MURLI 06-11-2025 |BRAHMA KUMARIS

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Questions & Answers (प्रश्नोत्तर):are given below

06-11-2025
प्रात:मुरली
ओम् शान्ति
“बापदादा”‘
मधुबन
“मीठे बच्चे – तुम अभी बिल्कुल शडपंथ (किनारे) पर खड़े हो, तुम्हें अब इस पार से उस पार जाना है, घर जाने की तैयारी करनी है”
प्रश्नः- कौन-सी एक बात याद रखो तो अवस्था अचल-अडोल बन जायेगी?
उत्तर:- पास्ट इज़ पास्ट। बीती का चिंतन नहीं करना है, आगे बढ़ते जाना है। सदा एक की तरफ देखते रहो तो अवस्था अचल-अडोल हो जायेगी। तुमने अब कलियुग की हद छोड़ दी, फिर पिछाड़ी की ओर क्यों देखते हो? उसमें बुद्धि ज़रा भी न जाए – यही है सूक्ष्म पढ़ाई।

ओम् शान्ति। दिन बदलते जाते हैं, टाइम पास होता जाता है। विचार करो, सतयुग से लेकर टाइम पास होते-होते अभी आकर कलियुग के भी किनारे पर खड़े हैं। यह सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग का चक्र भी जैसेकि मॉडल है। सृष्टि तो बड़ी लम्बी-चौड़ी है। उसके मॉडल रूप को बच्चों ने जान लिया है। आगे यह पता नहीं था कि अब कलियुग पूरा होता है। अब मालूम पड़ा है – तो बच्चों को भी बुद्धि से सतयुग से लेकर चक्र लगाए कलियुग के अन्त में किनारे पर आकर ठहरना चाहिए। समझना चाहिए टिक-टिक होती रहती है, ड्रामा फिरता रहता है। बाकी क्या हिसाब रहा होगा? ज़रा-सा रहा होगा। आगे पता नहीं था। अभी बाप ने समझाया है – बाकी कोना आकर रहा है। इस दुनिया से उस दुनिया में जाने का अभी बाकी थोड़ा समय है। यह ज्ञान भी अभी मिला है। हम सतयुग से लेकर चक्र लगाते-लगाते अब कलियुग अन्त में आकर पहुँचे हैं। अब फिर वापिस जाना है। आने का और निकलने का गेट होता है ना। यह भी ऐसे है। बच्चों को समझाना चाहिए – बाकी थोड़ा किनारा है। यह पुरुषोत्तम संगमयुग है ना। अभी हम किनारे पर हैं। बहुत थोड़ा समय है। अब इस पुरानी दुनिया से ममत्व निकालना है। अब तो नई दुनिया में जाना है। समझानी तो बड़ी सहज मिलती है। यह बुद्धि में रखना चाहिए। चक्र बुद्धि में फिरना चाहिए। अभी तुम कलियुग में नहीं हो। तुमने इस हद को छोड़ दिया है फिर उस तरफ वालों को याद क्यों करना चाहिए? जबकि छोड़ दिया है, पुरानी दुनिया को। हम पुरुषोत्तम संगमयुग पर हैं फिर पिछाड़ी में देखें भी क्यों? बुद्धियोग विकारी दुनिया से क्यों लगायें? यह बड़ी सूक्ष्म बातें हैं। बाबा जानते हैं कोई-कोई तो रूपये से एक आना भी समझते नहीं हैं। सुना और भूल जाते हैं। तुमको पिछाड़ी तरफ नहीं देखना है। बुद्धि से काम लेना है ना। हम पार निकल गये – फिर पिछाड़ी में देखें ही क्यों? पास्ट इज़ पास्ट। बाप कहते हैं कितनी महीन बातें समझाते हैं। फिर भी बच्चों का कांध पिछाड़ी में क्यों लटका रहता है। कलियुग तरफ लटका हुआ है। बाप कहते हैं कांध इस तरफ कर दो। वह पुरानी दुनिया तुम्हारे काम की चीज़ नहीं है। बाबा पुरानी दुनिया से वैराग्य दिलाते हैं, नई दुनिया सामने खड़ी है, पुरानी दुनिया से वैराग्य। विचार करो – ऐसी हमारी अवस्था है? बाप कहते हैं पास्ट इज़ पास्ट। बीती बात को चितवो नहीं। पुरानी दुनिया में कोई आश नहीं रखो। अब तो एक ही ऊंच आश रखनी है – हम चलें सुखधाम। बुद्धि में सुखधाम ही याद रहना चाहिए। पिछाड़ी में क्यों फिरना चाहिए। परन्तु बहुतों की पीठ मुड़ जाती है। तुम अभी हो पुरुषोत्तम संगमयुग पर। पुरानी दुनिया से किनारा कर लिया है। यह समझ की बात है ना। कहाँ ठहरना नहीं है। कहाँ देखना नहीं है। बीती को याद नहीं करना है। बाप कहते हैं आगे बढ़ते जाओ, पिछाड़ी को नहीं देखो। एक तरफ ही देखते रहो तब ही अचल, स्थिर, अडोल अवस्था रह सकती है। उस तरफ देखते रहेंगे तो पुरानी दुनिया के मित्र-सम्बन्धी आदि याद पड़ते रहेंगे। नम्बरवार तो हैं ना। आज देखो तो बहुत अच्छा चल रहा है, कल गिरा तो दिल एकदम हट जाती है। ऐसी ग्रहचारी बैठ जाती है जो मुरली सुनने पर भी दिल नहीं होती। विचार करो – ऐसे होता है ना?

