(09)छठ पूजा में व्रती पूरा दिन जल भी क्यों नहीं पीता?
छठ पूजा का असली अर्थ क्या है? | सच्चे निर्जला उपवास का आध्यात्मिक रहस्य |
1. भूमिका: छठ पूजा का गूढ़ अर्थ
छठ पूजा — सूर्य उपासना का सबसे पवित्र पर्व। परंतु क्या इसका असली अर्थ केवल सूरज को अर्घ्य देना है या इसके पीछे कोई गहरा आध्यात्मिक संदेश छिपा है?
आज हम जानेंगे — “निर्जला उपवास” का आत्मिक अर्थ क्या है?
2. व्रत और उपवास का बाहरी रूप
लोक परंपरा में छठ व्रतधारी पूरे दिन ना भोजन करते हैं, ना जल पीते हैं।
इसे “निर्जला उपवास” कहा जाता है।
भक्ति मार्ग में यह शरीर की तपस्या और मन की परीक्षा है।
सूर्य अस्त से पहले सूर्य को भोग लगाकर व्रत खोला जाता है।
उदाहरण:
जैसे मुस्लिम भाई रोज़े में सूर्योदय से सूर्यास्त तक जल नहीं पीते, वैसे ही छठ में भी तपस्या का यह भाव है।
3. आध्यात्मिक बनाम आत्मिक अर्थ
दो शब्दों का अंतर समझें –
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आध्यात्मिक अर्थ: आत्मा और परमात्मा का अध्ययन, उनका संबंध, कर्म और संसार की समझ।
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आत्मिक अर्थ: आत्मा की स्व-अवस्था, जब आत्मा देह-अभिमान छोड़कर अपने मूल स्वरूप में कर्म करती है।
मुख्य बिंदु:
देह समझकर किया कर्म अशुद्ध होता है,
आत्मा समझकर किया कर्म शुद्ध होता है।
4. मुरली से सच्चे उपवास का अर्थ
साकार मुरली: 25 जून 2024
“सच्चा उपवास वह है जब आत्मा मन की विकारी वृत्तियों से उपवास करे।
संकल्प में भी कोई विकार न आए — यही सच्चा निर्जला उपवास है।”
अर्थ:
सच्चा निर्जला उपवास मतलब — मन के प्रवाह को स्थिर करना, विकारी विचारों से उपवास करना।
5. जल का प्रतीक — संकल्पों का प्रवाह
साकार मुरली: 3 अप्रैल 2024
“जल प्रवाह का प्रतीक है मन के संकल्प।”
इसलिए जल न पीना यह संकेत है —
“अब मैं अपने संकल्प प्रवाह को नियंत्रित करूँगा।”
उदाहरण:
नदी जब सीमाओं में बंधी रहती है तो सिंचन करती है,
पर जब सीमा तोड़ देती है तो बाढ़ लाती है।
वैसे ही अनियंत्रित संकल्प आत्मा को डुबो देते हैं।
6. मन की परीक्षा — सच्चा निर्जला उपवास
अव्यक्त मुरली: 15 जुलाई 2024
“मन के व्यक्त संकल्पों से उपवास करो — यही सच्ची तपस्या है।”
आत्मिक उपवास:
संकल्पों की गति को नियंत्रित करना।
मन की तीव्र तरंगें तनाव लाती हैं,
धीमी और शक्तिशाली तरंगें शांति लाती हैं।
7. सच्चा ब्रह्मचर्य — मन का योग अभ्यास
अव्यक्त मुरली: 9 अगस्त 2024
“मन संयोग का अभ्यास ही सच्चा ब्रह्मचर्य है।”
जब मन शिव बाबा की स्मृति में रहता है,
तो विकारों की ऊर्जा पवित्रता में बदल जाती है।
वास्तव में यही “पूर्ण आत्म-नियंत्रण” की तपस्या है।
8. शरीरिक उपवास का वैज्ञानिक लाभ
भूखे रहने से शरीर को कई लाभ —
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पाचन तंत्र को विश्राम
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अवांछित ऊर्जा (फैट) का उपयोग
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डेड सेल्स का नाश (ऑटोफैजी)
यह शरीर का शुद्धिकरण है।
पर ज्ञान मार्ग में यह “माया से आत्मा का शुद्धिकरण” है।
9. योगी आत्मा की भूख-प्यास समाप्त
साकार मुरली: 12 फरवरी 2024
“जो मुझसे योग में रहते हैं, उन्हें किसी चीज़ की कमी महसूस नहीं होती।”
अव्यक्त मुरली: 4 मई 2024
“जब आत्मा मुझसे योग जोड़ती है, तो उसे संसार की भूख-प्यास नहीं सताती।”
उदाहरण:
जो आत्मा परमात्मा के प्रेम से तृप्त है,
उसे बाहरी सुखों की भूख नहीं रहती।
10. छठ पूजा का असली संदेश
छठ व्रत का गूढ़ अर्थ —
बाहरी उपवास नहीं, बल्कि आंतरिक एकाग्रता और आत्म-नियंत्रण।
जब आत्मा अपने संकल्पों को सीमाओं में रखती है,
परमात्मा से योग जोड़ती है —
तभी वह “सच्चे निर्जला उपवास” का अनुभव करती है।
निष्कर्ष
छठ पूजा का असली अर्थ —
“बाहरी भूख-प्यास पर नहीं, बल्कि आत्मा की इच्छाओं पर विजय।”
भक्ति का रूपांतरण करें —
बाहरी उपवास से आंतरिक एकाग्रता की ओर।
“सच्चा निर्जला उपवास — छठ पूजा का आत्मिक रहस्य”
प्रश्न 1:छठ पूजा में निर्जला उपवास का क्या अर्थ है?
