(27)“Explanation of Tyagi, Mahatyagi”

(27)“त्यागी, महात्यागी की व्याख्या”

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( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

“त्याग की तीन अवस्थाएँ | बापदादा की दृष्टि में सर्वस्व त्यागी कौन? |


 1. भूमिका – बापदादा की दृष्टि किसे देख रही है?

आज बापदादा सर्व ब्राह्मण आत्माओं के बीच उन विशेष आत्माओं को देख रहे हैं जो त्याग के मार्ग पर हैं।
बापदादा के अनुसार त्यागी आत्माओं के तीन मुख्य स्तर हैं:

  • त्यागी

  • महात्यागी

  • सर्वस्व त्यागी


 2. कौन हैं त्यागी आत्माएँ?

  • जिन्होंने पुराने सम्बन्ध, आदतें और अल्पकालिक प्राप्तियाँ छोड़ कर ब्राह्मण जीवन को अपनाया।

  • सोचते हैं कि ब्राह्मण जीवन श्रेष्ठ है, परन्तु पुरानी संस्कारों से संघर्ष जारी है।

  • ज्ञान को मानते हैं, चलते भी हैं, लेकिन आरामपसंदता और हिम्मत की कमी उन्हें सम्पूर्ण त्याग से रोकती है।

  • वह “समझने वाले” हैं, लेकिन “संपूर्ण परिवर्तन” वाले नहीं।


 3. महात्यागी आत्माएँ कौन हैं?

  • जिन्होंने न केवल पुराने सम्बन्ध बल्कि अपने संस्कारों और देहभान को भी त्याग दिया।

  • सेवा, स्नेह और शक्ति स्वरूप में निरंतर स्थित रहते हैं।

  • लेकिन कई बार “सेवा की प्रवृत्ति” में फँस जाते हैं।

  • प्रसिद्ध हो जाते हैं, सम्मान पाते हैं – लेकिन “मैं” और “मेरा” की सोने की जंजीर उन्हें बाँध लेती है।

 चेतावनी:
यह सूक्ष्म अहंकार उन्हें “सर्वस्व त्यागी” बनने से रोक देता है।


 4. क्या है “सेवा की प्रवृत्ति” का सूक्ष्म जाल?

  • लोग कहते हैं – “आप ही सेवा करो”, “आपका ज्ञान श्रेष्ठ है”, और आत्मा उसमें रम जाती है।

  • शब्द पवित्र होते हैं, लेकिन बाप की जगह स्वयं को आगे रख देते हैं।

  • यह प्रवृत्ति अहंकार नहीं, लेकिन बाप की प्रत्यक्षता में रुकावट बन जाती है।


 5. सर्वस्व त्यागी – बाप समान बनने की अंतिम अवस्था

  • जिनमें “मैं” और “मेरा” का अंश भी समाप्त हो जाता है।

  • जिन्हें सेवा में भी बाप ही दिखाई देता है, स्वयं नहीं।

  • जो न केवल लौकिक, देह और सेवा प्रवृत्तियों से मुक्त हैं, बल्कि अपने भाग्य का भी त्याग कर चुके हैं।

  • ऐसे आत्माएँ ही “संपूर्ण स्वाहा” कर बाप समान बन पाती हैं।


 6. 1983 का विशेष महायज्ञ और आपकी तैयारी

  • बापदादा संकेत दे रहे हैं – 1983 में होने वाला महायज्ञ केवल आयोजन नहीं, “संपूर्ण स्वाहा” का समारोह हो।

  • इसके लिए अभ्यास आज से ही प्रारंभ करें।

  • शक्ति स्वरूप, सम्पूर्ण, तैयार आत्माएँ ही उस महान समय में प्रत्यक्ष होंगी।


 7. निष्कर्ष – फालो फादर बनने की अंतिम कसौटी

  • बापदादा का स्पष्ट सन्देश है – “बाप को प्रत्यक्ष देखना है तो बाप समान बनो।”

  • त्याग का अंतिम चरण है – त्याग का भी त्याग।

  • ऐसे वफादार, फरमानबरदार, महादानी आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

प्रश्न 1: बापदादा आज किस प्रकार की आत्माओं को देख रहे हैं?

उत्तर:आज बापदादा उन विशेष ब्राह्मण आत्माओं को देख रहे हैं जो त्याग के मार्ग पर हैं। उनमें से कुछ त्यागी हैं, कुछ महात्यागी, और कुछ सर्वस्व त्यागी बनने की तैयारी में हैं। बापदादा की दृष्टि विशेष उन आत्माओं पर है जो सम्पूर्ण समर्पण की ओर अग्रसर हैं।


प्रश्न 2: त्याग की कितनी अवस्थाएँ होती हैं?

