Knowledge of the secret workings of karmas, distinction between karma, akarma and vikarma

(26)कर्मों की गुह्य गति का ज्ञान कर्म, अकर्म, विकर्म का भेद

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( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)]

कर्मों की गुह्य गति: गीता और मुरली की रोशनी में | कर्म, अकर्म, विकर्म का गहरा रहस्य |


आज हम एक अत्यंत गूढ़ विषय पर मनन करेंगे — “कर्मों की गुह्य गति”।
भगवद गीता और ब्रह्मा कुमारीज की ईश्वरीय मुरलियों में इस पर अत्यंत गहराई से प्रकाश डाला गया है। यह ज्ञान न केवल आत्मा की जिज्ञासा को शांत करता है, बल्कि जीवन को स्पष्ट दिशा देता है।
तो आइए, समझें – कर्म, अकर्म और विकर्म का वह रहस्य जो आत्मा को मुक्त कर सकता है।


 1. कर्मों की गुह्य गति का दिव्य ज्ञान

 गीता से उद्घरण:
भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं:
“गुह्यं हि कर्मणो गतिं” (अध्याय 4, श्लोक 17)
कर्म की गति अत्यंत रहस्यमय है।

 मुरली से समर्थन:
Murli 29 फरवरी 2024:
“कर्म, अकर्म, विकर्म का ज्ञान मैं ही आकर बताता हूँ। मनुष्य तो खुद ही अज्ञानी हैं।”

 उदाहरण:
जैसे कोई विशेषज्ञ डॉक्टर जटिल ऑपरेशन खुद करता है और विधि भी समझाता है,
वैसे ही परमात्मा इस संसार में आकर कर्मों की जटिल सर्जरी स्वयं करते हैं – ज्ञान द्वारा।

 निष्कर्ष:
मनुष्य तो स्वयं कर्म बंधनों में फंसा हुआ है,
केवल परमात्मा ही ‘ज्ञान सूर्य’ बनकर हमें विकर्मों से मुक्त करने का मार्ग बताते हैं।


 2. आत्मा को श्रेष्ठ आचरण की प्रेरणा

 मुरली से संदेश:
Murli 1 जुलाई 2025:
“मैं आत्माओं को श्रेष्ठ आचरण सिखाने आता हूँ – जैसे योगयुक्त होकर कर्म करो, क्रोध व काम का त्याग करो। यही राजयोग है।”

 गीता में व्यवहारिक निर्देश:

  • अमृतवेला उठना

  • ईश्वरीय स्मृति में रहना

  • अनासक्त होकर कर्म करना

  • वैर-भाव से मुक्त व्यवहार

 उदाहरण:
जैसे एक गुरु अपने शिष्य को जीवन का हर कर्म विधिपूर्वक सिखाता है –
उठना, बैठना, बोलना, खाना –
वैसे ही परमात्मा आत्मा को गीता और मुरली में श्रेष्ठ जीवन की कला सिखाते हैं।

 प्रेरणा:
जैसे सूर्य बिना भेदभाव के सबको प्रकाश देता है,
वैसे ही परमात्मा आत्मा को निस्वार्थ, सात्विक और देवतुल्य कर्म की प्रेरणा देते हैं।


 3. प्रवृत्ति और निवृत्ति का संतुलन

 गीता का गूढ़ संदेश:
सच्चा संन्यास वह नहीं जो संसार छोड़ दे,
बल्कि वह है जो कर्तापन से मुक्त होकर कर्म करे।

 मुरली दृष्टिकोण:
Murli 24 फरवरी 2025:
“मैं कर्म में रहते हुए कर्म योग सिखाता हूँ। यही सच्चा संन्यास है – जहाँ बुद्धि केवल मुझसे जुड़ी हो।”

 उदाहरण:
कमल का फूल कीचड़ में रहकर भी उस पर निर्भर नहीं होता –
वैसे ही आत्मा संसार में रहते हुए भी परमात्मा से जुड़कर कर्म करे,
तभी विकर्म से बचाव होता है।


 4. निष्कर्ष: क्यों गीता है सर्वशास्त्र शिरोमणि?

 गीता में स्वयं परमात्मा आकर:

  • कर्म, अकर्म और विकर्म का रहस्य उजागर करते हैं

  • श्रेष्ठ आचरण की विधि सिखाते हैं

  • योगयुक्त कर्म द्वारा जीवन को पवित्र बनाना सिखाते हैं

 मुरली रूपी ईश्वरीय वाणी वही ज्ञान दोहराती है,
जो परमात्मा ने गीता में कहा था।

प्रश्न 1: गीता में ‘कर्मों की गुह्य गति’ को क्यों कहा गया है?

