Avyakta Murli”24-01-1970(2)

Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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ब्राह्मणों का मुख्य धंधा – समर्पण करना और कराना – २४-०१-१९७०

तो एक बोर्ड लगा देते हैं |  आप भी ऐसा बोर्ड लगाओ | तो माया लौट जाएगी |  आने का स्थान ही नहीं मिलेगा |  कुर्सी खाली होती है तो कोई बैठ जाता है |

माताओं के लिए तो बहुत सहज है सिर्फ़ बाप को याद करना, बस |  बाप को याद करने से ज्ञान आपे ही इमर्ज हो जाता है |  बाप को जो याद करता है उनको हर कार्य में मदद बाप की मिल जाती है |  याद की इतनी शक्ति है जो अनुभव यहाँ पाते हो वह वहाँ भी स्मृति में रखेंगे तो अविनाशी बन जायेंगे |  बुद्धि में बार-बार यही स्मृति रखो हम परमधाम निवासी हैं |  कर्त्तव्य अर्थ यहाँ आये हैं |  फिर वापस जाना है |  जितना बुद्धि को इन बातों में बिजी रखेंगे तो फिर भटकेंगे नहीं |  ज्ञान भी किसको युक्ति से सुनना है |  सीधा ज्ञान सुनाने से घबरा जायेंगे |  पहले तो ईश्वरीय स्नेह में खींचना है |  शरीरधारी को चाहिए धन, बाप को चाहिए मन |  तो मन को जहा लगाना है वहाँ हो लगा रहे और कहाँ प्रयोग न हो |  योगयुक्त अव्यक्त स्थिति में रह दो बोल बोलना भी भाषण करना ही है |  एक घंटे के भाषण का सार दो शब्द में सुना सकते हो |

दिन प्रतिदिन कदम आगे समझते हो ?  ऐसे भी नहीं सोचना कि अभी समय पड़ा है, पुरुषार्थ कर लेंगे |  लेकिन समय के पहले समाप्ति करके और इस स्थिति का अनुभा प्राप्त करना है |  अगर समय आने पर इस स्थिति का अनुभव करेंगे तो समय के साथ स्थिति भी बदल जाएगी |  समय समाप्त तो फिर अव्यक्त स्थिति का अनुभव भी समाप्त हो, दूसरा पार्ट आ जायेगा |  इसलिए पहले से ही अव्यक्त स्थिति का अनुभव करना है |  कुमार्यां दौड़ने में तेज़ होती हैं |  तो इस ईश्वरीय दौड़ में भी तेज़ जाना है |  फर्स्ट आने वाले ही फर्स्ट के नजदीक आयेंगे |  जैसे साकार फर्स्ट गया ना |  लक्ष्य तो ऊँचा रखना है |  लक्ष्य सम्पूर है तो पुरुषार्थ भी सम्पूर्ण करना है, तब ही सम्पूर्ण पद मिल सकता |  सम्पूर्ण पुरुषार्थ अर्थात् सभी बातों में अपने को संपन्न बनाना |  बड़ी बात तो है नहीं |  जानने के बाद याद करना मुश्किल होता है क्या ?  जानने को ही नॉलेज कहा जाता है |  अगर नॉलेज, लाइट और मिघ्त नहीं है तो वह नॉलेज ही किस काम की, उनको जानना नहीं कहा जायेगा |  यहीं जानना और करना एक है |  औरों में जानने और करने में फर्क होता है |  नॉलेज वह चीज़ है जो वह रूप बना देती है |  ईश्वरीय नॉलेज क्या रूप बनाएगी ?  ईश्वरीय स्थिति |  तो ईश्वरीय नॉलेज लेनेवाले ईश्वरीय रूप में क्यों नहीं आएंगे |  थ्योरी और चीज़ है |  जानना अर्थात् बुद्धि में धारणा करना और चीज़ है |  धारणा से कर्म ऑटोमेटिकली हो जाता है |  धारणा का अर्थ ही है उस बात को बुद्धि में समाना |  जब बुद्धि में समां जाते हैं तो फिर बुद्धि के डायरेक्शन अनुसार कर्मेन्द्रियाँ भी वह करती हैं |  नॉलेजफुल बाप के हम बच्चे हैं और ईश्वरीय नॉलेज की लाइट मिघ्त हमारे साथ है |  ऐसे समझ कर चलना है |  नॉलेजक सिर्फ सुनना नहीं लेकिन समाना है |  भोजन खाना और चीज़ है हज़म करना और चीज़ है |  खाने से शक्ति नहीं आएगी |  हज़म करने से शक्ति कहाँ से आ जाती है, खाए हुए भोजन को हज़म करने से ही शक्ति रूप बनता है |  शक्तिवान बाप के बच्चे और कुछ कर न सकें, यह हो सकता है ?  नहीं तो बाप के नाम को भी शरमाते हैं |  सदैव यही एम रखनी चाहिए हम ऐसा कर्म करें जो मिसाल बन दिखाएं |  इंतज़ार में नहीं रहना है लेकिन एग्जाम्पल बनना है |  बाप एग्जाम्पल बना ना |

