मेरा मैला बना देता है इस ‘मेरे’-‘मेरे’ से कैसे मिले मुत्कि?
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
“मेरा मेला बना देता है | मेरेपन से मुक्ति का सहज राजयोग तरीका | 7 जुलाई 2025 की साकार मुरली”
“मेरा” — यह छोटा-सा शब्द आत्मा को कितना भारी बना देता है!
बाबा ने कहा है: “मेरा ही आत्मा को मैला बना देता है।”
आज हम जानेंगे कि ‘मेरा’ शब्द कैसे जन्म लेता है, आत्मा को कैसे बांधता है, और उससे मुक्ति का सहज तरीका क्या है।
1. मेरा – साधारण शब्द या आत्मा का बंधन?
“यह मेरा है।”
सुनने में तो यह शब्द सामान्य लगता है, पर यही स्वामित्व का भ्रम (Ownership Illusion) आत्मा को देह-अभिमान में डाल देता है।
Murli Point (7 जुलाई 2025):
“बाबा कहते हैं – ‘मेरा’ बहुत खराब शब्द है। यही आत्मा को मैला बना देता है।”
2. मेरा शब्द कैसे जन्म लेता है?
बचपन से ही सिखाया जाता है – “यह तेरा है, यह मेरा है।”
लेकिन आत्मा जब परमधाम से आती है, तो उसका पहला संकल्प होता है –
“मेरा कॉस्ट्यूम नीचे है, मुझे पहनकर खेलना है।”
यही ‘मेरा’ हमें परमधाम से निकालकर नर्क की ओर ले जाता है।
3. देह-अभिमान और ‘मेरा’ का संबंध
जब आत्मा कहती है:
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मेरा शरीर
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मेरा बच्चा
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मेरी सेवा
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मेरा ज्ञान
तब स्वामित्व का भाव आता है, और वहीं से देह-अभिमान जन्म लेता है।
उदाहरण:
जैसे आंख में मैल हो जाए, वैसे ही ‘मैं’ और ‘मेरा’ आत्मा को मैला बना देते हैं।
4. Ownership Illusion – स्वामित्व की माया
“मेरा घर, मेरी डिग्री, मेरी सेवा…”
यह सब Ownership Illusion है — स्वामित्व का भ्रम।
सब जानते हैं कि कुछ भी साथ नहीं जाएगा, फिर भी ‘मेरा’ पकड़कर आत्मा दुखी होती है।
5. उदाहरण – मेरा से बंधन कैसे होता है?
बगीचे का उदाहरण:
दो आत्माएं पौधे लगाती हैं –
एक कहती है: “यह बाबा का पौधा है।”
दूसरी कहती है: “यह मेरा पौधा है।”
जब पौधा सूखता है, पहली आत्मा शांत रहती है, दूसरी दुखी हो जाती है।
क्यों? क्योंकि उसमें ‘मेरा’ जुड़ा हुआ था।
Murli Reminder:
“सब कुछ बाबा का है, तुम ट्रस्टी हो।”
6. मेरा से मुक्ति क्यों ज़रूरी है?
-
‘मेरा’ आत्मा को मोह में डालता है
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मोह लाता है:
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क्रोध: जब मेरी बात नहीं मानी जाती
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ईर्ष्या: जब मेरी सेवा कोई और करता है
-
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‘मेरा’ देह-अभिमान का मेला बन जाता है
Murli Point:
“तुम्हें मेरा नहीं बोलना है, ट्रस्टी होकर चलो। तभी देही-अभिमानी बन सकोगे।”
7. मेरा से मुक्ति कैसे पाएं?
1. आत्मा स्वरूप में स्थित हो जाएं
“मैं आत्मा हूं। यह शरीर, सेवा, संबंध सब बाबा के हैं।”
2. ट्रस्टी बनो, मालिक नहीं
हर कार्य को बाबा का कार्य समझकर करें।
किसान का उदाहरण:
अगर वह फसल को भगवान की अर्पण मानता है, तो नुकसान में भी शांत रहता है।
3. “तेरा तुझको अर्पण” का अभ्यास करें
यह केवल गीत नहीं, एक आंतरिक स्थिति है —
“हे बाबा, तन, मन, धन सब तेरा है। जो तू कराए वही श्रेष्ठ है।”
4. रोज स्वयं से सवाल करें
-
क्या मैंने इस सेवा में ‘मेरा’ जोड़ा?
-
क्या मैं पद, ज्ञान या संबंधों को अपनी पहचान बना रहा हूं?
जितना सजग रहेंगे, उतना ‘मेरा’ हटता जाएगा।
8. मेरा मिटेगा तो क्या होगा?
Murli Reminder:
“बाप को देने से, जो बोझा है वो उतर जाता है।”
परिणाम:
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मन हल्का और स्वच्छ हो जाता है
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दूसरों की सेवा से भी आनंद मिलता है
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कुछ खो भी जाए, तो भी शांति रहती है
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सच्चा वैराग्य आता है, मोह से मुक्ति होती है
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आत्मा नष्टमोह स्मृति लब्धा हो जाती है
मेरा ही सबसे बड़ा बंधन है
Murli Point:
“जब तक ‘मेरा’ है, तब तक ‘मैं’ है। और जब तक ‘मैं’ है, परमात्मा का अनुभव नहीं हो सकता।”
प्रतिज्ञा:
“बाबा, अब मैं ट्रस्टी हूं। मेरा नहीं बोलूंगा। सब कुछ तेरा ही है।”
यही सच्चा राजयोग है।
समापन संदेश:
ओम् शांति।
यदि आप और गहराई से जानना चाहते हैं, तो प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के सेवा केंद्र से संपर्क करें।
“मेरा मेला बना देता है | मेरेपन से मुक्ति का सहज राजयोग तरीका | 7 जुलाई 2025 की साकार मुरली”
प्रश्न 1: “मेरा” शब्द क्यों आत्मा को बंधन में डाल देता है?
