Avyakta Murli-13/09-03-1982

(13)“होली मनाने और जलाने की अलौकिक रीति

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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“होली मनाने और जलाने की अलौकिक रीति | 09-03-1982 | Brahma Kumaris Hindi Speech”
रूहानी होली कैसे मनाएं? कैसे जलाएं व्यर्थ संकल्पों की लकड़ियाँ?

होली – केवल एक त्यौहार नहीं, आत्मा के रंग में रंगने की रूहानी विधि है।
आज की इस विशेष अव्यक्त वाणी में, बापदादा हमें याद दिला रहे हैं कि हम केवल होली “मनाने” नहीं आए हैं — बल्कि “होली” बनने आए हैं।


 1. सच्ची होली क्या है? – मनाना और बनना

  • संसारी लोग वर्ष में एक दिन होली मनाते हैं, लेकिन ईश्वरीय बच्चे सदा के लिए होली बन जाते हैं।

  • हम वो होली हंस हैं जिनकी बुद्धि में ज्ञान के रत्न भरे हुए हैं।

  • होली का अर्थ: हर गुण का रंग, हर शक्ति का रंग, बाप की मुहब्बत का रंग सदा आत्मा में समाया हो।


 2. होली जलाना – व्यर्थ संकल्पों की लकड़ियाँ समाप्त करना

  • होली जलाने की अलौकिक विधि:

    “कमजोरी के संस्कारों को इकट्ठा कर, दृढ़ संकल्प की तीली लगाओ।”

  • तीली तभी जलती है जब उसमें अभ्यास का मसाला हो और बाप से संबंध हो।

  • यह है आत्मिक रूप से बुराईयों की होली जलाना।


3. बापदादा का उपहार – रूहानी गुलाब बनो

  • बापदादा फूलों की वर्षा नहीं करते, वे हमें स्वयं पुष्प बना देते हैं।

  • “तिलक लगाने की ज़रूरत नहीं, तुम सदा के लिए तिलकधारी हो।”

  • आप ही बाप के गले का हार बन, जगत को रोशनी देने वाले दिव्य रत्न हो।


 4. भक्ति नहीं, अब मुहब्बत का समय है

  • 63 जन्म मेहनत की। अब समय है सिर्फ बाप की मुहब्बत में लवलीन रहने का।

  • मेहनत और युद्ध के संस्कार समाप्त करें — अब फल खाने का समय है।

  • अब मेहनत नहीं, सहज संकल्प से अनुभूति होनी चाहिए।


 5. स्वराज्य – सच्चा राज्य भाग्य

  • आज हमें देवपद से भी श्रेष्ठ “स्वराज्य” का भाग्य मिला है।

  • अब युद्ध की जरूरत नहीं — सिर्फ बाप की याद से सब प्राप्तियाँ सहज रूप से होनी हैं।


 6. गुणों से सजी रूहानी मूर्त बनो

  • जैसे श्रृंगारी मूर्तियाँ सजाई जाती हैं, वैसे ही हमें गुणों के गहनों से सदा सजे रहना है।

  • यही 16 श्रृंगार, 16 कला सम्पन्नता की निशानी है।

  • हम राजाओं का राजा बनाने वाले बाप के कुल में हैं, सदा सुहागिन आत्माएं हैं।


 7. मनाना नहीं, स्वयं होली बन जाना

  • गाना, नाचना, योग लगाना, भोग लगाना – सब मिला कर हो जाती है कल्प-कल्प की रूहानी होली

  • “स्वयं गुलाब बन जाओ” – बाहर से रंग डालने की ज़रूरत नहीं।


 8. बिन्दी का रहस्य – मैं भी बिन्दी, बाबा भी बिन्दी

  • बिन्दी का अर्थ: देह की स्मृति मिटा कर आत्मा में स्थित होना।

  • दिनभर में कितनी बार बिन्दी लगाई? यही आपकी सच्ची कमाई है।

  • जब कोई बात ज़्यादा सोचते हो, वह बढ़ती जाती है — इसलिए एक बाप को याद करो।

अब मेहनत नहीं, अब मुहब्बत है।
अब भक्ति नहीं, अब प्राप्ति है।
अब होली मनाना नहीं, ‘होली’ बन जाना है।


 अंतिम संदेश:

बापदादा कहते हैं —

“तुम आत्माएँ सदा के लिए बाप के समीप और समान बनो।
सदा ज्ञान के रंग में रंगे, रूहानी गुलाब बनो।
यही है सच्ची होली की मुबारक – जो कल्प-कल्प चलती है।”

प्रश्नोत्तर श्रृंखला: “रूहानी होली कैसे मनाएं? कैसे जलाएं व्यर्थ संकल्पों की लकड़ियाँ?”


