MURLI 25-06-2025/BRAHMAKUMARIS

(Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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25-06-2025
प्रात:मुरली
ओम् शान्ति
“बापदादा”‘
मधुबन
“मीठे बच्चे – बाप तुम्हें नई दुनिया के लिए राजयोग सिखला रहे हैं, इसलिए इस पुरानी दुनिया का विनाश भी जरूर होना है”
प्रश्नः- मनुष्यों में कौन-सी एक अच्छी आदत पड़ी हुई है लेकिन उससे भी प्राप्ति नहीं होती?
उत्तर:- मनुष्यों में भगवान को याद करने की जैसे आदत पड़ी हुई है, जब कोई बात होती है तो कह देते हैं – हे भगवान! सामने शिवलिंग आ जाता है लेकिन पहचान यथार्थ न होने के कारण प्राप्ति नहीं होती है फिर कह देते सुख-दु:ख सब वही देता है। तुम बच्चे अभी ऐसे नहीं कहेंगे।

ओम् शान्ति। बाप जिसको रचता कहा जाता है, किसका रचता? नई दुनिया का रचता। नई दुनिया को कहा जाता है स्वर्ग वा सुखधाम, नाम कहते हैं परन्तु समझते नहीं हैं। श्रीकृष्ण के मन्दिर को भी सुखधाम कहते हैं। अब वह तो हो गया छोटा मन्दिर। श्रीकृष्ण तो विश्व का मालिक था। बेहद के मालिक को जैसेकि हद का मालिक बना देते हैं। श्रीकृष्ण के छोटे से मन्दिर को सुखधाम कहते हैं। बुद्धि में यह नहीं आता है कि वह तो विश्व का मालिक था। भारत में ही रहने वाला था। तुमको भी पहले कुछ पता नहीं था। बाप को तो सब कुछ पता है, वह सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त को जानते हैं। अभी तुम बच्चे जानते हो, दुनिया में तो यह भी किसको पता नहीं है – ब्रह्मा-विष्णु-शंकर कौन हैं? शिव तो है ऊंच ते ऊंच भगवान। अच्छा, फिर प्रजापिता ब्रह्मा कहाँ से आया? है तो मनुष्य ही। प्रजापिता ब्रह्मा तो जरूर यहाँ ही चाहिए ना जिससे ब्राह्मण पैदा हो। प्रजापिता माना ही मुख से एडाप्ट करने वाला, तुम हो मुख वंशावली। अब तुम जानते हो कि कैसे ब्रह्मा को बाप ने अपना बनाकर मुख वंशावली बनाया है, इनमें प्रवेश भी किया फिर कहा कि यह हमारा बच्चा भी है। तुम जानते हो ब्रह्मा नाम कैसे पड़ा, कैसे पैदा हुआ, यह और कोई नहीं जानते हैं। सिर्फ महिमा गाते हैं कि परमपिता परमात्मा ऊंच ते ऊंच है, परन्तु यह कोई की बुद्धि में नहीं आता कि ऊंच ते ऊंच बाप है। हम सभी आत्माओं का वह पिता है। वह भी बिन्दू रूप ही है, उनमें सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान है। यह नॉलेज भी तुमको अभी मिली है। पहले ज़रा भी यह ज्ञान नहीं था। मनुष्य सिर्फ कहते रहते हैं ब्रह्मा-विष्णु-शंकर, परन्तु जानते कुछ भी नहीं। तो उन्हों को ही समझाना है। अभी तुम समझदार बने हो। जानते हो कि बाप ज्ञान का सागर है, जो हमको ज्ञान सुनाते हैं, पढ़ाते हैं। यह राजयोग है ही सतयुग नई दुनिया के लिए तो जरूर पुरानी दुनिया का विनाश होना चाहिए। उसके लिए यह महाभारत लड़ाई है। आधाकल्प से लेकर तुम भक्ति मार्ग के शास्त्र पढ़ते आये हो। अब तो बाप से डायरेक्ट सुनते हो। बाप कोई शास्त्र नहीं बैठकर सुनाते हैं। जप तप करना, शास्त्र आदि पढ़ना यह सब भक्ति है। अब भक्तों को भक्ति का फल चाहिए