(Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
12-07-2025 |
प्रात:मुरली
ओम् शान्ति
“बापदादा”‘
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मधुबन |
“मीठे बच्चे – तुम्हें सच्चा-सच्चा वैष्णव बनना है, सच्चे वैष्णव भोजन की परहेज के साथ-साथ पवित्र भी रहते हैं” | |
प्रश्नः- | कौन-सा अवगुण गुण में परिवर्तन हो जाए तो बेडा पार हो सकता है? |
उत्तर:- | सबसे बड़ा अवगुण है मोह। मोह के कारण सम्बन्धियों की याद सताती रहती है। किसी का कोई सम्बन्धी मरता है तो 12 मास तक उसे याद करते रहते हैं। मुँह ढक कर रोते रहेंगे, याद आती रहेगी। ऐसे ही अगर बाप की याद सताये, दिन-रात तुम बाप को याद करो तो तुम्हारा बेडा पार हो जायेगा। जैसे लौकिक सम्बन्धी को याद करते ऐसे बाप को याद करो तो अहो सौभाग्य…। |
ओम् शान्ति। बाप रोज़-रोज़ बच्चों को समझाते हैं कि अपने को आत्मा समझ बाप की याद में बैठो। आज उसमें एड करते हैं – सिर्फ बाप नहीं दूसरा भी समझना है। मुख्य बात ही यह है – परमपिता परमात्मा शिव, उनको गॉड फादर भी कहते हैं, ज्ञान सागर भी है। ज्ञान सागर होने कारण टीचर भी है, राजयोग सिखलाते हैं। यह समझाने से समझेंगे कि सत्य बाप इन्हों को पढ़ा रहे हैं। प्रैक्टिकल बात यह सुनाते हैं। वह सबका बाप भी है, टीचर भी है, सद्गति दाता भी है और फिर उनको नॉलेजफुल कहा जाता है। बाप, टीचर, पतित-पावन, ज्ञान सागर है। पहले-पहले तो बाप की महिमा करनी चाहिए। वह हमको पढ़ा रहे हैं। हम हैं ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ। ब्रह्मा भी रचना है शिवबाबा की और अभी है भी संगमयुग। एम ऑब्जेक्ट भी राजयोग की है, हमको राजयोग सिखलाते हैं। तो टीचर भी सिद्ध हुआ। और यह पढ़ाई है ही नई दुनिया के लिए। यहाँ बैठे यह पक्का करो – हमको क्या-क्या समझाना है। यह अन्दर धारणा होनी चाहिए। यह तो जानते हैं कोई को जास्ती धारणा होती है, कोई को कम। यहाँ भी जो ज्ञान में जास्ती तीखे जाते हैं उनका नाम होता है। पद भी ऊंचा होता है। परहेज भी बाबा बतलाते रहते हैं। तुम पूरे वैष्णव बनते हो। वैष्णव अर्थात् जो वेजीटेरियन होते हैं। मास मदिरा आदि नहीं खाते हैं। परन्तु विकार में तो जाते हैं, बाकी वैष्णव बना तो क्या हुआ। वैष्णव कुल के कहलाते हैं अर्थात् प्याज़ आदि तमोगुणी चीज़ें नहीं खाते हैं। तुम बच्चे जानते हो – तमोगुणी चीजें क्या-क्या होती हैं। कोई अच्छे मनुष्य भी होते हैं, जिसको रिलीजस माइन्डेड वा भक्त कहा जाता है। सन्यासियों को कहेंगे पवित्र आत्मा और जो दान आदि करते हैं उनको कहेंगे पुण्य आत्मा। इससे भी सिद्ध होता है – आत्मा ही दान-पुण्य करती है इसलिए पुण्य आत्मा, पवित्र आत्मा कहा जाता है। आत्मा कोई निर्लेप नहीं है। ऐसे अच्छे-अच्छे अक्षर याद करने चाहिए। साधुओं को भी महान् आत्मा कहते हैं। महान् परमात्मा नहीं कहा जाता है। तो सर्वव्यापी