Questions & Answers (प्रश्नोत्तर):are given below
| 09-11-25 |
प्रात:मुरली
ओम् शान्ति
”अव्यक्त-बापदादा”
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रिवाइज: 30-11-07 मधुबन |
सत्यता और पवित्रता की शक्ति को स्वरूप में लाते बालक और मालिकपन का बैलेन्स रखो
आज सत बाप, सत शिक्षक, सतगुरू अपने चारों ओर के सत्यता स्वरूप, शक्ति स्वरूप बच्चों को देख रहे हैं क्योंकि सत्यता की शक्ति सर्वश्रेष्ठ है। इस सत्यता की शक्ति का आधार है – सम्पूर्ण पवित्रता। मन-वचन-कर्म, सम्बन्ध-सम्पर्क, स्वप्न में भी अपवित्रता का नाम निशान न हो। ऐसी पवित्रता का प्रत्यक्ष स्वरूप क्या दिखाई देता? ऐसी पवित्र आत्मा के चलन और चेहरे में स्पष्ट दिव्यता दिखाई देती है। उनके नयनों में रूहानी चमक, चेहरे में सदा हर्षितमुखता और चलन में हर कदम में बाप समान कर्मयोगी। ऐसे सत्यवादी सत बाप द्वारा इस समय आप सभी बन रहे हो। दुनिया में भी कई अपने को सत्यवादी कहते हैं, सच भी बोलते हैं लेकिन सम्पूर्ण पवित्रता ही सच्ची सत्यता की शक्ति है। जो इस समय इस संगमयुग में आप सभी बन रहे हो। इस संगमयुग की श्रेष्ठ प्राप्ति है – सत्यता की शक्ति, पवित्रता की शक्ति। जिसकी प्राप्ति सतयुग में आप सभी ब्राह्मण सो देवता बन आत्मा और शरीर दोनों से पवित्र बनते हो। सारे सृष्टि चक्र में और कोई भी आत्मा और शरीर दोनों से पवित्र नहीं बनते। आत्मा से पवित्र बनते भी हैं लेकिन शरीर पवित्र नहीं मिलता। तो ऐसी सम्पूर्ण पवित्रता इस समय आप सब धारण कर रहे हो। फ़लक से कहते हो, याद है क्या फलक से कहते हो? याद करो। सभी दिल से कहते हैं, अनुभव से कहते हैं कि पवित्रता तो हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है, जन्म सिद्ध अधिकार सहज प्राप्त होता है क्योंकि पवित्रता वा सत्यता प्राप्त करने के लिए आप सभी ने पहले अपने सत स्वरूप आत्मा को जान लिया। अपने सत बाप, शिक्षक, सतगुरू को पहचान लिया। पहचान लिया और पा लिया। जब तक कोई अपने सत स्वरूप वा सत बाप को नहीं जानते तो सम्पूर्ण पवित्रता, सत्यता की शक्ति आ नहीं सकती।
तो आप सभी सत्यता और पवित्रता की शक्ति के अनुभवी है ना! हैं अनुभवी? अनुभवी हैं? वह लोग प्रयत्न करते हैं लेकिन यथार्थ रूप में न अपने स्वरूप, न सत बाप के यथार्थ स्वरूप को जान सकते। और आप सबने इस समय के अनुभव द्वारा पवित्रता को ऐसे सहज अपनाया जो इस समय के प्राप्ति की प्रालब्ध देवताओं की पवित्रता नेचुरल है और नेचर है। ऐसी नेचुरल नेचर का अनुभव आप ही प्राप्त करते हो। तो चेक करो कि पवित्रता वा सत्यता की शक्ति नेचुरल नेचर के रूप में बनी है? आप क्या समझते हो? जो समझते हैं कि पवित्रता तो हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है, वह हाथ उठाओ। जन्म सिद्ध अधिकार है कि मेहनत करनी पड़ती है? मेहनत करनी तो नहीं पड़ती है ना! सहज है ना! क्योंकि जन्म सिद्ध अधिकार तो सहज प्राप्त होता है। मेहनत नहीं करनी पड़ती। दुनिया वाले असम्भव समझते हैं और आपने असम्भव को सम्भव और सहज बना दिया है।
