(47)गीता के ज्ञान को ठीक से समझने कीआवश्यकता – 11
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
“गीता के गूढ़ रहस्यों को समझने की सच्ची कुंजी – मुरली ज्ञान द्वारा”
गीता – एक अनसुलझा रहस्य
हजारों वर्षों से गीता को श्रद्धा से पढ़ा और समझा जा रहा है।
हर श्लोक, हर अध्याय को अनेक ऋषि-मुनियों, विद्वानों और भक्तों ने अपने-अपने मत से परिभाषित किया है।
लेकिन आज भी गीता के कुछ रहस्य ऐसे हैं जो अनसुलझे हैं –
विश्वरूप, विभूतियाँ, अक्षरब्रह्म, परमात्मा का स्वरूप – यह सब गहराई से समझ में नहीं आता।
तो प्रश्न है —
गीता की असली कुंजी क्या है?
क्या गीता केवल श्रीकृष्ण की वाणी है या इसके पीछे कोई और दिव्य स्रोत है?
गीता का ज्ञान किसने दिया?
18 जनवरी 2025 की मुरली में स्पष्ट वाणी:
“बच्चे, श्रीकृष्ण तो देवता है, लेकिन गीता ज्ञानदाता मैं परमपिता परमात्मा हूँ।
मैं ब्रह्मा तन में प्रवेश कर के तुम आत्माओं को ज्ञान सिखाता हूँ।”
इसका अर्थ है कि गीता का ज्ञान वास्तव में परमात्मा शिव ने दिया, न कि श्रीकृष्ण ने।
क्योंकि श्रीकृष्ण स्वयं एक पुनर्जन्म लेने वाली आत्मा हैं — जबकि परमात्मा शिव निराकार, सर्वशक्तिमान, और जन्म-मरण से न्यारा है।
मुरली ज्ञान: गीता के अध्यायों की सच्ची कुंजी
1. दशम अध्याय – विभूतियोग
श्लोक:
“…विभूतियोगो नाम दशमोऽध्यायः॥”
अनुवाद: ‘विभूतियों का योग’ नामक दसवाँ अध्याय समाप्त हुआ।
मुरली मिलान (18 जनवरी 2025)
“मैं परमात्मा, ब्रह्मा के तन में आकर तुम बच्चों को अपनी शक्तियों का ज्ञान देता हूँ।”
यही विभूतियाँ हैं — परमात्मा की वह दिव्य शक्तियाँ जो ज्ञान, योग और संकल्प द्वारा आत्मा को देवता बनाती हैं।
निष्कर्ष:
श्रीकृष्ण अपनी शक्तियों को विभूतियाँ नहीं कह सकते — क्योंकि वे स्वयं एक देवता हैं, सर्वशक्तिमान नहीं।
2. एकादश अध्याय – विश्वरूपदर्शनयोग
श्लोक:
“…विश्वरूपदर्शनयोगो नामैकादशोऽध्यायः॥”
अनुवाद: ‘विश्वरूप दर्शन योग’ नामक ग्यारहवाँ अध्याय समाप्त हुआ।
मुरली स्पष्टीकरण (18 जनवरी 2025)
“बच्चे, विराट रूप कोई दृश्य रूप नहीं था। वह एक योगिक अनुभूति थी,
ज्ञान के नेत्रों द्वारा दिखाई गई कल्पना थी।”
परमात्मा शिव जब ज्ञान देते हैं, तो वह आत्मा को योगबल द्वारा दिव्य अनुभूतियाँ कराते हैं — जैसे विश्वरूप, आत्मा का स्वरूप, परमधाम आदि।
निष्कर्ष:
गुरु अर्जुन, वेदव्यास या श्रीकृष्ण वह अनुभव नहीं करा सकते — यह कार्य केवल परमात्मा शिव ही कर सकते हैं।
गीता और मुरली का अंतर संबंध
गीता – एक स्मृति है उस ज्ञान की जो संगमयुग पर दिया गया था।
मुरली – वर्तमान में प्रतिदिन दिया जा रहा वही दिव्य ज्ञान है।
बाबा कहते हैं:
“बच्चे, गीता तो बाद में लिखी गई, लेकिन ज्ञान पहले संगमयुग पर दिया गया।
