Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
सभी तीव्र पुरुषार्थी हो वा पुरुषार्थी हो ? तीव्र पुरुषार्थी के मन के संकल्प में भी हार नहीं हो सकती है | ऐसी स्थिति बनानी है | जो संकल्प में भी माया से हार न हो | इसको कहा जाता है तीव्र पुरुषार्थी | वे शुद्ध संकल्पों में पहले से ही मन को बिजी रखेंगे तो और संकल्प नहीं आएंगे | पूरा भरा हुआ होगा तो एक बूंद भी जास्ती पद नहीं सकेगी, नहीं तो बज जायेगा | तो यही संकल्प मन में रहे जो व्यर्थ संकल्प आने का स्थान ही न हो | इतना अपने को बिजी रखो | मन को बिजी रखने के तरीके जो मिलते हैं, वह आप पुरे प्रयोग में नहीं लाते हो | इसलिए व्यर्थ संकल्प आ जाते हैं | एक तरफ बिजी रखने से दूसरा तरफ स्वयं छुट जाता है |
मंथन करने के लिए तो बहुत खज़ाना है | इसमें मन को बिजी रखना है | समय की रफ़्तार तेज़ है वा आप लोगों के पुरुषार्थ की रफ़्तार तेज़ हा ? अगर समय तेज़ चल रहा है और पुरुषार्थ ढीला है तो उसकी रिजल्ट क्या होगी ? समय आगे निकल जायेगा और पुरुषार्थी रह जायेंगे | समय की गाडी छुट जाएगी | सवार होनेवाले रह जायेंगे | समय की कौन सी तेज़ देखते हो ? समय में बीती को बीती करने की तेज़ है | वाही बात को समय फिर कब रिपीट करता है ? तो पुरुषार्थ की जो भी कमियाँ हैं उसमे बीती को बीती समझ आगे हर सेकंड में उन्नति को लाते जाओ तो समय के समान तेज़ चल सकते हो | समय तो रचना है ना | रचना में यह गुण है तो रचयिता में भी होना चाहिए | ड्रामा क्रिएशन है तो क्रिएटर के बच्चे आप हो ना | तो क्रिएटर के बच्चे क्रिएशन से ढीले क्यों ? इसलिए सिर्फ एक बात का ध्यान रहे कि जैसे ड्रामा में हर सेकंड अथवा जो बात बीती, जिस रूप से बीत गयी वह फिर से रिपीट नहीं होगी फिर रिपीट होगी ५००० वर्ष के बाद | वैसे ही कमजोरियों को बार-बार रिपीट करते हो ? अगर यह कमजोरियां रिपीट न होने पाएं तो फिर पुरुषार्थ तेज़ हो जायेगा | जब कमजोरी समेटी जाती है तब कमजोरी की जगह पर शक्ति भर जाती है | अगर कमजोरियां रिपीट होती रहती हैं तो शक्ति नहीं भारती है | इसलिए जो बीता सो बीता, कमजोरी की बीती हुई बातें फिर संकल्प में भी नहीं आणि चाहिए | अगर संकल्प चलते हैं तो वाणी और कर्म में आ जाते हैं | संकल्प में ही ख़त्म कर देंगे तो वाणी कर्म में नहीं आयेंगे | फिर मन वाणी कर्म तीनों शक्तिशाली हो जायेंगे | बुरी चीज़ को सदैव फ़ौरन ही फेंका जाता है | अछि चीज़ को प्रयोग किया जाता है तो बुरी बातों को ऐसे फेंको जैसे बुरी चीज़ को फेंका जाता है | फिर समय पुरुषार्थ से तेज़ नहीं जाएगा | समय का इंतज़ार आप करेंगे तो हम तैयार बैठे हैं | समय आये तो हम जाएँ | ऐसी स्थिति हो जाएगी | अगर अपनी तैय्यारी नहीं होती है तो फिर सोचा जाता है कि समय थोडा हमारे लिए रुक जायेगा |