बाप कहते हैं तुम अभी संगम पर खड़े हो तो रुख आगे रखना चाहिए। आगे है नई दुनिया, तब ही खुशी होगी। अब बाकी शडपंथ (बहुत समीप, किनारे) पर हैं। कहते हैं ना – अभी तो अपने देश के झाड़ देखने में आते हैं। आवाज़ करो तो झट वह सुनेंगे। शडपंथ अर्थात् बिल्कुल सामने हैं। तुम याद करते हो और देवतायें आ जाते हैं। आगे थोड़ेही आते थे। सूक्ष्मवतन में ससुरघर वाले आते थे क्या? अब तो पियरघर और ससुरघर वाले जाकर मिलते हैं। फिर भी बच्चे चलते-चलते भूल जाते हैं। बुद्धियोग पिछाड़ी में हट जाता है। बाप कहते हैं तुम सबका यह अन्तिम जन्म है। तुम्हें पीछे नहीं हटना है। अब पार होना है। इस तरफ से उस तरफ जाना है। मौत भी नज़दीक होता जाता है। बाकी सिर्फ कदम भरना है, नांव किनारे आती है तो उस तरफ कदम उठाना पड़ता है ना। तुम बच्चों को खड़ा होना है किनारे पर। तुम्हारी बुद्धि में है आत्मायें जाती हैं अपने स्वीट होम। यह याद रहने से भी खुशी तुमको अचल-अडोल बना देगी। यही विचार सागर मंथन करते रहना है। यह है बुद्धि की बात। हम आत्मा जा रही हैं। अब बाकी नज़दीक शडपंथ पर हैं। बाकी थोड़ा समय है। इसको ही याद की यात्रा कहा जाता है। यह भी भूल जाते हैं। चार्ट लिखना भी भूल जाते हैं। अपने दिल पर हाथ रखकर देखो – बाबा जो कहते हैं कि अपने को ऐसे समझो – हम नज़दीक शडपंथ पर खड़े हैं, ऐसी अवस्था हमारी है? बुद्धि में एक बाबा ही याद हो। बाबा याद की यात्रा भिन्न-भिन्न प्रकार से सिखलाते रहते हैं। इस याद की यात्रा में ही मस्त रहना है। बस अब हमको जाना है। यहाँ हैं सब झूठे संबंध। सच्चा सतयुग का सम्बन्ध है। अपने को देखो हम कहाँ खड़े हैं? सतयुग से लेकर बुद्धि में यह चक्र याद करो। तुम स्वदर्शन चक्रधारी हो ना। सतयुग से लेकर चक्र लगाए आकर किनारे पर खड़े हुए हो। शडपंथ हुआ ना। कई तो अपना टाइम बहुत व्यर्थ गँवाते रहते हैं। 5-10 मिनट भी मुश्किल याद में रहते होंगे। स्वदर्शन चक्रधारी तो सारा दिन बनना चाहिए। ऐसे तो है नहीं। बाबा भिन्न-भिन्न तरीके से समझाते हैं। आत्मा की ही बात है। तुम्हारी बुद्धि में चक्र फिरता रहता है। बुद्धि में यह याद क्यों नहीं रहनी चाहिए। अभी हम किनारे पर खड़े हैं। यह किनारा बुद्धि में क्यों नहीं याद रहता है, जबकि जानते हो हम पुरुषोत्तम बन रहे हैं तो जाकर किनारे पर खड़े रहो। जूँ मुआफिक चलते ही रहो। क्यों नहीं यह प्रैक्टिस करते हो? क्यों नहीं चक्र बुद्धि में आता है? यह स्वदर्शन चक्र है ना। बाबा शुरू से लेकर सारा चक्र समझाते रहते हैं। तुम्हारी बुद्धि सारा चक्र लगाए, आकर किनारे पर खड़ी रहनी चाहिए, और कोई भी बाहर का वातावरण झंझट न रहे। दिन-प्रतिदिन तुम बच्चों को साइलेन्स में ही जाना है। टाइम वेस्ट नहीं गँवाना है। पुरानी दुनिया को छोड़ नये सम्बन्ध से अपना बुद्धि का योग लगाओ। योग नहीं लगायेंगे तो पाप कैसे कटेंगे? तुम जानते हो यह दुनिया ही खत्म होनी है, इनका मॉडल कितना छोटा है। 