(09)“Did God create creatures?

विश्व नाटक :-(09)”क्या भगवान ने जीव बनाए?

(प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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क्या भगवान ने जीव बनाए?

क्या भगवान ने जीव बनाए?
जीव किसे कहा जाता है?
जीव किसे कहते हैं? शरीर को।
शरीर में जब आत्मा आती है तो उसे जीव आत्मा कहा जाता है।


धर्म और विज्ञान में जीवन की उत्पत्ति का रहस्य

धर्म और विज्ञान दोनों में हम जानने का प्रयास करेंगे कि जीवन की उत्पत्ति का क्या रहस्य है — यह जीवन कैसे शुरू हुआ?
यह प्रश्न मानवता के सामने सबसे प्राचीन प्रश्नों में से एक है।

प्रश्न: जीव का मूल क्या है?
क्या उसे ईश्वर ने बनाया है? या वह स्वतः उत्पन्न हुआ?


विज्ञान का दृष्टिकोण

विज्ञान कहता है कि जीवन का विकास रासायनिक संयोगों (chemical reactions) से हुआ है।


धर्म का दृष्टिकोण

जबकि धर्म कहता है कि जीवन ईश्वर की रचना है, उसकी सृष्टि है।
पर क्या दोनों दृष्टिकोण इस प्रश्न का संतोषजनक उत्तर दे पाते हैं?

अधिकांश धार्मिक मतों में यह माना गया कि ईश्वर ने निर्जीव द्रव्य से जीवन की रचना की।


निर्जीव, जीव और सजीव क्या हैं?

पाँच तत्वों को निर्जीव कहा जाता है।
जब वे मिलकर एक शरीर का रूप लेते हैं और उसमें आत्मा प्रवेश करती है — तो उसे जीव आत्मा कहा जाता है।

बिना आत्मा के शरीर को जीव कहा जाता है।
जब आत्मा उसमें आती है तो वह सजीव कहलाता है।
और जब आत्मा निकल जाती है, तो वह निर्जीव बन जाता है।

सारांश:

  • आत्मा सहित जीव = सजीव

  • आत्मा रहित जीव = निर्जीव


ईश्वर द्वारा रचना की धारणा

ईश्वर ने निर्जीव द्रव्य से जीवन की रचना की — ऐसा कहा गया है।
बाइबल में कहा गया है:
“God created man from the dust of the ground, and breathed into his nostrils the breath of life.”
यानी ईश्वर ने मिट्टी से मनुष्य बनाया और उसमें प्राण फूंके।

कुरान में भी यही कहा गया है कि खुदा ने आकृति बनाई और उसमें प्राण फूंके।

वेद और गीता में कहा गया है — परमात्मा ही सृष्टि का बीज है, वही सर्व जीवों का कारण है।
सारे जीव प्रकृति से ही बने हैं।


डार्विन के सिद्धांत का विरोध

डार्विन ने कहा कि जीव धीरे-धीरे विकसित हुए।
परंतु वेदों और कई वैज्ञानिकों ने इस सिद्धांत को चुनौती दी।
उन्होंने कहा — जीव निर्जीव पदार्थ से संयोगवश उत्पन्न नहीं हो सकता।
जीवन की रचना के लिए एक सर्वशक्तिमान चेतन सत्ता की आवश्यकता है।


चेतना (Consciousness) का महत्व

संयोग से कुछ नहीं बनता।
चेतना (आत्मा) ही रचना का कारण है।
जब तक आत्मा है, तब तक चेतना है। आत्मा नहीं तो चेतना नहीं।

विज्ञान कहता है — चीजें संयोग से मिलीं।
पर वास्तव में यह संयोग नहीं, बल्कि जागृत चेतना का परिणाम है।


दोनों दृष्टिकोणों की सीमाएं

धर्म और विज्ञान दोनों ही जीवन की उत्पत्ति का मूल कारण स्पष्ट नहीं कर पाते।
विज्ञान कहता है — जीव निर्जीव पदार्थ से बने हैं, पर कैसे बने — नहीं बता पाता।
धर्म कहता है — ईश्वर ने बनाया, पर कब और कैसे बनाया — यह भी नहीं बता पाता।
दोनों के पास जीवन की चेतना (Consciousness) का मूल स्रोत का उत्तर नहीं है।


ईश्वरीय ज्ञान से उत्तर (ब्रह्मा कुमारी दृष्टिकोण)

साकार मुरली 23 सितम्बर 1972 में शिव बाबा ने कहा —

“ईश्वर ने आत्मा को नहीं बनाया। आत्मा अनादि है। जैसे परमात्मा स्वयं अनादि और अनंत है, वैसे ही आत्मा भी अनादि और अनंत है। आत्मा स्वयंभू है।”

अर्थात — परमात्मा ने आत्मा को नहीं बनाया। आत्मा शाश्वत, अविनाशी और अनादि है।


सृष्टि का पुनर सृजन

परमात्मा सृष्टि का निर्माता (Creator) नहीं, बल्कि पुनः सृजनकर्ता (Re-Creator) है।
वह इस पुराने संसार को दोबारा नया बनाता है।
सृष्टि चक्र अनादि है — जो हर कल्प (5000 वर्ष) में दोहराया जाता है।


उदाहरण: घड़ी का चक्र

जैसे घड़ी हर 12 घंटे बाद वही स्थिति में आती है —
वैसे ही सृष्टि चक्र भी बार-बार अपने आप को दोहराता है।

सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग — यह चक्र घड़ी की तरह चलता रहता है।
यह 5000 वर्ष का नाटक है जो बार-बार हूबहू पुनरावृत्ति करता है।


जीवन का प्रश्न

इस दृष्टिकोण से जीवन का प्रश्न “कहां से आया?” नहीं है।
बल्कि — “यह कब और कैसे दोहराया जाता है?” यह प्रश्न है।


आत्मा – जीवन का वास्तविक आधार

आत्मा है तो चेतना है, जीवन है।
आत्मा नहीं तो चेतना नहीं।
आत्मा के बिना शरीर निर्जीव है।

जब जीव में आत्मा का प्रवेश होता है — वही जीवन का आरंभ है।
और जब आत्मा निकल जाती है — वही जीवन का अंत।


मुरली संदर्भ

साकार मुरली, 18 दिसंबर 1969:

“जीव का बीज आत्मा है। आत्मा कभी मरती नहीं, वह शरीर बदलकर नया अनुभव लेती रहती है।”

इसलिए — जीवन कोई पदार्थ नहीं है।
पदार्थ में आत्मा का प्रवेश ही जीवन को जन्म देता है।


निष्कर्ष

विज्ञान और धर्म दोनों सत्य की खोज में हैं — परंतु पूर्ण सत्य केवल आध्यात्मिक चेतना के अनुभव से ही जाना जा सकता है।
ईश्वर आत्माओं को नहीं बनाता, बल्कि उन्हें ज्ञान देता है ताकि वे अपने संस्कारों से नई सृष्टि रच सकें।

यही ब्रह्मा कुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय का दिव्य दृष्टिकोण है —
कि जीवन का मूल बिंदु किसी समय या स्थान में नहीं है;
यह एक अनादि, अविनाशी, पुनरावर्ती चक्र है।