बांधेली का योग तेज़ होता है | क्योंकि जिस बात से कोई रोकते हैं तो बुद्धि ज़रूर उस तरफ लगी रहती है | घर बैठे भी चरित्रों का अनुभव कर सकते हो | लेकिन ऐसी लगन चाहिए | जब ऐसी लगन-अवस्था हो जाएगी तो फिर बंधन कट जायेंगे | एक की याद ही अनेक बंधन को तोड़नेवाली है | एक से जोड़ना है, अनेक से तोडना है | एक बाप के सिवाए दूसरा न कोई | जब ऐसी अवस्था हो जाएगी फिर यह बंधन आदि सभी ख़त्म हो जायेंगे | जितना अटूट स्नेह होगा उतना ही अटूट सहयोग मिलेगा | सहयोग नहीं मिलता, इसका कारण स्नेह में कमी है | अटूट स्नेह रख करके अतोत सहयोग को प्राप्त करना है | कल्प पहले का अपना अधिकार लेने लिए फिर से पहुच गए हो, ऐसा समझते हो ? वह स्मृति आती है कि हम ही कल्प पहले थे | अभी भी फिर से हम ही निमित्त बनेंगे | जिसको यह नशा रहता है उनके चेरे में ख़ुशी और ज्योति रूप देखने में आता है | उनके चेहरे में अलौकिक अव्यक्ति चमक रहती है | उनके नयनों से, मुख से सदैव ख़ुशी ही ख़ुशी देखेंगे | देखनेवाला भी अपना दुःख भूल जाये | जब कोई दुखी आत्मा होती है तो अपने को ख़ुशी में लाने लिए ख़ुशी के साधन बनाती है ना | तो दर्पण में चेहरा देखने में आये | तुम्हारे चेहरे से सर्विस हो | न बोलते हुए आपका मुख सर्विस करे | आजकल दुनिया में अपने चेहरे को ही श्रृंगारते हैं ना | तो आप सभी आत्माओं का भी ऐसा श्रृंगारा हुआ मुंह देखने में आये | सर्वशक्तिमान बाप के बच्चे हैं फिर शक्ति न आये यह कैसे हो सकता है | ज़रूर बुद्धि की तार में कमी है | तार को जोड़ने के लिए जो युक्तियाँ मिलती हैं उसको अभ्यास में लाओ | तोड़ने बिगर जोड़ लेते हैं तो पूरा फिर जुटता नहीं | थोड़े समय के लिए जुटता फिर टूट जाता है | इसलिए अनेक तरफ से तोड़कर एक तरफ जोड़ना है | इसके लिए संग भी चाहिए और अटेंशन भी चाहिए | हर कदम पर, संकल्प पर अटेंशन | संकल्प जो उठता है वह चेक करो कि यह हमारा संकल्प यथार्थ है वा नहीं ? इतना अटेंशन जब संकल्प पर हो तब वाणी भी ठीक और कर्म भी ठीक रहे | संकल्प और समय दोनों ही संगम युग के विशेष खजाने हैं | जिससे बहुत कमाई कर सकते हो | जैसे स्थूल धन को सोच समझकर प्रयोग करते हैं कि एक पैसा भी व्यर्थ न जायें | वैसे ही यह संगम का समय और संकल्प व्यर्थ न जाएँ | अगर संकल्प पावरफुल हैं तो अपने ही संकल्प के आधार पर अपने लिए सतयुगी सृष्टि लायेंगे | अपने ही संकल्प कमज़ोर हैं तो अपने लिए त्रेतायुगी सृष्टि लाते हैं | यह खज़ाना सारे कल्प में फिर नहीं मिलेगा | तो जो मुश्किल से एक ही समय पर मिलने वाली चीज़ है, उसका कितना मूल्य रखना चाहिए | अभी जो बना सो बना | फिर बने हुए को देखना पड़ेगा | बना नहीं सकेंगे | अभी बना सकते हो | उसका अब थोडा समय है | दूसरों को तो कहते हो बहुत गई थोड़ी रही | | | लेकिन अपने साथ लगाते हो ? समय थोडा रहा है लेकिन काम बहुत करना है | अपने आप से दृढ़ प्रतिज्ञा करो कि आज से फिर यह बातें कभी नहीं रहेंगी | यह संस्कार अपने में फिर इमर्ज नहीं होने देंगे | यह व्यर्थ संकल्प कभी भी उत्पन्न नहीं होने देंगे | जब ऐसी दृढ़ प्रतिज्ञा करेंगे तब ही प्रत्यक्ष फल मिलेगा | अब दिन बदलते जाते हैं | तो खुद को भी बदलना है | अब ढीले पुरुषार्थ के दिन चले गए, अब है तीव्र पुरुषार्थ करने का समय | तीव्र पुरुषार्थ के समय अगर कोई ढीला पुरुषार्थ करे तो क्या कहेंगे ? इसलिए अब जोश में आओ | बार-बार बेहोश न हो | संजीवनी बूटी साथ में रख सदैव जोश में रहो | बाकी हाँ करेंगे, हो जायेगा, देख लेंगे यह अक्षर अभी न निकलें | ऐसी बातें बहुत समय सुनीं | अब बापदादा यही सुनने चाहते हैं कि हाँ बाबा करके दिखायेंगे |