5 हज़ार वर्ष की दुनिया है। अजमेर में स्वर्ग का मॉडल है परन्तु किसको स्वर्ग याद आयेगा क्या? वह क्या जाने स्वर्ग से। समझते हैं स्वर्ग तो 40 हज़ार वर्ष के बाद आयेगा। बाप तुम बच्चों को बैठ समझाते हैं इस दुनिया में कामकाज करते बुद्धि में यह याद रखो कि यह दुनिया तो खत्म होने वाली है। अब जाना है, हम पिछाड़ी में खड़े हैं। कदम-कदम जूँ मिसल चलता है। मंजिल कितनी बड़ी है। बाप तो मंजिल को जानते हैं ना। बाप के साथ दादा भी इकट्ठा है। वह समझाते हैं तो क्या यह नहीं समझा सकते। यह भी सुनते तो हैं ना। क्या यह ऐसे-ऐसे विचार सागर मंथन नहीं करता होगा? बाप तुमको विचार सागर मंथन करने की प्वाइंट्स सुनाते रहते हैं। ऐसे नहीं कि बाबा बहुत पिछाड़ी में है। अरे, यह तो दुम लटका हुआ है फिर पिछाड़ी में कैसे होगा। यह सब गुह्य-गुह्य बातें धारण करनी है। ग़फलत छोड़ देनी है। बाबा के पास 2-2 वर्ष के बाद आते हैं। क्या यह याद रहता होगा कि हम नज़दीक किनारे पर खड़े हैं? अभी जाना है। ऐसी अवस्था हो जाए तो बाकी क्या चाहिए? बाबा ने यह भी समझाया है – डबल सिरताज…… यह सिर्फ नाम है, बाकी लाइट का ताज कोई वहाँ रहता नहीं है। यह तो पवित्रता की निशानी है। जो भी धर्म स्थापक हैं, उनके चित्रों में लाइट जरूर दिखाते हैं क्योंकि वह वाइसलेस सतोप्रधान हैं फिर रजो तमो में आते हैं। तुम बच्चों को नॉलेज मिलती है, उसमें मस्त रहना चाहिए। भल तुम हो इस दुनिया में परन्तु बुद्धि का योग वहाँ लगा रहे। इनसे भी तोड़ तो निभाना है, जो इस कुल के होंगे वह निकल आयेंगे। सैपलिंग लगना है। आदि सनातन देवी-देवता धर्म वाले जो होंगे वह जरूर आगे-पीछे आयेंगे। पिछाड़ी में आने वाले भी आगे वालों से तीखे जायेंगे। यह पिछाड़ी तक होता रहेगा। वह पुरानों से तीखे कदम बढ़ायेंगे। सारा इम्तहान है याद की यात्रा का। भल देरी से आये हैं, याद की यात्रा में लग जाएं और सब धंधाधोरी छोड़ इस यात्रा में बैठ जायें, भोजन तो खाना ही है। अच्छी रीति याद में रहें तो इस खुशी जैसी खुराक नहीं। यही तात लगी रहेगी – अभी हम जाते हैं। 