MURLI 04-07-2025/BRAHMAKUMARIS

(Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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04-07-2025
प्रात:मुरली
ओम् शान्ति
“बापदादा”‘
मधुबन
“मीठे बच्चे – बन्धनमुक्त बन सर्विस में तत्पर रहो, क्योंकि इस सर्विस में बहुत ऊंच कमाई है, 21 जन्मों के लिए तुम वैकुण्ठ का मालिक बनते हो”
प्रश्नः- हर एक बच्चे को कौन-सी आदत डालनी चाहिए?
उत्तर:- मुरली की प्वाइंट पर समझाने की। ब्राह्मणी (टीचर) अगर कहीं चली जाती है तो आपस में मिलकर क्लास चलानी चाहिए। अगर मुरली चलाना नहीं सीखेंगे तो आप समान कैसे बनायेंगे। ब्राह्मणी बिगर मूँझना नहीं चाहिए। पढ़ाई तो सिम्पुल है। क्लास चलाते रहो, यह भी प्रैक्टिस करनी है।
गीत:- मुखड़ा देख ले प्राणी. …..

ओम् शान्ति। बच्चे जब सुनते हैं तो अपने को आत्मा निश्चय कर बैठे और यह निश्चय करें कि बाप परमात्मा हमको सुना रहे हैं। यह डायरेक्शन अथवा मत एक ही बाप देते हैं। उनको ही श्रीमत कहा जाता है। श्री अर्थात् श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ। वह है बेहद का बाप, जिसको ऊंच ते ऊंच भगवान कहा जाता है। बहुत मनुष्य हैं जो उस लव से परमात्मा को बाप समझते भी नहीं हैं। भल शिव की भक्ति करते हैं, बहुत प्यार से याद करते हैं परन्तु मनुष्यों ने कह दिया है कि सभी में परमात्मा है, तो वह लव किसके साथ रखें इसलिए बाप से विपरीत बुद्धि हो गये हैं। भक्ति में जब कोई दु:ख वा रोग आदि होता है तो प्रीत दिखाते हैं। कहते हैं भगवान रक्षा करो। बच्चे जानते हैं गीता है श्रीमत भगवान के मुख से गाई हुई। और कोई ऐसा शास्त्र नहीं जिसमें भगवान ने राजयोग सिखाया हो वा श्रीमत दी हो। एक ही भारत की गीता है, जिसका प्रभाव भी बहुत है। एक गीता ही भगवान की गाई हुई है, भगवान कहने से एक निराकार तरफ ही दृष्टि जाती है। अंगुली से इशारा ऊपर में करेंगे। श्रीकृष्ण के लिए ऐसे कभी नहीं कहेंगे क्योंकि वह तो देहधारी है ना। तुमको अब उनके साथ सम्बन्ध का पता पड़ा है इसलिए कहा जाता है बाप को याद करो, उनसे प्रीत रखो। आत्मा अपने बाप को याद करती है। अभी वह भगवान बच्चों को पढ़ा रहे हैं। तो वह नशा बहुत चढ़ना चाहिए। और नशा भी स्थाई चढ़ना चाहिए। ऐसे नहीं ब्राह्मणी सामने है तो नशा चढ़े, ब्राह्मणी नहीं तो नशा उड़ जाए। बस ब्राह्मणी बिगर हम क्लास नहीं कर सकते। कोई-कोई सेन्टर्स के लिए बाबा समझाते हैं कहाँ से 5-6 मास भी ब्राह्मणी निकल जाती तो आपस में सेन्टर सम्भालते हैं क्योंकि पढ़ाई तो सिम्पुल है। कई तो ब्राह्मणी बिगर जैसे अन्धे लूले हो जाते हैं। ब्राह्मणी निकल आई तो सेन्टर में जाना छोड़ देंगे। अरे, बहुत बैठे हैं, क्लास नहीं चला सकते हो। गुरू बाहर चला जाता है तो चेले पिछाड़ी में सम्भालते हैं ना। बच्चों को सर्विस करनी हैं। स्टूडेन्ट में नम्बरवार तो होते ही हैं। बापदादा जानते हैं कहाँ फर्स्टक्लास को भेजना है। बच्चे इतने वर्ष सीखे हैं, कुछ तो धारणा हुई होगी जो सेन्टर को चलायें आपस में मिलकर। मुरली तो मिलती ही है। प्वाइंट्स के आधार पर ही समझाते हैं। सुनने की आदत पड़ी फिर सुनाने की आदत पड़ती नहीं। याद में रहें तो धारणा भी हो। सेन्टर पर ऐसे तो कोई होने चाहिए जो कहें अच्छा ब्राह्मणी जाती है, हम सेन्टर को सम्भालते हैं। बाबा ने ब्राह्मणी को कहाँ अच्छे सेन्टर पर भेजा है सर्विस के लिए। ब्राह्मणी बिगर मूँझ नहीं जाना चाहिए। ब्राह्मणी जैसे नहीं बनेंगे तो दूसरों को आप समान कैसे बनायेंगे, प्रजा कैसे बनायेंगे। मुरली तो सबको मिलती है। बच्चों को खुशी होनी चाहिए हम गद्दी पर बैठ समझायें। प्रैक्टिस करने से सर्विसएबुल बन सकते हैं। बाबा पूछते हैं सर्विसएबुल बने हो? तो कोई भी नहीं निकलते हैं। सर्विस के लिए छुट्टी ले लेनी चाहिए। जहाँ भी सर्विस के लिए बुलावा आये वहाँ पर छुट्टी लेकर चले जाना चाहिए। जो बन्धनमुक्त बच्चे हैं वह ऐसी सर्विस कर सकते हैं। उस गवर्मेन्ट से तो इस गवर्मेन्ट की कमाई बहुत ऊंच है। भगवान पढ़ाते हैं, जिससे तुम 21 जन्मों के लिए वैकुण्ठ का मालिक बनते हो। कितनी भारी आमदनी है, उस कमाई से क्या मिलेगा? अल्पकाल का सुख। यहाँ तो विश्व का मालिक बनते हो। जिनको पक्का निश्चय है वह तो कहेंगे हम इसी सेवा में लग जायें। परन्तु पूरा नशा चाहिए। देखना है हम किसको समझा सकते हैं! है बहुत सहज। कलियुग अन्त में इतने करोड़ मनुष्य हैं, सतयुग में जरूर थोड़े होंगे। उसकी स्थापना के लिए जरूर बाप संगम पर ही आयेंगे। पुरानी दुनिया का विनाश होना है। महाभारत लड़ाई भी मशहूर है। यह लगती ही तब है जबकि भगवान आकर सतयुग के लिए राजयोग सिखलाए राजाओं का राजा बनाते हैं। कर्मातीत अवस्था को प्राप्त कराते हैं। कहते हैं देह सहित देह के सब सम्बन्ध छोड़ मामेकम् याद करो तो पाप कटते जायेंगे। अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना – यही मेहनत है। योग का अर्थ एक भी मनुष्य नहीं जानते हैं।