अपने घर में आये हो यह समझते हो ?  जब कोई भटका हुआ अपने घर पहुँच जाता है तो जैसे विश्राम मिल जाता है |  तो यहाँ विश्राम की भासना आती है |  स्थान मिलने से विश्राम की स्थिति हो जाती है |  सदैव विश्राम स्थिति में समझो |  भाल कार्य अर्थ जाओ तो भी यह स्थिति का अनुभव साथ ले जाना |  इसको साथ रखेंगे तो फिर कितना भी कार्य करते हुए स्थिति विश्राम की रहेगी |  विश्राम अवस्था में शांति सुख का अनुभव होता है |  अपने में जब शक्ति आ जाती है तो फिर वातावरण का भी असर अपने पर नहीं होता, लेकिन हमारा असर वातावरण पर रहे |  सर्वशक्तिवान वातावरण है या बाप ?  जबकि सर्वशक्तिवान बाप के बच्चे हो तो फिर वातावरण आप से शक्तिशाली क्यों ?  अपनी शक्ति भूलने से ही वातावरण का असर होता है |  जैसे डॉक्टर कोई भी बीमारी वाले पेशेंट के आगे जायेगा तो भी उनको असर नहीं होगा |  वैसे ही अपनी स्मृति रखकर सर्विस करनी है |  यह अपने में शक्ति रखो कि हमें वातावरण को बनाना है ना कि वातावरण हमको बनावे |  युगल होते हुए भी अकेली आत्मा की स्मृति में रहते हो ?  आत्मा अकेली है ना |  अगर आत्मा को सम्बन्ध में आना भी है तो किसके ?  सर्व सम्बन्ध किससे हैं ?  एक से |  तो एक से दो भी बनना है बाप और बच्चे |  तीसरा कोई सम्बन्ध नहीं |  सर्व सम्बन्ध को एक से जोड़ना है |  एक से दूसरा शिवबाबा |  इस स्थिति को ही उंच स्थिति कहा जाता है |  तीसरी कोई भी चीज़ देखते हुए देखने में न आये |  अगर देखना है तो भी एक को, बोलना भी उनसे |  ऐसी स्थिति रहने से ही माया जीत बनेंगे |  जो माया जीत बनते हैं वह जगतजीत बन जाते हैं |  यह शुद्ध स्नेह सारे कल्प में एक ही बार मिलता है |  ऐसे स्नेह को हम पाते हैं यह सदैव याद रखना है |  जो कोई को प्राप्त नहीं हो सकता वह हमें प्राप्त हुआ है |  इसी नशे और निश्चय में रहना है |  दिल्ली में नाम बाला होना, भारत में नाम बाला होना है |