क्योंकि मेहनत करते ही हैं भगवान से मिलने के लिए। परन्तु ज्ञान से है सद्गति। ज्ञान और भक्ति दोनों इकट्ठे चल न सकें। अभी है ही भक्ति का राज्य। सब भगत हैं। हर एक के मुख से ओ गॉड फादर जरूर निकलेगा। अब तुम बच्चे जानते हो कि बाप ने अपना परिचय दिया है कि मैं छोटी बिन्दू हूँ। मुझे ही ज्ञान का सागर कहते हैं। मुझ बिन्दू में सारा ज्ञान भरा हुआ है। आत्मा में ही नॉलेज रहती है। अभी तुम बच्चे समझते हो कि उनको परमपिता परमात्मा कहा जाता है। वह है सुप्रीम सोल अर्थात् सबसे ऊंच ते ऊंच पतित-पावन बाप ही सुप्रीम है ना। मनुष्य हे भगवान कहेंगे तो शिवलिंग ही याद पड़ेगा। वह भी यथार्थ रीति से नहीं। एक जैसेकि आदत पड़ गई है कि भगवान को याद करना है। भगवान ही सुख-दु:ख देता है। अभी तुम बच्चे ऐसे नहीं कहेंगे। तुम जानते हो कि बाप तो सुखदाता है। सतयुग में सुखधाम था। वहाँ दु:ख का नाम नहीं था। कलियुग में है ही दु:ख, यहाँ सुख का नाम ही नहीं। ऊंच ते ऊंच भगवान, वह है सर्व आत्माओं का बाप। यह किसको पता नहीं है कि आत्माओं का बाप भी है, कहते भी हैं हम सब ब्रदर्स हैं। तो जरूर सब एक बाप के बच्चे ठहरे ना। कोई फिर कह देते कि वह तो सर्वव्यापी है – तेरे में भी है, मेरे में भी है…..। अरे, तुम तो आत्मा हो, यह तुम्हारा शरीर है फिर तीसरी चीज़ कैसे हो सकती है! आत्मा को परमात्मा थोड़ेही कहेंगे। जीव आत्मा कहा जाता है। जीव परमात्मा नहीं कहा जाता। फिर परमात्मा सर्वव्यापी कैसे हो सकता! बाप सर्वव्यापी होता तो फिर फादरहुड हो जाता, फादर को फादर से वर्सा थोड़ेही मिलेगा। बाप से तो बच्चा ही वर्सा लेता है। सब फादर कैसे हो सकते। इतनी छोटी-सी बात भी कोई की समझ में नहीं आती है। तब बाप कहते हैं – बच्चे, हमने आज से 5 हज़ार वर्ष पहले तुमको कितना समझदार बनाया था, तुम एवरहेल्दी, वेल्दी, समझदार थे। इससे जास्ती समझदार कोई हो नहीं सकता। तुमको अभी जो समझ मिलती है यह फिर वहाँ नहीं होगी। वहाँ यह थोड़ेही मालूम रहता कि हम फिर गिरेंगे। यह मालूम हो तो फिर सुख की भासना ही न आये। यह ज्ञान फिर प्राय: लोप हो जाता है। यह ड्रामा का ज्ञान सिर्फ अभी तुम्हारी बुद्धि में है। ब्राह्मण ही अधिकारी रहते हैं। तुम्हारी बुद्धि में है कि अब हम ब्राह्मण वर्ण के हैं। ब्राह्मणों को ही बाप ज्ञान सुनाते हैं। ब्राह्मण फिर सबको सुनाते हैं। गायन भी है कि भगवान ने आकर स्वर्ग की स्थापना की थी, राजयोग सिखाया था। देखो श्रीकृष्ण जयन्ती मनाते हैं, समझते हैं कि श्रीकृष्ण वैकुण्ठ का मालिक था, परन्तु वह विश्व का मालिक था – यह बुद्धि में नहीं आता। जब उनका राज्य था तो और कोई धर्म नहीं था। उनका ही सारे विश्व पर राज्य था और जमुना के किनारे था। अब तुमको यह कौन समझा रहे हैं? भगवानुवाच। बाकी वह जो भी वेद-शास्त्र आदि सुनाते वह है भक्ति मार्ग के। यहाँ तो खुद भगवान तुमको सुना रहे हैं। अभी तुम समझते हो हम पुरुषोत्तम बन रहे हैं। तुमको ही यह बुद्धि में है कि हम शान्तिधाम के रहने वाले हैं फिर हम आकर 21 जन्मों की प्रालब्ध भोगेंगे।

