“Characteristics of servile and possessive souls”

अव्यक्त मुरली-(24)“दास व अधिकारी आत्माओं के लक्षण”

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( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

“राजऋषियों की दरबार में बापदादा का सन्देश | अधिकारी और त्यागी आत्मा कैसे बनें?” | 


 आज का आध्यात्मिक प्रवचन:

“राजऋषियों की दरबार में बापदादा का दिव्य सन्देश”

बापदादा आज राजऋषियों की सभा देख रहे हैं – ऐसे ब्राह्मण आत्माएं जो अधिकारी भी हैं और महात्यागी भी। आज हम समझेंगे –

“कैसे बनें अधिकारी और त्यागी का बैलेंस स्वरूप?”
“कैसे निकालें अपने जीवन से दासता का जाल?”
“कैसे बनें मास्टर बीजरूप?”


अधिकारी और ऋषि – दो पहलुओं का बैलेंस

  • राजऋषि का अर्थ है –
    राजा अर्थात् जो स्वयं पर अधिकार रखे और ऋषि अर्थात् जो सब कुछ त्याग चुका है।

  • आत्मा को इस युग में इन दोनों गुणों का बैलेंस बनाना है।

  • सच्चा अधिकारी वही बन सकता है जो पूर्ण त्यागी हो।

बापदादा पूछते हैं – क्या तुम स्वराज्य अधिकारी बने हो?


त्याग का पहला कदम – देहभान का त्याग

  • त्याग का आरंभ देहभान से मुक्ति से होता है।

  • देह से जुड़ी सभी पहचानें – सम्बन्ध, नाम, रूप, अधिकार – इनका त्याग ही आत्मा को मालिक बनाता है।

  • दास और अधिकारी साथ-साथ नहीं हो सकते।

“मन से उदास हो जाना दासता की निशानी है,
हर्षित मन अधिकारी की पहचान है।”


 दास आत्मा की लीला और अधिकारी की शान

  • दास आत्मा छोटी-छोटी बातों में उलझती है:

    • कभी आंख रूपी चूहा धोखा दे देता।

    • कभी संस्कार रूपी शेर हमला कर देता।

  • अधिकारी आत्मा मांझी बनकर इन परिस्थितियों की लहरों से खेलती है।

बापदादा मुस्कराते हैं – चूहा निकालते हो तो बिल्ली आ जाती है, फिर कुत्ता।


 अर्जियों की लम्बी फाइल क्यों?

  • “बापदादा मैं एक मास से परेशान हूँ…”

  • बाप की मर्जी को अपनाओ तो अर्जी की फाइलें जल जाएँ।

  • मनमर्जी = अर्जी
    बाप की मर्जी = समाधान

बाप की मर्जी है – “हर आत्मा के लिए शुभचिंतन में रहो”


 बेहोशी का जाल – कर्मेन्द्रियों से बचो

  • छोटी-सी आंख और कान जैसी इन्द्रियाँ एक विशाल जाल बुन देती हैं।

  • यह जाल आत्मा को ईश्वरीय होश से बेहोश कर देता है।

मकड़ी स्वयं अपना जाल खा जाती है – ऐसे ही विस्तार को बिन्दी लगाकर समा जाओ।


समाधान – बिन्दी बनो, बिन्दी में लवलीन हो जाओ

  • आत्मा को बिन्दी बनकर समस्त जाल से मुक्त होना है।

  • बाप सिन्धु होते हुए भी बिन्दु हैं।
    बीज रूप स्थिति = सारी शक्तियों का स्रोत।

“जैसे नदियां सागर में समा जाती हैं, वैसे तुम परमात्मा में लवलीन हो जाओ।”


 निमित्त आत्मा की दो विशेषताएं

  1. नम्रता द्वारा निर्माण करना

  2. सन्तुष्टता द्वारा सन्तुष्ट करना

  • “मैं ने किया” यह भाव समाप्त हो – सिर्फ “बाबा, बाबा” की स्मृति रहे।

  • जो निमित्त है, वही बाप समान, शक्तिशाली बनता है।


विशेष आत्मा कैसे बनें?

  • हर आत्मा की विशेषता देखो, गुण देखो।

  • मधुमक्खी की तरह सिर्फ गुण रूपी फूलों पर दृष्टि रखो।

“वाह आत्मा, वाह!” – यह स्मृति आत्मा को महान बना देती है।


 महान समय, महान आत्मा – संगमयुग का वरदान

  • हर सेकेण्ड इस कल्प का भाग्य बना रहा है।

  • हर संकल्प, हर कर्म में “मैं महान आत्मा हूँ” की स्मृति रखो।

ज्ञान रत्न, खुशी के खजाने, शक्तियों के खजाने – इनसे खेलो, इन्हें बांटो।

प्रश्न 1: “राजऋषि” आत्मा किसे कहा जाता है?

उत्तर:“राजऋषि” आत्मा वह है जो राजा यानी स्वराज्य अधिकारी हो और साथ ही ऋषि यानी महात्यागी भी हो। बापदादा कहते हैं – सच्चा अधिकारी वही हो सकता है जो पूर्ण त्यागी भी हो। अधिकारी और त्यागी – दोनों का बैलेंस ही “राजऋषि” बनाता है।


प्रश्न 2: आत्मा को “स्वराज्य अधिकारी” बनने के लिए पहला त्याग क्या करना पड़ता है?

