(20)Who are the messengers of death? They are the messengers of death—truth that brings understanding, not fear, to the soul.

भूत ,प्रेत:-(20)यमदूत कौन है? यह मृत्यु के संदेशवाहक हैं — सच्चाई जो आत्मा को डर नहीं, समझ देती है।

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(प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

“भूत, प्रेत आदि के बारे में हम अध्ययन कर रहे हैं। आज हमारा 20वां विषय है — यमदूत कौन है? यह मृत्यु के संदेशवाहक हैं — सच्चाई जो आत्मा को डर नहीं, समझ देती है। आज का विषय है — मुरली 22 अक्टूबर 2025 मुख्य विषय: कर्म का हिसाब-किताब और आत्मा की यात्रा। इस संसार में हम सारे संसार की सभी आत्माएं — चाहे मनुष्य हों, पशु, पक्षी, जीव-जंतु — कोई भी आत्मा हो, सबका कर्म का हिसाब-किताब होता है। हर आत्मा परमधाम से आने के बाद जिस आत्मा के साथ जो कार्मिक अकाउंट बनाती है — चाहे देने का हो या लेने का — घर जाने से पहले बराबर करके ही जाती है। इसलिए कोई भी आत्मा कभी भी आए, परंतु घर सभी एक साथ जाएंगे। आखरी एक्ट हर आत्मा का दूसरी आत्मा के साथ एक ही होगा। प्रत्येक आत्मा का आख़िरी सेकंड का कर्म — चाहे लेने का हो या देने का — पूरा होते ही सारी आत्माएं, कार्मिक अकाउंट बराबर होने के कारण, परमधाम में चली जाती हैं। यह है आत्मा की यात्रा — परमधाम से इस कर्म क्षेत्र पर आना और इस कर्म क्षेत्र से वापस जाना। चाहे वह आत्मा 5000 साल के लिए आए, 3000 साल के लिए आए, या केवल एक साल के लिए आए — यह आत्मा की यात्रा है। मुख्य बिंदु: आत्मा का साथी केवल उसका कर्म है। मृत्यु के बाद जो आत्मा अनुभव करती है, वह उसके कर्मों का दर्पण होता है। यहां तक हमने जो बात की, वह बेहद की यात्रा थी — परमधाम से आना और वापस जाना। अब बात आती है हद की यात्रा की — शरीर की यात्रा। शरीर की यात्रा कितनी है? जितना समय शरीर चला, उसके बाद शरीर खत्म हो गया। आत्मा तो अजर, अमर, अविनाशी है। इसलिए शरीर की यात्रा को आत्मा की यात्रा नहीं कहेंगे, वह केवल एक पड़ाव है। मृत्यु के बाद आत्मा जो अनुभव करती है, वह उसके कर्मों का दर्पण होता है। जैसे कुछ बीज तुरंत फल देते हैं, कुछ समय बाद, वैसे ही कुछ कर्मों का फल तुरंत मिल जाता है और कुछ का कई जन्मों के बाद। शरीर का कार्मिक अकाउंट अलग नहीं होता, कार्मिक अकाउंट आत्मा का होता है। आत्मा परमधाम से आती है, कर्म क्षेत्र में 4999 साल तक या कम से कम एक जन्म तक रहती है — और घर जाने से पहले सारे कर्म बराबर करती है। दुनियावाले केवल शरीर की यात्रा को देखते हैं, आत्मा की नहीं। इसीलिए कहा गया — मृत्यु के बाद आत्मा जो अनुभव करती है, वह उसके कर्मों का दर्पण है। दुख-सुख जो भी मिलता है, वह अपने ही कर्मों का फल है। अगर कोई हमें दुख देता है, तो हम समझते हैं कि यह मेरे ही दिए हुए दुख का फल है। अगर कोई हमें सुख देता है, तो यह भी मेरे ही पूर्व कर्म का फल है। यमदूत का रहस्य: यमदूत भय नहीं है। वह कर्म प्रतिबिंब का प्रतीक है — जो हमने कर्म किया था, यमदूत उसका प्रतीक रूप है। पाप कर्म करने वाली आत्माओं को लेने के लिए यमदूत आते हैं, और पुण्य कर्म करने वाली आत्माओं को लेने के लिए देवदूत आते हैं। उदाहरण: अजामिल — जिसने जीवनभर पाप कर्म किए, मृत्यु के समय “नारायण नारायण” कहा। तो यमदूत उसे लेने आए, परंतु नारायण ने देवदूतों को भेज दिया — “जाओ, मेरे भक्त को ले आओ।” इससे समझ में आता है — देवदूत पुण्य कर्म वालों के लिए और यमदूत पाप कर्म वालों के लिए प्रतीक हैं। अभ्यास: प्रतिदिन 10 मिनट योग में यह स्मृति रखें — “मैं आत्मा हूं, अपने हर कर्म का निर्माता हूं। मैं जो कर्म करता हूं, उसकी प्रालब्ध मुझे ही मिलेगी। मैं अपने कर्म का दोष किसी और को नहीं दे सकता।” यमदूत और आत्मा की यात्रा का रहस्य: यमदूत नाम से डर क्यों लगता है? क्योंकि जब हम स्वयं को शरीर समझते हैं, तब डर लगता है। देह-अभिमान ही डर का आधार है। ज्ञान मिलने पर और आत्म स्थिति में आने पर डर समाप्त हो जाता है। क्योंकि मैं अमर आत्मा हूं — मुझे कोई मार नहीं सकता, मैं कभी नहीं मरता। यमदूत का अर्थ: ‘यम’ का अर्थ है ‘रुकना’। जब आत्मा शरीर से निकल जाती है, तो शरीर रुक जाता है — इसलिए कहा गया “यम आगत” यानी यम आ गया। परंतु इसका अर्थ यह नहीं कि कोई दूत आकर आत्मा को पकड़ ले जाता है। कोई यमदूत नहीं आता — आत्मा अपने कर्मों के अनुसार स्वयं शरीर छोड़ती और दूसरे शरीर में प्रवेश करती है। यह प्रक्रिया पूरी तरह सटीक और समयानुसार होती है — कोई शक्ति उसे रोक या बदल नहीं सकती। इसलिए यम का भय निरर्थक है। आत्मा स्वयं अपने कर्मों की संचालक है, स्वयं अपना यम है। दुनिया ने यमराज का जो चित्र बनाया है — काले वस्त्रों में, बड़ी मूंछों वाला, आत्माओं को पकड़कर ले जाने वाला — वह केवल प्रतीक है उन पाप कर्मों का जो आत्मा ने किए हैं। असल में कोई बाहरी यमदूत नहीं होता — आत्मा स्वयं अपने कर्मों के अनुसार आगे बढ़ती है। निष्कर्ष: यमदूत कोई भय नहीं है — वह केवल कर्म की अदृश्य सत्ता का प्रतीक है। आत्मा आती है, जाती है — उसे कोई पकड़ कर नहीं ले जाता। जहां उसके अगले जन्म का बीज तैयार है, वहां वह स्वयं प्रवेश करती है। यह आत्मा की यात्रा का सटीक और शाश्वत नियम है।

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