जो नये नये बच्चे आये हैं, जो पहले बारी आये हैं वह हाथ उठाओ। अच्छा जो नये नये बच्चे हैं, मुबारक हो नये पहली बार आने वालों को क्योंकि बापदादा कहते हैं कि भले लेट तो आये हो लेकिन टू लेट में नहीं आये हो। और नये बच्चों को बाप-दादा का वरदान है कि लास्ट वाला भी फास्ट पुरुषार्थ कर फर्स्ट डिवीजन में आ सकते हैं। फर्स्ट नम्बर नहीं लेकिन फर्स्ट डिवीजन में आ सकते हैं। तो नये बच्चों को इतनी हिम्मत है, हाथ उठाओ जो फर्स्ट आयेंगे। देखना टी.वी. में आपका हाथ दिखाई दे रहा है। अच्छा। हिम्मत वाले हैं। मुबारक हो हिम्मत की। और हिम्मत है तो बाप की तो मदद है ही लेकिन सर्व ब्राह्मण परिवार की भी शुभ भावना, शुभ कामना आप सबके साथ है इसलिए जो भी नये पहले बारी आये हैं उन सबके प्रति बापदादा और परिवार की तरफ से दुबारा पदमगुणा बधाई हो, बधाई हो, बधाई हो। आप सभी जो पहले आने वाले हैं उन्हों को भी खुशी हो रही है ना! बिछुड़ी हुई आत्मायें फिर से अपने परिवार में पहुंच गये हैं। तो बापदादा भी खुश हो रहे हैं और आप सब भी खुश हो रहे हैं।
बापदादा ने वतन में दादी के साथ एक रिजल्ट देखी। क्या रिजल्ट देखी? आप सभी जानते हो, मानते हो कि हम मालिक सो बालक हैं। हैं ना! मालिक भी हो, बालक भी हो। सभी हैं? हाथ उठाओ। सोच के उठाना, ऐसे नहीं। हिसाब लेंगे ना! अच्छा, हाथ नीचे करो। बापदादा ने देखा कि बालकपन का निश्चय और नशा यह तो सहज रहता है क्योंकि ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारी कहलाते हो तो बालक हो तभी तो ब्रह्माकुमार कुमारी कहलाते हो। और सारा दिन मेरा बाबा, मेरा बाबा यही स्मृति में लाते हो फिर भूल भी जाते हो लेकिन बीच-बीच में याद आता है। और सेवा में भी बाबा बाबा शब्द नेचुरल मुख से निकलता है। अगर बाबा शब्द नहीं निकलता तो ज्ञान का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। तो जो भी सेवा करते हो, भाषण करते हो, कोर्स कराते हो, भिन्न-भिन्न टॉपिक पर करते हो, सच्ची सेवा का प्रत्यक्ष स्वरूप वा प्रत्यक्ष प्रमाण यही है कि सुनने वाले भी अनुभव करें कि मैं भी बाबा का हूँ। उनके मुख से भी बाबा बाबा शब्द निकले। कोई ताकत है, यह नहीं। अच्छा है, यह नहीं। लेकिन मेरा बाबा अनुभव करें इसको कहेंगे सेवा का प्रत्यक्ष फल। तो बालकपन का नशा वा निश्चय फिर भी अच्छा रहता है। लेकिन मालिकपन का निश्चय और नशा नम्बरवार रहता है। बालकपन से मालिकपन का प्रैक्टिकल चलन और चेहरे से नशा कभी दिखाई देता है, कभी कम दिखाई देता है। वास्तव में आप डबल मालिक हो, एक – बाप के खजानों के मालिक हो। सभी मालिक हो ना खजानों के? और बाप ने सभी को एक जितना ही खजाना दिया है। कोई को लाख दिया हो, कोई को हजार दिया हो, ऐसा नहीं है। सभी को सब खजाने बेहद के दिये हैं क्योंकि बाप के पास बेहद के खजाने हैं, कम नहीं हैं। तो बाप-दादा ने सभी