तुम बच्चों को अन्दर में खुशी से गद्गद् होना चाहिए कि बेहद का बाबा शिवबाबा हमको पढ़ा रहे हैं, वह ज्ञान का सागर है, सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त को जानता है। ऐसा बाबा हमारे लिए आया है तो खुशी में गुदगुदी होती है। बाबा को कहते हैं बाबा हमने आपको अपना वारिस बनाया है। बाप बच्चों पर वारी जाते हैं। बच्चे फिर कहते हैं कि भगवान आप जब आयेंगे तो हम आप पर वारी जायेंगे अर्थात् बच्चा बनायेंगे। यह भी अपने बच्चों को ही वारिस बनाते हैं। बाबा को वारिस कैसे बनायेंगे। यह भी गुह्य बात है। अपना सब कुछ एक्सचेंज करना – इसमें बुद्धि का काम है। गरीब तो झट एक्सचेंज कर लेंगे, साहूकार मुश्किल करेंगे। जब तक कि पूरी रीति ज्ञान न उठावें। इतनी हिम्मत नहीं रहती। गरीब तो झट कह देते – बाबा हम तो आपको ही वारिस बनायेंगे। हमारे पास रखा ही क्या है। वारिस बनाकर फिर शरीर निर्वाह भी अपना करना है। सिर्फ ट्रस्टी समझकर रहना है। युक्तियां बहुत बताते रहते हैं। बाप तो सिर्फ देखते हैं कि कोई पाप कर्म में तो पैसे खराब नहीं करते हैं? मनुष्य को पुण्य आत्मा बनाने में पैसा लगाते हैं? सर्विस भी कायदेसिर करते हैं? यह पूरी जांच करेंगे, फिर सब राय देंगे। यह भी धन्धे में ईश्वर अर्थ निकालते थे ना। वह तो था इनडायरेक्ट। अभी बाप डायरेक्ट आये हैं। मनुष्य समझते हैं हम जो कुछ करते हैं उनका फल ईश्वर दूसरे जन्म में देते हैं। कोई गरीब दु:खी है तो समझेंगे कर्म ही ऐसा किया हुआ है। अच्छे कर्म किये हैं तो सुखी हैं। बाप तुम बच्चों को कर्मों की गति पर समझाते हैं, रावण राज्य में तुम्हारे सब कर्म विकर्म ही हो जाते हैं। सतयुग और त्रेता में रावण ही नहीं इसलिए वहाँ कोई कर्म विकर्म नहीं होता है। यहाँ जो अच्छे कर्म करते हैं उनका अल्पकाल के लिए सुख मिलता है। फिर भी कोई न कोई रोग खिटपिट तो रहती ही है क्योंकि अल्प-काल का सुख है। अभी बाप कहते हैं यह रावण राज्य ही खत्म होना है। राम राज्य की स्थापना शिवबाबा कर रहे हैं।