21 जन्मों का राज्य-भाग्य मिलता है। लॉटरी मिलने वाले को खुशी का पारा चढ़ जाता है ना। तुमको बहुत मेहनत करनी है। इसको ही अन्तिम अमूल्य जीवन कहा जाता है। याद की यात्रा में बहुत मज़ा है। हनूमान भी पुरुषार्थ करते-करते स्थेरियम बना ना। भंभोर को आग लगी, रावण का राज्य जल गया। यह एक कहानी बना दी है। बाप यथार्थ बात बैठ समझाते हैं। रावण राज्य खलास हो जायेगा। स्थेरियम बुद्धि इसको कहा जाता है। बस अब शडपंथ है, हम जा रहे हैं। इस याद में रहने का पुरुषार्थ करो तब खुशी का पारा चढ़ेगा, आयु भी योगबल से बढ़ती है। तुम अभी दैवीगुण धारण करते हो फिर वह आधाकल्प चलती है। इस एक जन्म में तुम इतना पुरुषार्थ करते हो, जो तुम जाकर यह लक्ष्मी-नारायण बनते हो। तो कितना पुरुषार्थ करना चाहिए। इसमें ग़फलत वा टाइम वेस्ट नहीं करना चाहिए, जो करेगा सो पायेगा। बाप शिक्षा देते रहते हैं। तुम समझते हो – कल्प-कल्प हम विश्व के मालिक बनते हैं, इतने थोड़े टाइम में कमाल कर देते हैं। सारी दुनिया को चेंज कर देते हैं। बाप के लिए कोई बड़ी बात नहीं। कल्प-कल्प करते हैं। बाप समझाते हैं – चलते-फिरते, खाते-पीते अपना बुद्धियोग बाप से लगाओ। यह गुप्त बात बाप ही बच्चों को बैठ समझाते हैं। अपनी अवस्था को अच्छी रीति जमाते रहो। नहीं तो ऊंच पद नहीं पायेंगे। तुम बच्चे नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार मेहनत करते हो। समझते हो अभी तो हम किनारे पर खड़े हैं। फिर पिछाड़ी में हम क्यों देखें? आगे कदम बढ़ते रहते हैं। इसमें अन्तर्मुखता बहुत चाहिए, इसलिए कछुए का भी मिसाल है। यह मिसाल आदि सब तुम्हारे लिए हैं। संन्यासी तो हैं ही हठयोगी, वह तो राजयोग सिखला न सकें। वो लोग सुनते हैं तो समझते हैं यह लोग हमारी इनसल्ट करते हैं इसलिए यह भी युक्ति से लिखना है। बाप बिगर राजयोग कोई सिखला न सके। इनडायरेक्ट बोला जाता है – तो ख्याल न हो। युक्ति से चलना होता है ना, जो सर्प भी मरे लाठी भी न टूटे। कुटुम्ब परिवार आदि सबसे प्रीत रखो परन्तु बुद्धि का योग बाप से लगाना है। तुम जानते हो हम अभी एक की मत पर हैं। यह है देवता बनने की मत, इसको ही अद्वेत मत कहा जाता है। बच्चों को देवता बनना है। कितना बार तुम बने हो? अनेक बार। अभी तुम संगमयुग पर खड़े हो। यह अन्तिम जन्म है। अब तो जाना है। पिछाड़ी में क्या देखना है। देखते हुए फिर भी अपनी अडोलता में तुम खड़े रहो। मंजिल को भूलना नहीं है। तुम ही महावीर हो जो माया पर जीत पाते हो। अभी तुम समझते हो – हार और जीत का यह चक्र फिरता रहता है। कितना वन्डरफुल ज्ञान है बाबा का। यह पता था क्या कि अपने को बिन्दी समझना है, इतनी छोटी सी बिन्दी में सारा पार्ट नूंधा हुआ है जो चक्र फिरता रहता है। बहुत वन्डरफुल है। वन्डर कह छोड़ना ही पड़ता है। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) पीछे मुड़कर नहीं देखना है। किसी भी बात में ठहर नहीं जाना है। एक बाप की तरफ देखते हुए अपनी अवस्था एकरस रखनी है।

