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25-07-2025/आज की मुरली बड़े-बड़े अक्षरों में पढ़े सुनें और मंथन करे

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( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

“एक की ही महिमा क्यों? | सिर्फ शिवबाबा की ही स्तुति क्यों होती है? | 


“बच्चों ने अपने बाप की महिमा सुनी…”
यह कोई साधारण वाक्य नहीं है, यह उस बाप की महिमा है जो हमें पावन बनाने स्वयं इस धरती पर आता है।
मनुष्य अनेक देवी-देवताओं, ऋषि-मुनियों, अवतारों की महिमा करते हैं, परन्तु सच्ची महिमा किसकी है – यह रहस्य बहुत ही गुप्त है।


 1. एक की ही महिमा क्यों?

संसार में केवल एक ही आत्मा है जो पतित-पावन, सद्गति दाता, और सर्व आत्माओं का बाप है – शिवबाबा

  • ब्रह्मा, विष्णु, शंकर भी उसकी स्थापना, पालना, विनाश के कार्य के निमित्त हैं।

  • लक्ष्मी-नारायण जैसे ऊँच पद को भी वही शिवबाबा ही बनाते हैं।
     इसलिए महिमा होनी चाहिए उस एक की – न कि निमित्त आत्माओं की।


 2. राजयोग से बनते हैं सूर्यवंशी राजा

  • शिवबाबा संगमयुग पर आकर हमें पढ़ाते हैं – यही है राजाओं की शिक्षा।

  • जैसे बैरिस्टर बनने के लिए पढ़ाई करनी पड़ती है, वैसे ही राजा बनने के लिए आत्मिक पढ़ाई और पुरुषार्थ आवश्यक है।

  • श्रीमत अनुसार जो बच्चे अच्छी रीति पढ़ते हैं, वही लक्ष्मी-नारायण जैसे पद पाते हैं।


 3. सच्चा आत्मिक धर्म – पावन बनना

  • आत्मा का स्वधर्म है – पवित्रता

  • अभी सब आत्माएं तमोप्रधान बन गई हैं, इसलिए बाप समझाते हैं –
     “अपने को आत्मा समझ, बाप को याद करो — यही विकर्म विनाश करने की विधि है।”


 4. बाप को क्यों याद करें?

  • क्योंकि वही है ज्ञान सागर, सत्य शिक्षक और मुक्ति-जीवन मुक्ति का दाता

  • शरीरधारी कोई भी आत्मा पवित्र नहीं बना सकती।
     देहधारी को याद करने से पाप बढ़ते हैं, शिवबाबा को याद करने से पाप कटते हैं।


 5. भारत – वह पुण्यभूमि जहाँ ईश्वर आता है

  • भारत को मदर कन्ट्री कहा जाता है क्योंकि यहाँ ही शिवबाबा मात-पिता बनकर आते हैं।

  • यहाँ ही मुख वंशावली रचकर, हम आत्माओं को एडाप्ट करते हैं।

  • विदेशों में तो सिर्फ “Godfather” कहा जाता है, परन्तु यहाँ आत्मा बाप-माता को जानती है।


 6. नई दुनिया की स्थापना – बाप द्वारा

  • शिवबाबा ही हमें सृष्टि की आदि-मध्य-अंत की पूरी हिस्ट्री-योग्राफी समझाते हैं।

  • बाप ही राजयोग सिखाकर विश्व की शांति लाते हैं।

  • लक्ष्मी-नारायण के राज्य में ही संपूर्ण विश्व में शांति थी – उसका कारण यही राजयोग है।


 7. माया का सामना – याद का जौहर चाहिए

  • माया विघ्न डालती है विशेषकर शुद्ध बनने की प्रतिज्ञा के बाद।

  • परन्तु जो याद में दृढ़ होते हैं, वही पार कर जाते हैं।

  • बाप कहते हैं – “याद में प्यार के आँसू बहाओ, वे मोती बनेंगे।”


 8. यह पढ़ाई – सहज भी है, गुप्त भी

  • खाट पर सोते हुए, विदेश में रहते हुए, घर में रहकर भी पढ़ सकते हैं।

  • पढ़ाई बड़ी सहज है, लेकिन याद में मेहनत चाहिए।
     जो अच्छी रीति पढ़ते हैं, वही स्वर्ग के हकदार बनते हैं।


 9. बुद्धि का ताला खुलता है बाप के ज्ञान से

  • बाप कहते हैं – “मैं सबका ताला नहीं खोल सकता, जो ड्रामा अनुसार लायक होंगे, वही पास होंगे।”

  • पढ़ाई में भी नम्बरवार हैं — कोई महाराजा, कोई प्रजा बनते हैं।


10. दुनिया की आज की स्थिति – घोर अंधियारा

  • आज घर-घर में अशांति है, भाषा, धर्म, देश – सब बँट चुके हैं।

  • बाप कहते हैं – “विश्व में शांति तब थी जब भारत में देवी-देवताओं का राज्य था।”
     और वह राज्य फिर से स्थापन हो रहा है – इस संगमयुग पर।


 निष्कर्ष:

“यह पढ़ाई ऐसी है जो आत्मा को राजा बनाती है।”

  • यह कोई साधारण शिक्षा नहीं, यह है ब्रह्मज्ञान की राजकीय पढ़ाई

  • पुरुषार्थ करना है, दिलशिकस्त नहीं होना है।

  • हमारी मंज़िल है – वापिस घर जाना और फिर स्वर्ग का राज्य पाना।

प्रश्न 1: “एक की ही महिमा क्यों होती है?”