तुम जानते हो यह चक्र कैसे फिरता है। भारत ही फिर गरीब हो जाता है। भारत आज से 5 हज़ार वर्ष पहले स्वर्ग था, इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। पहले गद्दी इनकी चली थी। श्रीकृष्ण प्रिन्स फिर स्वयंवर किया तो राजा बना। श्रीनारायण नाम पड़ा। यह भी तुम अभी समझते हो तो तुमको वन्डर लगता है। बाबा आप सारे रचता और रचना की नॉलेज सुनाते हो। आप हमको कितना ऊंच पढ़ाते हो। बलिहार जाऊं, हमको तो सिवाए एक बाप के और कोई को याद नहीं करना है। अन्त तक पढ़ना है तो जरूर टीचर को याद करना है। स्कूल में टीचर को याद करते हैं ना। उन स्कूलों में तो कितने टीचर्स होते हैं। हर एक दर्जे का टीचर अलग होता है, यहाँ तो एक ही टीचर है। कितना लवली है। बाप लवली, टीचर लवली….. आगे भक्ति मार्ग में अन्धश्रद्धा से याद करते थे। अभी तो डायरेक्ट बाप पढ़ाते हैं तो कितनी खुशी होनी चाहिए फिर भी कहते बाबा भूल जाते हैं। पता नहीं हमारी बुद्धि आपको क्यों नहीं याद करती है। गाते भी हैं ईश्वर की गति-मति न्यारी है। बाबा आपकी गति और सद्गति की मत तो बड़ी वन्डरफुल है। ऐसे बाप को याद करना चाहिए। स्त्री अपने पति के गुण गाती है ना। बड़ा अच्छा है, यह-यह उनकी प्रापर्टी है, अन्दर में खुशी रहती है ना। यह तो पतियों का पति, बापों का बाप है, इनसे कितना हमको सुख मिलता है। और सबसे तो दु:ख मिलता है। हाँ, टीचर से सुख मिलता है क्योंकि पढ़ाई से इनकम होती है। गुरू हमेशा किया जाता है वानप्रस्थ में। बाप भी कहते हैं मैं वानप्रस्थ में आया हूँ। यह भी वानप्रस्थी, मैं भी वानप्रस्थी। यह सब मेरे बच्चे भी वानप्रस्थी हैं। बाप टीचर गुरू तीनों ही इकट्ठे हैं। बाप टीचर भी बनते हैं फिर गुरू बन साथ ले जाते हैं। उस एक बाप की ही महिमा है, यह बातें और कोई शास्त्र आदि में नहीं हैं। बाबा हर बात अच्छी रीति समझाते हैं। इनसे ऊंची नॉलेज कोई होती नहीं, न जानने की दरकार रहती है। हम सब कुछ जानकर विश्व के मालिक बन जाते हैं और जास्ती क्या करेंगे। बच्चों की बुद्धि में यह हो तब खुशी में और उसी याद में रहें। पुण्य आत्मा बनने के लिए याद में जरूर रहना चाहिए। माया का धर्म है तुम्हारे योग को तोड़ना। योग में ही माया विघ्न डालती है। भूल जाते हो। माया के तूफान बहुत आते हैं। यह भी ड्रामा में नूंध है। सबसे आगे तो यह है, तो इनको सब अनुभव होते हैं। मेरे पास जब आयें तब तो सबको समझाऊं ना। यह सब माया के तूफान आयेंगे। बाबा के पास भी आते हैं। तुमको भी आयेंगे। माया का तूफान ही न आये, योग लगा ही रहे तो कर्मातीत अवस्था हो जाए। फिर हम यहाँ रह न सकें। कर्मातीत अवस्था हो जायेगी तो फिर सब चले जायेंगे। शिव की बरात गाई हुई है ना। शिवबाबा आये तब हम सब आत्मायें जायें। शिवबाबा आते ही हैं सबको ले जाने। सतयुग में इतनी आत्मायें थोड़ेही होंगी। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) शिवबाबा को अपना वारिस बनाकर सब कुछ एक्सचेंज कर देना है। वारिस बनाकर शरीर निर्वाह भी करना है, ट्रस्टी समझकर रहना है। पैसे कोई भी पाप कर्म में नहीं लगाने हैं।

2) अन्दर खुशी में गुदगुदी होती रहे कि स्वयं ज्ञान का सागर बाबा हमको पढ़ा रहे हैं। पुण्य आत्मा बनने के लिए याद में रहना है, माया के तूफानों से डरना नहीं है।

वरदान:- सत्यता के आधार पर एक बाप को प्रत्यक्ष करने वाले, निर्भय अथॉरिटी स्वरूप भव
सत्यता ही प्रत्यक्षता का आधार है। बाप को प्रत्यक्ष करने के लिए निर्भय और अथॉरिटी स्वरूप बन-कर बोलो, संकोच से नहीं। जब अनेक मत वाले सिर्फ एक बात को मान लेंगे कि हम सबका बाप एक है और वही अब कार्य कर रहे हैं, हम सब एक की सन्तान एक हैं और यह एक ही यथार्थ है..तो विजय का झण्डा लहरा जायेगा। इसी संकल्प से मुक्तिधाम जायेंगे और फिर जब अपना-अपना पार्ट बजाने आयेंगे तो पहले यही संस्कार इमर्ज होंगे कि गाड इज वन। यही गोल्डन एज की स्मृति है।
स्लोगन:- सहन करना ही स्वयं के शक्ति रूप को प्रत्यक्ष करना है।