कहना रांग है। सर्व आत्मायें हैं, जो भी हैं सबमें आत्मा है। पढ़े लिखे जो हैं वह सिद्ध कर बतलाते हैं झाड़ में भी आत्मा है। कहते हैं 84 लाख योनियां जो हैं उनमें भी आत्मा है। आत्मा न होती तो वृद्धि को कैसे पाती! मनुष्य की जो आत्मा है वह तो जड़ में जा नहीं सकती। शास्त्रों में ऐसी-ऐसी बातें लिख दी हैं। इन्द्रप्रस्थ से धक्का दिया तो पत्थर बन गया। अब बाप बैठ समझाते हैं, बाप बच्चों को कहते हैं देह के सम्बन्ध तोड़ अपने को आत्मा समझो। मामेकम् याद करो। बस तुम्हारे 84 जन्म अब पूरे हुए। अब तमोप्रधान से सतोप्रधान बनना है। दु:खधाम है अपवित्र धाम। शान्तिधाम और सुखधाम है पवित्र धाम। यह तो समझते हो ना। सुखधाम में रहने वाले देवताओं के आगे माथा टेकते हैं। सिद्ध होता है भारत में नई दुनिया में पवित्र आत्मायें थी, ऊंच पद वाले थे। अभी तो गाते हैं मुझ निर्गुण हारे में कोई गुण नाही। है भी ऐसे। कोई गुण नहीं हैं। मनुष्यों में मोह भी बहुत होता है, मरे हुए की भी याद रहती है। बुद्धि में आता है यह मेरे बच्चे हैं। पति अथवा बच्चा मरे तो उनको याद करते रहते। स्त्री 12 मास तक तो अच्छी रीति याद करती है, मुँह ढक कर रोती रहती है। ऐसे मुँह ढक कर अगर तुम बाप को याद करो दिन-रात तो बेडा ही पार हो जाए। बाप कहते हैं – जैसे पति को तुम याद करती रहती हो ऐसे मेरे को याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश हो जाएं। बाप युक्तियां बतलाते हैं ऐसे-ऐसे करो।
पोतामेल देखते हैं आज इतना खर्चा हुआ, इतना फायदा हुआ, बैलेन्स रोज़ निकालते हैं। कोई मास-मास निकालते हैं। यहाँ तो यह बहुत जरूरी है, बाप ने बार-बार समझाया है। बाप कहते हैं तुम बच्चे सौभाग्यशाली, हजार भाग्यशाली, करोड़ भाग्यशाली, पदम, अरब, खरब भाग्यशाली हो। जो बच्चे अपने को सौभाग्यशाली समझते हैं, वह जरूर अच्छी तरह से बाप को याद करते रहेंगे। वही गुलाब के फूल बनेंगे। यह तो नटशेल में समझाना होता है। बनना तो खुशबूदार फूल है। मुख्य है याद की बात। सन्यासियों ने योग अक्षर कह दिया है। लौकिक बाप ऐसे नहीं कहेंगे कि मुझे याद करो या पूछे कि मुझे याद करते हो? बाप बच्चे को, बच्चा बाप को याद है ही। यह तो लॉ है। यहाँ पूछना पड़ता है क्योंकि माया भुला देती है। यहाँ आते हैं, समझते हैं हम बाप के पास जाते हैं तो बाप की याद रहनी चाहिए इसलिए बाबा चित्र भी बनाते हैं तो वह भी साथ में हो। पहले-पहले हमेशा बाप की महिमा शुरू करो। यह हमारा बाबा है, यूँ तो सबका बाप है। सर्व का सद्गति दाता, ज्ञान का सागर नॉलेजफुल है। बाबा हमको सृष्टि चक्र के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान देते हैं, जिससे हम त्रिकालदर्शी बन जाते हैं। त्रिकालदर्शी इस सृष्टि पर कोई मनुष्य हो नहीं सकता। बाप कहते हैं यह लक्ष्मी-नारायण भी त्रिकालदर्शी नहीं हैं। यह त्रिकालदर्शी बन क्या