(07)“The cause of unrest is non-attainment and the cause of non-attainment is impurity.

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(प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

अव्यक्त मुरली-(07)13-02-1984 “अशान्ति का कारण अप्राप्ति और अप्राप्ति का कारण अपवित्रता है”

13-02-1984 “अशान्ति का कारण अप्राप्ति और अप्राप्ति का कारण अपवित्रता है”

(कॉन्फ्रेन्स के पश्चात मेहमानों के साथ अव्यक्त बापदादा की मुलाकात)

आज प्रेम के सागर, शान्ति के सागर बाप अपने शान्त प्रिय, प्रेम स्वरुप बच्चों से मिलने आये हैं। बापदादा सारे विश्व के आत्माओं की एक ही आश – शान्ति और सच्चे प्यार को देख सर्व बच्चों की यह आश पूर्ण करने के लिए सहज विधि बताने बच्चों के पास पहुँच गये हैं। बहुत समय से भिन्न-भिन्न रुपों से इसी आश को पूर्ण करने के लिए बच्चों ने जो प्रयत्न किये वह देख-देख रहमदिल बाप को, बच्चों पर रहम आता है, दाता के बच्चे और मांग रहे हैं एक घड़ी के लिए, थोड़े समय के लिए शान्ति दे दो। अधिकारी बच्चे भिखारी बन शान्ति और स्नेह के लिए भटक रहे हैं। भटकते-भटकते कई बच्चे दिलशिकस्त बन गये हैं। प्रश्न उठता है कि क्या अविनाशी शान्ति विश्व में हो सकती है? सर्व आत्माओं में नि:स्वार्थ सच्चा स्नेह हो सकता है?

बच्चों के इसी प्रश्न का उत्तर देने के लिए बाप को स्वयं आना ही पड़ा। बापदादा बच्चों को यही खुशखबरी बताने के लिए आये हैं कि तुम ही मेरे बच्चे कल शान्ति और सुखमय दुनिया के मालिक थे। सर्व आत्मायें सच्चे स्नेह के सूत्र में बंधी हुई थी। शान्ति और प्रेम तो आपके जीवन की विशेषता थी। प्यार का संसार, सुख का संसार, जीवन मुक्त संसार जिसकी अभी आश रखते हो, सोचते हो कि ऐसा होना चाहिए, उसी संसार के कल मालिक थे। आज वह संसार बना रहे हो और कल फिर उसी संसार में होंगे। कल की ही तो बात है। यही आपकी भूमि कल स्वर्ग भूमि होगी, क्या भूल गये हो? अपना राज्य, सुख सम्पन्न राज्य जहाँ दु:ख अशान्ति का नाम निशान नहीं, अप्राप्ति नहीं। अप्राप्ति ही अशान्ति का कारण है और अप्राप्ति का कारण है अपवित्रता। तो जहाँ अपवित्रता नहीं, अप्राप्ति नहीं वहाँ क्या होगा? जो इच्छा है, जो प्लैन सोचते हो वह प्रैक्टिकल में होगा। वह ड्रामा की भावी अटल अचल है, इसको कोई बदल नहीं सकता। बनी बनाई बनी हुई है। बाप द्वारा नई रचना हो ही गई है। आप सब कौन हो? नई रचना के फाउण्डेशन स्टोन आप हो। अपने को ऐसे फाउण्डेशन स्टोन समझते हो तब तो यहाँ आये हो ना! ब्राह्मण आत्मा अर्थात् नई दुनिया के आधार मूर्त। बापदादा ऐसे आधार मूर्त बच्चों को देख हर्षित होते हैं। बापदादा भी गीत गाते हैं वाह मेरे लाडले सिकीलधे मीठे-मीठे बच्चे! आप भी गीत गाते हो ना। आप कहते हो तुम ही मेरे और बाप भी कहते तुम ही मेरे। बचपन में यह गीत बहुत गाते थे ना। (दो तीन बहनों ने वह गीत गाया और बापदादा रिटर्न में रेसपान्ड दे रहे थे।)