बाप समझाते हैं भक्ति मार्ग की भी ड्रामा में नूँध है। भक्ति मार्ग चलना ही है। खेल बना हुआ है – ज्ञान, भक्ति, वैराग्य। वैराग्य भी दो प्रकार का होता है। एक है हद का वैराग्य, दूसरा है यह बेहद का वैराग्य। अभी तुम बच्चे सारी पुरानी दुनिया को भूलने का पुरुषार्थ करते हो क्योंकि तुम जानते हो हम अब शिवालय, पावन दुनिया में जा रहे हैं। तुम सब ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ भाई-बहन हो। विकारी दृष्टि जा न सके। आजकल तो सबकी दृष्टि क्रिमिनल हो गई है। तमोप्रधान हैं ना। इसका नाम ही है नर्क परन्तु अपने को नर्कवासी समझते थोड़ेही हैं। स्वयं का पता ही नहीं तो कह देते स्वर्ग-नर्क यहाँ ही है। जिसके मन में जो आया वह कह दिया। यह कोई स्वर्ग नहीं है। स्वर्ग में तो किंगडम थी। रिलीजस, राइटियस थे। कितना बल था। अभी फिर तुम पुरुषार्थ कर रहे हो। विश्व का मालिक बन जायेंगे। यहाँ तुम आते ही हो विश्व का मालिक बनने। हेविनली गॉड फादर जिसको शिव परमात्मा कहा जाता है, वह तुमको पढ़ाते हैं। बच्चों में कितना नशा रहना चाहिए। बिल्कुल इज़ी नॉलेज है। तुम बच्चों में जो भी पुरानी आदतें हैं वह छोड़ देनी हैं। ईर्ष्या की आदत भी बहुत नुकसान करती है। तुम्हारा सारा मदार मुरली पर है, तुम कोई को भी मुरली पर समझा सकते हो। परन्तु अन्दर में ईर्ष्या रहती है – यह कोई ब्राह्मणी थोड़ेही है, यह क्या जानें। बस दूसरे दिन आयेंगे ही नहीं। ऐसी आदतें पुरानी पड़ी हुई हैं, जिस कारण डिससर्विस भी होती है। नॉलेज तो बड़ी सहज है। कुमारियों को तो कोई धन्धा आदि भी नहीं है। उनसे पूछा जाता है वह पढ़ाई अच्छी या यह पढ़ाई अच्छी? तो कहते हैं यह बहुत अच्छी है। बाबा अभी हम वह पढ़ाई नहीं पढ़ेंगी। दिल नहीं लगती। लौकिक बाप ज्ञान में नहीं होगा तो मार खायेंगी। फिर कोई बच्चियां कमजोर भी होती हैं। समझाना चाहिए ना – इस पढ़ाई से हम महारानी बनेंगी। उस पढ़ाई से क्या पाई पैसे की नौकरी करेंगी। यह पढ़ाई तो भविष्य 21 जन्म के लिए स्वर्ग का मालिक बनाती है। प्रजा भी स्वर्गवासी तो बनती है ना। अभी सब हैं नर्कवासी।