अपनी चलन में अलौकिकता लाओ तो चलन की आकर्षण लौकिक सम्बन्धियों आदि को भी स्वयं खिंचेगी | लौकिक सम्बन्ध में वाणी काम नहीं करती | चलन की आकर्षण होगी | तो अब बहुत तेज़ से चलना है | अभी ऐसा बदल कर दिखाओ जो सभी के आगे एग्जाम्पल बनो | अब एक सेकंड भी नहीं गंवाना है | चेक आप कर सकते हो | अब समय बहुत थोडा रह गया है | समय भी बेहद की वैराग्य वृत्ति को उत्पन्न करता है | लेकिन समय के पहले जो अपनी म्हणत से करेंगे तो उनका फल ज्यादा मिलेगा | जो खुद नहीं कर सकेंगे उन्हों के लिए समय हेल्प करेगा | लेकिन वह समय की बलिहारी होगी | अपनी नहीं |
कितनी बार बापदादा से मिले हुए हो ? यह स्मृति में है कि अनेक बार यह जन्म-सिद्ध अधिकार मिला है | कितना बड़ा अधिकार है | जो कई प्रयत्नों से भी नहीं प्राप्त हो सकता, यह सहज ही प्राप्त हो रहा है ऐसा अनुभव किया है ? समय बाकी कितना है और पुरुषार्थ क्या किया है ? दोनों की परख है ? समय कम है और पुरुषार्थ बहुत करना है | जब कोई स्टूडेंट लास्ट टाइम पर आकर दाखिल होते हैं तो वह थोड़े समय में कितनी म्हणत करते हैं | जितना समय तेज़ जा रहा है इतना तेज़ पुरुषार्थ है ? कब शब्द निकाल ही देना चाहिए | जो तीव्र पुरुषार्थी होते हैं वह कब शब्द नहीं बोलते, अब बोलेंगे | अब से करेंगे | यह संगम समय का एक सेकंड भी कितना बड़ा मूल्यवान है | एक सेकंड भी व्यर्थ गया तो कितनी कमाई व्यर्थ हो जाएगी | पुरे कल्प की तकदीर बनाने का यह थोडा समय है | एक सेकंड पद्मों की कमाई करने वाला भी है और एक सेकंड में पद्मों की कमाई गँवाता है | ऐसे समय को परख करके फिर पाँव तेज़ करो | समस्याएं तो बनती रहेंगी | स्थिति इतनी पावरफुल हो जो परिस्थितियां स्थिति से बदल जाएँ | परिस्थिति के आधार पर स्थिति न हो | स्थिति परिस्थिति को बदल सकती है क्योंकि सर्वशक्तिमान के संतान हो तो क्या ईश्वरीय शक्ति परिस्थिति नहीं बदल सकती! रचयिता के बच्चे रचना को नहीं बदल सकते हैं! रचना पावरफुल होती है वा रचयिता ? रचयिता के बच्चे रचना के अधीन कैसे होंगे | अधिकार रखना है न कि अधीन होना है | जितना अधिकार रखेंगे उतना परिस्थितियाँ भी बदल जाएँगी | अगर उनके पीछे पड़ते रहेंगे तो और ही सामना करेंगी | परिस्थितियों के पीछे पड़ना ऐसे है जैसे कोई अपनी परछाई को पकड़ने से वह हाथ आती है ? और ही आगे बढती है तो उसको छोड़ दो | वायुमंडल को बदलना, यह तो बहुत सहज है | इतनी छोटी सी अगरबत्ती, खुशबु की चीज़ भी वायुमंडल को बदल सकती है | तो ज्ञान की शक्ति से वायुमंडल को नहीं बदल सकते ? यह ध्यान