बापदादा तो दिल का आवाज सुनते हैं। मुख का आवाज भले कैसा भी हो। बाप ने गीत बनाया और बच्चों ने गाया। अच्छा। (कुछ भाई बहनें नीचे हॉल में तथा ओम् शान्ति भवन में मुरली सुन रहे हैं, बापदादा सम्मेलन में आये हुए मेहमानों से मेडीटेशन हॉल में मिल रहे हैं) नीचे भी बहुत बच्चे बैठे हुए हैं। स्नेह की सूरतें और मीठे-मीठे उल्हनें बापदादा सुन रहे हैं। सभी बच्चों ने दिल वा जान सिक वा प्रेम से विश्व सेवा का पार्ट बजाया। बापदादा सभी की लगन पर सभी को स्नेह के झूले में झुलाते हुए मुबारक दे रहे हैं। जीते रहो, बढ़ते रहो, उड़ते रहो, सदा सफल रहो। सभी के स्नेह के सहयोग ने विश्व के कार्य को सफल किया। अगर एक-एक बच्चे की मुहब्बत भरी मेहनत को देखें तो बापदादा दिन-रात वर्णन करते रहें तो भी कम हो जायेगा। जैसे बाप की महिमा अपरम-अपार है ऐसे बाप के सेवाधारी बच्चों की महिमा भी अपरम-अपार है। एक लगन, एक उमंग एक दृढ़ संकल्प कि हमें विश्व की सर्व आत्माओं को शान्ति का सन्देश जरुर देना ही है। इसी लगन के प्रत्यक्ष स्वरुप में सफलता है और सदा ही रहेगी। दूर वाले भी समीप ही हैं। नीचे नहीं बैठे हैं लेकिन बापदादा के नयनों पर हैं। कोई ट्रेन में, कोई बस में जा रहे हैं लेकिन सभी बाप को याद हैं। उन्हों के मन का संकल्प भी बापदादा के पास पहुँच रहा है। अच्छा।

बाप के घर में मेहमान नहीं लेकिन महान आत्मा बनने वाले आये हैं। बापदादा तो सभी को आई.पी. या वी.आई.पी. नहीं देखते लेकिन सिकीलधे बच्चे देखते हैं। वी.आई.पी. तो आयेंगे और थोड़ा समय देख, सुनकर चले जायेंगे। लेकिन बच्चे सदा दिल पर रहते हैं। चाहे कहीं भी जायेंगे लेकिन रहेंगे दिल पर। अपने वा बाप के घर में पहुँचने की मुबारक हो। बापदादा सभी बच्चों को मधुबन का अर्थात् अपने घर का श्रृंगार समझते हैं। बच्चे घर का श्रृंगार हैं। आप सभी कौन हो? श्रृंगार हो ना। अच्छा।

ऐसे सदा दृढ़ संकल्पधारी, सफलता के सितारे, सदा दिलतख्तनशीन, सदा याद और सेवा की लगन में मगन रहने वाले, नई रचना के आधार मूर्त, विश्व को सदा के लिए नई रोशनी नई जीवन देने वाले, सर्व को सच्चे स्नेह का अनुभव कराने वाले, स्नेही सहयोगी, निरन्तर साथी बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।

(डा.जोन्हा) असिस्टेन्ट सेक्रेट्री जनरल, यू.एन.ओ.

बापदादा बच्चे के दिल के संकल्प को सदा ही सहयोग देते पूर्ण करते रहेंगे। जो आपका संकल्प है उसी संकल्प को साकार में लाने के योग्य स्थान पर पहुँच गये हो। ऐसे समझते हो कि यह सब मेरे संकल्प को पूरा करने वाले साथी हैं। सदा शान्ति का अनुभव याद से करते रहेंगे। बहुत मीठी सुखमय शान्ति की अनुभूति होती रहेगी। शान्ति प्रिय परिवार में पहुँच गये हो इसलिए सेवा के निमित्त बने। सेवा के निमित्त बनने का रिटर्न जब भी बाप को याद करेंगे तो सहज सफलता का अनुभव करते रहेंगे। अपने को सदा “मैं शान्ति स्वरूप आत्मा हूँ, शान्ति के सागर का बच्चा हूँ। शान्ति प्रिय आत्मा हूँ” इस स्मृति में रहना और इसी अनुभव द्वारा जो भी सम्पर्क में आये उन्हों को सन्देशी बन सन्देश देते रहना। यही अलौकिक आक्यूपेशन सदा श्रेष्ठ कर्म और श्रेष्ठ कर्म द्वारा श्रेष्ठ प्राप्ति कराता रहेगा। वर्तमान और भविष्य दोनों ही श्रेष्ठ रहेंगे। शान्ति का अनुभव करने वाली योग्य आत्मा हो। सदा शान्ति के सागर में लहराते रहना।