को सर्व खजाने दिये हैं और एक जैसे, एक जितने दिये हैं। और दूसरा – स्व राज्य के मालिक हो इसीलिए बाप-दादा फ़लक से कहते हैं कि मेरा एक एक बच्चा राजा बच्चा है। तो राजा बच्चे हो ना! प्रजा तो नहीं? राजयोगी हो कि प्रजा-योगी हो? राजयोगी हो ना! तो स्वराज्य के मालिक हो। लेकिन बापदादा ने दादी के साथ रिजल्ट देखा – तो जितना नशा बालकपन का रहता है, उतना मालिकपन का कम रहता है। क्यों? अगर स्वराज्य के मालिकपन का नशा सदा रहता तो यह जो बीच-बीच में समस्यायें वा विघ्न आते हैं वह आ नहीं सकते। वैसे देखा जाता है तो समस्या वा विघ्न आने का आधार विशेष मन है। मन ही हलचल में आता हैइसीलिए बापदादा का महामन्त्र भी है मनमनाभव। तनमनाभव, धनमनाभव नहीं है, मनमनाभव है। तो अगर स्वराज्य का मालिक है तो मन मालिक नहीं है। मन आपका कर्मचारी है, राजा नहीं है। राजा अर्थात् अधिकारी। अधीन वाले को राजा नहीं कहा जाता है। तो रिजल्ट में क्या देखा? कि मन का मालिक मैं राज्य अधिकारी मालिक हूँ, यह स्मृति, यह आत्म स्थिति कम रहती है, सदा नहीं रहती। है पहला पाठ, आप सबने पहला पाठ क्या किया था? मैं आत्मा हूँ, परमात्मा का पाठ दूसरा नम्बर है। लेकिन पहला पाठ मैं मालिक राजा इन कर्मेन्द्रियों का अधिकारी आत्मा हूँ, शक्तिशाली आत्मा हूँ। सर्वशक्तियां आत्मा के निजी गुण हैं। तो बापदादा ने देखा कि जो मैं हूँ, जैसा हूँ, उसको नेचुरल स्वरूप स्मृति में चलना, रहना, चेहरे से अनुभव होना, समस्या से किनारा होना, इसमें अभी और अटेन्शन चाहिए। सिर्फ मैं आत्मा नहीं, लेकिन कौन सी आत्मा हूँ, अगर यह स्मृति में रखो तो मास्टर सर्वशक्तिवान आत्मा के आगे समस्या वा विघ्न की कोई शक्ति नहीं जो आ सके। अभी भी रिजल्ट में कोई न कोई समस्या वा विघ्न दिखाई देता है। जानते हैं लेकिन चलन और चेहरे में निश्चय का प्रत्यक्ष स्वरूप रूहानी नशा वह और ही प्रत्यक्ष होना है। इसके लिए यह मालिकपन का नशा इसको बार-बार चेक करो। सेकण्ड की बात है चेक करना। कर्म करते, कोई भी कर्म आरम्भ करते हो, आरम्भ करने टाइम चेक करो – मालिकपन की अथॉरिटी से कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म कराने वाली कन्ट्रोलिंग पावर, रूलिंग पावर वाली आत्मा समझ कर्म शुरू किया या साधारण कर्म शुरू हुआ? स्मृति स्वरूप से कर्म आरम्भ करना और साधारण स्थिति से कर्म आरम्भ करना उसमें बहुत फ़र्क है। जैसे हद के मर्तबे वाले अपना कार्य करते हैं तो कार्य की सीट पर सेट होके फिर कार्य आरम्भ करते हैं, ऐसे अपने मालिकपन के स्वराज्य अधिकारी की सीट पर सेट होके फिर हर कार्य करो। इस मालिकपन के अथॉरिटी की चेकिंग को और बढ़ाना है। और इस मालिकपन के अथॉरिटी की निशानी है – सदा हर कार्य में डबल लाइट और खुशी की अनुभूति होगी और रिजल्ट सफलता सहज अनुभव होगी। अभी तक भी कहाँ-कहाँ अधिकारी के बजाए अधीन बन जाते हो। अधीनता की निशानी क्या दिखाई देती? जो बार-बार कहते हैं – मेरे संस्कार हैं, चाहते नहीं हैं लेकिन मेरे संस्कार हैं, मेरी नेचर है।
