(05)In what secret form did God give the knowledge of Gita?

(05)भगवान ने गीता-ज्ञान किस गुप्त रूप में दिया था?

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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“गीता का सच्चा भगवान कौन है? | श्रीकृष्ण नहीं, परमात्मा शिव ही गीता ज्ञानदाता हैं | Gita God Truth – Brahma Kumaris”


 ओम् शांति।

आज हम श्रीमद्भगवद्गीता के रहस्य को खोलने जा रहे हैं —
“गीता का भगवान कौन है?”
हमारा यह पाँचवाँ पाठ है — जो आत्मज्ञान की गहराई में ले जाता है।

 1. गीता: सिर्फ ग्रंथ नहीं, भगवान की वाणी

गीता कोई साधारण धर्मग्रंथ नहीं, बल्कि स्वयं भगवान की वाणी है।
परंतु उसमें बार-बार एक दिव्य वाक्य आता है —
“मैं अजन्मा हूं। मैं अविनाशी हूं।”

प्रश्न है:
 यह “मैं” कौन है?
 क्या वह श्रीकृष्ण थे, या कोई परम चेतना जो मनुष्य तन में प्रवेश कर बोल रही थी?


2. ज्ञान सूर्य कौन?

गीता अध्याय 4, श्लोक 1:
“मैंने यह ज्ञान सूर्य को दिया, सूर्य ने मनु को, मनु ने इस्वाकु को…”

कौन-सा सूर्य?
 आकाश का सूर्य तो बोल नहीं सकता!
ज्ञान सूर्य कौन है?

ज्ञान सूर्य = परमात्मा शिव, जो इस ज्ञान की रश्मियाँ फैलाते हैं।


 3. “मैं अजन्मा हूं” — यह वाणी किसकी?

गीता अध्याय 4, श्लोक 6:
“अजोऽपि सन्… भूतानामीश्वरोऽपि सन्…”
मैं अजन्मा और अविनाशी होते हुए भी मानव तन में प्रकट होता हूं।

यह स्पष्ट संकेत करता है कि गीता का भगवान कोई मानव आत्मा नहीं, बल्कि कोई अशरीरी परम चेतना है।

मुरली 4 जनवरी 1990:
“भगवान तो अजन्मा है, वह कभी गर्भ में नहीं आता। परकाया प्रवेश करता है।”


 4. दिव्य जन्म का सही अर्थ

लोग समझते हैं:
दिव्य जन्म = चमत्कार
जैसे श्रीकृष्ण का मुकुट, चार भुजाएं, जेल के ताले खुलना आदि।

परंतु —
वह लौकिक जन्म था — माता-पिता से, मनुष्य शरीर से।

सच्चा दिव्य जन्म = परकाया प्रवेश
मुरली 14 दिसंबर 1989:
“मैं ब्रह्मा के तन में प्रवेश कर गीता का ज्ञान देता हूं – संगम पर।”


 5. गीता और भागवत कथा में फर्क

भागवत कथा = श्रीकृष्ण के जीवन की कथा
श्रीमद्भगवद गीता = अर्जुन को परमात्मा द्वारा दिया गया ज्ञान

मुरली 25 नवंबर 1991:
“श्रीकृष्ण भगवान नहीं है। वह 84 जन्मों के चक्र में आने वाली श्रेष्ठ आत्मा है।”


 6. श्रीकृष्ण का बाल स्वरूप बनाम परमात्मा

श्रीकृष्ण जन्म लेकर बच्चा बना — बच्चा बोल नहीं सकता।

परमात्मा जब प्रवेश करते हैं, तो तुरंत बोलते हैं —
क्योंकि शरीर बड़ा है, वाणी बोलने योग्य है।

मुरली 2 सितंबर 1987:
“शिव बाबा का कोई नाम-रूप नहीं है। वह ब्रह्मा के तन में प्रवेश करते हैं।”


 7. गीता ज्ञान का उद्देश्य

गीता अध्याय 4, श्लोक 7-8:
“जब-जब धर्म की हानि होती है, मैं प्रकट होता हूं।”

 आज वही समय है — जब सभी धर्म अस्त-व्यस्त हैं।

मुरली 18 अक्टूबर 1989:
“संगम युग पर ही परमात्मा आकर सभी धर्मों को एक ज्ञान से जोड़ते हैं।”


8. “मामेकं शरणं व्रज” — किसने कहा?

