(08)छठ पूजा के चारों दिनों की रहस्यमई विधियांँ
छठ पूजा की रहस्यमयी चार विधियाँ — आत्मा की चार अवस्थाओं का आध्यात्मिक रहस्य
भक्ति से ज्ञान की ओर यात्रा
छठ पूजा भारत की प्राचीन परंपराओं में से एक है, जिसमें चार दिनों की चार रहस्यमयी विधियाँ आत्मा की चार अवस्थाओं का प्रतीक हैं।
भक्ति में जहाँ सूर्य की बाहरी उपासना की जाती है, वहीं ज्ञानमार्ग में शिव उस “सूर्य के भी पिता” के रूप में सामने आते हैं — वह परम ज्योति, जिससे आत्मा तेजस्वी बनती है।
अव्यक्त मुरली 23 मार्च 2024 में शिव बाबा कहते हैं –
“मैं सूर्य नहीं हूं, सूर्य का भी पिता हूं। मुझसे योग लगाओ तो आत्मा स्वयं तेजस्वी सूर्य समान बन जाएगी।”
पहला दिन : नहाए-खाए — आत्मा की शुद्धि की शुरुआत
परंपरा:
पहले दिन “व्रती” गंगा या नदी में स्नान करते हैं और फिर शुद्ध भोजन करते हैं।
आध्यात्मिक अर्थ:
साकार मुरली 10 मार्च 2024 में शिव बाबा ने कहा —
“सत्य ज्ञान से पहले आत्मा को नहलाना अर्थात संस्कारों की मैल को धोना आवश्यक है।”
यह नहाए-खाए वास्तव में मन की स्वच्छता और स्मृति की पवित्रता का प्रतीक है।
जैसे शरीर गंगाजल से शुद्ध होता है, वैसे ही आत्मा ज्ञान अमृत से शुद्ध होती है।
उदाहरण:
जैसे कोई आईना साफ किए बिना अपना चेहरा नहीं देख सकता, वैसे ही आत्मा ज्ञान स्नान किए बिना स्वयं को नहीं पहचान सकती।
दूसरा दिन : खरना — आत्म-संयम और तपस्या का प्रतीक
परंपरा:
इस दिन व्रती पूरा दिन निर्जल उपवास रखते हैं और सूर्यास्त के समय खीर-रोटी का प्रसाद अर्पण कर ग्रहण करते हैं।
आध्यात्मिक अर्थ:
साकार मुरली 25 जून 2024 में बाबा कहते हैं —
“सच्चा उपवास वह है जब मन व्यर्थ विचारों से उपवास करे।”
खरना का वास्तविक अर्थ है —
इंद्रिय संयम और माया के स्वाद से दूरी।
जब आत्मा परमात्मा का रस चखती है तो भौतिक स्वाद फीके लगते हैं।
उदाहरण:
जैसे मोर बादलों में नाचता है, वैसे ही आत्मा तपस्या में आनंदित होती है।
तीसरा दिन : संध्या अर्घ — डूबते सूर्य की आराधना
परंपरा:
इस दिन व्रती डूबते सूर्य को अर्घ अर्पित करते हैं।
आध्यात्मिक अर्थ:
शिव बाबा सिखाते हैं –
“जो कुछ बीत गया, उसे विसर्जित कर नई रोशनी का स्वागत करो।”
डूबते सूर्य की आराधना दर्शाती है —
पुराने संस्कार, दुख और असफलताओं को सूर्य के साथ विदा करना।
यह आत्मा की संशोधन प्रक्रिया है — पुराना समाप्त कर आगे बढ़ना ही सच्चा योग है।
उदाहरण:
जैसे किसान पुरानी फसल काटकर नई फसल बोने की तैयारी करता है, वैसे ही आत्मा को पुराने विचारों की फसल काटकर नया बीज बोना होता है।
चौथा दिन : उषा अर्घ — उगते सूर्य की उपासना
परंपरा:
अंतिम दिन प्रातः काल उगते सूर्य को अर्घ दिया जाता है।
आध्यात्मिक अर्थ:
साकार मुरली 1 जनवरी 2024 में बाबा कहते हैं —
“प्रभात का अर्थ है आत्मा का पुनर्जन्म।”
यह प्रतीक है — नई चेतना, नई सृष्टि और आत्मिक जागृति का।
उगते सूर्य की पूजा वास्तव में ज्ञान के सूर्य शिव बाबा की उपासना है, जो अंधकार मिटाकर सत्य का प्रकाश लाते हैं।
उदाहरण:
जैसे रात के बाद सूरज सब कुछ उज्ज्वल कर देता है, वैसे ही जब आत्मा में ज्ञान का प्रकाश फैलता है, तो अज्ञान मिट जाता है।
संपूर्ण रहस्य : छठ पूजा — आत्मा के चार चरणों का रूपक
दिन | बाहरी विधि | आत्मिक अर्थ |
---|---|---|
नहाए-खाए | शरीर की शुद्धि | संस्कारों की शुद्धि |
खरना | उपवास | व्यर्थ विचारों से उपवास |
संध्या अर्घ | डूबते सूर्य की पूजा | पुराना छोड़कर आगे बढ़ना |
उषा अर्घ | उगते सूर्य की पूजा | नई आत्मिक चेतना का स्वागत |
साकार मुरली 20 सितंबर 2024 —
“भक्ति की सभी विधियाँ ज्ञान में प्रतीक बनकर रह जाती हैं।”
इस प्रकार छठ पूजा का वास्तविक लक्ष्य है —
बाहरी सूर्य से आंतरिक सूर्य की यात्रा।
अंतिम संदेश : सूर्य नहीं, शिव हैं सूर्य के भी पिता
अव्यक्त मुरली 23 मार्च 2024 में बाबा ने कहा —
“मैं सूर्य नहीं हूं, सूर्य का भी पिता हूं।
मुझसे योग लगाओ तो आत्मा स्वयं तेजस्वी सूर्य समान बन जाएगी।”
अब समय है —
सूर्य को देखने से पहले शिव को पहचानने का,
क्योंकि वही है सूर्य के पीछे का प्रकाश।
“छठ पूजा के चारों दिनों का दिव्य रहस्य — सूर्य नहीं, शिव हैं सूर्य के भी पिता!”