बापदादा ने पहले भी सुनाया कि जिस समय यह कहते हैं कि मेरे संस्कार हैं, मेरी नेचर है, क्या यह कमजोरी के संस्कार आपके संस्कार हैं? मेरे हैं? यह तो रावण के मध्य के संस्कार हैं, रावण की देन है। उसको मेरा कहना ही रांग है। आपके संस्कार तो जो बाप के संस्कार हैं वही संस्कार हैं। उस समय सोचो कि मेरा-मेरा कहने से ही वह अधिकारी बन गये हैं और आप अधीन बन जाते हैं। समान बाप जैसे बनना है तो वह मेरे संस्कार नहीं, जो बाप के संस्कार वह मेरे संस्कार हैं। बाप के संस्कार क्या हैं? विश्व कल्याणकारी, शुभ भावना, शुभ कामनाधारी। तो उस समय बाप के संस्कार सामने लाओ, लक्ष्य है बाप समान बनने का और लक्षण रहे हुए हैं रावण के। तो मिक्स हो जाते हैं, कुछ अच्छे बाप के संस्कार, कुछ वह मेरे पास्ट के संस्कार, दोनों मिक्स रहते हैं ना इसलिए खिटखिट होती रहती है। और संस्कार बनते कैसे हैं, वह तो सभी जानते हैं ना! मन और बुद्धि के संकल्प और कार्य से संस्कार बनते हैं। पहले मन संकल्प करता, बुद्धि सहयोग देती और अच्छे या बुरे संस्कार बन जाते।
तो बापदादा ने दादी के साथ-साथ रिजल्ट में देखा कि मालिकपन का नेचुरल और नेचर का नशा रहे वह बालकपन की भेंट में अभी भी कम है। इसलिए बापदादा देखते हैं कि समाधान करने के लिए फिर युद्ध करने लग पड़ते हैं। हैं ब्राह्मण लेकिन बीच-बीच में क्षत्रिय बन जाते हैं। तो क्षत्रिय नहीं बनना है। ब्राह्मण सो देवता बनना है। क्षत्रिय बनने वाले तो बहुत आने वाले हैं, वह पीछे आने वाले हैं आप तो अधिकारी आत्मायें हैं। तो सुना रिजल्ट। इसलिए बार-बार मैं कौन, यह स्मृति में लाओ। है ही, नहीं लेकिन स्मृति स्वरूप में लाओ। ठीक है ना। अच्छा। रिजल्ट भी सुनाई। अभी समस्या का नाम, विघ्न का नाम, हलचल का नाम, व्यर्थ संकल्प का नाम, व्यर्थ कर्म का नाम, व्यर्थ सम्बन्ध का नाम, व्यर्थ स्मृति का नाम समाप्त करो और कराओ। ठीक है ना, करेंगे? करेंगे तो दृढ़ संकल्प का हाथ उठाओ। यह हाथ उठाना तो कॉमन हो गया है इसलिए हाथ नहीं उठवाते हैं, मन में दृढ़ संकल्प का हाथ उठाओ। शरीर का हाथ नहीं, वह बहुत देख लिया है। जब सभी का मिलकर मन से दृढ़ संकल्प का हाथ उठेगा तब ही विश्व के कोने-कोने में सभी का खुशी से हाथ उठेगा – हमारा सुखदाता, शान्तिदाता बाप आ गया।
बाप को प्रत्यक्ष करने का बीड़ा उठाया है ना! उठाया है? पक्का? टीचर्स ने उठाया है? पाण्डवों ने उठाया है? पक्का। अच्छा डेट फिक्स की है। डेट नहीं फिक्स है? कितना टाइम चाहिए? एक वर्ष चाहिए, दो वर्ष चाहिए? कितना वर्ष चाहिए? बापदादा ने कहा था हर एक अपने पुरुषार्थ की यथा शक्ति प्रमाण अपनी नेचुरल चलने की या उड़ने की विधि समान अपनी डेट सम्पन्न बनने की खुद ही फिक्स करो। बापदादा तो कहेगा अब करो, लेकिन यथाशक्ति अपने पुरुषार्थ अनुसार अपनी डेट फिक्स करो और समय प्रति समय उसको चेक करो कि समय प्रमाण मन्सा की स्टेज, वाचा की स्टेज, सम्बन्ध-सम्पर्क की स्टेज में प्रोग्रेस हो रहा है? क्योंकि डेट फिक्स करने से स्वत: ही अटेन्शन जाता है।