जब भी कोई कार्य में मुश्किल हो तो शान्ति के फरिश्तों से अपना सम्पर्क रखेंगे तो मुश्किल सहज हो जायेगी। समझा। फिर भी बहुत भाग्यवान हो। इस भाग्य विधाता की धरनी पर पहुँचने वाले कोटों में कोई, कोई में भी कोई होते हैं। भाग्यवान तो बन ही गये। अभी पद्मापदम भाग्यवान जरूर बनना है। ऐसा ही लक्ष्य है ना! जरूर बनेंगे सिर्फ शान्ति के फरिश्तों का साथ रखते रहना। विशेष आत्मायें, विशेष पार्ट बजाने वाली आत्मायें यहाँ पहुँचती हैं। आपका आगे भी विशेष पार्ट है जो आगे चल मालूम पड़ता जायेगा। यह कार्य तो सफल हुआ ही पड़ा है। सिर्फ जो भी श्रेष्ठ भाग्य बनाने वाली हैं उन्हों का भाग्य बनाने के लिए यह सेवा का साधन है। यह तो हुआ ही पड़ा है, यह अनेक बार हुआ है। आपका संकल्प बहुत अच्छा है। और जो भी आपके साथी हैं, जो यहाँ से होकर गये हैं, स्नेही हैं, सहयोगी हैं। उन सबको भी विशेष स्नेह के पुष्पों के साथ-साथ बापदादा का याद-प्यार देना।

मैडम अनवर सादात से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात – इजिप्ट के लिए सन्देश

अपने देश में जाकर धन की एकानामी का तरीका सिखलाना। मन की खुशी से धन की अनुभूति होती है। और धन की एकानामी ही मन की खुशी का आधार है। ऐसे धन की एकानामी और मन की खुशी का साधन बताना तो वे लोग आपको धन और मन की खुशी देने वाले – खुशी के फरिश्ते अनुभव करेंगे। तो अभी यहाँ से शान्ति और खुशी का फरिश्ता बनकर जाना। इस शान्ति कुण्ड के सदा अविनाशी के वरदान को साथ रखना। जब भी कोई बात सामने आये तो “मेरा बाबा” कहने से वह बात सहज हो जायेगी। सदा उठते ही पहले बाप से मीठी-मीठी बातें करना और दिन में भी बीच-बीच में अपने आपको चेक करना कि बाप के साथ हैं! और रात को बाप के साथ ही सोना, अकेला नहीं सोना। तो सदा बाप का साथ अनुभव करती रहेंगी। सभी को बाप का सन्देश देती रहेंगी। आप बहुत सेवा कर सकती हो क्योंकि इच्छा है सभी को खुशी मिले, शान्ति मिले, जो दिल की इच्छा है उससे जो कार्य करते हैं उसमें सफलता मिलती ही है।

अशान्ति का कारण अप्राप्ति और अप्राप्ति का कारण अपवित्रता

आधारित: 13 फरवरी 1984, अव्यक्त मुरली


1. बापदादा का स्नेहिल मिलन

  • प्रेम और शान्ति के सागर बापदादा अपने स्नेही बच्चों से मिलने आए।

  • बच्चों के प्रश्न: क्या विश्व में अविनाशी शान्ति संभव है? क्या सभी आत्माओं में नि:स्वार्थ सच्चा स्नेह हो सकता है?

  • बापदादा का उत्तर: आप ही कल के शान्ति और सुखमय संसार के मालिक थे।

  • उदाहरण: बच्चे जो कल स्वर्ग की भूमि के मालिक थे, वही आज नए जीवन में सच्चे स्नेह और शान्ति के सूत्र में बंधे हैं।


2. अप्राप्ति और अशान्ति का सम्बन्ध

  • बापदादा ने समझाया:

    “अशान्ति का कारण अप्राप्ति है और अप्राप्ति का कारण अपवित्रता।”

  • उदाहरण: जब किसी घर में अपवित्रता (निंदा, क्रोध, ईर्ष्या) होती है, तो शान्ति और प्रेम का अनुभव नहीं होता।

  • समाधान: आत्मा को पवित्र बनाकर ही अप्राप्ति दूर होती है और शान्ति का अनुभव स्थायी होता है।


3. नई रचना और फाउंडेशन स्टोन

  • बच्चे = नई दुनिया के आधार मूर्त (Foundation Stone)।

  • बापदादा:

    “जब आप स्वयं को फाउंडेशन स्टोन समझेंगे, तब ही नई रचना में भाग लेंगे।”

  • उदाहरण: जैसे घर की नींव मजबूत होगी, घर स्थायी और मजबूत बनेगा। उसी तरह, आत्माओं की श्रेष्ठ स्थिति से ही स्वर्गीय वातावरण बनता है।


4. स्मृति और स्नेह का महत्व

  • बापदादा बच्चों की स्मृति और संकल्प की शक्ति को देख कर प्रसन्न।

  • उदाहरण: बच्चों ने गीत गाया — “तुम ही मेरे और बाप भी कहते तुम ही मेरे।”

  • बापदादा कहते हैं: मुख का स्वर भले कैसा भी हो, लेकिन हृदय का आवाज हमेशा सुनते हैं।


5. सेवा और शान्ति का अनुभव

  • बच्चे अपने स्नेह, सहयोग और लगन से विश्व सेवा में भाग ले रहे हैं।

  • बापदादा सभी को स्नेह के झूले में झुलाते हुए कहते हैं:

    “जीते रहो, बढ़ते रहो, उड़ते रहो, सदा सफल रहो।”

  • उदाहरण: चाहे बच्चे दूर हों, ट्रेनों, बसों में, लेकिन बापदादा के नयनों में सभी रहते हैं।


6. विशेष संदेश – शान्ति के फरिश्ते

  • सभी आत्माओं को शान्ति का संदेश देना।

  • बापदादा की प्रेरणा:

    “मैं शान्ति स्वरूप आत्मा हूँ, शान्ति के सागर का बच्चा हूँ।”

  • उदाहरण: कार्य में कठिनाई आये तो शान्ति के फरिश्तों का स्मरण करें, हर समस्या सहज हो जाएगी।


7. व्यवहारिक सूत्र – सफलता और भाग्य

  • बापदादा कहते हैं:

    “सर्वोच्च भाग्य और सफलता उन्हीं को मिलती है, जो सदा बाप के संपर्क में रहते हैं।”

  • उदाहरण: मैडम अनवर सादात को बापदादा ने इजिप्ट के लिए सन्देश दिया — धन और मन की खुशी का साधन बनना।

  • निष्कर्ष: शान्ति, प्रेम, और सेवा के लिए प्रेरित आत्मा सर्वदा विशेष भाग्यशाली है।


8. सार – संदेश का सारांश

  1. अशान्ति = अप्राप्ति, अप्राप्ति = अपवित्रता।

  2. शान्ति और प्रेम का अनुभव केवल पवित्र आत्मा से।

  3. बच्चे = नई रचना के फाउंडेशन स्टोन।

  4. स्मृति और संकल्प से प्रत्येक कार्य सफलता प्राप्त करता है।

  5. सेवा और स्नेह से विश्व में शान्ति और प्रेम फैलाएँ।

स्मृति सूत्र: “मैं शान्ति स्वरूप आत्मा हूँ। शान्ति के सागर का बच्चा हूँ।”

अशान्ति का कारण अप्राप्ति और अप्राप्ति का कारण अपवित्रता

आधारित: 13 फरवरी 1984, अव्यक्त मुरली


प्रश्न 1: बापदादा बच्चों से क्यों मिले थे?

उत्तर: बापदादा प्रेम और शान्ति के सागर स्वरूप अपने स्नेही बच्चों से मिलने आए। उन्होंने बच्चों के सवालों का उत्तर देने के लिए स्वयं आना आवश्यक समझा।
उदाहरण: बच्चों ने पूछा — क्या विश्व में अविनाशी शान्ति संभव है? क्या सभी आत्माओं में नि:स्वार्थ सच्चा स्नेह हो सकता है?
बापदादा का उत्तर: आप ही कल के शान्ति और सुखमय संसार के मालिक थे।
व्यावहारिक उदाहरण: बच्चे जो कल स्वर्ग की भूमि के मालिक थे, वही आज नए जीवन में शान्ति और स्नेह के सूत्र में बंधे हैं।


प्रश्न 2: अशान्ति और अप्राप्ति का सम्बन्ध क्या है?

