(02)त्रिमूर्ति स्मृति क्यों मर्ज हो जाती है?
“त्रिमूर्ति स्मृति और साक्षात्कार मूरत”
साक्षात्कार मूरत कैसे बने?
बापदादा ने कहा – बच्चों को साक्षात्कार मूरत बनना है।
इसका अर्थ है – आत्मा इतनी शक्तिशाली बने कि हर आत्मा हमारे द्वारा दिव्य अनुभव करे।
उदाहरण: जैसे दीपक जलने पर अंधकार अपने आप मिट जाता है, वैसे ही साक्षात्कार मूरत आत्मा अपने वातावरण से दूसरों को ईश्वरीय अनुभव कराती है।
त्रिमूर्ति स्मृति क्यों मर्ज हो जाती है?
मर्ज का अर्थ – दब जाना, भूल जाना।
इमर्ज का अर्थ – प्रकट होना।
बाबा ने पूछा – क्या त्रिमूर्ति स्मृति हमेशा इमर्ज रहती है या कभी मर्ज भी हो जाती है?
उत्तर: जब आत्मा योग में स्थिर रहती है तो स्मृति इमर्ज रहती है। लेकिन जब परिस्थितियों, देह या मन की खिंचाई होती है, तो यह स्मृति मर्ज हो जाती है।
उदाहरण: जैसे रेडियो सिग्नल कभी साफ़ आता है, कभी रुक-रुक कर। स्मृति भी ऐसे ही ध्यान पर निर्भर है।
त्रिमूर्ति स्मृति क्या है?
अव्यक्त मुरली 5 जनवरी 1984 में बापदादा ने स्पष्ट किया:
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नंबर 1: शिव बाबा – सर्वशक्तियों का सागर।
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नंबर 2: ब्रह्मा बाबा – माध्यम।
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नंबर 3: मैं आत्मा – शक्ति सेना का सच्चा सदस्य।
यानी जब आत्मा, परमात्मा और ब्रह्मा बाबा – तीनों स्मृति में रहते हैं, वही त्रिमूर्ति स्मृति कहलाती है।
त्रिशूलधारी आत्मा की पहचान
बाबा ने कहा – हर आत्मा के मस्तक में त्रिशूल की निशानी दिखाई देती है।
त्रिशूल का अर्थ है – त्रिमूर्ति स्मृति।
जो आत्मा सदा इन तीन बातों को याद रखती है, वही त्रिशूलधारी कहलाती है।
उदाहरण: जैसे सैनिक अपनी वर्दी उतार भी दे, लेकिन अपने कर्तव्य को नहीं भूलता। वैसे ही हमें भी सेवा करते समय अपनी त्रिमूर्ति स्मृति नहीं भूलनी है।
स्मृति का खेल: मर्ज और इमर्ज
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सेंटर पर मेडिटेशन में बैठते समय आत्मा, परमात्मा और ब्रह्मा का कंबाइन रूप स्पष्ट अनुभव होता है → यह इमर्ज स्थिति है।
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लेकिन छोटी-सी बात पर मन दुखी हो जाए, तो तुरंत त्रिमूर्ति स्मृति मर्ज हो जाती है।
यानी स्मृति का स्विच ऑन किया तो इमर्ज, स्विच ऑफ किया तो मर्ज।
समाधान – स्मृति को सदा इमर्ज कैसे रखें?
बाबा का सन्देश:
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अपने स्वमान का अभ्यास करते रहो।
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देह और परिस्थितियों के आकर्षण से ऊपर रहो।
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सेवा करते समय भी याद रहे – मैं त्रिशूलधारी आत्मा हूं।
निष्कर्ष (Conclusion)
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त्रिमूर्ति स्मृति आत्मा की सबसे बड़ी शक्ति है।
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यदि यह सदा इमर्ज रहे, तो आत्मा का हर कर्म दिव्य बन जाता है।
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यदि यह मर्ज हो जाए, तो आत्मा साधारण इंसान जैसी हो जाती है।
इसलिए बापदादा का संदेश है:
अब हमें केवल सहज योगी नहीं, बल्कि त्रिशूलधारी स्मृति मूरत बनना है।
ताकि हर आत्मा हमारे द्वारा साक्षात्कार कर सके।
“त्रिमूर्ति स्मृति और साक्षात्कार मूरत – प्रश्नोत्तर”
प्रश्न 1: साक्षात्कार मूरत बनने का अर्थ क्या है?