उत्तर:क्योंकि केवल एक शिवबाबा ही पतित-पावन, सद्गति दाता, और सर्व आत्माओं का परमपिता परमात्मा है।
ब्रह्मा, विष्णु, शंकर जैसे देवता भी उसके कार्य के निमित्त हैं।
लक्ष्मी-नारायण जैसा ऊँच पद भी वही दिलाते हैं।
 इसीलिए महिमा सिर्फ उस “एक” की होती है – जो सबका रचयिता और रचता है।


प्रश्न 2: “शिवबाबा हमें कैसे सूर्यवंशी राजा बनाते हैं?”

उत्तर:संगमयुग पर शिवबाबा हमें राजयोग सिखाते हैं, जिससे आत्मा राजा बनती है।
जैसे बैरिस्टर बनने के लिए पढ़ाई करनी होती है, वैसे ही यहाँ आत्मिक पढ़ाई से हम लक्ष्मी-नारायण जैसे पद पाते हैं।
 यह पढ़ाई श्रीमत पर आधारित होती है – जो सिर्फ शिवबाबा ही देते हैं।


प्रश्न 3: “सच्चा आत्मिक धर्म क्या है?”

उत्तर:सच्चा आत्मिक धर्म है – पवित्रता
आज आत्माएं तमोप्रधान हो चुकी हैं, इसलिए बाप हमें याद दिलाते हैं –
 “अपने को आत्मा समझ, मुझे याद करो – यही विकर्म विनाश करने की विधि है।”


प्रश्न 4: “शिवबाबा को ही क्यों याद करें?”

उत्तर:क्योंकि वही है –

  • ज्ञान सागर

  • सत्य शिक्षक

  • मुक्ति और जीवन-मुक्ति का दाता

देहधारी को याद करने से पाप बढ़ते हैं, लेकिन शिवबाबा को याद करने से पाप कटते हैं।
 वह निराकार है, इसलिए उसकी याद आत्मा को शक्तिशाली बनाती है।


प्रश्न 5: “भारत को पुण्यभूमि क्यों कहा जाता है?”

उत्तर:क्योंकि भारत ही वह भूमि है जहाँ स्वयं ईश्वर शिवबाबा अवतरित होते हैं।
यहीं पर वह ब्रह्मा द्वारा मुख वंशावली रचते हैं और आत्माओं को एडाप्ट करते हैं।
 विदेशों में भगवान को Godfather कहा जाता है, पर भारत में वह “मात-पिता” के रूप में पहचाने जाते हैं।


प्रश्न 6: “नई दुनिया की स्थापना कौन करता है?”

उत्तर:नई दुनिया की स्थापना स्वयं शिवबाबा करते हैं।
वह हमें सृष्टि चक्र का पूरा ज्ञान देते हैं – आदि, मध्य, अंत समझाते हैं।
 राजयोग के द्वारा ही विश्व शांति और स्वर्ग की स्थापना होती है।


प्रश्न 7: “माया का सामना कैसे करें?”

उत्तर:माया विशेष रूप से तब विघ्न डालती है जब हम शुद्ध बनने की प्रतिज्ञा करते हैं।
बाप कहते हैं –
 “मुझे याद करो, प्यार से आँसू बहाओ – वे मोती बनेंगे।”
जो याद में पक्के होते हैं, वही माया को जीतते हैं।


प्रश्न 8: “क्या यह पढ़ाई कठिन है?”

उत्तर:नहीं, यह पढ़ाई सहज भी है और गुप्त भी
घर बैठे, विदेश में रहकर, यहाँ तक कि खाट पर सोते हुए भी यह पढ़ सकते हैं।
 लेकिन याद में मेहनत है – और उसी से विकर्म विनाश होते हैं।


प्रश्न 9: “हर किसी की बुद्धि का ताला क्यों नहीं खुलता?”

उत्तर:शिवबाबा कहते हैं –
 “ड्रामा अनुसार जो लायक आत्माएं हैं, उन्हीं का ताला खुलता है।”
इस पढ़ाई में भी नम्बरवार हैं – कोई महाराजा, कोई मंत्री, कोई प्रजा बनते हैं।


प्रश्न 10: “आज की दुनिया को घोर अंधियारा क्यों कहा गया है?”

उत्तर:क्योंकि आज:

  • हर घर में अशांति है

  • धर्म, भाषा, संस्कृति सब बँट चुकी है

  • आत्माएं दुख और भय में जी रही हैं

शिवबाबा समझाते हैं –
 “जब भारत में देवी-देवताओं का राज्य था, तब विश्व में शांति थी।”
अब संगमयुग पर वही राज्य फिर से स्थापन हो रहा है।


प्रश्न 11: “इस ज्ञान का अंतिम लक्ष्य क्या है?”

उत्तर:
इस ज्ञान का लक्ष्य है –

  • आत्मा को राजा बनाना

  • शुद्ध, संपूर्ण, सच्चिदानंद स्वरूप बनाना

  • फिर से स्वर्ग की स्थापना करना
    यही है ब्रह्मज्ञान की राजकीय पढ़ाई।

डिस्क्लेमर:
यह वीडियो “प्रजापिता ब्रह्मा कुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय” द्वारा प्रकाशित आध्यात्मिक शिक्षाओं पर आधारित है, जो ब्रह्मा कुमारियों की Murlis (ईश्वर द्वारा प्रदत्त ज्ञान) से प्रेरित है। इसका उद्देश्य केवल आत्म-ज्ञान, पवित्रता, और राजयोग के महत्व को समझाना है।
यह किसी भी धर्म, व्यक्ति या संगठन की आलोचना नहीं करता।
सभी आत्माएं भाई-बहन समान हैं।

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