यह आज्ञा श्रीकृष्ण नहीं दे सकते

मुरली 25 दिसंबर 1990:
“सिर्फ शिव बाबा कहते हैं — मेरी शरण में आओ। वही गीता का सच्चा भगवान है।”


 9. अंतिम तुलना — श्रीकृष्ण vs परमात्मा शिव

विशेषता श्रीकृष्ण परमात्मा शिव
स्वरूप शरीरधारी निराकार, अशरीरी
जन्म माता-पिता से परकाया प्रवेश
विवाह/संतान हां नहीं
भोगी या अभोक्ता भोगी अभोक्ता
ज्ञानदाता नहीं हां (ब्रह्मा द्वारा)
सर्व आत्माओं के पिता? नहीं हां

मुरली 21 जून 1989:
“शिव बाबा ही गीता का भगवान है। ब्रह्मा द्वारा नई सृष्टि रचते हैं।”


 उपसंहार: आत्माओं की पुकार

आज वही अद्भुत समय है जब परमात्मा स्वयं पुकार रहे हैं —
“हे आत्माओं! अब जागो।”
“स्वयं को आत्मा समझो और मुझ परमपिता शिव से योग लगाओ।”

 यही है श्रीमद्भगवद गीता का सच्चा ज्ञान।


 समाप्ति:

गीता का भगवान वह नहीं, जो जन्म ले —
बल्कि वह है जो अजन्मा, अविनाशी, निराकार होकर
ब्रह्मा के तन में प्रवेश करता है — वह है शिव।

ओम् शांति।

प्रश्नोत्तर सत्र – “गीता का सच्चा भगवान कौन है?” | श्रीकृष्ण नहीं, परमात्मा शिव ही गीता ज्ञानदाता हैं | Gita God Truth – Brahma Kumaris


प्रश्न 1: गीता में बार-बार कहा गया “मैं अजन्मा हूं, मैं अविनाशी हूं।” यह “मैं” कौन है?

 उत्तर:यह “मैं” कोई मानव आत्मा नहीं हो सकता, क्योंकि हर मानव का जन्म होता है।
यह वाणी परमात्मा शिव की है, जो निराकार, अजन्मा, अविनाशी आत्मा हैं।
गीता अध्याय 4, श्लोक 6 में इसका उल्लेख है।
मुरली 4 जनवरी 1990: “भगवान तो अजन्मा है, वह परकाया में प्रवेश करता है।”


प्रश्न 2: गीता का ज्ञान किसने सबसे पहले प्राप्त किया था?

 उत्तर:गीता अध्याय 4, श्लोक 1 के अनुसार —
यह ज्ञान सबसे पहले सूर्य को दिया गया था, फिर मनु को, फिर इस्वाकु को।

 लेकिन वह सूर्य आकाश का पिंड नहीं था,
बल्कि “ज्ञान सूर्य” परमात्मा शिव थे — जिन्होंने यह ज्ञान सबसे पहले सृष्टि के आदि में दिया था।


प्रश्न 3: क्या श्रीकृष्ण ने गीता का ज्ञान दिया?

उत्तर:नहीं। श्रीकृष्ण एक श्रेष्ठ आत्मा हैं, लेकिन वह जन्म लेते हैं, बालक बनते हैं।
कोई भी नवजात बच्चा बोल नहीं सकता।
परमात्मा जब किसी बड़े तन (ब्रह्मा) में प्रवेश करते हैं, तभी गीता ज्ञान सुनाते हैं।

मुरली 2 सितम्बर 1987: “शिव बाबा का कोई नाम-रूप नहीं है। वह ब्रह्मा के तन में प्रवेश करते हैं।”


प्रश्न 4: दिव्य जन्म का सही अर्थ क्या है?