अब बाप कहते हैं तुम सर्वगुण सम्पन्न थे। अब तुम ही कितने तमोप्रधान बन पड़े हो। सीढ़ी उतरते आये हो। भारत जिसे सोने की चिड़िया कहते थे, अभी तो ठिक्कर की भी नहीं है। भारत 100 परसेन्ट सालवेन्ट था। अब 100 परसेन्ट इनसालवेन्ट है। तुम जानते हो हम विश्व के मालिक पारसनाथ थे। फिर 84 जन्म लेते-लेते अब पत्थरनाथ बन पड़े हैं। हैं तो मनुष्य ही परन्तु पारसनाथ और पत्थरनाथ कहा जाता है। गीत भी सुना – अपने अन्दर को देखो हम कहाँ तक लायक हैं। नारद का मिसाल है ना। दिन-प्रतिदिन गिरते ही जाते हैं। गिरते-गिरते एकदम दुबन में गले तक फँस पड़े हैं। अब तुम ब्राह्मण सभी को चोटी से पकड़कर दुबन से निकालते हो बाहर। और कोई पकड़ने की जगह तो है नहीं। तो चोटी से पकड़ना सहज है। दुबन से निकालने के लिए चोटी से पकड़ना होता है। दुबन में ऐसे फँसे हुए हैं जो बात मत पूछो। भक्ति का राज्य है ना। अभी तुम कहते हो बाबा हम कल्प पहले भी आपके पास आये थे – राज्य भाग्य पाने। लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर भल बनाते रहते हैं परन्तु उनको यह पता नहीं है कि यह विश्व के मालिक कैसे बनें। अभी तुम कितने समझदार बने हो। तुम जानते हो इन्हों ने राज्य-भाग्य कैसे पाया। फिर 84 जन्म कैसे लिए। बिरला कितने मन्दिर बनाते हैं। जैसे गुड़िया बना लेते हैं। वह छोटी-छोटी गुड़िया यह फिर बड़ी गुड़िया बनाते हैं। चित्र बनाकर पूजा करते हैं। उनका आक्यूपेशन न जानना तो गुड़ियों की पूजा हुई ना। अभी तुम जानते हो बाप ने हमको कितना साहूकार बनाया था, अब कितने कंगाल बन पड़े हैं। जो पूज्य थे, सो अब पुजारी बन पड़े हैं। भक्त लोग भगवान के लिए कह देते आपेही पूज्य आपेही पुजारी। आप ही सुख देते हो, आप ही दु:ख देते हो। सब कुछ आप ही करते हो। बस इसमें ही मस्त हो जाते हैं। कहते हैं आत्मा निर्लेप है, कुछ भी खाओ पियो मौज करो, शरीर को लेप-छेप लगता है, वह गंगा स्नान से शुद्ध हो जायेगा। जो चाहिए सो खाओ। क्या-क्या फैशन है। बस जिसने जो रिवाज डाला वह चल पड़ता है। अब बाप समझाते हैं विषय सागर से चलो शिवालय में। सतयुग को क्षीर सागर कहा जाता है। यह है विषय सागर। तुम जानते हो हम 84 जन्म लेते पतित बने हैं, तब तो पतित-पावन बाप को बुलाते हैं। चित्रों पर समझाया जाता है तो मनुष्य सहज समझ जाएं। सीढ़ी में पूरा 84 जन्मों का वृतान्त है। इतनी सहज बात भी किसको समझा नहीं सकेंगे। तो बाबा समझेंगे पूरा पढ़ते नहीं हैं। उन्नति नहीं करते हैं।