2) बुद्धि में याद रखना है कि अभी हम किनारे पर खड़े हैं। घर जाना है, ग़फलत छोड़ देनी है। अपनी अवस्था जमाने की गुप्त मेहनत करनी है।

वरदान:- सर्व के दिल का प्यार प्राप्त करने वाले न्यारे, प्यारे, नि:संकल्प भव
जिन बच्चों में न्यारे और प्यारे रहने का गुण वा निस्संकल्प रहने की विशेषता है अर्थात् जिन्हें यह वरदान प्राप्त है वे सर्व के प्रिय बन जाते हैं क्योंकि न्यारे पन से सबके दिल का प्यार स्वत:प्राप्त होता है। वे अपनी शक्तिशाली निस्संकल्प स्थिति वा श्रेष्ठ कर्म द्वारा अनेकों की सेवा के निमित्त बनते हैं इसलिए स्वयं भी सन्तुष्ट रहते और दूसरों का भी कल्याण करते हैं। उन्हें हर कार्य में सफलता स्वत:प्राप्त होती है।
स्लोगन:- एक “बाबा”शब्द ही सर्व खजानों की चाबी है – इस चाबी को सदा सम्भालकर रखो।

अव्यक्त इशारे – अशरीरी व विदेही स्थिति का अभ्यास बढ़ाओ

एक सेकेण्ड में चोले से अलग तभी हो सकेंगे जब किसी भी संस्कारों की टाइटनेस नहीं होगी। जैसे कोई भी चीज़ अगर चिपकी हुई होती है तो उनको खोलना मुश्किल होता है। हल्के होने से सहज ही अलग हो जाते हैं। वैसे ही अगर अपने संस्कारों में ज़रा भी इज़ीपन नहीं होगा तो फिर अशरीरीपन का अनुभव कर नहीं सकेंगे इसलिए इज़ी और एलर्ट रहो।

“मीठे बच्चे – तुम अभी बिल्कुल शडपंथ (किनारे) पर खड़े हो, तुम्हें अब इस पार से उस पार जाना है, घर जाने की तैयारी करनी है”


प्रश्नोत्तर (Questions & Answers)

प्रश्न 1:
कौन-सी एक बात याद रखो तो अवस्था अचल-अडोल बन जायेगी?
उत्तर:
“पास्ट इज़ पास्ट” — बीती बातों का चिंतन नहीं करना है। सदा एक शिवबाबा की ओर दृष्टि रखो, तब अवस्था अचल-अडोल हो जाएगी। तुमने अब कलियुग की हद छोड़ दी है, इसलिए पिछाड़ी की ओर बुद्धि नहीं जानी चाहिए।


प्रश्न 2:
अभी हम “शडपंथ” पर खड़े हैं, इसका अर्थ क्या है?
उत्तर:
“शडपंथ” का अर्थ है — बिल्कुल किनारे पर पहुँचना। जैसे नाव किनारे लगने वाली हो, वैसे ही हम इस पुरानी दुनिया के अंत और नई दुनिया की शुरुआत के बिल्कुल समीप हैं। अब सिर्फ एक कदम उठाना है — इस पार से उस पार, अपने स्वीट होम (परमधाम) की ओर।


प्रश्न 3:
बाबा बच्चों को “पीछे न देखने” की शिक्षा क्यों देते हैं?
उत्तर:
क्योंकि जो पीछे देखता है, वह रुक जाता है। कलियुग की पुरानी दुनिया में मोह रखने से बुद्धि का योग बाप से टूट जाता है। इसलिए बाबा कहते हैं — अब आगे बढ़ो, पीछे मत देखो। पुरानी दुनिया समाप्त हो रही है, नई दुनिया सामने है।