बाकी सभी की तरफ से, चारों ओर की तरफ से सन्देश भी आये हैं। ईमेल भी आये हैं। तो बापदादा के पास तो ईमेल जब तक पहुंचे उसके पहले ही पहुंच जाता है, दिल के संकल्प का ईमेल बहुत रफ्तार का होता है। वह पहले पहुंच जाता है। तो जिन्होंने भी यादप्यार, समाचार अपने स्थिति का, अपनी सेवा का भेजा है, उन सबको बापदादा ने स्वीकार किया, यादप्यार सभी ने बहुत अच्छे उमंग-उत्साह से भी भेजी है। तो बापदादा उन सभी को चाहे विदेश़ चाहे देश सभी को रिटर्न में यादप्यार और दिल की दुआओं सहित प्यार और शक्ति की सकाश भी दे रहे हैं। अच्छा।
सब कुछ सुना। जैसे सुनना सहज लगता है ना! ऐसे ही सुनने से परे स्वीट साइलेन्स की स्थिति भी जब चाहो जितना समय चाहो उतना समय मालिक होके, पहले विशेष है मन के मालिक, इसीलिए कहा जाता है – मन जीते जगतजीत। तो अभी सुना, देखा, आत्मा राजा बन मन-बुद्धि-संस्कार को अपने कन्ट्रोल में कर सकते हो? मन-बुद्धि-संस्कार तीनों के मालिक बन ऑर्डर करो स्वीट साइलेन्स, तो अनुभव करो कि आर्डर करने से, अधिकारी बनने से तीनों ही आर्डर में रहते हैं? अभी-अभी अधिकारी की स्टेज पर स्थित हो जाओ। (बापदादा ने ड्रिल कराई) अच्छा।
चारों ओर के सदा स्वमानधारी, सत्यता के शक्ति स्वरूप, पवित्रता के सिद्धि स्वरूप, सदा अचल अडोल स्थिति के अनुभवी स्व परिवर्तक और विश्व परिवर्तक, सदा अधिकारी स्थिति द्वारा सर्व आत्माओं को बाप द्वारा अधिकार दिलाने वाले चारों तरफ के बापदादा के लकी और लवली आत्माओं को परमात्म यादप्यार और दिल की दुआयें स्वीकार हो और बापदादा का मीठे मीठे बच्चों को नमस्ते।
| वरदान:- | स्वयं को स्वयं ही परिवर्तन कर विश्व के आधारमूर्त बनने वाले श्रेष्ठ पद के अधिकारी भव श्रेष्ठ पद पाने के लिए बापदादा की यही शिक्षा है कि बच्चे स्वयं को बदलो। स्वयं को बदलने के बजाए, परिस्थितियों को व अन्य आत्माओं का बदलने का सोचते हो या संकल्प आता है कि यह सैलवेशन मिले, सहयोग व सहारा मिले तो परिवर्तित हों – ऐसे किसी भी आधार पर परिवर्तन होने वाले की प्रालब्ध भी आधार पर ही रहेगी क्योंकि जितनों का आधार लेंगे उतना जमा का खाता शेयर्स में बंट जायेगा। इसलिए सदा लक्ष्य रखो कि स्वयं को परिवर्तन होना है। मैं स्वयं विश्व का आधारमूर्त हूँ। |
| स्लोगन:- | संगठन में उमंग-उत्साह और श्रेष्ठ संकल्प से सफलता हुई पड़ी है। |
अव्यक्त इशारे – अशरीरी व विदेही स्थिति का अभ्यास बढ़ाओ
जैसे कोई कमजोर होता है तो उनको शक्ति भरने के लिए ग्लूकोज़ चढ़ाते हैं, ऐसे जब अपने को शरीर से परे अशरीरी आत्मा समझते हो तो यह साक्षीपन की अवस्था शक्ति भरने का काम करती है और जितना समय साक्षी अवस्था की स्थिति रहती है, उतना ही बाप साथी भी याद रहता है अर्थात् साथ रहता है।
प्रश्न 1:सत्यता की शक्ति सर्वश्रेष्ठ क्यों कही गई है?