करेंगे! तुम बनते हो और बनाते हो। इन लक्ष्मी-नारायण में ज्ञान होता तो परम्परा चलता। बीच में तो विनाश हो जाता है इसलिए परम्परा तो चल न सके। तो बच्चों को इस पढ़ाई का अच्छी रीति सिमरण करना है। तुम्हारी भी ऊंच ते ऊंच पढ़ाई संगम पर ही होती है। तुम याद नहीं करते हो, देह-अभिमान में आ जाते हो तो माया थप्पड़ मार देती है। जब 16 कला सम्पूर्ण बनेंगे तब विनाश की भी तैयारी होगी। वह विनाश के लिए और तुम अविनाशी पद के लिए तैयारी कर रहे हो। कौरव और पाण्डवों की लड़ाई हुई नहीं, कौरवों और यादवों की लगती है। ड्रामा अनुसार पाकिस्तान भी हो गया। वह भी शुरू तब हुआ जब तुम्हारा जन्म हुआ। अब बाप आये हैं तो सब प्रैक्टिकल होना चाहिए ना। यहाँ के लिए ही कहते हैं रक्त की नदियाँ बहती हैं तब फिर घी की नदी बहेगी। अब भी देखो लड़ते रहते हैं। फलाना शहर दो नहीं तो लड़ाई करेंगे। यहाँ से पास न करो, यह हमारा रास्ता है। अब वह क्या करें। स्टीमर कैसे जायेंगे! फिर राय करते हैं। जरूर राय पूछते होंगे। मदद की उम्मीद मिली होगी, वह आपस में ही खत्म कर देंगे। यहाँ फिर सिविलवार की ड्रामा में नूँध है।
अभी बाप कहते हैं – मीठे बच्चे, बहुत-बहुत समझदार बनो। यहाँ से बाहर घर में जाने से फिर भूल नहीं जाओ। यहाँ तुम आते हो कमाई जमा करने। छोटे-छोटे बच्चों को ले आते हो तो उनके बन्धन में रहना पड़ता है। यहाँ तो ज्ञान सागर के कण्ठे पर आते हो, जितनी कमाई करेंगे उतना अच्छा है। इसमें लग जाना चाहिए। तुम आते ही हो अविनाशी ज्ञान रत्नों की झोली भरने। गाते भी हैं ना भोलानाथ भर दे झोली। भक्त तो शंकर के आगे जाकर कहते हैं झोली भर दो। वह फिर शिव-शंकर को एक समझ लेते हैं। शिव-शंकर महादेव कह देते हैं। तो महादेव बड़ा हो जाता। ऐसी छोटी-छोटी बातें बहुत समझने की हैं।
तुम बच्चों को समझाया जाता है – अभी तुम ब्राह्मण हो, नॉलेज मिल रही है। पढ़ाई से मनुष्य सुधरते हैं। चाल-चलन भी अच्छी होती है। अभी तुम पढ़ते हो। जो सबसे जास्ती पढ़ते और पढ़ाते हैं, उनके मैनर्स भी अच्छे होते हैं। तुम कहेंगे सबसे अच्छे मम्मा-बाबा के मैनर्स हैं। यह फिर हो गई बड़ी मम्मा, जिसमें प्रवेश कर बच्चों को रचते हैं। मात-पिता कम्बाइन्ड हैं। कितनी गुप्त बातें हैं। जैसे तुम पढ़ते हो वैसे मम्मा भी पढ़ती थी। उनको एडाप्ट किया। सयानी थी तो ड्रामा अनुसार सरस्वती नाम पड़ा। ब्रह्मपुत्रा बड़ी नदी है। मेला भी लगता है सागर और ब्रह्मपुत्रा का। यह बड़ी नदी ठहरी तो माँ भी ठहरी ना। तुम मीठे-मीठे बच्चों को कितना ऊंच ले जाते हैं। बाप तुम बच्चों को ही देखते हैं। उनको तो किसी को याद करना नहीं है। इनकी आत्मा को तो बाप को याद करना है। बाप कहते हैं हम दोनों, बच्चों को देखते हैं। मुझ आत्मा को तो साक्षी हो नहीं देखना है, परन्तु बाप के संग में हम भी ऐसे देखता हूँ। बाप के साथ रहता तो हूँ ना। उनका बच्चा हूँ तो साथ में देखता हूँ। मैं विश्व का मालिक बन घूमता हूँ, जैसेकि मैं ही यह करता हूँ। मैं दृष्टि देता हूँ। देह सहित सब कुछ भूलना होता है। बाकी बच्चा और बाप जैसे एक हो जाते हैं। तो बाप समझाते हैं खूब पुरुषार्थ करो। बरोबर मम्मा-बाबा सबसे जास्ती सर्विस करते हैं। घर में भी माँ-बाप बहुत सर्विस करते हैं ना। सर्विस करने वाले जरूर पद भी ऊंच पायेंगे तो फिर फालो करना चाहिए ना। जैसे बाप अपकारियों पर भी उपकार करते हैं, ऐसे तुम भी फालो फादर करो। इसका भी अर्थ समझना है। बाप कहते हैं मुझे याद करो और किसका भी नहीं सुनो। कोई कुछ बोले, सुना-अनसुना कर दो। तुम मुस्कराते रहो तो वह आपेही ठण्डा हो जायेगा। बाबा ने कहा था कोई क्रोध करे तो तुम उन पर फूल चढ़ाओ, बोलो तुम अपकार करते हो, हम उपकार करते हैं। बाप खुद कहते हैं सारी दुनिया के मनुष्य मेरे अपकारी हैं, मुझे सर्वव्यापी कहकर कितनी गाली देते हैं मैं तो सबका उपकारी हूँ। तुम बच्चे भी सबका उपकार करने वाले हो। तुम ख्याल करो – हम क्या थे, अभी क्या बनते हैं! विश्व के मालिक बनते हैं। ख्याल-ख्वाब में भी नहीं था। बहुतों को घर बैठे साक्षात्कार हुआ है। परन्तु साक्षात्कार से कुछ होता थोड़ेही है। आहिस्ते-आहिस्ते झाड़ वृद्धि को पाता रहेगा। यह नया दैवी झाड़ स्थापन हो रहा है ना। बच्चे जानते हैं हमारा दैवी फूलों का बगीचा बन रहा है। सतयुग में देवतायें ही रहते हैं सो फिर आने हैं, चक्र फिरता रहता है। 84 जन्म भी वही लेंगे। दूसरी आत्मायें फिर कहाँ से आयेंगी। ड्रामा में जो भी आत्मायें हैं, कोई भी पार्ट से छूट नहीं सकती। यह चक्र फिरता ही रहता है। आत्मा कभी घटती नहीं। छोटी-बड़ी नहीं होती है।
बाप बैठ मीठे बच्चों को समझाते हैं, कहते हैं बच्चे सुखदाई बनो। माँ कहती है ना – आपस में लड़ो-झगड़ो नहीं। बेहद का बाप भी बच्चों को कहते हैं याद की यात्रा बहुत सहज है। वह यात्रा तो जन्म-जन्मान्तर करते आये हो फिर भी सीढ़ी नीचे उतरते पाप आत्मा बनते जाते हो। बाप कहते हैं यह है रूहानी यात्रा। तुमको इस मृत्युलोक में लौटना नहीं है। उस यात्रा से तो लौटकर आते हैं फिर वैसे के वैसे बन जाते हैं। तुम तो जानते हो हम स्वर्ग में जाते हैं। स्वर्ग था फिर होगा। यह चक्र फिरना है। दुनिया एक ही है बाकी स्टार्स आदि में कोई दुनिया है नहीं। ऊपर जाकर देखने के लिए कितना माथा मारते रहते हैं। माथा मारते-मारते मौत सामने आ जायेगा। यह सब है साइंस। ऊपर जायेंगे फिर क्या होगा। मौत तो सामने खड़ा है। एक तरफ ऊपर जाकर खोज करते हैं। दूसरे तरफ मौत के लिए बॉम्ब्स बना रहे हैं। मनुष्यों की बुद्धि देखो कैसी है। समझते भी हैं कोई प्रेरक है। खुद कहते हैं वर्ल्ड वार जरूर होनी है। यह वही महाभारत लड़ाई है। अब तुम बच्चे भी जितना पुरुषार्थ करेंगे, उतना ही कल्याण करेंगे। खुदा के बच्चे तो हो ही। भगवान अपना बच्चा बनाते हैं