(40)गीता के ज्ञान को ठीक से समझने कीआवश्यकता – 04
“गीता का गूढ़ रहस्य: क्या श्रीकृष्ण ने दिया था गीता ज्ञान?
प्रस्तावना
“क्या श्रीकृष्ण ने गीता का ज्ञान दिया?”
यह प्रश्न अनेक श्रद्धालु आत्माओं को वर्षों से उलझा रहा है।
आज हम इस रहस्य का समाधान करेंगे — Murli प्रमाण और गीता श्लोकों के साथ।
1. गीता का वास्तविक ज्ञानदाता: श्रीकृष्ण या परमात्मा शिव?
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सामान्य मान्यता है कि महाभारत युद्ध में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता सुनाई।
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लेकिन Murli — जो परमात्मा की आज की वाणी है — इस विश्वास को एक नई रोशनी देती है।
Murli 18 जनवरी 2025:
“बच्चे, श्रीकृष्ण तो देवता है, लेकिन गीता ज्ञानदाता मैं परमपिता परमात्मा हूँ। मैं ब्रह्मा तन में प्रवेश करके तुम आत्माओं को ज्ञान सिखाता हूँ।”
स्पष्टीकरण:
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श्रीकृष्ण सतयुग का पहला देवता है — वह जन्म लेता है।
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लेकिन ज्ञान सिखाने वाला कोई देहधारी नहीं हो सकता।
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गीता का ज्ञान परमात्मा शिव — जो निराकार और अजर-अमर हैं — वह स्वयं संगमयुग में देते हैं।
2. चौथा अध्याय: ‘ज्ञान-कर्म-संन्यास योग’ — एक गहरा आत्मिक अर्थ
संस्कृत श्लोक (गीता 4वें अध्याय का अंत):
“ज्ञानकर्मसंन्यासयोगो नाम चतुर्थोऽध्यायः॥”
व्याख्या:
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भगवान कर्म और ज्ञान के रिश्ते को स्पष्ट करते हैं।
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किस प्रकार ज्ञानयुक्त कर्म करने से आत्मा मुक्त होती है।
Murli प्रमाण (18 जनवरी 2025):
“बच्चे, कर्म करते जाओ लेकिन बुद्धि योग बाप से जुड़ा हो। यही है कर्म में रहते योगी बनना।”
सार:
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गीता का “कर्मयोग” = मुरली का “योगयुक्त कर्म”
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यह सहज राजयोग का ही दूसरा नाम है।
3. श्रीकृष्ण नहीं, प्रतीक हैं — उस निराकार परमात्मा के
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गीता में जहाँ-जहाँ “श्रीकृष्ण” नाम आया है, वहाँ वास्तव में वह निराकार परमात्मा शिव के लिए संकेत है।
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श्रीकृष्ण एक व्यक्ति नहीं, प्रतीक हैं — दिव्य गुणों और सत्य की एक छवि।
Murli में समझाया गया:
“मैं कभी जन्म नहीं लेता। मैं ब्रह्मा तन में प्रवेश करता हूँ। श्रीकृष्ण तो जन्म लेता है।”
– मुरली, जनवरी 2025
तथ्य:
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श्रीकृष्ण सतयुग का है।
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गीता ज्ञान संगमयुग का है।
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जो ज्ञान आज भी मुरली के रूप में सुनाया जा रहा है — वह परमात्मा शिव द्वारा ही दिया गया है।
4. गीता ज्ञान और मुरली: समानता का रहस्य
गीता में कहा:
“न जायते म्रियते वा कदाचिन्…” – आत्मा न जन्म लेती है, न मरती है।
Murli कहती है:
“बच्चे, आत्मा अविनाशी है।”
गीता में:
“योगस्थः कुरु कर्माणि…” — योग में स्थित होकर कर्म करो।
Murli में:
“बच्चे, बुद्धियोग मुझ बाप से लगाओ, और कर्म करते जाओ। यही सहज राजयोग है।”
निष्कर्ष:
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गीता के हर श्लोक का मुरली में व्यावहारिक और गूढ़ अर्थ मिलता है।
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मुरली = गीता का आज का जीवंत संस्करण
5. निष्कर्ष: सत्य कौन सिखाता है?
श्रीकृष्ण एक दिव्य आत्मा हैं, लेकिन ज्ञानदाता नहीं।
परमात्मा शिव ही सत्य ज्ञान के दाता हैं —
जो ब्रह्मा तन में प्रवेश कर, आज संगमयुग में हमें स्व-रूप, कर्म सिद्धांत, और मोक्ष का मार्ग समझा रहे हैं।
यही ज्ञान आज मुरली के रूप में हमारे सामने है —
गीता का गूढ़, सजीव, और सच्चा रूप।
“गीता का गूढ़ रहस्य: क्या श्रीकृष्ण ने दिया था गीता ज्ञान?