प्रश्न 1:सच्ची होली किसे कहा गया है?

उत्तर:सच्ची होली वह है जो आत्मा के गुणों और शक्तियों के रंग में रंगे। संसारी लोग एक दिन होली मनाते हैं, लेकिन ईश्वरीय बच्चे सदा के लिए “होली” बन जाते हैं — हर गुण और हर शक्ति में रंगे हुए। यही सच्ची रूहानी होली है।


प्रश्न 2:रूहानी रूप से “होली जलाना” का क्या अर्थ है?

उत्तर:रूहानी होली जलाने का अर्थ है – अपनी आत्मा में भरे व्यर्थ संकल्पों, कमजोरियों और नकारात्मक संस्कारों को “दृढ़ संकल्प की तीली” से जलाना। यह तब संभव होता है जब अभ्यास हो, बाप से सम्पर्क हो और सच्ची लगन हो।


प्रश्न 3:बापदादा द्वारा दिए गए “रूहानी गुलाब” का क्या अर्थ है?

उत्तर:बापदादा हमें फूलों की वर्षा नहीं करते, बल्कि स्वयं ही रूहानी गुलाब बना देते हैं — ऐसी आत्माएँ जो सदा प्रेम, सुगंध, शक्ति और सौंदर्य की निशानी होती हैं। ये आत्माएँ बाप के गले का हार बनकर विश्व को रोशनी देती हैं।


प्रश्न 4:अब भक्ति का समय समाप्त हुआ — इसका क्या अर्थ है?

उत्तर:भक्ति का समय यानी मेहनत का समय अब समाप्त हो चुका है। अब हमें बाप की मुहब्बत में रहकर सहजता से फल प्राप्त करना है। अब युद्ध और संघर्ष नहीं, बल्कि प्रेम और अनुभव से जीवन को सफल बनाना है।


प्रश्न 5:सच्चा राज्य भाग्य कौन सा है और कैसे प्राप्त होता है?

उत्तर:सच्चा राज्य भाग्य है “स्वराज्य” — आत्मा का अपने मन, बुद्धि और कर्मेन्द्रियों पर शासन। यह भाग्य हमें बाप की याद और सहज योग द्वारा प्राप्त होता है, जिससे बाहरी युद्ध की आवश्यकता नहीं रहती।


प्रश्न 6:गुणों से सजी रूहानी मूर्त बनने का क्या रहस्य है?

उत्तर:जैसे भक्ति में मूर्तियों को श्रृंगार किया जाता है, वैसे हमें भी ज्ञान, गुण और शक्तियों के गहनों से सदा सजे रहना है। यही 16 श्रृंगार, 16 कला की निशानी है। हम सदा सुहागिन आत्माएं हैं — ईश्वर से जुड़ी हुई।


प्रश्न 7:“होली मनाना” और “होली बन जाना” — इन दोनों में क्या अंतर है?

उत्तर:होली मनाना बाहरी क्रिया है — गाना, नाचना, रंग खेलना। लेकिन “होली बन जाना” आत्मा का स्थायी परिवर्तन है, जिसमें आत्मा ज्ञान, गुणों और मुहब्बत के रंग में स्थायी रूप से रंग जाती है। यही सच्चा उत्सव है।


प्रश्न 8:बिन्दी लगाने का रूहानी अर्थ क्या है?

उत्तर:“बिन्दी” का अर्थ है — देह की स्मृति को मिटाकर आत्मा में स्थित हो जाना।
“मैं भी बिन्दी, बाबा भी बिन्दी।”
दिनभर में जितनी बार हम इस आत्मिक स्थिति में जाते हैं, वह हमारी सच्ची कमाई होती है।


 प्रश्न:अब जीवन में क्या परिवर्तन लाना है?

उत्तर:अब मेहनत नहीं, मुहब्बत चाहिए।
अब भक्ति नहीं, प्राप्ति चाहिए।
अब होली केवल मनानी नहीं, होली बनना है।
बापदादा की याद में सदा लवलीन रहना है — यही है अविनाशी होली की सच्ची मुबारक।

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