उत्तर:पहला त्याग है देहभान का त्याग। जब आत्मा देह से, नाम, रूप और सम्बन्धों से भान छोड़ देती है, तभी वह सच्चे अर्थों में मालिक बनती है।

“दास और अधिकारी एक साथ नहीं हो सकते।”
“उदासी दासता की निशानी है, हर्ष अधिकारी की पहचान।”


प्रश्न 3: दास आत्मा और अधिकारी आत्मा में क्या अंतर होता है?

उत्तर:

  • दास आत्मा छोटी-छोटी बातों से उलझती है, जल्दी परेशान होती है।

  • अधिकारी आत्मा मांझी बनकर परिस्थिति की लहरों से भी खेलती है।
    बापदादा कहते हैं –

“दास आत्मा चूहा निकालती है तो बिल्ली आ जाती है, फिर कुत्ता।”
अधिकारी आत्मा सिंहासन पर सेट रहती है।


प्रश्न 4: आत्माएं अर्जियों की लंबी फाइलें क्यों जमा करती हैं?

उत्तर:क्योंकि वे बाप की मर्जी के स्थान पर मनमर्जी पर चलती हैं।

“मनमर्जी = अर्जी
बाप की मर्जी = समाधान”
बाप की मर्जी है – सदा शुभचिंतन में रहो, स्व और विश्व कल्याणी बनो


प्रश्न 5: कर्मेन्द्रियों द्वारा आत्मा कैसे दास बन जाती है?

उत्तर:छोटी-छोटी इन्द्रियाँ जैसे आंख और कान बहुत बड़ा जाल बना देती हैं। यह जाल आत्मा को ईश्वरीय मर्यादा और होश से बेहोश कर देता है।

जैसे मकड़ी जाल बुनती है, वैसे कर्मेन्द्रियां भी आत्मा को फंसा देती हैं।


प्रश्न 6: इस बेहोशी के जाल से कैसे मुक्त हुआ जा सकता है?

उत्तर:बिन्दी बनकर, बिन्दी में लवलीन होकर।
जैसे सागर में नदियाँ समा जाती हैं, वैसे आत्मा को परमात्मा में लवलीन होना है।

“बीजरूप स्थिति” में ही सारे ज्ञान, गुण और शक्तियाँ समा जाती हैं।
बाप भी बिन्दु हैं और सिन्धु भी।


प्रश्न 7: एक सच्ची निमित्त आत्मा की क्या विशेषताएं होती हैं?

उत्तर:

  1. नम्रता द्वारा निर्माण करती है।

  2. सन्तुष्टता द्वारा स्वयं और औरों को सन्तुष्ट करती है।
    वह “मैं ने किया” नहीं कहती, बल्कि “बाबा ने किया” कहती है। इससे आत्मा बाप समान शक्तिशाली बनती है।


प्रश्न 8: विशेष आत्मा बनने के लिए क्या अभ्यास करना चाहिए?

उत्तर:

  • हर आत्मा में गुण और विशेषता देखने का अभ्यास करें।

  • जैसे मधुमक्खी फूलों को खोजती है, वैसे ही हमें गुण रूपी मोती चुनने हैं।

“वाह आत्मा, वाह” – इस भावना से दूसरों की विशेषता देखने वाला स्वयं विशेष बनता है।


प्रश्न 9: संगमयुग का हर क्षण क्यों महान है?

उत्तर:क्योंकि संगमयुग का एक-एक सेकेण्ड पूरे कल्प की प्रालब्ध बनाता है।

“मैं महान आत्मा हूँ” – इस स्मृति में हर संकल्प और कर्म करना ही संगम का वरदान है।
सदा ज्ञान रत्न, खुशी, और शक्तियों के खजानों से खेलते रहो।


प्रश्न 10: अधिकारी और त्यागी आत्मा को बापदादा कौन-सा सन्देश देते हैं?

उत्तर:

“दास आत्मा मत बनो।
मास्टर बीजरूप स्थिति में लवलीन हो जाओ।
बिन्दी लगाओ, बिन्दी में समा जाओ।
बाप की मर्जी को मेरी मर्जी बनाओ।
औरों को आगे बढ़ाना ही स्वयं का आगे बढ़ना है।”

Disclaimer:
यह वीडियो Brahma Kumaris के आध्यात्मिक ज्ञान व अव्यक्त मुरली के सार को प्रश्नोत्तर रूप में प्रस्तुत करता है। यह आध्यात्मिक चिंतन एवं स्वविकास के उद्देश्य से साझा किया गया है। यह किसी भी संस्था की आधिकारिक अभिव्यक्ति नहीं है, बल्कि सार्वजनिक रूप से प्राप्त ज्ञान का सरल रूपांतरण है।
सभी विचार “बापदादा” के आध्यात्मिक सन्देशों पर आधारित हैं।

यदि किसी भी प्रकार की आपत्ति हो, कृपया हमें ईमेल द्वारा संपर्क करें।

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