – आत्मिक दृष्टि से सब समान
“मीठे बच्चे – सब आत्माएं हैं, किसी में भी भेदभाव नहीं।”
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कोई अमीर–गरीब नहीं
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कोई उच्च–निम्न नहीं
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कोई स्त्री–पुरुष नहीं
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सब आत्माएं परमात्मा की संतान हैं
🔸 यही है “समभाव योग” –
जहां आत्मा की दृष्टि से सबको देखना सीखें।
3. श्लोक 40 – आध्यात्मिक प्रयास कभी व्यर्थ नहीं जाता
“नेहाभिक्रमनाशोस्ति…”
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आत्मिक प्रयास का एक तिनका भी नष्ट नहीं होता
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छोटा-सा पुरुषार्थ भी संकटों से रक्षा करता है
उदाहरण:
जिसने बाबा से संबंध जोड़ा – उसका जीवन अंधकार से प्रकाश में आ गया।
4. तीन गुण – सतो, रजो, तमो – और इनसे परे की स्थिति
गीता:
तीनों गुणों के पार जाकर जो आत्मा स्थिर होती है, वही “योगी” है।
BK मुरली (7 मार्च 2022):
“तीनों गुण भी मायावी हैं – तुम बच्चों को इनसे न्यारा रहना है।”
👉 सत्य अवस्था वही है जहां ये तीनों गुण नहीं हैं –
परमधाम की अवस्था – निर्विकारी, निरहंकारी, निरभिमानी।
5. श्लोक 47 – केवल कर्म पर अधिकार, फल पर नहीं
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन…”
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हमारा अधिकार सिर्फ “कर्तव्य कर्म” पर है
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फल की आशा या चिंता नहीं
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ना ही कर्म न करने में आसक्ति
उदाहरण:
जैसे किसान बीज बोता है, लेकिन फल की चिंता नहीं करता – वैसे ही हमें कर्म करना है।
6. श्लोक 48 – समत्व ही सच्चा योग है
“योगस्थः कुरु कर्माणि…”
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लाभ–हानि, जय–पराजय, सफलता–असफलता में समान रहना
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यही समभाव योग है
BK मुरली भाव:
“मीठे बच्चे, फेल होने में या पास होने में कोई फर्क न पड़े – वही सच्चा योगी है।”
7. श्लोक 49-50 – बुद्धि योग क्यों श्रेष्ठ है?
“दूरेण ह्यवरं कर्म बुद्धियोगाद्धनञ्जय…”
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बुद्धि योग से किया गया कर्म श्रेष्ठ है
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जो फल की आशा से कर्म करता है, वह “कृपण” (दीन) है
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बुद्धि से कर्म करने वाला ही सच्चा योगी है
निष्कर्ष: समभाव योग – ब्रह्मज्ञान का मूल
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समभाव योग सिखाता है –
सभी आत्माओं के प्रति समान दृष्टि
बुद्धि का परमात्मा में योग
कर्तव्य कर्म की भावना
तीन गुणों से परे की स्थिति
🙏 ब्रह्मा बाबा हमें यही सिखाते हैं –
“मीठे बच्चे, बुद्धियोग से कर्म करो, समभाव में रहो – यही सच्ची योग्यता है।”
अंत में प्रश्न:
क्या हम समभाव में रहना सीख पाए हैं?
क्या हमारी बुद्धि श्रीमत अनुसार कर्म कर रही है?
क्या हमें दूसरों के प्रति अपने दृष्टिकोण की समीक्षा करनी चाहिए?
“गीता में समभाव योग: बुद्धियोग, निष्काम कर्म और आत्मिक दृष्टि का रहस्य | Brahma Kumaris Gyan”
❓ प्रश्न 1: गीता में ‘समभाव योग’ का क्या अर्थ है?
उत्तर:समभाव योग का अर्थ है आत्मिक दृष्टि से सभी को समान देखना –
न कोई ऊँच-नीच, अमीर-गरीब, स्त्री-पुरुष का भेदभाव।
यह योग हमें सिखाता है कि हम सब आत्माएं हैं और परमात्मा की संतान हैं।
❓ प्रश्न 2: श्लोक 39 में ‘बुद्धि योग’ किसे कहा गया है?