उत्तर:“मेरा” एक साधारण-सा शब्द लग सकता है, लेकिन यह आत्मा को स्वामित्व के भ्रम में डालकर देह-अभिमान में बांध देता है।
Murli (7 जुलाई 2025):
“बाबा कहते हैं – ‘मेरा’ बहुत खराब शब्द है। यही आत्मा को मैला बना देता है।”
प्रश्न 2: यह ‘मेरा’ भावना कब और कैसे जन्म लेती है?
उत्तर:बचपन से ही “यह तेरा है, यह मेरा है” सिखाया जाता है।
जब आत्मा परमधाम से आती है, उसका पहला संकल्प होता है – “मेरा कॉस्ट्यूम नीचे है”, और वहीं से ‘मेरा’ की यात्रा शुरू होती है।
प्रश्न 3: ‘मेरा’ और देह-अभिमान का क्या संबंध है?
उत्तर:जब आत्मा कहती है –
-
मेरा शरीर
-
मेरी सेवा
-
मेरा ज्ञान
तो वह स्वामित्व का भाव ले लेती है और वहीं से देह-अभिमान जन्म लेता है।
यह आत्मा को भारी और बंदी बना देता है।
प्रश्न 4: ‘Ownership Illusion’ या स्वामित्व की माया क्या है?
उत्तर:जब आत्मा सोचती है – “यह मेरा घर, मेरा पद, मेरी इज्जत है”,
तो वह मालिक बनने का भ्रम पाल लेती है।
जबकि सबको मालूम है कि कुछ भी साथ नहीं जाना, फिर भी ‘मेरा’ पकड़ने से आत्मा दुखी हो जाती है।
प्रश्न 5: क्या उदाहरण है जिससे ‘मेरा’ का बंधन स्पष्ट होता है?
उत्तर:बगीचे का उदाहरण:
दो आत्माएं पौधा लगाती हैं –
-
एक कहती है: “यह बाबा का पौधा है।”
-
दूसरी कहती है: “यह मेरा पौधा है।”
जब पौधा सूखता है, पहली शांत रहती है, जबकि दूसरी दुखी हो जाती है क्योंकि उसमें ‘मेरा’ जुड़ा था।
Murli Point:
“सब कुछ बाबा का है। तुम ट्रस्टी हो।”
प्रश्न 6: ‘मेरा’ भावना से मुक्ति क्यों आवश्यक है?
उत्तर:‘मेरा’ से जुड़ने पर आत्मा मोह में फंसती है, जिससे पैदा होते हैं:
-
क्रोध: जब कोई मेरी बात नहीं मानता
-
ईर्ष्या: जब मेरी सेवा कोई और करता है
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दुख: जब मेरी वस्तु छिनती है
Murli Reminder:
“तुम्हें ‘मेरा’ नहीं बोलना है। ट्रस्टी होकर चलो। तभी देही-अभिमानी बन सकोगे।”
प्रश्न 7: ‘मेरा’ से मुक्ति पाने के 4 सरल राजयोग तरीके क्या हैं?
उत्तर:आत्मा स्वरूप में स्थित हों –
“मैं आत्मा हूं, यह शरीर, सेवा और संबंध सब बाबा के हैं।”
ट्रस्टी बनो, मालिक नहीं –
हर कार्य को बाबा का कार्य मानो।
किसान का उदाहरण:
जो फसल को भगवान की देन मानता है, वह हानि में भी शांत रहता है।
“तेरा तुझको अर्पण” का अभ्यास करें –
यह सिर्फ गीत नहीं, गहरा आंतरिक अभ्यास है।
रोजाना आत्मनिरीक्षण करें:
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क्या मैंने किसी बात में ‘मेरा’ जोड़ा?
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क्या मैं किसी सेवा, पद, ज्ञान या संबंध को अपना मान रहा हूं?
प्रश्न 8: जब ‘मेरा’ मिटता है तो क्या होता है?
उत्तर:Murli Reminder:
“बाप को देने से, जो बोझा है वह उतर जाता है।”
परिणाम:
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मन हल्का और स्वच्छ हो जाता है
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दूसरों की सेवा से भी आनंद आने लगता है
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सच्चा वैराग्य आता है
-
मोह से मुक्ति मिलती है
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आत्मा नष्टमोह स्मृति लब्धा हो जाती है
प्रश्न 9: ‘मेरा’ छोड़ने का अंतिम उद्देश्य क्या है?
उत्तर:Murli Point:
“जब तक ‘मेरा’ है, तब तक ‘मैं’ है। और जब तक ‘मैं’ है, परमात्मा का अनुभव नहीं हो सकता।”
अतः ‘मेरा’ छोड़ना = परमात्म अनुभव की ओर पहला कदम है।
अंतिम प्रतिज्ञा:
“हे बाबा, अब मैं ट्रस्टी हूं।
अब मेरा नहीं बोलूंगा, सब कुछ तेरा ही है।
तेरा तुझको अर्पण – यही मेरा सहज राजयोग है।”
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