प्रश्न 4:
पुरानी दुनिया से ममता निकालने का अर्थ क्या है?
उत्तर:
ममता निकालना यानी यह समझना कि यह सब झूठे, अस्थायी संबंध हैं। सच्चा संबंध केवल एक ही है — परमपिता परमात्मा से। जब बुद्धि पुरानी दुनिया से हटकर बाबा से जुड़ती है, तभी हम सच्चे अर्थों में “घर वापसी” की तैयारी करते हैं।


प्रश्न 5:
स्वदर्शन चक्रधारी बनना क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
क्योंकि यह हमें स्मृति में रखता है कि हम आत्मा चक्र लगाते हुए अब कलियुग के अंत तक पहुँच चुके हैं। यह स्मृति हमें स्थिर रखती है और समय की नज़दीकी का एहसास दिलाती है — कि अब बस घर जाना है।


प्रश्न 6:
“याद की यात्रा” में मस्त रहने का क्या लाभ है?
उत्तर:
याद की यात्रा में रहने से आत्मा हल्की, खुश और अचल बनती है। पाप कटते हैं, आयु बढ़ती है, और सदा परम आनंद की अनुभूति होती है। यही यात्रा आत्मा को घर तक पहुँचा देती है।


प्रश्न 7:
बापदादा “कछुए के उदाहरण” से क्या सिखाना चाहते हैं?
उत्तर:
कछुआ जब चाहें, अपने अंग भीतर खींच लेता है। वैसे ही हमें भी अंतर्मुख बनना है — बाहरी परिस्थितियों से प्रभावित न होकर भीतर की शान्ति में स्थित रहना है। यही अडोलता की निशानी है।


प्रश्न 8:
“न्यारे, प्यारे, नि:संकल्प भव” वरदान का गूढ़ अर्थ क्या है?
उत्तर:
जो बच्चे न्यारे (अलग) और प्यारे (प्रेमयुक्त) रहते हैं, वे सबके दिलों के प्रिय बन जाते हैं। वे संकल्पों से मुक्त होकर, निश्चिंत रहते हैं और अपने श्रेष्ठ कर्मों से सबका कल्याण करते हैं। ऐसी आत्माएँ हर कार्य में स्वतः सफल होती हैं।


प्रश्न 9:
बाबा द्वारा कहा गया “एक बाबा शब्द ही सर्व खजानों की चाबी है” — इसका अर्थ क्या है?
उत्तर:
जब बुद्धि में “एक बाबा” ही याद रहता है, तो सभी खजाने — शान्ति, शक्ति, प्रेम, ज्ञान और सुख — स्वतः मिलते हैं। यह “एक बाबा” शब्द ही जीवन के सारे रहस्यों की कुंजी है।


प्रश्न 10:
अशरीरी स्थिति के अभ्यास के लिए क्या ज़रूरी है?
उत्तर:
अपने संस्कारों को हल्का बनाना। अगर किसी भी संस्कार में टाइटनेस या अहंकार है, तो अशरीरीपन का अनुभव नहीं हो सकता। जितना इज़ी और एलर्ट रहेंगे, उतना ही सहजता से देह से अलग होने का अनुभव होगा।


मुख्य धारणा सार:

  1. पीछे नहीं देखना है, किसी बात में ठहरना नहीं है। सदा एक बाप की ओर देखते हुए अवस्था को स्थिर रखना है।

  2. बुद्धि में याद रखना है कि अब हम किनारे पर हैं, घर जाना है। ग़फलत छोड़ देनी है और अडोल अवस्था की गुप्त मेहनत करनी है।


स्लोगन:

 “एक ‘बाबा’ शब्द ही सर्व खजानों की चाबी है — इस चाबी को सदा सम्भालकर रखो।”

डिस्क्लेमर (Disclaimer):यह वीडियो ब्रह्माकुमारीज़ संस्थान की आज की मुरली के अध्ययन पर आधारित आध्यात्मिक चिंतन है। इसका उद्देश्य किसी धर्म, व्यक्ति या विचारधारा की आलोचना नहीं है, बल्कि आत्मा की शुद्धि और ईश्वरीय ज्ञान का प्रसार करना है।

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