उत्तर:बुद्धि योग वह स्थिति है जब हमारी बुद्धि सत्य की पहचान कर परमात्मा से जुड़ जाती है।
जब बुद्धि का योग बाप से होता है, तब कर्मों के बंधन समाप्त होते हैं।
BK मुरली: “बुद्धि का योग बाप से लगाने से ही बंधन कटते हैं।”
❓ प्रश्न 3: श्लोक 40 में आत्मिक प्रयास की क्या महिमा बताई गई है?
उत्तर:श्लोक कहता है:
“नेहाभिक्रमनाशोस्ति…” –
अर्थात आध्यात्मिक पुरुषार्थ कभी व्यर्थ नहीं जाता।
एक तिनके जितना भी पुरुषार्थ आत्मा करती है, वह उसे आगे बढ़ाता है और संकटों से रक्षा करता है।
❓ प्रश्न 4: ‘तीन गुणों’ से ऊपर उठना क्यों आवश्यक है?
उत्तर:सतो, रजो और तमो – ये तीनों गुण प्रकृति के हैं और आत्मा को बंधन में डालते हैं।
BK मुरली (7 मार्च 2022):
“तीनों गुण भी मायावी हैं – इनसे न्यारा रहो।”
इनसे परे जाने पर ही आत्मा शुद्ध, शांत और शक्तिशाली बनती है।
❓ प्रश्न 5: श्लोक 47 हमें कर्म के बारे में क्या सिखाता है?
उत्तर:यह श्लोक कहता है:
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन…”
हमें केवल कर्तव्य कर्म पर अधिकार है, फल की आशा नहीं करनी है।
जैसे किसान बीज बोता है पर फल की चिंता नहीं करता – वैसे ही हमें भी कर्म करना है।
❓ प्रश्न 6: श्लोक 48 के अनुसार ‘समत्व’ क्या है?
उत्तर:समत्व यानी लाभ–हानि, सफलता–असफलता में समान रहना।
यही सच्चा योग है।
BK मुरली भाव:
“मीठे बच्चे, पास या फेल में फर्क न पड़े – यही समभाव है।”
❓ प्रश्न 7: बुद्धि योग से किया गया कर्म श्रेष्ठ क्यों है?
उत्तर:श्लोक 49–50 में बताया गया कि बुद्धि योग से किया गया कर्म निष्काम और श्रेष्ठ होता है।
फल की इच्छा से कर्म करने वाला कृपण कहलाता है।
बुद्धि से कर्म करने वाला ही सच्चा योगी है।
❓ प्रश्न 8: ब्रह्मा कुमारीज मुरलियों में समभाव योग की कैसे व्याख्या की जाती है?
उत्तर:BK मुरलियों में बार-बार बताया जाता है:
“सब आत्माएं समान हैं।”
“बुद्धि का योग बाप से लगाओ।”
“तीनों गुणों से न्यारे बनो।”
“फल की इच्छा नहीं – सेवा भावना हो।”
यह गीता ज्ञान का आधुनिक प्रयोगात्मक रूप है।
❓ प्रश्न 9: समभाव योग में स्थिर होने के लिए क्या अभ्यास करें?
उत्तर:आत्मिक दृष्टि से सबको देखें
हर कर्म से पहले बाबा को सामने रखें
श्रीमत अनुसार निर्णय लें
अपने हर संकल्प को बाप से जोड़ें
फल की आशा को त्यागें
❓ प्रश्न 10: आत्मिक दृष्टिकोण से हमें क्या बदलाव लाना है?
उत्तर:हमें यह देखना है:
क्या मैं सबको आत्मा समझकर देख रहा हूँ?
क्या मेरे कर्मों का आधार श्रीमत है या देह-अभिमान?
क्या मैं दूसरों के प्रति तुलना, ईर्ष्या, या अपेक्षा रखता हूँ?
अगर हाँ – तो हमें और बुद्धियोग और समभाव में स्थिर होने का अभ्यास करना है।
निष्कर्ष:समभाव योग एक दिव्य दृष्टिकोण है –
जहाँ हम आत्मिक पहचान से कर्म करते हैं, बुद्धि का योग परमात्मा से जोड़ते हैं,
और तीन गुणों से ऊपर उठकर निष्काम सेवा करते हैं।
ब्रह्मा बाबा सिखाते हैं:
“बुद्धियोग से कर्म करो, समता में रहो – यही सच्चा योग है।”
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