उत्तर:गीता अध्याय 4, श्लोक 17 में भगवान कहते हैं:
“गुह्या हि कर्मणो गतिः”
 कर्मों की गति अत्यंत गुप्त है, क्योंकि एक ही जैसा कर्म दिखाई देने पर भी उसका फल अलग होता है – भाव, संकल्प, उद्देश्य पर निर्भर करता है।

मुरली समर्थन (29 फरवरी 2024):
“कर्म, अकर्म, विकर्म का ज्ञान मैं ही आकर बताता हूँ। मनुष्य तो खुद ही अज्ञानी हैं।”

उदाहरण:
जैसे कोई विशेषज्ञ डॉक्टर खुद आकर जटिल सर्जरी की विधि समझाता है, वैसे ही परमात्मा स्वयं आकर हमें कर्मों की जटिलता समझाते हैं।


प्रश्न 2: ‘कर्म’, ‘अकर्म’ और ‘विकर्म’ में क्या अंतर है?

उत्तर:

  • कर्म: आत्मा के योगयुक्त और सेवा भाव से किए गए शुभ कार्य (सत्य कर्म)

  • अकर्म: ऐसा कर्म जिसका फल नहीं बंधता, जैसे परमात्मा के लिए किया गया निस्वार्थ कर्म

  • विकर्म: आसक्ति, काम, क्रोध आदि वासनाओं से प्रेरित पाप कर्म

मुरली (Murli 24 मार्च 2025):
“अच्छे-बुरे कर्मों का लेखा-जोखा आत्मा में भरता है, इसलिए मैं सिखाता हूँ – विकर्म से बचो।”


प्रश्न 3: आत्मा को श्रेष्ठ आचरण की प्रेरणा कौन देता है और कैसे?

उत्तर:ईश्वर स्वयं आकर आत्मा को श्रेष्ठ आचरण की राह दिखाते हैं।

Murli (1 जुलाई 2025):
“मैं आत्माओं को श्रेष्ठ आचरण सिखाने आता हूँ – जैसे योगयुक्त होकर कर्म करो, क्रोध व काम का त्याग करो। यही राजयोग है।”

गीता से व्यवहारिक मार्ग:

  • अमृतवेला में उठना

  • ईश्वर स्मृति में रहना

  • अनासक्त होकर कर्म करना

  • सभी आत्माओं से प्रेमभाव रखना

उदाहरण:
जैसे एक गुरु अपने शिष्य को दैनिक जीवन की संपूर्ण विधि सिखाता है – वैसे ही परमात्मा आत्मा को ‘जीवनाचार्य’ बनाते हैं।


प्रश्न 4: गीता में सच्चे संन्यास की परिभाषा क्या है?

उत्तर:सच्चा संन्यास यह नहीं कि संसार त्याग दिया जाए, बल्कि कर्म करते हुए भी “कर्ता भाव” से मुक्त रहना ही सच्चा त्याग है।

Murli (24 फरवरी 2025):
“मैं कर्म में रहते हुए कर्म योग सिखाता हूँ। यही सच्चा संन्यास है – जहाँ बुद्धि केवल मुझसे जुड़ी हो।”

उदाहरण:
जैसे कमल का फूल कीचड़ में रहकर भी निर्लिप्त रहता है, वैसे ही आत्मा संसार में रहकर भी योगबल से अलिप्त रह सकती है।


प्रश्न 5: गीता को ‘सर्व शास्त्र शिरोमणि’ क्यों कहा गया है?

उत्तर:क्योंकि इसमें स्वयं परमात्मा:

  • कर्मों की गुह्य गति को स्पष्ट करते हैं

  • श्रेष्ठ आचरण की विधि सिखाते हैं

  • योगयुक्त कर्म करने का संतुलन देते हैं

  • प्रवृत्ति (संसार में रहते हुए) और निवृत्ति (ईश्वर से जुड़ाव) का रहस्य सिखाते हैं

Disclaimer (डिस्क्लेमर):

 यह वीडियो आध्यात्मिक शिक्षाओं और भगवद गीता के गूढ़ रहस्यों पर आधारित है, जो ब्रह्माकुमारीज के गहन चिंतन और मुरली ज्ञान के प्रकाश में प्रस्तुत किया गया है। इसका उद्देश्य केवल आत्मिक जागृति और आध्यात्मिक मार्गदर्शन है, न कि किसी धार्मिक मत या व्यक्ति विशेष की आलोचना। कृपया इसे खुले हृदय से आत्म-अनुभव के लिए देखें।

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