(Question–Answer Format with Murli References)
प्रश्न 1:छठ पूजा के चारों दिनों का क्या आध्यात्मिक रहस्य है?
उत्तर:छठ पूजा के चारों दिन आत्मा की चार अवस्थाओं के प्रतीक हैं —
नहाए-खाए : आत्मा की शुद्धि की शुरुआत
खरना : संयम और तपस्या
संध्या अर्घ : पुराने संस्कारों का विसर्जन
उषा अर्घ : नई आत्मिक जागृति
साकार मुरली 20 सितम्बर 2024:
“भक्ति की सभी विधियाँ ज्ञान में प्रतीक बनकर रह जाती हैं।”
प्रश्न 2:पहले दिन ‘नहाए-खाए’ का वास्तविक अर्थ क्या है?
उत्तर:‘नहाए-खाए’ शरीर की नहीं, संस्कारों की शुद्धि का प्रतीक है।
यह आत्मा को ज्ञान अमृत से स्नान कराने की शुरुआत है।
साकार मुरली 10 मार्च 2024:
“सत्य ज्ञान से पहले आत्मा को नहलाना अर्थात संस्कारों की मैल को धोना आवश्यक है।”
उदाहरण:
जैसे बिना आईना साफ किए चेहरा नहीं दिखता, वैसे ही ज्ञान-स्नान बिना आत्मा स्वयं को नहीं पहचानती।
प्रश्न 3:दूसरे दिन के ‘खरना’ उपवास का आध्यात्मिक अर्थ क्या है?
उत्तर:‘खरना’ मन और इन्द्रियों के संयम का प्रतीक है।
यह सच्चा मानसिक उपवास है — जब मन व्यर्थ विचारों से दूर हो जाता है।
साकार मुरली 25 जून 2024:
“सच्चा उपवास वह है जब मन व्यर्थ विचारों से उपवास करे।”
उदाहरण:
जैसे मोर बादलों में नाचता है, वैसे ही आत्मा तपस्या में आनंदित होती है।
प्रश्न 4:तीसरे दिन ‘संध्या अर्घ’ डूबते सूर्य की आराधना क्यों की जाती है?
उत्तर:यह पुराने संस्कारों, दुखों और असफलताओं को सूर्य के साथ विदा करने की प्रक्रिया है।
आत्मा संशोधन कर नई दिशा में आगे बढ़ती है।
उदाहरण:
जैसे किसान पुरानी फसल काटकर नई फसल बोता है, वैसे ही आत्मा को भी पुराने विचारों की फसल काटनी होती है।
शिवबाबा का संदेश:
“जो बीत गया उसे विसर्जित कर नई रोशनी का स्वागत करो।”
प्रश्न 5:चौथे दिन ‘उषा अर्घ’ — उगते सूर्य की उपासना का क्या अर्थ है?
उत्तर:यह नई आत्मिक जागृति और सत्य ज्ञान की प्रभात का प्रतीक है।
उगता सूर्य दर्शाता है कि आत्मा अंधकार से निकलकर शिव-सूर्य की रोशनी में प्रवेश कर रही है।
साकार मुरली 1 जनवरी 2024:
“प्रभात का अर्थ है आत्मा का पुनर्जन्म।”
उदाहरण:
जैसे रात के बाद सूरज सब कुछ उज्ज्वल कर देता है, वैसे ही आत्मा में ज्ञान का प्रकाश फैलने से अज्ञान मिट जाता है।
प्रश्न 6:बाबा कहते हैं — “मैं सूर्य नहीं, सूर्य का भी पिता हूं।” इसका क्या रहस्य है?
उत्तर:सूर्य भौतिक प्रकाश देता है, पर शिव बाबा आत्मिक प्रकाश का स्रोत हैं।
वह “सूर्य का भी पिता” इसलिए हैं क्योंकि सूर्य की शक्ति का मूल भी परमात्मा शिव है।
अव्यक्त मुरली 23 मार्च 2024:
“मैं सूर्य नहीं हूं, सूर्य का भी पिता हूं। मुझसे योग लगाओ तो आत्मा स्वयं तेजस्वी सूर्य समान बन जाएगी।”
अर्थ:
जो आत्मा शिव से योग लगाती है, वह स्वयं प्रकाश-पुंज बन जाती है।
प्रश्न 7:छठ पूजा का अंतिम आत्मिक संदेश क्या है?
उत्तर:अब समय है सूर्य को देखने से पहले शिव को पहचानने का,
क्योंकि वही है सूर्य के पीछे का सच्चा प्रकाश।
Disclaimer
यह वीडियो छठ पूजा के पारंपरिक उत्सव का सम्मान करते हुए, उसके पीछे छिपे आध्यात्मिक रहस्यों को Brahma Kumaris Murli के आधार पर समझाने का प्रयास है।
इसका उद्देश्य किसी धार्मिक परंपरा या मान्यता को बदलना नहीं, बल्कि ज्ञान और आत्म-जागृति की दृष्टि से गहराई देना है।
ओम् शान्ति
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