इतनी ज़िम्मेवारी दिल्ली वालों को उठानी है |  समय कम है सर्विस बहुत है |  इसी रफ़्तार से जब सर्विस करेंगे तब ही सभी को सन्देश पहुंचेगा |  कोई को धनवान बनाने के लिए मौका देना भी महादान है, महादान का फल भी इतना मिलता है |  बाप को सदैव साथ रखेंगे तो माया देखेगी इसके साथ सर्वशक्तिवान बाप है तो वह दूर से ही भाग जाएगी |  अकेला देखती है तब हिम्मत रखती है |  शिकार करने जब जाते हैं तो कोई भी जानवर वार न करें इसके लिए आ जलाते हैं |  वैसे ही याद की अग्नि जली हुई होगी तो माया आ नहीं सकेगी |  यह लगन की अग्नि बुझनी नहीं चाहिए |  साथ रखने से शक्ति आपे ही आ जाएगी |  फिर विजय ही विजय है |

बापदादा को बुज़ुर्ग माताएं सबसे प्यारी लगती हैं |  क्योंकि बहुत दुखों से थकी हुई हैं |  तो थके हुए बच्चों पर बाप का स्नेह रहता है |  इतना स्नेह बच्चों को भी रखना है |  घर बैठे भी याद की यात्रा में पास हो गए तो भी आगे बढ़ सकते हो |  जितना याद की यात्रा में सफल होंगे तो मन की भावनाएं भी शुद्ध हो जायेंगी |  सभी सर्विस में सहयोगी हो रहते हो ?  जितना दुश्रों को सन्देश देते हैं उतना अपने को भी सम्पूर्णता का सन्देश मिलता है |  क्योंकि दूसरों को समझाने से अपने को सम्पूर्ण बनाने का न चाहते हुए भी ध्यान जाता हैं |  यह सर्विस करना भी अपने को सम्पूर्ण बनाने का मीठा बंधन है |  इस बंधन में जितना अपने को बाँध लेंगे उतना ही सर्व संबंधों से मुक्त होते जायेंगे |  सर्व बंधनों से मुक्त होने का साधन क्या हुआ ?  एक बंधन में अपने को बांधना |  यह मीठा बंधन भी अब का ही है |  फिर कभी नहीं होता |  सभी इस ईश्वरीय बंधन में बंधी हुई आत्माएं हैं |  श्रेष्ठ कर्म करने से ही श्रेष्ठ पद मिल सकता है और श्रेष्ठाचारी भी बन जाते हैं |  एक ही श्रेष्ठ कर्म से वर्मान भी बन जाता है और भविष्य भी बनता |  जिससे दोनों ही श्रेष्ठ बन जायें वह कर्म करना चाहिए |  अहमदाबाद को सभी से ज्यादा सर्विस करनी है क्योंकि अहमदाबाद सभी सेंटर्स का बीज रूप है |  बीज में ज्यादा शक्ति होती है |  खूब ललकार करो |  जो गहरी नींद में सोये हुए भी जाग उठें |  कुमारियाँ तो बहुत कमाल कर सकती हैं |  एक कुमारी में जितनी शक्ति है तो इतनी सर्विस में सफलता दिखानी चाहिए |  कुमारियाँ पुरुषार्थ में, सर्विस में, सभी से तेज़ जा सकती हैं |  शक्तियां सर्विस में आगे हैं वा पाण्डव ?  अपना यादगार है – हम कल्प पहले वाले पाण्डव हैं |  कितने बार पाण्डव बने हो जो अनगिनत बार होती है वह पक्की याद रहती है ना |  यह स्मृति रहेगी तो फिर कभी भी विस्मृति नहीं होगी |  कल्प पहले भी हम ही थे अब भी हम ही हैं यह नशा और निश्चय रखना है |  हम ही हक़दार हैं, किसके ?  उंच ते उंच बाप के |  यह याद रहने से फिर सदैव एकरस अवस्था रहेगी |  एक की याद में रहने से ही एकरस अवस्था होगी |