तुम ब्राह्मणों का कर्तव्य है – भ्रमरी के मिसल कीड़ों को भूँ-भूँ कर आप समान बनाना। और तुम्हारा पुरुषार्थ है – सर्प के मिसल पुरानी खाल छोड़ नई लेने का। तुम जानते हो यह पुराना सड़ा हुआ शरीर है, इनको छोड़ना है। यह दुनिया भी पुरानी है। शरीर भी पुराना है। यह छोड़कर अब नई दुनिया में जाना है। तुम्हारी यह पढ़ाई है ही नई दुनिया स्वर्ग के लिए। यह पुरानी दुनिया खलास हो जानी है। सागर की एक ही लहर से सारा डांवाडोल हो जायेगा। विनाश तो होना ही है ना। नैचुरल कैलेमिटीज किसको भी छोड़ती नहीं है। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) अन्दर जो ईर्ष्या आदि की पुरानी आदतें हैं, उसे छोड़ आपस में बहुत प्यार से मिलकर रहना है। ईर्ष्या के कारण पढ़ाई नहीं छोड़नी है।

2) इस पुराने सड़े हुए शरीर का भान छोड़ देना है। भ्रमरी की तरह ज्ञान की भूँ-भूँ कर कीड़ों को आप समान बनाने की सेवा करनी है। इस रूहानी धन्धे में लग जाना है।

वरदान:- मन्सा बन्धनों से मुक्त, अतीन्द्रिय सुख की अनुभूति करने वाले मुक्ति दाता भव
अतीन्द्रिय सुख में झूलना – यह संगमयुगी ब्राह्मणों की विशेषता है। लेकिन मन्सा संकल्पों के बंधन आन्तरिक खुशी वा अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करने नहीं देते। व्यर्थ संकल्पों, ईर्ष्या, अलबेलेपन वा आलस्य के संकल्पों के बंधन में बंधना ही मन्सा बंधन है, ऐसी आत्मा अभिमान के वश दूसरों का ही दोष सोचती रहती है, उनकी महसूसता शक्ति समाप्त हो जाती है इसलिए इस सूक्ष्म बंधन से मुक्त बनो तब मुक्ति दाता बन सकेंगे।
स्लोगन:- ऐसा खुशियों की खान से सम्पन्न रहो जो आपके पास दु:ख की लहर भी न आये।

 

अव्यक्त इशारे – संकल्पों की शक्ति जमा कर श्रेष्ठ सेवा के निमित्त बनो

किसी भी श्रेष्ठ संकल्प रूपी बीज को फलीभूत बनाने का सहज साधन एक ही है – वह है सदा बीज रूप बाप से हर समय सर्व शक्तियों का बल उस बीज में भरते रहना। बीज रूप द्वारा आपके संकल्प रूपी बीज सहज और स्वत: वृद्धि को पाते फलीभूत हो जायेंगे। संकल्प शक्ति जमा हो जायेगी।

“मीठे बच्चे – बन्धनमुक्त बन सर्विस में तत्पर रहो, क्योंकि इस सर्विस में बहुत ऊंच कमाई है, 21 जन्मों के लिए तुम वैकुण्ठ का मालिक बनते हो”


प्रश्न 1:हर एक ब्राह्मण बच्चे को कौन-सी विशेष आदत अवश्य डालनी चाहिए?

उत्तर:हर बच्चे को मुरली की पॉइंट्स पर समझाने की आदत डालनी चाहिए। यदि ब्राह्मणी किसी कारणवश सेंटर से चली जाए, तो बच्चे मिलकर क्लास चलाएँ। ब्राह्मणी के बिना क्लास न करना, यह कमजोरी है। पढ़ाई तो सरल है, अभ्यास करेंगे तो सर्विसएबुल बनेंगे। यही अभ्यास हमें समान बनाने की दिशा में ले जाता है।


प्रश्न 2:अगर ब्राह्मणी सेंटर से कुछ समय के लिए चली जाए, तो बच्चों की क्या जिम्मेदारी बनती है?