उत्तर:निर्जला उपवास का आत्मिक अर्थ है — मन के विकारी संकल्पों से उपवास करना।
बाहरी रूप से जल न पीना एक प्रतीक है कि आत्मा अपने विचारों के प्रवाह को नियंत्रित करे और परमात्मा से योग जोड़े।
प्रश्न 2:जल न पीने को विचारों से कैसे जोड़ा गया है?
उत्तर:जल प्रवाह का प्रतीक है मन का संकल्प प्रवाह।
जब हम जल से उपवास करते हैं, तो यह आत्मा का संकल्पों पर नियंत्रण दर्शाता है — जैसे नदी सीमित प्रवाह में सिंचन करती है, वैसे ही नियंत्रित विचार आत्मा को शक्तिशाली बनाते हैं।
प्रश्न 3:क्या सच्चा उपवास केवल शरीर से होता है?
उत्तर:नहीं। सच्चा उपवास मन से होता है।
शरीर से भूखा रहना बाहरी तपस्या है,
लेकिन विकारी विचारों से दूर रहना ही आंतरिक तपस्या है।
प्रश्न 4:मुरली में सच्चे उपवास को कैसे समझाया गया है?
उत्तर:मुरली बिंदु: “सच्चा उपवास वह है जब संकल्प में भी कोई विकार न आए।”
इसका अर्थ — जब आत्मा मन में भी विकारी वृत्ति को स्थान न दे, तो वही सच्चा निर्जला उपवास कहलाता है।
प्रश्न 5:आत्मिक उपवास से आत्मा को क्या लाभ होता है?
उत्तर:
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संकल्पों की गति धीमी और शक्तिशाली होती है।
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आत्मा की शक्ति और स्थिरता बढ़ती है।
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योग से आत्मिक तृप्ति का अनुभव होता है।
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बाहरी भूख-प्यास का अनुभव मिटने लगता है।
प्रश्न 6:भक्ति में बाहरी उपवास और ज्ञान मार्ग में उपवास में क्या अंतर है?
उत्तर:भक्ति मार्ग में उपवास शरीर को कष्ट देकर पुण्य कमाने के लिए होता है।
ज्ञान मार्ग में उपवास — मन और संकल्पों को पवित्र बनाने के लिए होता है।
एक बाहरी है, दूसरा आंतरिक।
प्रश्न 7:सच्चा निर्जला उपवास जीवन में कैसे उतारा जा सकता है?
उत्तर:
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दिन भर विचारों की दिशा पर ध्यान देना।
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किसी भी स्थिति में विकारी संकल्प को प्रवेश न देना।
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बार-बार परमात्म स्मृति में रहना।
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आत्मा को अपनी शांति और पवित्रता में स्थिर करना।
Disclaimer (डिस्क्लेमर):
इस वीडियो में साझा किया गया ज्ञान ब्रह्माकुमारीज़ ईश्वरीय ज्ञान और मुरली वचनों पर आधारित है।
इसका उद्देश्य केवल आध्यात्मिक जागृति, आत्मचिंतन और शांति का संदेश देना है।
यह किसी धर्म, परंपरा या व्यक्ति की आलोचना नहीं करता।
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