अब वही ज्ञान मैं फिर से तुम्हें दे रहा हूँ — मुरली के रूप में।”
इसलिए यदि गीता को वास्तव में समझना है, तो मुरली को सुनना होगा।
मुख्य बिंदु: ज्ञान की कुंजी
-
गीता का ज्ञान श्रीकृष्ण ने नहीं, परमात्मा शिव ने दिया।
-
परमात्मा ब्रह्मा के तन में प्रवेश कर आज मुरली के रूप में वही ज्ञान दे रहे हैं।
-
गीता के हर अध्याय का सच्चा रहस्य, मुरली ज्ञान द्वारा ही खुलता है।
-
गीता में वर्णित अनुभव – विश्वरूप, विभूतियाँ, परमात्म साक्षात्कार – सब योगिक अनुभूतियाँ हैं।
अंतिम प्रेरणा: गीता की आत्मा – मुरली
यदि आप वास्तव में गीता को समझना चाहते हैं,
तो प्रतिदिन ब्रह्मा के मुख द्वारा बोली जाने वाली मुरली को सुनिए।
यही मुरली है:
-
राजविद्या का स्रोत
-
अक्षरब्रह्म का साक्षात्कार
-
विभूतियों का दर्शन
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विश्वरूप का अनुभव
यही है गीता की सच्ची कुंजी। यही है मुरली ज्ञान।
गीता के गूढ़ रहस्यों को समझने की सच्ची कुंजी – मुरली ज्ञान द्वारा
प्रश्न 1: गीता को समझने में अब तक क्या सबसे बड़ी उलझन रही है?
उत्तर:सबसे बड़ी उलझन यह रही कि गीता का ज्ञानदाता कौन है — श्रीकृष्ण या कोई और?
हजारों वर्षों से इसे श्रीकृष्ण की वाणी माना गया, लेकिन गीता के गूढ़ विषय — जैसे विभूतियाँ, विश्वरूप, अक्षरब्रह्म, परमात्म साक्षात्कार — इनकी सच्ची व्याख्या स्पष्ट नहीं हो पाई।
प्रश्न 2: मुरली के अनुसार गीता का ज्ञान किसने दिया?
उत्तर:मुरली 18 जनवरी 2025:
“बच्चे, श्रीकृष्ण तो देवता है, लेकिन गीता ज्ञानदाता मैं परमपिता परमात्मा हूँ। मैं ब्रह्मा तन में प्रवेश कर के तुम आत्माओं को ज्ञान सिखाता हूँ।”
इसका सीधा अर्थ है कि गीता का ज्ञान श्रीकृष्ण ने नहीं, परमात्मा शिव ने दिया — वह भी ब्रह्मा के तन में प्रवेश करके।
प्रश्न 3: श्रीकृष्ण परमात्मा क्यों नहीं हो सकते?
उत्तर:क्योंकि श्रीकृष्ण एक साकार देहधारी देवता हैं।
परमात्मा शिव निराकार, जन्म-मरण रहित, और सर्वात्माओं के पिता हैं।
परमात्मा कभी भी स्वयं जन्म नहीं लेते, वे किसी शरीर में प्रवेश करते हैं — यही अंतर उन्हें ‘परम’ बनाता है।
प्रश्न 4: गीता के 10वें अध्याय “विभूतियोग” का मुरली से क्या संबंध है?
उत्तर:श्लोक:
“…विभूतियोगो नाम दशमोऽध्यायः॥”
(अर्थ: यह ‘विभूतियों’ का योग नामक अध्याय समाप्त हुआ।)
मुरली 18 जनवरी 2025:
“मैं परमात्मा, ब्रह्मा के तन में आकर तुम बच्चों को अपनी शक्तियों का ज्ञान देता हूँ।”
मुरली ज्ञान में वही विभूतियाँ बताई जाती हैं — जैसे ज्ञान, योग, आत्मा का स्वरूप, संकल्प की शक्ति आदि — जो आत्मा को देवता बनाने की शक्ति देती हैं।
प्रश्न 5: गीता के 11वें अध्याय “विश्वरूप दर्शन” को मुरली कैसे स्पष्ट करती है?