 

अव्यक्त इशारे-आत्मिक स्थिति में रहने का अभ्यास करो, अन्तर्मुखी बनो

जैसे यह देह स्पष्ट दिखाई देती है वैसे अपनी आत्मा का स्वरूप स्पष्ट दिखाई दे अर्थात् अनुभव में आये। मस्तक अर्थात् बुद्धि की स्मृति वा दृष्टि से सिवाए आत्मिक स्वरूप के और कुछ भी दिखाई न दे वा स्मृति में न आये। ऐसे निरन्तर तपस्वी बनो तब हर आत्मा के प्रति कल्याण का शुभ संकल्प उत्पन्न होगा। भल कोई अपने संस्कार-स्वभाव के वश आपके पुरुषार्थ में परीक्षा के निमित्त बना हुआ हो, उसके प्रति भी सदा कल्याण का संकल्प उत्पन्न हो।

“मीठे बच्चे – बाप तुम्हें नई दुनिया के लिए राजयोग सिखला रहे हैं, इसलिए इस पुरानी दुनिया का विनाश भी जरूर होना है”

प्रश्न 1:मनुष्यों में एक अच्छी आदत कौन-सी है, जिससे भी कोई प्राप्ति नहीं होती?

उत्तर:मनुष्यों में भगवान को याद करने की आदत पड़ गई है। जब कोई संकट आता है तो कह देते हैं – “हे भगवान!” लेकिन पहचान यथार्थ नहीं होने के कारण उनसे कोई प्राप्ति नहीं होती। बस याद करते हैं और कह देते हैं – “सुख-दुख सब वही देता है।”
परन्तु अब तुम बच्चे जानते हो कि बाप सुखदाता है, दु:खदाता नहीं। इसलिए अब तुम उस यथार्थ याद के मार्ग पर हो जहाँ से सच्चा फल मिलता है।


प्रश्न 2:सच्चा स्वर्ग कहाँ था और उसका स्वामी कौन था?

उत्तर:सच्चा स्वर्ग भारत में था, और उसका स्वामी श्रीकृष्ण अर्थात् लक्ष्मी-नारायण थे। श्रीकृष्ण कोई कल्पना नहीं, वह साकार विश्व का राजा था। उनका छोटा-सा मन्दिर सुखधाम नहीं था, बल्कि पूरा भारत ही सुखधाम था।


प्रश्न 3:प्रजापिता ब्रह्मा को “बाप” ने कैसे अपना बच्चा बनाया?

उत्तर:बाप ने स्वयं ब्रह्मा में प्रवेश कर कहा – “यह हमारा बच्चा है।” ब्रह्मा को मुख वंशावली से ब्राह्मण संतान पैदा की, इसीलिए उन्हें ‘प्रजापिता’ कहा जाता है। प्रजापिता ब्रह्मा के द्वारा ही ब्राह्मण कुल की स्थापना होती है।


प्रश्न 4:ब्रह्मा, विष्णु और शंकर को लेकर मनुष्यों की कौन-सी गलतफहमी है?

उत्तर:मनुष्य सिर्फ नाम गाते हैं – ब्रह्मा, विष्णु, शंकर – लेकिन जानते कुछ भी नहीं। शिव को भी भगवान मानते हैं, परन्तु यह नहीं जानते कि वह निराकार बाप है, जो ज्ञान का सागर है। वे यह भी नहीं जानते कि सृष्टि की रचना शिवबाबा ही करते हैं।


प्रश्न 5:राजयोग सिखाने वाला कौन है और वह क्यों सिखा रहा है?

