अव्यक्त मुरली-(20)“बीजरुप स्थिति तथा अलौकिक अनुभूतियाँ”
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
“बापदादा की बिन्दु में स्थित होने की मूरत: आवाज़ से परे की तैयारी”
“बाप समान बिन्दी बन आवाज़ से परे जाने की तैयारी”
1. आवाज़ से परे रहने वाला बाप – आवाज़ से परे ले जाने वाला
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परमात्मा ‘बापदादा’ स्वयं भी आवाज़ से परे रहते हैं और हमें भी उसी स्थिति तक पहुँचाने के लिए आते हैं।
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उनका आना सिर्फ मिलने के लिए नहीं, बल्कि साथ ले जाने के लिए होता है।
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प्रश्न है – क्या हम एवररेडी हैं, या अभी भी तैयारी शेष है?
2. बीजस्वरूप स्थिति – बिन्दी बनना ही है साथ चलने की पात्रता
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विस्तार की सभी शाखाओं को समेटकर बीज में स्थित होना ही बिन्दी बनना है।
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यह लौकिक नहीं, बल्कि आत्मिक हिसाब-किताब की समाप्ति है – देह, सम्बन्ध, पदार्थ, विकर्म सबकी शाखाएँ।
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बिन्दी बनना = पुराने जड़ वृक्ष को भस्म करना, सिर्फ काटना नहीं।
3. लगन की अग्नि – सहज भस्म करने की विधि
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यह वृक्ष नेचुरल बढ़ता है, इसलिए केवल काटने से नहीं मिटेगा।
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बाप से सच्ची लगन – “बिन्दु से लगाव, बिन्दु में समाव” – यही है अग्नि।
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ऐसी लगन से ही बीजरूप स्थिति संभव है।
4. एवररेडी आत्मा की चार गहरी अनुभूतियाँ
(i) शरीर से न्यारेपन की स्पष्ट अनुभूति:
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मैं आत्मा – यह शरीर सिर्फ वस्त्र है, वस्त्र और वस्त्रधारी की भिन्नता का स्पष्ट अनुभव।
(ii) साक्षात्कार नहीं, साक्षात् स्वरूप की स्थिति:
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ज्ञान से नहीं, बुद्धियोग द्वारा निरन्तर ज्योति बिन्दु स्वरूप की अनुभूति।
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साक्षात्कार क्षणिक है, लेकिन साक्षात् स्वरूप सदा का अनुभव है।
(iii) तीनों लोकों में विचरण की योग्यता:
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देह में रहकर भी – सेकंड में सूक्ष्मवतन, सेकंड में मूलवतन, सेकंड में कर्मक्षेत्र।
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फुर्सत मिली नहीं, आत्मा अपने घर में – जैसे ऑफिस से घर चले जाना।
(iv) उड़ती कला – सर्व बन्धनों से परे डबल लाइट स्थिति:
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पंछी जैसे उड़ते हुए आत्मा, नीचे की सभी आकर्षणों से परे, बाप के साथ उड़ती हुई।
5. सेवा के दौरान भी सारस्वरूप की स्थिति
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सेवा का उद्देश्य – आत्माओं को मुक्ति, जीवनमुक्ति का वर्सा दिलाना।
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सेवा करते समय बीज रूप की स्मृति बनी रहे।
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विस्तार में रहकर भी सार में स्थित रहो।
प्रश्न 1: “आवाज़ से परे रहने वाला बाप” का अर्थ क्या है? और वह हमें आवाज़ से परे क्यों ले जाना चाहते हैं?
उत्तर:परमात्मा ‘बापदादा’ स्वयं अविनाशी बिन्दी हैं — न शब्दों में बंधे, न दृश्य रूप में सीमित। वह ‘शब्दातीत’ हैं।
उनका कार्य केवल मिलने या ज्ञान देने का नहीं है — बल्कि हमें भी अपनी मूल अवस्था तक पहुँचाने का है।
वह आवाज़ से परे इसलिए ले जाना चाहते हैं ताकि आत्मा देह-अभिमान और पाँचों तत्वों के आकर्षण से पूरी तरह मुक्त हो जाए।
प्रश्न 2: “बीजस्वरूप स्थिति” क्या होती है, और यह क्यों ज़रूरी है?
उत्तर:बीजस्वरूप स्थिति का अर्थ है — विस्तार को समेटकर आत्मा की मूल स्थिति में स्थित होना, अर्थात् बिन्दी स्वरूप में स्थित होना।
जब तक आत्मा देह, सम्बन्ध, कर्म, और पदार्थ की शाखाओं में उलझी है, तब तक वह बाप के साथ चलने के योग्य नहीं बनती।
बिन्दी बनना = पुराने जड़ वृक्ष को पूरी तरह भस्म कर देना, केवल काटना नहीं।
प्रश्न 3: आत्मा पुराने वृक्ष (माया के विस्तार) को कैसे भस्म कर सकती है?
उत्तर:सच्ची लगन से ही यह संभव है।
जब आत्मा बाप के बिन्दी स्वरूप से सच्चा प्रेम करती है, तब “बिन्दु से लगाव, बिन्दु में समाव” की स्थिति बनती है।
यह लगन की अग्नि ही आत्मा के पुराने संस्कारों को सहज रूप से भस्म करती है।
प्रश्न 4: एक एवररेडी आत्मा की 4 मुख्य अनुभूतियाँ कौन-सी हैं?
उत्तर:
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शरीर से न्यारेपन की अनुभूति –
मैं आत्मा हूँ, यह शरीर वस्त्र मात्र है। -
साक्षात् स्वरूप की स्थिति –
साक्षात्कार नहीं, बल्कि निरन्तर बिन्दी स्वरूप की अनुभूति। -
तीनों लोकों में सहज विचरण की योग्यता –
सेकंड में सूक्ष्मवतन, सेकंड में मूलवतन। -
उड़ती कला की स्थिति –
सभी बन्धनों से परे, डबल लाइट अवस्था में बाप के साथ उड़ती आत्मा।
प्रश्न 5: क्या सेवा के दौरान भी आत्मा बिन्दी में स्थित रह सकती है?
उत्तर:हाँ। बापदादा की सच्ची शिक्षा यही है कि सेवा के विस्तार में रहते हुए भी आत्मा सारस्वरूप बनी रहे।
सेवा का उद्देश्य है – आत्माओं को जीवनमुक्ति का वर्सा दिलाना।
इसलिए सेवा करते समय बीज रूप की स्मृति बनी रहनी चाहिए।
प्रश्न 6: क्या हम अभी बिन्दी बन आवाज़ से परे जाने के लिए तैयार हैं?
उत्तर:यह आत्म-जांच का समय है।
यदि हमारी संकल्प शक्ति नियंत्रण में है, बीजस्वरूप स्थिति बनी रहती है, और मन-बुद्धि के मंत्री हमारे आदेश पर चलते हैं — तो हम तैयार हैं।
नहीं तो अभी और लगन, योग, और आत्मिक गहराई की जरूरत है।
Disclaimer (डिस्क्लेमर):
यह वीडियो आध्यात्मिक अध्ययन, आत्मिक अनुभूति और राजयोग के अभ्यास के लिए प्रस्तुत किया गया है। इसमें दिए गए उत्तर ब्रह्माकुमारियों के ईश्वरीय ज्ञान और मुरली के आधार पर समझाए गए हैं। इसका उद्देश्य किसी भी धर्म, व्यक्ति, या संस्था की आलोचना नहीं है, बल्कि आत्मा की परम अवस्था की ओर प्रेरित करना है। कृपया इसे खुले मन और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से सुने।
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