उत्तर: बापदादा ने स्पष्ट किया:

“अशान्ति का कारण अप्राप्ति है और अप्राप्ति का कारण अपवित्रता।”
उदाहरण: जब किसी घर में निंदा, क्रोध या ईर्ष्या होती है, तो शान्ति और प्रेम का अनुभव नहीं होता।
समाधान: आत्मा को पवित्र बनाकर अप्राप्ति दूर होती है और शान्ति का अनुभव स्थायी बनता है।


प्रश्न 3: नई रचना में बच्चों की क्या भूमिका है?

उत्तर: बच्चे नई दुनिया के फाउंडेशन स्टोन हैं।
बापदादा का संदेश:

“जब आप स्वयं को फाउंडेशन स्टोन समझेंगे, तब ही नई रचना में भाग लेंगे।”
उदाहरण: जैसे घर की नींव मजबूत होगी, घर स्थायी और मजबूत बनेगा। उसी तरह, आत्माओं की श्रेष्ठ स्थिति से स्वर्गीय वातावरण बनता है।


प्रश्न 4: स्मृति और स्नेह का महत्व क्या है?

उत्तर: बापदादा बच्चों की स्मृति और संकल्प की शक्ति से प्रसन्न होते हैं।
उदाहरण: बच्चों ने गीत गाया — “तुम ही मेरे और बाप भी कहते तुम ही मेरे।”
महत्वपूर्ण सीख: मुख का स्वर भले कैसा भी हो, लेकिन हृदय की आवाज हमेशा सुनाई देती है।


प्रश्न 5: सेवा और शान्ति का अनुभव कैसे प्राप्त होता है?

उत्तर: बच्चे अपने स्नेह, सहयोग और लगन से विश्व सेवा में भाग लेते हैं।
बापदादा का संदेश:

“जीते रहो, बढ़ते रहो, उड़ते रहो, सदा सफल रहो।”
उदाहरण: बच्चे दूर, ट्रेनों या बसों में हों, फिर भी बापदादा के नयनों में सभी रहते हैं।


प्रश्न 6: शान्ति के फरिश्तों का क्या महत्व है?

उत्तर: प्रत्येक आत्मा शान्ति का संदेश देने वाली हो।
बापदादा की प्रेरणा:

“मैं शान्ति स्वरूप आत्मा हूँ, शान्ति के सागर का बच्चा हूँ।”
उदाहरण: कार्य में कठिनाई आने पर शान्ति के फरिश्तों को याद करें, और समस्या सहज हल हो जाएगी।


प्रश्न 7: सफलता और भाग्य के लिए क्या चाहिए?

उत्तर: सर्वोच्च भाग्य और सफलता उन्हीं को मिलती है, जो सदा बाप के संपर्क में रहते हैं।
उदाहरण: मैडम अनवर सादात को बापदादा ने इजिप्ट के लिए सन्देश दिया — धन और मन की खुशी देने वाला बनना।
निष्कर्ष: शान्ति, प्रेम और सेवा के लिए प्रेरित आत्मा हमेशा विशेष भाग्यशाली होती है।


प्रश्न 8: इस मुरली का सार क्या है?

उत्तर:

  1. अशान्ति = अप्राप्ति, अप्राप्ति = अपवित्रता।

  2. शान्ति और प्रेम का अनुभव केवल पवित्र आत्मा से संभव है।

  3. बच्चे = नई रचना के फाउंडेशन स्टोन।

  4. स्मृति और संकल्प से प्रत्येक कार्य सफलता प्राप्त करता है।

  5. सेवा और स्नेह से विश्व में शान्ति और प्रेम फैलाएँ।

स्मृति सूत्र:

“मैं शान्ति स्वरूप आत्मा हूँ। शान्ति के सागर का बच्चा हूँ।”

(डिस्क्लेमर)

यह वीडियो ब्रह्माकुमारी संस्थान की 13 फरवरी 1984 की अव्यक्त मुरली पर आधारित आध्यात्मिक अध्ययन और मनन के उद्देश्य से बनाया गया है।
इसमें व्यक्त विचार आत्मिक उन्नति, सकारात्मक दृष्टिकोण, और ईश्वरीय ज्ञान हेतु हैं।
यह किसी धार्मिक बहस या संगठनात्मक टिप्पणी का माध्यम नहीं है।
स्रोत: ब्रह्माकुमारीज़ – अव्यक्त मुरली, भारत
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