रखना है, वायुमंडल को सदैव शुद्ध रखना है | लोग क्या भी बोलें | जिस बात में अपनी लगन नही होती है तो वह बात सुनते हुए जैसे नहीं सुनते | तन भाव वहां हो लेकिन मन नहीं | ऐसे तो कई बार होता है | मन कोई और तरफ होता है और वहां बैठे भी जैसे नहीं बैठते हैं | तन से साथ देना पड़ता है लेकिन मन से नहीं | उसके लिए सिर्फ अटेंशन दें अहै | जब तक हिम्मत न रख पाँव नहीं रखा है तो ऊँची मंजिल लगेगी | अगर पाँव रखेंगे तो फिर लिफ्ट की तरह झट पहुँच जायेंगे | हिम्मत रखो तो चढ़ाई भी लिफ्ट बन जाएगी | तो हिम्मत का पाँव रखो, कर सकते हो, सिर्फ लोक लाज का त्याग और हिम्मत की धारणा चाहिए | एक दो का सहयोग भी बड़ी लिफ्ट है | परिस्थितियाँ तो आयेंगी लेकिन अपनी स्थिति पावरफुल चाहिए | फिर जैसा समय वैसा तरीका भी टच होगा | अगर समय प्रमाण युक्ति नहीं आती है तो समझना चाहिए योग बल नहीं है | योगयुक्त है तो मदद भी ज़रूर मिलती है | जो यथार्थ पुरुषार्थी है उनके पुरुषार्थ में इतनी पॉवर रहती है | ज्यादा सोचना भी नहीं चाहिए | अनेक तरफ लगाव है, फिर माया की अग्नि भी लग जाती है | परन्तु लगाव नहीं होना चाहिए | फ़र्ज़ तो निभाना है लेकिन उसमे लगाव न हो | ऐसा पावरफुल रहना है जो औरों के आगे एग्जाम्पल हो | जो एग्जाम्पल बनते हैं वह एग्जामिन में पास होते हैं | एग्जामिन देने लिए एग्जाम्पल बन दिखाओ | जो सभी देखें कि ये कैसे नवीनता में आ गए हैं | ऐसे सर्विसेबुल बनना है जो आप को देख औरों को प्रेरणा मिले | पहले जो शक्तियां निकलीं उन्हों ने इतनी शक्तियों को निकाला | आप शक्तियां फिर सृष्टि को बदलो | इतना आगे जाना है | गीत भी हैं ना हम शक्तियां दुनिया को बदल कर दिखायेंगे | सृष्टि को कौन बदलेंगे ? जो पहले खुद बदलेंगे | शक्तियों की सवारी शेर पर दिखाते हैं | कौन सा शेर ? यह माया जो शेरनी रूप में सामना करने आती है उनको अपने अधीन कर सवारी बनाना अर्थात् उनकी शक्ति को ख़त्म करना | ऐसी शक्तियां जिनकी शेर पर सवारी दिखाते हैं वही तुम हो ना | वह सभी का ही चित्र है | ऐसी शेरनी शक्तियां कभी माया से घबराती नहीं | लेकिन माया उनसे घबराती है | ऐसे माया जीत बने हो ना | शक्ति बिगर बंधन नहीं टूटेंगे | याद की शक्ति है – एक बाप दूसरा न कोई | ऐसा सौभाग्य कोटों में कोई को मिलता है | इतना पद्मा पद्मभाग्यशाली अपने को समझते हो ? शक्ति दल बहुत कमाल कर सकता है | जो हड्डी सेवा करनेवाले होते हैं उनको बाप भी मदद करता है | जो स्नेही हैं, उनसे बाप भी स्नेही रहता है | बाप के भी वाही बच्चे सामने रहते हैं | भाल कोई कितना भी दूर हो लेकिन बापदादा के दिल के नजदीक है |