उत्तर:राजयोग खुद परमपिता परमात्मा शिव सिखा रहे हैं, ताकि तुम बच्चे नई दुनिया के मालिक बनो। जब नई दुनिया की स्थापना हो रही है तो पुरानी दुनिया का विनाश भी निश्चित है। यही कारण है कि महाभारत युद्ध की भविष्यवाणी भी है।


प्रश्न 6:ज्ञान और भक्ति में मुख्य अंतर क्या है?

उत्तर:भक्ति में मेहनत होती है, परन्तु प्राप्ति नहीं। ज्ञान में सच्ची सद्गति होती है। भक्ति मार्ग में जप-तप, पूजा-पाठ है, जबकि ज्ञान मार्ग में बाप स्वयं आकर ज्ञान सुनाते हैं और याद के बल से आत्मा पावन बनती है।


प्रश्न 7:मनुष्य “भगवान सर्वव्यापी है” क्यों कहते हैं और यह धारणा कहाँ गलत है?

उत्तर:क्योंकि वे आत्मा और परमात्मा का भेद नहीं जानते। वे समझते हैं कि परमात्मा सबमें समाया हुआ है, परन्तु अगर सब फादर हो जाएँ तो वर्सा किससे मिलेगा? इसलिए भगवान सर्वव्यापी नहीं हो सकता – वह एक बिंदु रूप निराकार है, और वही सभी आत्माओं का पिता है।


प्रश्न 8:बाप बच्चों की कौन-कौन-सी बातें जाँचते हैं?

उत्तर:बाप देखते हैं कि बच्चे पाप कर्म में तो पैसा नहीं लगा रहे? क्या ईश्वरीय सेवा में लगाते हैं? क्या ट्रस्टी बनकर चल रहे हैं? क्या सेवा में कायदेसिर और सच्चे रीति लगन से काम कर रहे हैं? गरीब झट वारिस बना देते हैं, लेकिन साहूकारों को देरी लगती है।


प्रश्न 9:राम राज्य और रावण राज्य में मुख्य अंतर क्या है?

उत्तर:राम राज्य अर्थात् सतयुग-त्रेता में पवित्रता, सुख और शान्ति है, जहाँ रावण नहीं होता इसलिए कोई विकर्म नहीं होता। परन्तु रावण राज्य में हर कर्म विकर्म बन जाता है। इसलिए रावण राज्य का विनाश होना है और राम राज्य की स्थापना शिवबाबा कर रहे हैं।


प्रश्न 10:बाप टीचर और गुरू – तीनों रूपों में कैसे काम करते हैं?

उत्तर:बाप बच्चों को वर्सा देते हैं, टीचर बनकर ज्ञान सिखाते हैं और गुरू बनकर साथ वापिस शान्तिधाम ले जाते हैं। इसीलिए उस एक शिवबाबा की ही महिमा है – वह ही सच्चा बाप, सच्चा टीचर और सच्चा सद्गति दाता गुरू है।


प्रश्न 11:सबसे ऊँची और श्रेष्ठ आत्मा कौन है?

उत्तर:परमपिता परमात्मा शिव – जो ज्ञान का सागर, पतित-पावन, सुखदाता, शान्तिधाम का मालिक और सभी आत्माओं का पिता है। वह एक ही आत्मा है जो निराकार है और सम्पूर्ण सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त को जानता है।


प्रश्न 12:बाबा की कौन-सी एक विशेष बात दिल को लगती है?

उत्तर:बाबा कहते हैं – “बच्चे, आज से 5000 वर्ष पहले तुम कितने समझदार थे। तुम्हें मैं एवरहेल्दी, एवरवेल्दी बनाता हूँ। इससे जास्ती कोई समझदार हो नहीं सकता।” इस आत्म-स्मृति से दिल गदगद हो जाती है और बाबा पर बलिहार जाने की भावना उमड़ती है।

सार:

अब स्वयं परमात्मा शिव बाबा आकर तुम बच्चों को पढ़ा रहे हैं, ताकि तुम राजाओं के राजा बनो।
यह संगमयुग ही वह शुभ समय है जब ज्ञान, योग और सच्ची ईश्वरीय पढ़ाई मिल रही है।
पुरानी दुनिया का विनाश और नई दुनिया की स्थापना साथ-साथ हो रही है।
इसलिए – “बाबा को याद करो, ट्रस्टी बनो और पुण्य आत्मा बनो।”

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