 उत्तर:लोग मानते हैं कि दिव्य जन्म = कोई चमत्कारिक घटना।
परंतु दिव्य जन्म का वास्तविक अर्थ है — परकाया प्रवेश,
अर्थात कोई अशरीरी सत्ता किसी अन्य शरीर में प्रवेश कर दिव्य वाणी बोलती है।

मुरली 14 दिसंबर 1989: “मैं ब्रह्मा के तन में प्रवेश कर गीता का ज्ञान देता हूं – संगम पर।”


प्रश्न 5: श्रीमद्भगवद गीता और भागवत कथा में क्या फर्क है?

उत्तर:भागवत कथा = श्रीकृष्ण के जीवन चरित्र का वर्णन
श्रीमद्भगवद गीता = परमात्मा द्वारा अर्जुन को दिया गया आत्मिक ज्ञान

मुरली 25 नवंबर 1991: “श्रीकृष्ण भगवान नहीं है। वह 84 जन्मों में आने वाली श्रेष्ठ आत्मा है।”


प्रश्न 6: “मामेकं शरणं व्रज” — यह आदेश किसने दिया?

उत्तर:यह आदेश केवल परमात्मा शिव ही दे सकते हैं।
श्रीकृष्ण स्वयं धर्म में जन्मे, तो वे कैसे कह सकते हैं — “सब धर्मों को त्याग मेरी शरण में आओ”?

मुरली 25 दिसंबर 1990: “सिर्फ शिव बाबा कहते हैं — सबको छोड़ मेरी शरण में आ जाओ।”


प्रश्न 7: गीता ज्ञान कब और क्यों दिया जाता है?

 उत्तर:गीता अध्याय 4, श्लोक 7-8 कहता है —
“जब-जब धर्म की हानि होती है, मैं प्रकट होता हूं।”

 आज संगम युग में जब पवित्रता, शांति और सत्य लुप्त हैं,
तभी परमात्मा आकर ज्ञान द्वारा नवधर्म की स्थापना करते हैं।

मुरली 18 अक्टूबर 1989: “संगम युग पर ही परमात्मा आकर सभी धर्मों को एक ज्ञान से जोड़ते हैं।”


प्रश्न 8: श्रीकृष्ण और परमात्मा शिव में क्या मुख्य अंतर है?

उत्तर:

विशेषता श्रीकृष्ण परमात्मा शिव
स्वरूप शरीरधारी निराकार, अशरीरी
जन्म माता-पिता से परकाया में प्रकट
विवाह/संतान हां (रुक्मिणी, रुक्मा) नहीं
भोगता/अभोक्ता भोगी अभोक्ता
ज्ञानदाता नहीं हां (ब्रह्मा द्वारा)
सर्व आत्माओं के पिता नहीं हां

मुरली 21 जून 1989: “शिव बाबा ही गीता का भगवान है।”


प्रश्न 9: गीता का सच्चा भगवान कौन है?

 उत्तर:गीता का सच्चा भगवान केवल परमात्मा शिव हैं —
जो निराकार, अजन्मा, अविनाशी हैं,
जो ब्रह्मा के तन में प्रवेश कर गीता का दिव्य ज्ञान सुनाते हैं।

यही सच्चा आत्मज्ञान है।


 अंतिम संदेश:

आज वही अलौकिक घड़ी है —
जब परमात्मा स्वयं पुकार रहे हैं:
“हे आत्माओं! अब जागो। लौकिक माया से मुक्त होकर मेरे साथ योग लगाओ।”

 यही है गीता का सच्चा उद्देश्य —
“स्वयं को आत्मा समझकर परमात्मा शिव से संबंध जोड़ना।”

ओम् शांति।

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