सभी से अच्छी सौगात है अपने इस चेहरे को सदैव हर्षित बनाना | कभी भी कोई परेशानी की रेखा न हो | जैसे सम्पूर्ण चन्द्रमा कितना सुन्दर लगता है | वैसे अपना चेहरा सदैव हर्षित रहे | चेहरा ऐसा चमकता हुआ हो जो और भी आपके चेहरे में अपना रूप देख सकें | चेहरा दर्पण बन जाए | अनेक आत्माओं को अपना मुखड़ा दिखलाना है | अभी पद्मापद्म भाग्यशाली बनना है | महादानी बनना है | रहम दिल बाप के बच्चे सर्व आत्माओं पर रहम करना है | इस रहम की भावना से कैसी भी आत्माएं बदल सकती हैं | सारे दिन में यह चेक करो कि कितने रहम दिल बने | कितनी आत्माओं पर रहम करना है | इस रहम की भावना से कैसी भी आत्माएं बदल सकती है | सारे दिन में यह चेक करो कि कितने रहम दिल बने ? कितनी आत्माओं पर रहम किया | दूसरों को सुख देने में भी अपने में सुख भरता है | देना अर्थात् लेना | दूसरों को सुख देने से खुद भी सुख स्वरुप बनेंगे | कोई विघ्न नहीं आयेंगे | दान करने से शक्ति मिलती है | अंधों को आँखें देना कितना महान कार्य है | आप सभी का यही कार्य है | अज्ञानी अंधों को ज्ञान नेत्र देना | और अपनी अवस्था सदैव अचल हो | तुम बच्चों की स्थिति का ही यह अचलघर यादगार है | जैसे बापदादा एकरस रहते हैं वैसे बच्चों को भी एकरस रहना है | जब एक के ही रस में रहेंगे तो एकरस अवस्था में रहेंगे |
सभी तीव्र पुरुषार्थी हो वा पुरुषार्थी हो?
- प्रश्न: तीव्र पुरुषार्थी कौन होते हैं?
उत्तर: तीव्र पुरुषार्थी वे होते हैं जिनके मन के संकल्प में भी हार नहीं होती है और वे अपने संकल्पों में शुद्धता बनाए रखते हैं। - प्रश्न: माया से हार न हो, इसका क्या उपाय है?
उत्तर: जब संकल्प शुद्ध होते हैं और मन को व्यर्थ संकल्पों से बिजी रखा जाता है, तब माया से हार नहीं होती है। - प्रश्न: समय की रफ्तार और पुरुषार्थ की रफ्तार में क्या फर्क है?
उत्तर: यदि पुरुषार्थ धीमा हो और समय तेजी से चलता हो, तो समय आगे निकल जाएगा और पुरुषार्थी पीछे रह जाएंगे। - प्रश्न: कमजोरी को रिपीट न होने देने से क्या फायदा होता है?
उत्तर: जब कमजोरी रिपीट नहीं होती, तब शक्ति बढ़ती है और पुरुषार्थ तेज़ होता है। - प्रश्न: संकल्प में शक्ति आने से क्या लाभ होता है?
उत्तर: जब संकल्प पावरफुल होते हैं, तो हम अपनी इच्छानुसार सृष्टि का निर्माण कर सकते हैं। - प्रश्न: क्या संकल्प, वाणी और कर्म का आपस में संबंध है?
उत्तर: हां, जब संकल्प पवित्र होते हैं, तो वाणी और कर्म भी शुद्ध होते हैं, जिससे मन, वाणी और कर्म तीनों शक्तिशाली हो जाते हैं। - प्रश्न: तीव्र पुरुषार्थी बनने के लिए क्या कदम उठाने चाहिए?
उत्तर: अपने संकल्पों पर अटेंशन देना चाहिए, अपने पुरुषार्थ को तेज़ करना चाहिए, और आत्मविश्वास के साथ कार्य करना चाहिए। - प्रश्न: बापदादा से मिलने का अनुभव कैसा होता है?
उत्तर: बापदादा से मिलने का अनुभव सहज और दिव्य होता है, जैसे हम सहज ही अपना जन्म-सिद्ध अधिकार प्राप्त कर रहे हों। - प्रश्न: स्वर्णिम युग की सृष्टि का निर्माण किससे होता है?
उत्तर: स्वर्णिम युग की सृष्टि हमारे अपने शक्तिशाली संकल्पों से होती है। - प्रश्न: क्या संकल्प शक्ति से बुरी परिस्थितियाँ बदल सकती हैं?
उत्तर: हां, जब हमारी स्थिति पावरफुल होती है, तो हम परिस्थितियों को बदल सकते हैं और माया को जीत सकते हैं।
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