सहज राजयोग कोर्स -18-परमात्मा कैसे पढ़ते हैं? ब्रह्मा कुमारीज
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
“परमात्मा कैसे पढ़ाते हैं? | रुद्र ज्ञान यज्ञ का रहस्य |
प्रस्तावना:
ओम् शांति।
आज हम ब्रह्मा कुमारी सहज राजयोग के 18वें दिवस के पाठ में यह समझने वाले हैं कि परमात्मा हमें कैसे पढ़ाते हैं, और उनकी शिक्षाओं का तरीका कितना दिव्य व अनोखा होता है।
1. सृष्टि चक्र का अंतिम समय – जब पढ़ाने आते हैं परमात्मा
जब संसार नर्क बन जाता है – चारों ओर अशांति, दुख और अंधकार छा जाता है – तब परमात्मा अवतरित होते हैं।
वह कोई साधारण मनुष्य नहीं, स्वयं परमपिता परमात्मा होते हैं।
वो पढ़ाने कब आते हैं?
जब कलयुग समाप्ति पर होता है और सतयुग आने वाला होता है – वह समय कहलाता है संगम युग।
यह संगम युग 100 वर्ष का होता है और इसमें परमात्मा हम आत्माओं को फिर से पावन बनाते हैं।
2. संगम युग – आत्मा और परमात्मा का मिलन
संगम का अर्थ है – संगम दो धाराओं का, दो युगों का, और सबसे महान – आत्मा और परमात्मा का मिलन।
कलयुग और सतयुग का संगम,
नर्क और स्वर्ग का संगम,
अज्ञान और ज्ञान का संगम।
यही समय है जब आत्मा अपने सर्वोत्तम रूप में प्रवेश करती है और परमात्मा की संपूर्ण शिक्षाओं को प्राप्त करती है।
3. परमात्मा का दिव्य यज्ञ – रुद्र गीता ज्ञान यज्ञ
आज तक आपने अग्निकुंड वाले यज्ञ देखे होंगे। परंतु जो यज्ञ परमात्मा रचते हैं, वह अग्नि वाला नहीं – “ज्ञान अग्नि वाला” यज्ञ है।
इसका नाम है अविनाशी रुद्र गीता ज्ञान यज्ञ।
इसमें हम अपनी बुराइयों, विकारों – काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार – को स्वाहा करते हैं।
यह कोई बाह्य आयोजन नहीं, यह आंतरिक परिवर्तन की अग्नि है।
4. दुनिया वाले रुद्र यज्ञ और सच्चा रुद्र यज्ञ – अंतर क्या है?
दुनिया में जो रुद्र यज्ञ होते हैं – उनमें घी, लकड़ी, मंत्र, ढोल और शोर होता है।
सब मंच बनाकर रामायण, गीता, भागवत पढ़ते हैं – पर परिणाम?
कोई आत्मा पावन नहीं बनती, यज्ञ के बाद भी वही विकार, वही संसार।
परंतु जो यज्ञ परमात्मा रचते हैं – उसमें आत्मा पुनः देवता बनती है।
उसमें कोई बाहरी सामग्री नहीं, केवल अपनी वृत्तियों और संकल्पों का त्याग है।
5. ब्रह्मा बाबा की कहानी – कैसे बना रुद्र यज्ञ का माध्यम
1936 में परमात्मा ने ब्रह्मा बाबा को माध्यम बनाया।
उन्होंने अपनी सारी चल–अचल संपत्ति की वसीयत बनाकर यह संकल्प लिया – कि अब यह जीवन परमात्मा के यज्ञ में समर्पित है।
यह त्याग ही था जिसने रुद्र गीता ज्ञान यज्ञ की नींव रखी।
6. निष्कर्ष – रुद्र यज्ञ है आत्मा की स्वाहा यात्रा
यह यज्ञ कोई प्रतीकात्मक अग्निकुंड नहीं है।
यह है आत्मा की अशुद्धियों की आहुति और पावनता की प्राप्ति।
इसमें किसी की जमीन, धन, पद या प्रतिष्ठा नहीं टिकती।
सिर्फ टिकता है – सच्चा ज्ञान, योग और परिवर्तन।
प्रश्नोत्तर श्रृंखला: “परमात्मा कैसे पढ़ाते हैं?”