उत्तर:बापदादा के अनुसार त्याग की तीन मुख्य अवस्थाएँ हैं:

  1. त्यागी

  2. महात्यागी

  3. सर्वस्व त्यागी
    प्रत्येक अवस्था आत्मा के अंदर के त्याग की गहराई को दर्शाती है।


प्रश्न 3: ‘त्यागी’ आत्माएँ कौन होती हैं?

उत्तर:त्यागी वे आत्माएँ हैं जिन्होंने अपने पुराने सम्बन्ध, आदतें और भौतिक आकर्षण छोड़ ब्राह्मण जीवन को स्वीकार किया है।
वे ज्ञान को मानती हैं, लेकिन अभी भी संस्कारों से जूझती हैं।
वे “समझने वाले” हैं, परन्तु “संपूर्ण परिवर्तन” नहीं कर पाते।
आरामपसंदता और हिम्मत की कमी उन्हें पूर्ण त्याग से रोकती है।


प्रश्न 4: ‘महात्यागी’ आत्माएँ किसे कहा जाता है?

उत्तर:महात्यागी वे हैं जिन्होंने देहभान, अपने संस्कार और इच्छाओं का त्याग कर दिया है।
वे सेवा में निरंतर रहते हैं, लेकिन कभी-कभी सेवा की प्रसिद्धि में “मैं” और “मेरा” की सूक्ष्म भावना उत्पन्न हो जाती है।
यही सोने की जंजीर उन्हें “सर्वस्व त्यागी” बनने से रोक देती है।


प्रश्न 5: “सेवा की प्रवृत्ति” में फँसना क्या होता है?

उत्तर:जब आत्मा सेवा में रम जाती है और लोग कहते हैं – “आप ही सेवा करो”, “आपका ज्ञान श्रेष्ठ है” – तब “मैं” की सूक्ष्म भावना जागृत हो जाती है।
सेवा में बाप की बजाय स्वयं को आगे रखने लगते हैं।
यह अहंकार नहीं, लेकिन बाप की प्रत्यक्षता में रुकावट बन जाता है।


प्रश्न 6: ‘सर्वस्व त्यागी’ आत्मा किसे कहा जाता है?

उत्तर:सर्वस्व त्यागी वे आत्माएँ हैं जिन्होंने “मैं” और “मेरा” का अंतिम अंश भी त्याग दिया है।
वे सेवा में भी स्वयं को नहीं, केवल बाप को अनुभव करती हैं।
वे न केवल लौकिक और देह से मुक्त होती हैं, बल्कि अपने भाग्य के आकर्षण से भी ऊपर उठ जाती हैं।
ऐसी आत्माएँ ही “संपूर्ण स्वाहा” कर बाप समान बनती हैं।


प्रश्न 7: बापदादा ने 1983 के महायज्ञ के लिए क्या संकेत दिया?

उत्तर:बापदादा ने कहा कि 1983 का महायज्ञ केवल एक आयोजन नहीं, बल्कि “संपूर्ण स्वाहा” का साक्षात समारोह हो।
जो आत्माएँ शक्ति स्वरूप, सम्पूर्ण और त्यागी होंगी, वे ही उस महान समय में प्रत्यक्ष बनेंगी।
इसकी तैयारी आज से ही शुरू करनी है।


प्रश्न 8: ‘त्याग का भी त्याग’ क्या है?

उत्तर:यह त्याग की अंतिम अवस्था है, जब आत्मा यह भी नहीं सोचती कि उसने त्याग किया है।
ना त्याग का अभिमान होता है, ना सेवा का।
सिर्फ एक भाव होता है – “जो कुछ है वह बाप का है, मैं कुछ नहीं।”
यह अवस्था ही बाप समान बनने की कसौटी है।


प्रश्न 9: ऐसी कौन-सी आत्माएँ बापदादा की नजर में श्रेष्ठ बनती हैं?

उत्तर:जो वफादार, फरमानबरदार और महादानी हैं –
जो सेवा में स्वयं को नहीं, बाप को आगे रखते हैं –
जो त्याग का भी त्याग कर चुके हैं –
वही आत्माएँ बाप समान बनकर बापदादा की प्रत्यक्ष संतान बनती हैं।

Disclaimer (डिस्क्लेमर):

यह वीडियो “ब्रह्माकुमारीज़ ज्ञान वाणी” के आध्यात्मिक शिक्षण पर आधारित है। इसमें प्रस्तुत विचार और उत्तर आध्यात्मिक आत्मनिरीक्षण एवं आत्मविकास के लिए हैं। यह किसी धर्म, संस्था या व्यक्ति विशेष की आलोचना या तुलना के लिए नहीं है।
यह सामग्री आंतरिक चेतना, आत्म-परिवर्तन, और बाप समान बनने के लक्ष्य को प्रेरित करने हेतु प्रस्तुत की गई है।

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