उत्तर:
सत्यता की शक्ति सर्वश्रेष्ठ इसलिए है क्योंकि इसका मूल आधार है — सम्पूर्ण पवित्रता। जब आत्मा मन, वचन, कर्म, सम्बन्ध और सम्पर्क में, यहाँ तक कि स्वप्न में भी अपवित्रता से रहित होती है, तब उसके चलन और चेहरे में दिव्यता दिखाई देती है। ऐसे पवित्र आत्मा के नेत्रों में रूहानी चमक और चेहरे पर सदा हर्षितमुखता होती है। यही सच्ची सत्यता की पहचान है।
प्रश्न 2:दुनियावाले भी तो सत्य बोलते हैं, फिर ब्राह्मण आत्माओं की सत्यता अलग क्यों कही गई है?
उत्तर:
दुनियावाले सच तो बोलते हैं, लेकिन उनमें पवित्रता नहीं होती। जबकि ब्राह्मण आत्माओं की सत्यता पवित्रता के साथ जुड़ी होती है। इसलिए यह सत्यता केवल शब्दों की नहीं, बल्कि जीवन के हर कर्म, भाव और संकल्प में झलकती है। सम्पूर्ण पवित्रता ही सच्ची सत्यता की शक्ति है।
प्रश्न 3:सत्यता और पवित्रता को “जन्मसिद्ध अधिकार” क्यों कहा गया है?
उत्तर:
क्योंकि जब आत्मा अपने सत् स्वरूप और सत् बाप को पहचान लेती है, तब पवित्रता और सत्यता सहज रूप से उसकी प्रकृति बन जाती है। फिर यह कोई मेहनत का विषय नहीं रहता, बल्कि नेचुरल नेचर बन जाता है। इसलिए इसे “जन्मसिद्ध अधिकार” कहा गया है।
प्रश्न 4:बापदादा ने नये बच्चों को क्या वरदान दिया?
उत्तर:
बापदादा ने कहा — “भले लेट आये हो, लेकिन टू लेट नहीं।”
नये बच्चे फास्ट पुरुषार्थ कर फर्स्ट डिवीजन में आ सकते हैं। बापदादा और सम्पूर्ण ब्राह्मण परिवार की शुभ भावना उनके साथ है, इसलिए उन्हें पदमगुणा बधाई दी गई।
प्रश्न 5:बालकपन और मालिकपन में क्या बैलेन्स रखना आवश्यक है?
उत्तर:
बालकपन का नशा “मेरा बाबा” स्मृति से सहज रहता है, लेकिन मालिकपन — यानी स्वराज्य अधिकारी आत्मा का नशा — कभी कम हो जाता है।
यदि सदा मालिकपन की अथॉरिटी रहे, तो मन कभी समस्या या विघ्न का दास नहीं बनेगा। इसलिए बापदादा ने कहा कि बालक भी बनो और मालिक भी बनो, तभी सम्पूर्णता आती है।
प्रश्न 6:स्वराज्य का मालिक बनना क्या अर्थ रखता है?
उत्तर:
स्वराज्य का मालिक बनना मतलब — मन, बुद्धि और संस्कारों का राजा बनना।
मन आपका कर्मचारी है, राजा नहीं।
जब आत्मा अपने मन-बुद्धि-संस्कार पर रूलिंग-पावर रखती है, तभी सच्चा राजयोगी कहा जाता है।
प्रश्न 7:अगर हम कहते हैं “मेरे संस्कार हैं”, तो इसमें क्या गलती है?
उत्तर:
जब हम कहते हैं “मेरे संस्कार हैं”, तो हम रावण की देन को अपना मान लेते हैं।
हमारे असली संस्कार तो बाप के संस्कार हैं — शुभ भावना, शुभ कामना, विश्व-कल्याणकारी वृत्ति।
इसलिए “मेरे” कहना भूल है; कहना चाहिए “बाप के संस्कार मेरे संस्कार हैं।”
प्रश्न 8:बापदादा ने रिजल्ट में कौन-सी कमी देखी?