उत्तर: साक्षात्कार मूरत बनने का अर्थ है ऐसी आत्मिक स्थिति बनाना, जिससे अन्य आत्माएँ हमारे माध्यम से दिव्य अनुभव कर सकें। जैसे दीपक अपने आप अंधकार को मिटा देता है, वैसे ही साक्षात्कार मूरत आत्मा अपने वातावरण से परमात्म अनुभव कराती है।
प्रश्न 2: त्रिमूर्ति स्मृति का क्या अर्थ है?
उत्तर: त्रिमूर्ति स्मृति का अर्थ है –
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शिव बाबा (सर्वशक्तियों का सागर),
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ब्रह्मा बाबा (माध्यम),
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मैं आत्मा (शक्ति सेना का सच्चा सदस्य) –
इन तीनों को एक साथ स्मृति में रखना।
प्रश्न 3: स्मृति का मर्ज और इमर्ज होने का क्या मतलब है?
उत्तर:
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मर्ज = भूल जाना, दब जाना।
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इमर्ज = प्रकट होना, स्पष्ट अनुभव होना।
जब आत्मा योग में होती है तो स्मृति इमर्ज रहती है, और जब आत्मा देह या परिस्थितियों में खिंचती है तो स्मृति मर्ज हो जाती है।
प्रश्न 4: त्रिशूलधारी आत्मा किसे कहते हैं?
उत्तर: जो आत्मा सदा शिव बाबा, ब्रह्मा बाबा और आत्मा – इन तीन बातों की स्मृति में रहती है, वही त्रिशूलधारी आत्मा कहलाती है। मस्तक के बीच स्मृति की यह स्पष्ट निशानी ही त्रिशूल है।
प्रश्न 5: स्मृति क्यों बार-बार मर्ज हो जाती है?
उत्तर: जब आत्मा का ध्यान (Attention) कमज़ोर हो जाता है और वह परिस्थितियों या देह की ओर आकर्षित हो जाती है, तो स्मृति मर्ज हो जाती है। जैसे रेडियो सिग्नल रुक-रुक कर आता है, वैसे ही आत्मा की स्मृति भी कमजोर ध्यान से मर्ज हो जाती है।
प्रश्न 6: स्मृति को सदा इमर्ज रखने का उपाय क्या है?
उत्तर:
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अपने स्वमान का अभ्यास करते रहो।
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देह और परिस्थितियों से ऊपर रहो।
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सेवा करते समय भी याद रहे – मैं त्रिशूलधारी आत्मा हूं।
प्रश्न 7: त्रिमूर्ति स्मृति का महत्व क्या है?
उत्तर: यदि त्रिमूर्ति स्मृति सदा इमर्ज रहे तो आत्मा का हर कर्म दिव्य बन जाता है। यदि यह मर्ज हो जाए, तो आत्मा साधारण इंसान जैसी हो जाती है। इसलिए बाबा का संदेश है – सहज योगी ही नहीं, बल्कि त्रिशूलधारी स्मृति मूर्त बनो।
Disclaimer
यह वीडियो ब्रह्माकुमारियों की अव्यक्त मुरली (05 जनवरी 1984) के आधार पर तैयार किया गया है।
इसका उद्देश्य केवल आध्यात्मिक शिक्षा और आत्म-जागृति है।
इसमें दी गई बातें किसी भी प्रकार की धार्मिक आलोचना नहीं हैं, बल्कि आत्मा की शक्ति और स्मृति जागृति पर आधारित हैं।
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