सृष्टि चक्र :-(02)”क्या इतिहास सचमुच दोहराता है?रहस्यमय सत्य।
क्या इतिहास सचमुच दोहराता है?
रहस्यमय सत्य।
आज हम वह सत्य जानेंगे जिससे हमें समझ में आएगा — क्या इतिहास सचमुच दोहराता है?
इतिहास क्यों कहा जाता है कि अपने आप को दोहराता है? यह कोटेशन फेमस है। सारी दुनिया के अंदर जो इतिहास का अध्ययन करते हैं, वे यह बात कहते हैं — इतिहास अपने आप को दोहराता है।
इसी बात को ऐसे भी कहा जाता है। बहुत बार हम यह सुनते हैं कि इतिहास अपने आप को दोहराता है और एक साधारण भाषा में कहा जाता है — “सास भी कभी बहू थी।”
इसका मतलब भी यही होता है कि इतिहास दोहराता है।
बाकी यह नहीं है कि सभी बहुएं या सभी सासें एक जैसे पार्ट में चलती हैं। परंतु इतिहास दोहराता है — कुछ न कुछ रिपीट होता है।
लेकिन क्या यह केवल एक कहावत है या इसके पीछे कोई गहरा रहस्य है?
आज हम ईश्वरीय ज्ञान और मुरली की रोशनी में इस सत्य को समझेंगे।
1. सृष्टि नाटक का रहस्य
यह संसार एक नाटक है — सृष्टि नाटक।
मुरली (10 अक्टूबर 2025) में बाबा ने कहा —
“मीठे बच्चे, यह है सृष्टि का नाटक जो प्राय: वही चलता है जैसे पहले चला था। इसमें एक भी सीन बदल नहीं सकता।”
यह वाक्य ही इस रहस्य को खोल देता है।
बाबा ने समझाया — “आप यहां पहली बार नहीं आए।
आप 5000 वर्ष पूर्व भी इसी स्थान, इसी समय, इसी प्रकार से आए थे।
अब आए हैं और हर 5000 वर्ष पश्चात आते रहेंगे।”
क्योंकि इस सृष्टि रूपी नाटक की हर 5000 वर्ष पश्चात हूबहू पुनरावृत्ति होती है।
यह ज्ञान स्वयं परमात्मा शिव देते हैं।
हर कलियुग के अंत में वे कहते हैं — “मैं आकर यह अद्भुत रहस्य समझाता हूं।”
सत्य परमात्मा ही यह ज्ञान देते हैं — कि यह ड्रामा हूबहू रिपीट होता है।
इसलिए इतिहास और भूगोल दोनों बार-बार एक ही क्रम में आते हैं।
जैसे रिकॉर्ड को बार-बार चलाने पर वही गीत वैसा ही बजता है — वैसे ही यह ड्रामा भी रिपीट होता है।
परंतु फर्क यह है कि यह दिव्य रिकॉर्ड कोई भी बदल नहीं सकता —
न इंसान, न प्रकृति, यहां तक कि स्वयं परमात्मा भी नहीं।
यह अनादि काल से चला आ रहा है और अनंत काल तक चलता रहेगा।
2. इतिहास और भूगोल की पुनरावृत्ति
सृष्टि चक्र 5000 वर्ष का है — जिसका आरंभ और अंत है।
परंतु यह नाटक अनादि काल से दोहराता आ रहा है।
सतयुग से कलियुग तक धर्म, संस्कृति, सभ्यता और घटनाएं दोहराई जाती हैं।
हर 5000 वर्ष बाद वही आत्माएं अपनी-अपनी भूमिकाएं निभाने आती हैं।
जैसे अब आप बैठे हैं, वैसे ही ठीक 5000 वर्ष बाद फिर ऐसे ही बैठेंगे।
जो कुछ अब आपके चारों ओर है — वही तब भी होगा।
यही कारण है कि बाबा कहते हैं —
“इतिहास और भूगोल तुम ही सारे संसार को पढ़ा सकते हो।”
जो कुछ भी घट रहा है — वह हूबहू पहले भी घट चुका है और आगे भी घटेगा।
यह ज्ञान हमें हलचल से मुक्त कर देता है।
कुछ भी हो जाए — “Nothing New.”
यह एक विचार मन को स्थिर कर देता है।
3. आत्मा की भूमिका
मुरली (22 सितंबर 2025):
“आत्माएं अपनी-अपनी भूमिका के अनुसार इस नाटक में आती हैं। भूमिका बदलती नहीं, वही रिपीट होती है।”
हर आत्मा में 5000 वर्षों की अविनाशी रिकॉर्डिंग है।
यह रिकॉर्ड कभी मिटती नहीं, बदलती नहीं।
यहां तक कि प्रकृति के तत्व — हवा, जल, अग्नि, ग्रह-नक्षत्र —
सब 5000 वर्ष बाद उसी समय, उसी स्थान, उसी स्थिति में होंगे।
एक सेकंड का हजारवां हिस्सा भी आगे-पीछे नहीं हो सकता।
इतना एक्यूरेट है यह ड्रामा।
4. लौकिक इतिहास में प्रमाण
हर युग में वही घटनाएं रूप बदलकर आती हैं।
धर्म की स्थापना और अधर्म का बढ़ना,
युद्ध और शांति का चक्र,
नया युग स्थापित होना —
यह क्रम बार-बार दोहराता है।
उदाहरण के लिए —
महाभारत जैसा संघर्ष हर कल्पांत में किसी न किसी रूप में आता है।
बाबा ने स्पष्ट किया —
“वास्तव में कल्पांत होता है, युगांत नहीं।”
चार युगों (सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग) के बाद कल्प का अंत आता है और वही नया कल्प शुरू होता है।
इसलिए महाभारत कल्पांत पर घटित होती है — युगांत पर नहीं।
5. इतिहास और ड्रामा — एक ही बात
जो 5000 वर्ष पहले हुआ था, वह इतिहास था।
जो अब घट रहा है — वह ड्रामा है।
अब जो हम प्ले कर रहे हैं, वह भविष्य का इतिहास बनेगा।
बाबा ने कहा —
“बनी बनाई बन रही — अब कुछ बननी।”
यानी यह ड्रामा बना हुआ भी है, बन रहा भी है, और बार-बार वैसा ही बनता रहेगा।