तो तुम भगवान-भगवती बन जाते हो। लक्ष्मी-नारायण को गॉड गॉडेज कहते हैं ना। कृष्ण को गॉड मानते हैं, राधे को इतना नहीं। सरस्वती का नाम है, राधे का नाम नहीं है। कलष फिर लक्ष्मी को दिखाते हैं। यह भी भूल कर दी है। सरस्वती के भी अनेक नाम रख दिये हैं। वह तो तुम ही हो। देवियों की भी पूजा होती है तो आत्माओं की पूजा होती है। बाप बच्चों को हर बात समझाते रहते हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) जैसे बाप अपकारी पर भी उपकार करते हैं, ऐसे फालो फादर करना है। कोई कुछ बोले तो सुना अनसुना कर देना है, मुस्कराते रहना है। एक बाप से ही सुनना है।
2) सुखदाई बन सबको सुख देना है, आपस में लड़ना-झगड़ना नहीं है। समझदार बन अपनी झोली अविनाशी ज्ञान रत्नों से भरपूर करनी है।
वरदान:- | सागर के तले में जाकर अनुभव रूपी रत्न प्राप्त करने वाले सदा समर्थ आत्मा भव समर्थ आत्मा बनने के लिए योग की हर विशेषता का, हर शक्ति का और हर एक ज्ञान की मुख्य प्वाइंट का अभ्यास करो। अभ्यासी, लगन में मगन रहने वाली आत्मा के सामने किसी भी प्रकार का विघ्न ठहर नहीं सकता इसलिए अभ्यास की प्रयोगशाला में बैठ जाओ। अभी तक ज्ञान के सागर, गुणों के सागर, शक्तियों के सागर में ऊपर-ऊपर की लहरों में लहराते हो, लेकिन अब सागर के तले में जाओ तो अनेक प्रकार के विचित्र अनुभव के रत्न प्राप्त कर समर्थ आत्मा बन जायेंगे। |
स्लोगन:- | अशुद्धि ही विकार रूपी भूतों का आह्वान करती है इसलिए संकल्पों से भी शुद्ध बनो। |
अव्यक्त इशारे – संकल्पों की शक्ति जमा कर श्रेष्ठ सेवा के निमित्त बनो
जैसे ब्रह्मा बाप ने विशेष श्रेष्ठ संकल्प से बच्चों का आह्वान किया अर्थात् रचना रची। यह संकल्प की रचना भी कम नहीं है। श्रेष्ठ शक्तिशाली संकल्प ने प्रेर कर भिन्न-भिन्न धर्मो के पर्दो से निकालकर समीप लाया। ऐसे आप बच्चे भी शक्तिशाली श्रेष्ठ संकल्पधारी बनो। अपने संकल्पों की शक्ति को ज्यादा खर्च नहीं करो, व्यर्थ नहीं गंवाओ। तो श्रेष्ठ संकल्प से प्राप्ति भी श्रेष्ठ होगी।
“मीठे बच्चे – तुम्हें सच्चा-सच्चा वैष्णव बनना है, सच्चे वैष्णव भोजन की परहेज के साथ-साथ पवित्र भी रहते हैं”
नीचे दिए गए प्रश्नोत्तर इस मुरली के आधार पर हैं, जिससे बाबा के मुख्य शिक्षण बिंदु स्पष्ट होते हैं:
प्रश्न 1:कौन-सा अवगुण गुण में बदल जाए तो आत्मा का बेड़ा पार हो सकता है?
उत्तर:सबसे बड़ा अवगुण है मोह। मोह के कारण आत्मा देह और सम्बन्धियों की याद में फँसी रहती है। जैसे मनुष्य मरे हुए सम्बन्धियों को 12 महीने तक याद करते हैं, वैसे ही अगर परमात्मा शिवबाबा को उसी intensity से याद किया जाए तो बेड़ा पार हो सकता है। बाबा कहते हैं – जैसे स्त्रियाँ पति की याद में रोती हैं, वैसे अगर तुम मुँह ढक कर बाप को याद करो, तो विकर्म विनाश हो जाएंगे।
प्रश्न 2:सच्चे वैष्णव बनने का मुख्य आधार क्या है?
