अध्याय 16: निशाचर का रहस्य – क्या सच में आत्माएं परेशान करती हैं?
1. रात – भय और रहस्य का संसार
रात का समय शांति का भी है और भय का भी।
कुछ लोग इसे विश्राम का समय मानते हैं, वही कुछ कहते हैं —
“रात में आत्माएं भटकती हैं, निशाचर शक्तियां सक्रिय होती हैं।”
पर क्या यह सच है?
मुरली संदर्भ (10 जुलाई 1984)
“रात का समय आत्मा को शांत और बाबा से जुड़ने के लिए है, डरने के लिए नहीं।”
जब हम बाबा की याद में होते हैं, तब कोई भय नहीं रह सकता।
भूत भी आत्मा ही है, पर भय वहाँ है जहाँ देह-अभिमान है।
ज्ञानवान आत्मा जानती है —
“मुझे कोई कुछ नहीं कर सकता, मैं अविनाशी आत्मा हूँ।”
उदाहरण:
जैसे अंधेरे में रस्सी को साँप समझ लिया जाता है, वैसे ही भय भी अज्ञान का परिणाम है।
बाबा का ज्ञान उस अंधेरे में “प्रकाश” है जो भ्रम मिटा देता है।
2. कार्मिक हिसाब – क्यों आत्माएं आती हैं?
कभी-कभी लोग अनुभव करते हैं —
“कोई आत्मा मेरे पास आती है, रात में कोई दबाव महसूस होता है।”
यह डरने की बात नहीं, बल्कि कार्मिक अकाउंट का संकेत है।
मुरली संदर्भ (23 अगस्त 1975)
“जिससे हिसाब-किताब है, वही आत्मा तुम्हारे संपर्क में आएगी — सुख या दुख देने के लिए।”
इसलिए यदि कोई आत्मा हमें अनुभव होती है, तो वह अपना हिसाब बराबर करने आई है।
डरने के बजाय हमें यह भाव रखना चाहिए —
“जो देना है, खुशी से दो; जो लेना है, शांति से लो।”
आध्यात्मिक दृष्टि:
हर आत्मा अपने कर्म का हिसाब पूरा करती है और फिर आगे बढ़ जाती है।
डर केवल तब आता है जब हम “ज्ञानी आत्मा” नहीं रहते।
3. सूक्ष्म अस्तित्व और ‘निशाचर’ का अर्थ
‘निशाचर’ शब्द दो भागों में बँटा है —
निशा = रात, चर = चलने वाला।
अर्थात — रात में सक्रिय आत्मिक या सूक्ष्म अस्तित्व।
परंतु अधिकतर समय यह केवल भय का ही परिणाम होता है।
हवा की सरसराहट, पेड़ की छाया, जानवरों की आवाज़,
इन सब को मन भय में “प्रेत” या “निशाचर” समझ लेता है।
मुरली संदर्भ (5 जून 1980)
“जहाँ भय है वहाँ भ्रम है, जहाँ बाबा की याद है वहाँ सत्य है।”
उदाहरण:
जंगल में कोई आवाज़ आई — मन तुरंत भयभीत हो गया।
लेकिन बाद में पता चला — वो तो हवा से हिलती झाड़ी थी।
भय का “भूत” ही असली भूत है!
4. निर्भयता का अभ्यास – आत्मा को कोई छू नहीं सकता
यदि हम यह दृढ़ निश्चय कर लें कि —
“कोई भी आत्मा मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती,”
तो भय स्वतः समाप्त हो जाता है।
शरीर को कोई चोट पहुँचा सकता है, पर आत्मा अछूती रहती है।
भले मृत्यु हो जाए, आत्मा अपने घर परमधाम लौट जाती है।
मुरली संदर्भ (22 सितम्बर 1978)
“जो स्वयं को आत्मा समझ याद में रहता है, वह निर्भय बन जाता है।”
उदाहरण:
एक सिंह सामने आ जाए तो भी आत्मा केवल शरीर को देखेगी —
“जो होगा, बाबा की योजना से होगा।”
यह दृष्टिकोण ही ‘योगी निर्भयता’ है।
5. भय की मनोवैज्ञानिक सच्चाई
भय मन का निर्माण है।
जानवर तक भी भय की प्रतिक्रिया देते हैं —
यदि आप डरेंगे, तो वे भी आक्रामक होंगे।
पर आप शांत रहेंगे तो वे भी शांत रहेंगे।
उदाहरण:
एक बच्चा चिड़ियाघर में शेर के बाड़े में गिर गया।
शेर ने उसे कुछ नहीं कहा, बस शांत बैठा रहा।
क्योंकि बच्चे के मन में भय नहीं था।
मुरली संदर्भ (15 मई 1982)
“निर्भयता ही आत्मा का स्वभाव है। भय आने का अर्थ है – विस्मरण।”
बाबा कहते हैं —
“जहाँ बाबा की याद है, वहाँ डर का नामोनिशान नहीं।”
6. अनुभव का प्रसंग – ज्ञान की शक्ति से निर्भयता
एक बहन का अनुभव —
ऑपरेशन के दौरान उसने बाबा की याद में स्वयं को स्थिर रखा।
ना उसे भय हुआ, ना दर्द का अनुभव।
डॉक्टरों ने आश्चर्य से पूछा, “आपको डर नहीं लगा?”
वह बोली — “मैं बाबा की गोद में थी।”
इस योग की शक्ति ने न केवल उसे निर्भय बनाया,
बल्कि डॉक्टर भी राजयोग सीखने के लिए प्रेरित हुए।
मुरली संदर्भ (12 अक्टूबर 1984)
“जो बाबा की याद में स्थिर है, उसके चारों ओर सुरक्षा का कवच बन जाता है।”
निष्कर्ष – असली भूत कौन है?
भय ही असली भूत है।
जो डर गया, वही निशाचरों से परेशान हुआ।
जो ज्ञान और योग में स्थित है, वह हर प्रकार के भय से मुक्त है।
“मैं आत्मा हूँ — अविनाशी, अमर, अचल।”
“परमात्मा मेरा रक्षक है।”
जहाँ यह अनुभव जीवित है, वहाँ
कोई भूत, प्रेत, निशाचर या पिशाच टिक नहीं सकता।
सार-संदेश (Spiritual Slogan):
“बाबा की याद ही असली रक्षा कवच है।”
“भय मिटे ज्ञान की रौशनी से।”
#ब्रह्माकुमारी #आध्यात्मिकज्ञान #निशाचर #भूतप्रेत #राजयोग #बीकेशिवबाबा #फियरटूपावर #सोलनॉलेज #अव्यक्तमुरली #नाइटसीक्रेट्स#BrahmaKumaris #SpiritualKnowledge #Nishachar #BhootPret #Rajyog #BKShivBaba #FearToPower #SoulKnowledge #AvyaktMurli #NightSecrets