अव्यक्त में सर्विस कैसे होती है ?  यह अनुभव होता जाता है ?  अव्यक्त में सर्विस का साथ कैसे सदैव रहता है |  यह भी अनुभव होता है ?  जो वायदा किया है कि स्नेही आत्माओं के हर सेकंड साथ ही है |  ऐसे सदैव साथ का अनुभव होता है ?  सिर्फ रूप बदला है लेकिन कर्त्तव्य वाही चल रहा है |  जो भी स्नेही बच्चे हैं उन्हों के ऊपर छत्र रूप में जज़र आता है |  छत्रछाया के निचे सभी कार्य चल रहा है |  ऐसी भासना आती है |  व्यक्त से अव्यक्त, अव्यक्त से व्यक्त में आना यह सीढ़ी उतरना और चढ़ना जैसे आदत पद गयी है |  अभी-अभी वहां, अभी अभी यहाँ |  जिसकी ऐसी स्थिति हो जाती है, अभ्यास हो जाता है उसको यह व्यक्त देश भी जैसे अव्यक्त भासता है |  स्मृति और दृष्टि बदल जाती है |  सभी एवररेडी बनकर बठे हुए हो ?  कोई भी देह के हिसाब किताब से भी हल्का |  वतन में शुरू-शुरू में पक्षियों का खेल दिखलाते थे, पक्षियों को उड़ाते थे |  वैसे यह आत्मा भी पक्षी है जब चाहे तब उड़ सकती है |  वह तब हो सकता है जब अभ्यास हो |  जब खुद उड़ता पक्षी बनें तब औरों को भी एक सेकंड में उड़ा सकते हैं |  अभी तो समय लगता है |  अपरोक्ष रीति से वतन का अनुभव बताया |  अपरोक्ष रूप से कितना समय वतन में साथ रहते हो ?  जैसे इस वक्त जिसके साथ स्नेह होता है, वह कहाँ विदेश में भी है तो उनका मन ज्यादा उस तरफ़ रहता है |  जिस देश में वह होता है उस देश का वासी अपने को समझते हैं |  वैसे ही तुमको अब सूक्ष्मवतनवासी बनना है |  सूक्ष्मवतन को स्थूलवतन में इमर्ज करते हो वा खुद को सूक्ष्मवतन में साथ समझते हो ?  क्या अनुभव है ?  सूक्ष्मवतनवासी बाप को यहाँ इमर्ज करते हो वा अपने को भी सूक्ष्मवतनवासी बनाकर साथ रहते हो ?  बापदादा तो यही समझते हैं कि स्थूल वतन में रहते भी सूक्ष्मवतनवासी बन जाते, यहाँ जो भी बुलाते हो यह भी सूक्ष्मवतन के वातावरण में ही सूक्ष्म से सर्विस ले सकते हो |  अव्यक्त स्थिति में स्थित होकर मदद ले सकते हो |  व्यक्त रूप में अव्यक्त मदद मिल सकती है |  अभी ज्यादा समय अपने को फ़रिश्ते ही समझो |  फरिस्थों की दुनिया में रहने से बहुत ही हल्कापन अनुभव होगा जैसे कि सूक्ष्मवतन को ही स्थूलवतन में बसा दिया है |  स्थूल और सूक्ष्म में अंतर नहीं रहेगा |  तब सम्पूर्ण स्थिति में भी अंतर नहीं रहेगा |  यह व्यक्त देश जैसे अव्यक्त देश बन जायेगा |  सम्पूर्णता के समीप आ जायेंगे |  जैसे बापदादा व्यक्त में आते भी हैं तो भी अव्यक्त रूप के अव्यक्त देश के अव्यक्ति प्रवाह में रहते हैं |  वाही बच्चों को अनुभव कराने लिए आते हैं |  ऐसे आप सबहीं भी अपने अव्यक्त स्थिति का अनुभव औरों को कराओ |  जब अव्यक्त स्थिति की स्टेज सम्पूर्ण होगी तब ही अपने राज्य में साथ चलना होगा |  एक आँख में अव्यक्त सम्पूर्ण स्थिति दूसरी आँख में राज्य पद |  ऐसे ही स्पष्ट देखने में आएंगे जैसे साकार रूप में दिखाई पड़ता है |  बचपन रूप भी और सम्पूर्ण रूप भी |  बस यह बनकर फिर यह बनेंगे |  यह स्मृति रहती है |  भविष्य की रुपरेखा भी जैसे सम्पूर्ण देखने में आती है |  जितना-जितना फ़रिश्ते लाइफ के नज़दीक होंगे उतना-उतना राजपद को भी सामने देखेंगे |  दोनों ही सामने |  आजकल कई ऐसे होते हैं जिनको अपने पस्त की पूरी स्मृति रहती है |  तो यह भविष्य भी ऐसे ही स्मृति में रहे यह बनना है |  वह भविष के संस्कार इमर्ज होते रहेंगे  मर्ज नहीं |