उत्तर:बच्चों को मिलकर सेंटर संभालना चाहिए। क्लास नियमित चलनी चाहिए। मुरली तो मिलती है, उसके आधार पर ही समझाया जाता है। यदि कोई भी सेवा के लिए तैयार नहीं, तो यह सिद्ध करता है कि न पढ़ाई का नशा है, न सेवा की लगन।


प्रश्न 3:ईर्ष्या की आदत का ब्राह्मण जीवन में क्या प्रभाव पड़ता है?

उत्तर:ईर्ष्या एक बहुत बड़ी डिस-सर्विस है। इससे आत्मा में विकार प्रवेश कर जाते हैं और दूसरे की सेवा में विघ्न पड़ता है। अगर किसी को यह सोचकर रोकते हैं कि “यह ब्राह्मणी क्या समझाएगी”, तो ऐसे भाव से दूसरे दिन से वो आना ही बंद कर देता है। ईर्ष्या त्यागना बहुत ज़रूरी है।


प्रश्न 4:सर्विस के लिए सबसे पहली योग्यता कौन-सी है?

उत्तर:बन्धनमुक्तता। जो आत्माएं बन्धनमुक्त होती हैं, वही सहजता से सेवा के लिए जहां बुलावा आये वहाँ जा सकती हैं। बाबा कहते हैं, जो भी अवसर मिले, छुट्टी लेकर सेवा में तत्पर रहो। क्योंकि इस सेवा में बहुत ऊंच कमाई है, जो किसी भी लौकिक नौकरी से हजारों गुणा श्रेष्ठ है।


प्रश्न 5:यह ज्ञान किस प्रकार की कमाई कराता है और उसका फल क्या है?

उत्तर:यह ज्ञान 21 जन्मों के लिए स्वर्ग का मालिक बना देता है। यह बेहद की कमाई है जो कोई लौकिक गवर्नमेंट भी नहीं दे सकती। यहाँ भगवान स्वयं पढ़ाते हैं – ऐसी शिक्षा और सेवा जो हमें परम पद देती है।


प्रश्न 6:ज्ञान की मुख्य सहजता क्या है और मुख्य मेहनत किस बात की है?

उत्तर:ज्ञान बेहद सहज है – आत्मा को परमात्मा बाप से जोड़ो, यही मुख्य बात है। लेकिन मुख्य मेहनत है – ‘देह सहित देह के संबंधों को भूल, बाप को याद करना’। यही मेहनत हमें पापमुक्त बनाती है और कर्मातीत स्थिति तक ले जाती है।


प्रश्न 7:पुरानी दुनिया से वैराग्य कैसा होना चाहिए?

उत्तर:बेहद का वैराग्य। सिर्फ सीमित त्याग नहीं, बल्कि संपूर्ण दुनिया, पुराना शरीर, पुरानी आदतें – इन सब से वैराग्य हो। क्योंकि अब हम जानते हैं कि यह नर्क है, और हमें शिवालय में प्रवेश करना है। जो भी विषय-सागर है, उससे अलग हो क्षीरसागर में चलना है।


प्रश्न 8:बच्चों को किस मिसाल के अनुसार दूसरों को आप समान बनाना है?

उत्तर:भ्रमरी मिसल। जैसे भ्रमरी कीड़ों को भूँ-भूँ करके अपने समान बना देती है, वैसे ही ब्राह्मण बच्चों को दूसरों को आप समान बनाना है। यही है सच्ची ब्राह्मण सेवा – मुरली और धारणा के बल से दूसरों को परमात्मा की गोद में लाना।


प्रश्न 9:बाबा की दृष्टि में कौन बच्चा सेवा के लायक बनता है?

उत्तर:जो नियमित मुरली पढ़ता है, आत्म-अवलोकन करता है, सेवा के अवसर खोजता है, और सेवा में तत्पर है – वही बच्चा सेवा के लायक है। जिसने मुरली को अच्छी तरह समझा है, वह चित्रों द्वारा, पॉइंट्स द्वारा, सहज रीति से किसी को भी समझा सकता है।


प्रश्न 10:ब्रह्माकुमारियों का मुख्य उद्देश्य क्या है इस यज्ञ में?

उत्तर:हर आत्मा को सर्प की पुरानी खाल की तरह पुराना शरीर और स्वभाव छोड़कर नया स्वभाव और नई दुनिया की तैयारी करानी है। यह यज्ञ 84 जन्मों की पूरी चढ़ती और उतरती सीढ़ी समझाता है, और हमें नर्क से निकाल स्वर्ग का अधिकारी बनाता है।

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