उत्तर:सच्चा वैष्णव वह है जो भोजन की परहेज़ के साथ-साथ पवित्रता में भी रहता है। सिर्फ प्याज, लहसुन या माँस-मदिरा से दूर रहना ही नहीं, बल्कि पाँच विकारों से भी स्वयं को बचाना आवश्यक है। वैष्णव कुल में जन्म लेना तब सार्थक है जब आचरण में भी पवित्रता हो।
प्रश्न 3:बाप को ‘गॉडफादर’, ‘टीचर’ और ‘सद्गति दाता’ क्यों कहा जाता है?
उत्तर:क्योंकि वही एक परमात्मा शिव बाबा है जो आत्माओं का सच्चा बाप है, ज्ञान द्वारा पढ़ाई सिखाने वाला टीचर है, और राजयोग सिखाकर पतितों को पावन बनाने वाला सद्गति दाता है। वही ज्ञान सागर है जो हमें त्रिकालदर्शी बनाते हैं।
प्रश्न 4:बाप बच्चों को कौन-सा सबसे मुख्य पुरुषार्थ करने की युक्ति समझाते हैं?
उत्तर:“अपने को आत्मा समझकर एक बाप को याद करो।” बाबा कहते हैं – देह और देह के सम्बन्धों को भूलकर “मामेकम् याद करो।” यही मुख्य पुरुषार्थ है जिससे विकर्म विनाश होंगे और आत्मा पावन बन विश्व का मालिक बन सकेगी।
प्रश्न 5:बाप बच्चों को किस प्रकार की कमाई करने की बात बताते हैं?
उत्तर:बाबा कहते हैं – “तुम यहाँ अविनाशी ज्ञान रत्नों की झोली भरने आते हो।” रोज़ की दिनचर्या की तरह आत्मा को भी आत्मिक लेखा-जोखा (Potamail) देखना चाहिए कि आज कितना योग लगाया, कितना ज्ञान धारणा किया, कितना सेवा में समय लगाया। यही सच्ची कमाई है।
प्रश्न 6:सबसे ऊँच मैनर्स किसके होते हैं और क्यों?
उत्तर:सबसे अच्छे मैनर्स मम्मा और बाबा के होते हैं, क्योंकि उन्होंने सबसे ज़्यादा पढ़ाई पढ़ी और पढ़ाई के आधार पर जीवन को सुंदर बनाया। जो ज्यादा पढ़ते हैं, उनके स्वभाव-संस्कार, बोलचाल, चाल-चलन सब श्रेष्ठ बन जाते हैं।
प्रश्न 7:बाबा किस प्रकार के फॉलो को श्रेष्ठ मानते हैं?
उत्तर:बाबा कहते हैं – जैसे मैं अपकारियों पर भी उपकार करता हूँ, वैसे तुम भी फॉलो फादर करो। कोई गाली दे, बुरा बोले, तो तुम मुस्कराते रहो, फूल चढ़ाओ। जवाब में प्यार से कहो – “आप अपकार करते हो, हम उपकार करते हैं।” यही श्रेष्ठ चरित्र है।
प्रश्न 8:शिव बाबा और शंकर को एक समझना कहाँ तक सही है?
उत्तर:यह गलत समझ है। भक्तजन शिव और शंकर को एक कहकर “शिव-शंकर भोलेनाथ” कह देते हैं, परंतु बाबा स्पष्ट करते हैं कि शिव आत्मा है, जो निराकार है, जबकि शंकर एक देवता रूप में सूक्ष्म वतन का वासी है। शिव ही गॉडफादर हैं।
प्रश्न 9:बाबा को “नॉलेजफुल” क्यों कहा जाता है?
उत्तर:क्योंकि बाबा हमें सृष्टि चक्र के आदि, मध्य और अंत का सम्पूर्ण ज्ञान देते हैं, जिससे आत्मा त्रिकालदर्शी बन जाती है। ऐसा ज्ञान किसी और के पास नहीं है।
प्रश्न 10:बाबा की कौन-सी बात याद रखने से माया की थप्पड़ से बच सकते हैं?
उत्तर:अगर आत्मा देह-अभिमान में नहीं आती और बाप को सच्चे दिल से याद करती है, तो माया की थप्पड़ नहीं लगती। लेकिन जब देहभान में आते हैं, तो माया का वार हो जाता है। इसलिए स्मृति बनी रहे – “मैं आत्मा हूँ, बाबा का बच्चा हूँ।”
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