ब्राह्मणों का मुख्य धंधा – समर्पण करना और कराना – २४-०१-१९७०

प्रश्न और उत्तर:

  1. प्रश्न: माया से बचने का सबसे प्रभावी उपाय क्या है?
    उत्तर: याद की अग्नि को सदैव जलाए रखना। माया को देखकर उसे अनुभव हो कि यह आत्मा सर्वशक्तिवान बाप के साथ है, जिससे वह दूर से ही लौट जाएगी।
  2. प्रश्न: माताओं के लिए याद की यात्रा क्यों सहज है?
    उत्तर: माताओं के लिए केवल बाप को याद करना है। बाप की याद से ज्ञान स्वतः इमर्ज हो जाता है, और हर कार्य में बाप की मदद प्राप्त होती है।
  3. प्रश्न: ईश्वरीय ज्ञान का सही अर्थ क्या है?
    उत्तर: ईश्वरीय ज्ञान वह है जो बुद्धि में धारणा होकर कर्मेन्द्रियों को स्वतः प्रेरित करता है। केवल सुनना नहीं, बल्कि इसे आत्मा में समा लेना ही सच्चा ज्ञान है।
  4. प्रश्न: श्रेष्ठ कर्म से क्या प्राप्त होता है?
    उत्तर: श्रेष्ठ कर्म से वर्तमान और भविष्य दोनों श्रेष्ठ बनते हैं, और आत्मा श्रेष्ठाचारी बन जाती है।
  5. प्रश्न: अव्यक्त स्थिति का अनुभव कैसे करना है?
    उत्तर: स्मृति और दृष्टि को बदलकर सूक्ष्मवतनवासी बनने का अभ्यास करना चाहिए। जब स्थूलवतन को अव्यक्त वतन में बदलने का अनुभव होगा, तब सम्पूर्णता निकट होगी।
  6. प्रश्न: याद की यात्रा में सफल होने का क्या लाभ है?
    उत्तर: याद की यात्रा में सफल होने से मन की भावनाएं शुद्ध हो जाती हैं और आत्मा को हर स्थिति में शक्ति और शांति का अनुभव होता है।
  7. प्रश्न: अव्यक्त सेवा का अनुभव कैसे किया जा सकता है?
    उत्तर: सूक्ष्मवतन के वातावरण में रहकर, अव्यक्त स्थिति में स्थित होकर, बापदादा की छत्रछाया के नीचे सेवा का अनुभव किया जा सकता है।
  8. प्रश्न: सर्वशक्तिवान आत्मा को वातावरण कैसे प्रभावित नहीं करता?
    उत्तर: जब आत्मा अपनी शक्ति को स्मृति में रखती है और बाप के साथ की अनुभूति करती है, तब वह वातावरण पर प्रभाव डालती है, लेकिन वातावरण से प्रभावित नहीं होती।
  9. प्रश्न: श्रेष्ठ स्थिति बनाए रखने का सबसे सरल उपाय क्या है?
    उत्तर: एक बंधन में स्वयं को बांधना – बाप के साथ ईश्वरीय स्मृति में रहना। यह मीठा बंधन सभी अन्य बंधनों से मुक्त करता है।
  10. प्रश्न: फरीश्ता बनने के लिए क्या करना आवश्यक है?
    उत्तर: फरीश्ता बनने के लिए हल्केपन का अनुभव करना चाहिए और सूक्ष्मवतनवासी बनकर स्थूल वतन में रहना चाहिए। इससे स्थूल और सूक्ष्म के बीच अंतर समाप्त हो जाता है।

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