प्रश्न: क्या गीता का ज्ञान वास्तव में श्रीकृष्ण ने दिया था?
उत्तर:यह सवाल हजारों वर्षों से हर आत्मा के मन में गूंजता रहा है।
आज हम इसका उत्तर Murli (परमात्मा की वाणी) और गीता श्लोकों के माध्यम से पाएंगे।
1. गीता का वास्तविक ज्ञानदाता: श्रीकृष्ण या परमात्मा शिव?
प्रश्न: क्या श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया था?
उत्तर:Murli (18 जनवरी 2025) स्पष्ट कहती है:
“बच्चे, श्रीकृष्ण तो देवता है, लेकिन गीता ज्ञानदाता मैं परमपिता परमात्मा हूँ। मैं ब्रह्मा तन में प्रवेश कर के तुम आत्माओं को ज्ञान सिखाता हूँ।”
सार:
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श्रीकृष्ण सतयुग का देवता है।
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लेकिन गीता ज्ञानदाता कोई देहधारी नहीं हो सकता।
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गीता का ज्ञान केवल परमात्मा शिव दे सकते हैं — निराकार, अजन्मा, सर्वशक्तिमान।
2. ज्ञानकर्मसंन्यास योग: चौथे अध्याय की गहराई
प्रश्न: गीता का ‘कर्मयोग’ किसे कहते हैं?
उत्तर:श्लोक (अध्याय 4 समाप्ति):
“ज्ञानकर्मसंन्यासयोगो नाम चतुर्थोऽध्यायः॥”
Murli प्रमाण (18 जनवरी 2025):
“बच्चे, कर्म करते जाओ लेकिन बुद्धि योग बाप से जुड़ा हो। यही है कर्म में रहते योगी बनना।”
अर्थ:
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गीता का कर्मयोग = मुरली का योगयुक्त कर्म
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यही है सहज राजयोग की विधि — कर्म करते हुए योग में स्थित रहना।
3. श्रीकृष्ण — प्रतीक हैं उस निराकार परमात्मा के
प्रश्न: गीता में श्रीकृष्ण नाम का क्या रहस्य है?
उत्तर:
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गीता में जहाँ श्रीकृष्ण नाम आया है, वहाँ वास्तव में संकेत उस निराकार परमात्मा की ओर है।
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श्रीकृष्ण एक दिव्य आत्मा है — लेकिन वह ज्ञानदाता नहीं।
Murli स्पष्ट करती है:
“मैं कभी जन्म नहीं लेता। मैं ब्रह्मा तन में प्रवेश करता हूँ। श्रीकृष्ण तो जन्म लेता है।”
मुख्य तथ्य:
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श्रीकृष्ण सतयुग का देवता है।
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गीता ज्ञान संगमयुग का है।
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अतः ज्ञानदाता केवल परमात्मा शिव हो सकते हैं।
4. गीता और मुरली: अद्भुत समानता
प्रश्न: क्या गीता और मुरली में एक समान आत्मिक ज्ञान है?
उत्तर:गीता: “न जायते म्रियते वा कदाचिन्…” — आत्मा अमर है।
Murli: “बच्चे, आत्मा अविनाशी है।”
गीता: “योगस्थः कुरु कर्माणि…” — योग में स्थित रहकर कर्म करो।
Murli: “बुद्धियोग मुझ बाप से लगाओ — यही सहज राजयोग है।”
निष्कर्ष:
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मुरली = गीता का व्यावहारिक, आज का रूप
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यह वही गूढ़ ज्ञान है, जिसे संगमयुग में परमात्मा शिव दे रहे हैं।
5. अंतिम निष्कर्ष: ज्ञानदाता कौन?
प्रश्न: क्या श्रीकृष्ण ही गीता के ज्ञाता हैं?
उत्तर: नहीं — श्रीकृष्ण एक जन्म लेने वाली आत्मा हैं।
हाँ — परमात्मा शिव ही हैं गीता के सच्चे ज्ञानदाता।
Disclaimer:
यह वीडियो शोध आधारित आध्यात्मिक प्रस्तुति है, जिसका उद्देश्य गीता और ब्रह्मा कुमारी मुरली के आध्यात्मिक रहस्यों को उजागर करना है। इसमें दिए गए विचार Brahma Kumaris की शिक्षाओं पर आधारित हैं और किसी की धार्मिक भावना को ठेस पहुँचाना उद्देश्य नहीं है। कृपया इसे श्रद्धा और आत्म-अन्वेषण की दृष्टि से देखें।
BK Dr Surender Sharma – BK Omshanti GY | यह वीडियो BK संस्था की आधिकारिक मुरली के आधार पर बनाया गया है, जिसके लिए 13 जून 2025 का अधिकृत शपथ-पत्र मौजूद है।
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