उत्तर:
बापदादा ने देखा कि बच्चों में बालकपन का नशा तो है, लेकिन मालिकपन का नशा सदा नहीं रहता।
अगर मालिकपन सदा रहता, तो कोई समस्या या विघ्न टिक नहीं सकता था।
अभी भी बच्चे “मन के अधीन” होकर क्षत्रिय बन जाते हैं, जबकि उन्हें “राजयोगी ब्राह्मण” बन रहना चाहिए।
प्रश्न 9:मालिकपन की अथॉरिटी की पहचान क्या है?
उत्तर:
जब आत्मा मालिकपन की अथॉरिटी से कर्म करती है, तब हर कार्य में डबल-लाइट और खुशी की अनुभूति होती है, और रिजल्ट सहज सफलता में बदल जाता है।
अगर अधीनता रहती है तो बार-बार कहते हैं — “मेरे संस्कार हैं, मेरी नेचर है।” यह अधीनता की निशानी है।
प्रश्न 10:समस्याओं से सदा मुक्त रहने का रहस्य क्या है?
उत्तर:
स्मृति स्वरूप बनो — “मैं मास्टर सर्वशक्तिवान आत्मा हूँ।”
जब आत्मा अपने शक्तिशाली स्वरूप में रहती है, तो कोई विघ्न की शक्ति पास नहीं आ सकती।
मन जीते जगतजीत — मन पर जीत ही सभी समस्याओं से मुक्ति का आधार है।
प्रश्न 11:बापदादा ने क्या सलाह दी कि हम अपनी सम्पूर्णता की डेट कैसे फिक्स करें?
उत्तर:
बापदादा ने कहा कि हर आत्मा अपनी पुरुषार्थ अनुसार खुद ही अपनी सम्पूर्णता की डेट फिक्स करे।
क्योंकि जब डेट फिक्स होती है, तो स्वतः अटेन्शन बढ़ जाता है और हर क्षेत्र — मन्सा, वाचा, सम्बन्ध और सम्पर्क — में प्रगति होती है।
प्रश्न 12:आज का वरदान क्या है?
उत्तर:
“स्वयं को स्वयं ही परिवर्तन कर विश्व के आधारमूर्त बनने वाले श्रेष्ठ पद के अधिकारी भव।”
जो आत्मा स्वयं को बदलती है, वही विश्व परिवर्तन का आधार बनती है।
परिस्थिति या दूसरों पर निर्भर परिवर्तन अल्पकालिक होता है; इसलिए बापदादा की शिक्षा है — स्वयं को बदलो, वही श्रेष्ठ पद की प्राप्ति है।
प्रश्न 13:आज का स्लोगन क्या सिखाता है?
उत्तर:
“संगठन में उमंग-उत्साह और श्रेष्ठ संकल्प से सफलता हुई पड़ी है।”
अर्थात् जब हम मिलकर उमंग, उत्साह और श्रेष्ठ संकल्पों से आगे बढ़ते हैं, तब सफलता स्वतः मिलती है — क्योंकि संगठित संकल्पों की शक्ति अजेय होती है।
प्रश्न 14:अव्यक्त इशारा क्या है?
उत्तर:
“अशरीरी व विदेही स्थिति का अभ्यास बढ़ाओ।”
जैसे शरीर को शक्ति देने के लिए ग्लूकोज़ दिया जाता है, वैसे ही आत्मा जब अशरीरी बनती है, तब साक्षी अवस्था से शक्ति भरती है और बाप साथी बन रहता है।
निष्कर्ष:
सत्यता और पवित्रता की शक्ति को स्वरूप में लाना मतलब —
बालकपन की निश्चिन्तता और मालिकपन की अथॉरिटी — दोनों का संतुलन।
जब आत्मा अपने सत् स्वरूप में स्थित रहती है, तब वही विश्व का आधारमूर्त बन जाती है।
डिस्क्लेमर (Disclaimer):यह वीडियो ब्रह्माकुमारीज़ की अव्यक्त मुरली (दिनांक अनुसार) पर आधारित आध्यात्मिक अध्ययन हेतु बनाया गया है। इसका उद्देश्य केवल आत्मिक जागृति, आत्म-साक्षात्कार और ईश्वरीय ज्ञान के प्रचार हेतु है। यह किसी धार्मिक बहस या मतभेद का विषय नहीं है।