प्रश्न 1:परमात्मा हमें कब और क्यों पढ़ाने आते हैं?
उत्तर:परमात्मा तब आते हैं जब संसार पूरी तरह से नर्क बन जाता है – चारों ओर दुख, अशांति और अधर्म फैल जाता है। यह समय होता है कलयुग के अंत और सतयुग के आरंभ के बीच का, जिसे संगम युग कहा जाता है। इस 100 वर्ष के संगम युग में परमात्मा हम आत्माओं को पुनः पावन बनाने आते हैं।
प्रश्न 2:संगम युग का क्या महत्व है?
उत्तर:संगम युग आत्मा और परमात्मा के मिलन का समय है। यह समय है –
कलयुग और सतयुग के संगम का,
नर्क और स्वर्ग के संगम का,
अज्ञान और ज्ञान के संगम का।
इसी युग में आत्मा को अपना सर्वोत्तम स्वरूप प्राप्त होता है।
प्रश्न 3:रुद्र गीता ज्ञान यज्ञ क्या है?
उत्तर:यह वह आध्यात्मिक यज्ञ है जिसे परमात्मा स्वयं रचते हैं। इसका नाम है –
“अविनाशी रुद्र गीता ज्ञान यज्ञ”।
यह कोई अग्निकुंड वाला यज्ञ नहीं, बल्कि ज्ञान और योग की अग्नि से आत्मा की अशुद्धियों को स्वाहा करने का दिव्य यज्ञ है।
प्रश्न 4:इस यज्ञ में क्या स्वाहा किया जाता है?
उत्तर:इसमें अग्नि में घी, लकड़ी नहीं, बल्कि आत्मा के विकारों को स्वाहा किया जाता है –
काम,
क्रोध,
लोभ,
मोह,
अहंकार।
यह आत्मा की आंतरिक अशुद्धियों की आहुति देने का यज्ञ है।
प्रश्न 5:दुनिया में होने वाले रुद्र यज्ञ और परमात्मा के रचे यज्ञ में क्या अंतर है?
उत्तर:दुनिया वाले यज्ञ में बाहरी क्रिया–कलाप, मंत्र, भीड़, शोर और पंडाल होते हैं – लेकिन आत्मा में कोई परिवर्तन नहीं होता।
जबकि परमात्मा का रचा यज्ञ आत्मा के भीतर परिवर्तन लाता है। इसमें कोई शोर नहीं, केवल मौन, ज्ञान, और योग की शक्ति से आत्मा देवता बनती है।
प्रश्न 6:ब्रह्मा बाबा कैसे रुद्र यज्ञ के माध्यम बने?
उत्तर:1936 में परमात्मा ने ब्रह्मा बाबा को अपना माध्यम चुना।
उन्होंने 1937 में अपनी सारी चल–अचल संपत्ति वसीयत पत्र के माध्यम से परमात्मा के यज्ञ में समर्पित कर दी।
यह त्याग ही था जिसने अविनाशी रुद्र गीता ज्ञान यज्ञ की नींव रखी।
प्रश्न 7:इस यज्ञ का अंतिम लक्ष्य क्या है?
उत्तर:इस यज्ञ का उद्देश्य है –
आत्मा की अशुद्धियों को स्वाहा कर
आत्मा को पुनः पवित्र और
देवता स्वरूप बनाना।
इसमें किसी का पद, पैसा या प्रतिष्ठा नहीं टिकती – केवल ज्ञान, योग और आत्म-परिवर्तन ही टिकते हैं।
प्रश्न 8:परमात्मा का पढ़ाने का तरीका क्या है?
उत्तर:परमात्मा हमें कोई पुस्तक से नहीं पढ़ाते, वे हमें मधुबन में रूहानी ज्ञान की मुरली के द्वारा पढ़ाते हैं।
वे हमें अपने बच्चों की तरह प्यार से “मीठे बच्चे” कहकर बुलाते हैं और हमारी आत्मा को उसके सच्चे स्वरूप की याद दिलाते हैं।
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