(28)योग की विधि और सिद्धि।श्रीमद् भगवत गीता का दिव्य मार्ग
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
“परमात्मा से जुड़ने की सम्पूर्ण कला – योग की विधि और सिद्धि |
Bhagavad Gita और Murli ज्ञान”
भूमिका:
“योग” — केवल एक साधना नहीं, बल्कि आत्मा और परमात्मा के गहरे मिलन की कला है।
भगवद्गीता कहती है — योग ज्ञान भी है, कर्म भी, और परमात्मा की स्मृति से जुड़ने की विज्ञानमयी विधि भी।
1. आत्मा और परमात्मा – दो आत्माओं का मिलन:
योग का अर्थ है — स्मृति का संबंध।
Murli 24 June 1970:
“बाप कहते हैं – अपने को आत्मा समझ, मुझ बाप को याद करो। यही राजयोग है जिससे आत्मा पावन बनती है।”
उदाहरण:
मोबाइल तभी चार्ज होता है जब वह पावर से जुड़ा हो।
वैसे ही आत्मा को परमात्मा की याद से शक्ति मिलती है।
2. योग की विधि: कैसी हो दृष्टि, वृत्ति, स्मृति
गीता अध्याय 6:
“ज्ञातात्मा प्रशान्तात्मा परमात्मा समाहितः…”
योगी वह है जो आत्मज्ञान से भरपूर, परमात्मा में स्थित, और परिस्थितियों में समभाव रखता है।
Murli 28 July 1985:
“मन-बुद्धि को एक बाप में लगाने से ही मन की स्थिरता आती है।”
Check Point:
क्या मेरी दृष्टि आत्मिक है?
क्या मेरी स्मृति एक बाप पर स्थिर है?
3. विघ्नों पर विजय – स्थिरता की परीक्षा:
गीता उपमा:
जैसे वायुहीन स्थान में दीपक की लौ स्थिर रहती है, वैसे ही योगी का मन।
Murli 15 March 1982:
“मन-वाणी-कर्म में योगयुक्त आत्मा ही मास्टर सर्वशक्तिवान बनती है।”
उदाहरण:
जैसे खिलाड़ी खेल में एकाग्र होता है, वैसे योगी हर कर्म में परमात्मा की स्मृति रखता है।
4. योग की सिद्धि – अंत समय की प्राप्ति:
Murli 25 January 1980:
“अंत समय जो मुझे याद करता है, वह मुझे ही प्राप्त करता है।”
स्मृति की निरंतरता ही सिद्धि का द्वार है।
5. योग – केवल धारणा नहीं, दिव्यता का साधन:
गीता के अध्यायों में:
“इति ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे…”
गीता परमात्मा द्वारा पढ़ाया गया योग-शास्त्र है।
Murli 23 May 1986:
“योगबल से ही तुम विश्व के मालिक बनते हो।”
6. निष्कर्ष – योग: आत्मा की पवित्रता का मार्ग:
योग आत्मा का स्नान है।
योग आत्मा की उड़ान है।
योग आत्मा का परमात्मा से पुनः मिलन है।
क्या मैंने बाप को याद करते हुए कर्म किया?
क्या मन एक बाप में स्थित रहा?
प्रश्नोत्तर (Q&A) – योग की विधि और सिद्धि पर आधारित
Q1: योग क्या है? क्या यह केवल साधना है या इससे अधिक कुछ?
उत्तर:
योग केवल बैठकर साधना करना नहीं है, यह आत्मा और परमात्मा के बीच स्मृति का दिव्य संबंध है।
जैसे मोबाइल तभी चार्ज होता है जब वह पावर से जुड़ा हो, वैसे ही आत्मा तभी शक्तिशाली बनती है जब परमात्मा से याद का कनेक्शन हो।
Murli 24 June 1970:
“बाप कहते हैं – अपने को आत्मा समझ, मुझ बाप को याद करो। यही राजयोग है जिससे आत्मा पावन बनती है।”
Q2: योग की सच्ची विधि क्या है? कैसे दृष्टि, वृत्ति और स्मृति बनानी चाहिए?
उत्तर:
योग की विधि का आधार है आत्मिक दृष्टि, पवित्र वृत्ति, और एक बाप की स्मृति।
गीता अध्याय 6 में कहा गया है – “ज्ञातात्मा प्रशान्तात्मा परमात्मा समाहितः…”
यह वही योगी है जो स्थितप्रज्ञ और एक परमात्मा में समाहित होता है।
Murli 28 July 1985:
“मन-बुद्धि को एक बाप में लगाने से ही मन की स्थिरता आती है।”
Daily Check:
-
क्या मेरी दृष्टि आत्मिक है?
-
क्या मेरी स्मृति एक बाप पर स्थिर है?
Q3: विघ्न आने पर मन को कैसे स्थिर रखें?
उत्तर:
जैसे वायुहीन स्थान में दीपक की लौ स्थिर रहती है, वैसे ही योगी का मन भी अभ्यास से स्थिर रहता है।
योगी वह है जो विघ्नों को शक्ति में बदलकर विजय प्राप्त करता है।
Murli 15 March 1982:
“मन-वाणी-कर्म में योगयुक्त आत्मा ही मास्टर सर्वशक्तिवान बनती है।”
उदाहरण:
जैसे खिलाड़ी खेल में एकाग्र होता है, वैसे योगी हर कर्म में परमात्मा की स्मृति रखता है।
Q4: योग की सिद्धि क्या है? अंतिम समय में क्या प्राप्त होगा?
उत्तर:
योग की सिद्धि यह है कि अंत समय में आत्मा का एकमात्र लक्ष्य और स्मृति परमात्मा हो।
Murli 25 January 1980:
“अंत समय जो मुझे याद करता है, वह मुझे ही प्राप्त करता है।”
योग की निरंतरता ही आत्मा को परम अवस्था तक पहुंचाती है।
Q5: गीता और मुरली में योग को कैसे परिभाषित किया गया है?
उत्तर:
गीता में इसे “योगशास्त्र” और “ब्रह्मविद्या” कहा गया है –
यह परमात्मा द्वारा पढ़ाया गया आत्म-उद्धार का शास्त्र है।
Murli 23 May 1986:
“योगबल से ही तुम विश्व के मालिक बनते हो।”
Q6: निष्कर्ष रूप में योग क्या है?
उत्तर:
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योग आत्मा का स्नान है – जिससे वह पवित्र होती है।
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योग आत्मा की उड़ान है – जिससे वह अव्यक्त बनती है।
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योग आत्मा का परमात्मा से मिलन है – जिससे मोक्ष और जीवनमुक्ति मिलती है।
Daily Check:
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क्या मैंने बाप को याद करते हुए हर कर्म किया?
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क्या मन एक बाप में स्थित रहा?
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