उत्तर:श्लोक:
“…विश्वरूपदर्शनयोगो नामैकादशोऽध्यायः॥”
मुरली (18 जनवरी 2025):
“बच्चे, विराट रूप कोई दृश्य रूप नहीं था। वह एक योगिक अनुभूति थी,
ज्ञान के नेत्रों द्वारा दिखाई गई कल्पना थी।”
इसका अर्थ यह है कि विश्वरूप कोई फिजिकल दृश्य नहीं था — यह परमात्मा शिव द्वारा आत्मा को दी गई योगिक अनुभूति थी।
प्रश्न 6: गीता और मुरली के बीच क्या संबंध है?
उत्तर:गीता — एक पुनर्लेखन है उस ज्ञान का जो पहले संगमयुग पर दिया गया था।
मुरली — वर्तमान में परमात्मा शिव द्वारा प्रतिदिन दिया जा रहा वही दिव्य ज्ञान है।
बाबा कहते हैं:
“बच्चे, गीता तो बाद में लिखी गई, लेकिन ज्ञान पहले संगमयुग पर दिया गया।”
प्रश्न 7: क्या श्रीकृष्ण की शक्तियाँ ‘विभूतियाँ’ कहलाती हैं?
उत्तर:नहीं। श्रीकृष्ण की शक्तियाँ उनकी आत्मा की कमाई और जन्म-जन्मांतर की संस्कारों की देन हैं।
परंतु विभूतियाँ केवल परमात्मा शिव की दिव्य शक्तियाँ हैं — जो आत्मा को राजयोग, ज्ञान और साक्षात्कार द्वारा श्रेष्ठ बनाती हैं।
प्रश्न 8: गीता के अनुभव — जैसे विराट रूप, विभूतियाँ, ब्रह्म साक्षात्कार — ये कैसे संभव हैं?
उत्तर:ये सभी अनुभव वास्तविक रूप में योगिक अनुभूतियाँ हैं।
परमात्मा शिव आत्मा को ज्ञान के नेत्र देते हैं, जिससे आत्मा अपने स्वरूप, परमधाम, और विराट अनुभव कर सकती है।
यह दृश्य नहीं, बोध होता है — एक आध्यात्मिक अनुभूति।
प्रश्न 9: गीता का असली रहस्य कैसे समझा जा सकता है?
उत्तर:केवल मुरली ज्ञान द्वारा ही गीता के श्लोकों, अध्यायों और रहस्यों को सही रूप से समझा जा सकता है।
क्योंकि वही ज्ञानदाता आज स्वयं ब्रह्मा के तन में प्रवेश कर हमें वह ज्ञान पुनः दे रहे हैं।
प्रश्न 10: निष्कर्ष क्या है?
उत्तर:
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गीता का ज्ञानदाता श्रीकृष्ण नहीं, बल्कि निराकार परमात्मा शिव हैं।
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वे ब्रह्मा के तन में प्रवेश कर आज मुरली के माध्यम से वही ज्ञान फिर से दे रहे हैं।
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गीता के अध्यायों को मुरली ही खोलती है — चाहे वह विभूतियोग हो या विश्वरूप दर्शन।
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मुरली ही है — गीता की आत्मा, राजविद्या, और मोक्ष की सच्ची कुंजी।
डिस्क्लेमर:
यह वीडियो आध्यात्मिक चिंतन और मुरली ज्ञान के दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया गया है। इसका उद्देश्य किसी भी धार्मिक भावना को ठेस पहुँचाना नहीं है। सभी विचार मुरली और ब्रह्माकुमारियों द्वारा प्रचारित ज्ञान पर आधारित हैं। दर्शकों से निवेदन है कि वे इसे खुले मन और आत्मिक दृष्टि से देखें।
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