भगवान ने कोई हिंसक युद्ध नहीं कराया था
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
“भगवान का स्वरूप और उद्देश्य | क्या भगवान ने महाभारत में युद्ध कराया?”
आज का गूढ़ प्रश्न
ओम् शांति।
आज हम एक ऐसे विषय पर मंथन करेंगे जो सदियों से भक्तों, विद्वानों और साधकों को भ्रम में डालता आया है –
क्या भगवान ने महाभारत का युद्ध कराया था?
इसके उत्तर को समझने के लिए पहले हमें भगवान के स्वरूप और उद्देश्य को जानना होगा।
1. भगवान का वास्तविक स्वरूप क्या है?
भगवान कोई सामान्य मनुष्य नहीं, न ही कोई देवता रूपी शरीरधारी आत्मा हैं।
परमात्मा एक अविनाशी, निराकार, ज्योति-बिंदु है —
जिसे हम शिव, परम पिता परमात्मा के नाम से जानते हैं।
वे किसी भी जन्म-मरण चक्र में नहीं आते।
उनका न कोई शरीर है, न कोई कर्मबंधन।
वे निर्विकार, निरहंकारी और सर्वशक्तिमान पिता हैं।
मुरली बिंदु:
“शिवबाबा निराकार है, वही आकर सब आत्माओं को पावन बनाते हैं।”
(साकार मुरली)
2. परमात्मा शिव – अहिंसा के प्रतीक
परमात्मा शिव का कार्य सदा अहिंसा और पवित्रता पर आधारित होता है।
वह कभी किसी को युद्ध के लिए प्रेरित नहीं करते।
बल्कि आत्मा को शांति, प्रेम और ज्ञान की शक्ति देते हैं।
उनका कार्य है – अज्ञानता के अंधकार को मिटाकर ज्ञान का प्रकाश देना।
मुरली से:
“बाप का कर्तव्य है – ज्ञान देना, युद्ध कराना नहीं।”
(अव्यक्त वाणी)
3. भगवान का उद्देश्य: धर्म की स्थापना
भगवान जब सृष्टि पर आते हैं, तो तीन मुख्य कार्य करते हैं:
-
धर्म की स्थापना – सच्चे अहिंसक दैवी धर्म की स्थापना करते हैं।
-
दैवी सम्पदा का निर्माण – सतोगुणी आत्माओं को पुनः श्रेष्ठ देवता बनाते हैं।
-
कर्म सिद्धांत की शिक्षा – हर आत्मा को सच्चा ज्ञान देते हैं कि कैसे कर्म करें जिससे भविष्य श्रेष्ठ बने।
गीता में भी लिखा है:
“धर्म संस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।”
(गीता 4:7)
4. क्या भगवान युद्ध करा सकते हैं?
जब परमात्मा शिव अहिंसा के धर्म को स्थापित करने आते हैं,
तो क्या वो हिंसा के किसी भी कार्य में लिप्त हो सकते हैं?
बिलकुल नहीं!
युद्ध का जो दृश्य महाभारत में दिखाया गया है, वह प्रतीकात्मक है –
वास्तविक युद्ध है – आत्मा और माया (रावण) के बीच।
परमात्मा उस आत्मिक युद्ध में हमें स्मृति, संकल्प और शक्ति प्रदान करते हैं,
ताकि हम माया पर विजयी बनें।
5. गीता में कौन बोल रहा था?
यह भी बड़ा गूढ़ प्रश्न है –
क्या गीता भगवान श्रीकृष्ण ने बोली थी?
ब्राह्माकुमारी मुरलियों के अनुसार:
-
श्रीकृष्ण तो सतयुग के पहले राजकुमार हैं।
-
उन्होंने गीता नहीं बोली, बल्कि शिवबाबा ने अर्जुन के तन (ब्रह्मा) द्वारा गीता ज्ञान दिया।
-
श्रीकृष्ण को माध्यम बनाकर परमात्मा का ज्ञान प्रचारित किया गया।
मुरली वाणी से:
“गीता का भगवान कृष्ण नहीं, शिव है।”
(साकार मुरली)
निष्कर्ष: भगवान का कार्य – शांति और ज्ञान का विस्तार
अतः भगवान का कार्य युद्ध कराना नहीं,
बल्कि आत्मिक रूप से शक्तिशाली बनाना है।
वे परम शिक्षक, सच्चे सतगुरु और सर्वश्रेष्ठ पिता हैं।
उनकी शिक्षाएं आत्मा को हिंसा से हटाकर सहज राजयोग द्वारा परमशांति और जीवनमुक्ति की ओर ले जाती हैं।
Questions & Answers (प्रश्नोत्तर)
प्रश्न 1: भगवान का सच्चा स्वरूप क्या है?
उत्तर: भगवान कोई शरीरधारी देवता या मनुष्य नहीं हैं। वह निराकार, ज्योति बिंदु शिव हैं — जो अविनाशी, सर्वशक्तिमान और सर्व आत्माओं के पिता हैं।
प्रश्न 2: क्या परमात्मा शिव कभी किसी को युद्ध के लिए प्रेरित करते हैं?
उत्तर: नहीं। परमात्मा शिव अहिंसा के परम प्रतीक हैं। उनका कार्य आत्मा को ज्ञान, शांति और प्रेम द्वारा शक्तिशाली बनाना है, न कि हिंसा के लिए उकसाना।
प्रश्न 3: भगवान का कार्य क्या है?
उत्तर: परमात्मा शिव का कार्य है –
-
सच्चे धर्म की स्थापना
-
आत्माओं को देवता बनाना
-
सच्चे कर्म सिद्धांत का ज्ञान देना
प्रश्न 4: क्या भगवान ने महाभारत का युद्ध कराया था?
उत्तर: नहीं। महाभारत का युद्ध प्रतीकात्मक है – आत्मा और माया के बीच का युद्ध। परमात्मा हमें उस युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए आध्यात्मिक शक्ति देते हैं।
प्रश्न 5: गीता किसने बोली थी – श्रीकृष्ण या शिव?
उत्तर: गीता का वास्तविक ज्ञान शिव परमात्मा ने ब्रह्मा के तन द्वारा दिया। श्रीकृष्ण को बाद में प्रतीक रूप में प्रस्तुत किया गया।
डिस्क्लेमर (Disclaimer)
यह वीडियो ब्रह्माकुमारी मुरलियों, आध्यात्मिक शोध और गीता के गूढ़ रहस्यों पर आधारित है। इसका उद्देश्य किसी भी धर्म, ग्रंथ, व्यक्ति या समुदाय की आस्था को ठेस पहुँचाना नहीं है। यह केवल आध्यात्मिक चिंतन और विवेक के लिए प्रस्तुत किया गया है। दर्शक अपने विवेक से इसका मूल्यांकन करें।
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