Avyakta Murli”26-03-1970(1)

Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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महारथी – पन के गुण और कर्त्तव्य  – २६-०३-१९७०

आज बोलना है वा बोलने से परे जाना है ?  बोलने से परे अवस्था अच्छी लगती है वा बोलने की अच्छी है ?  (दोनों) ज्यादा कौन सी अच्छी लगती है ?  बोलते हुए भी बोले से परे की स्थिति हो सकती है ?  दोनों का साथ हो सकता है वा जब न बोलेन तब परे अवस्था हो सकती है ?  हो सकती है तो कब होगी ?  इस स्थिति में स्थित होने के लिए कितना समय चाहिए ?  अब हो सकती है ?  कुछ मास वा कुछ वर्ष चाहिए ?  प्रैक्टिस अभी शुरू हो सकती है कि कारोबार में नहीं हो सकती ?  अगर हो सकती है तो अब से ही हो सकती है ?  जो महारथी कहलाये जाते हैं उनकी प्रैक्टिस और प्रैक्टिकल साथ-साथ होना चाहिए |  महारथी और घोडेस्वार में अंतर ही यह होता है |  महारथियों की निशानी होगी प्रैक्टिस की और प्रैक्टिकल हुआ |  घोड़ेसवार प्रैक्टिस करने के बाद प्रैक्टिकल में आयेंगे |  और प्यादे प्लान्स ही सोचते रहेंगे |  यह अंतर होता है |  बच्चों को मुख से यह शब्द भी नहीं बोलना चाहिए कि अटेंशन है, प्रैक्टिस करेंगे |  अभी वह स्थिति भी पार हो गई |  अभी तो जो संकल्प हो वह कर्म हो |  संकल्प और कर्म में अन्तर नहीं होना चाहिए |  वह बचपन की बातें हैं |  संकल्प करना, प्लान्स बनाना फिर उसपर चलना, अब वह दिन नहीं |  अब पढाई कहाँ तक पहुंची है ?  अब तो अन्तिम स्टेज पर है |  महारथीपन के क्या गुण और कर्त्तव्य होते हैं, इसको भी ध्यान देना है |  आज वाही सुनाने और अंतिम स्थिति के स्वरुप का साक्षात्कार कराने आये हैं |  सर्विसएबुल क्या कर सकते हैं, क्या नहीं कर सकते हैं, क्या कह सकते हैं, क्या नहीं कह सकते हैं ?  अब से धारणा करने से ही अंतिम मूर्त्त बनेंगे, साकार सबूत देखा ना प्रैक्टिस और प्रैक्टिकल एक समान था कि अलग-अलग था |  जो सोच वाही कर्म था |  बच्चों का कर्त्तव्य ही है फॉलो करना |  पाँव के ऊपर पाँव |  फुल स्टेप लेने का अर्थ ही है पाँव के ऊपर पाँव |  जैसे के वैसे फोलो करेंगे |  वह स्टेज कब आएगी ?  महारथियों के मुख से कब शब्द ही कमजोरी सिद्ध करता है |  एक होता करके दिखायेंगे, एक होता है हाँ करेंगे, सोचेंगे |  हिम्मत है, लेकिन फेथ नहीं |  फेथफुल के बोल ऐसे नहीं होते |  फेथफुल का अर्थ ही है निश्चयबुद्धि |  मन, वचन, कर्म हर बात में निश्चयबुद्धि |  सिर्फ ज्ञान और बाप का परिचय, इतने तक निश्चयबुद्धि नहीं |  लेकिन उनका संकल्प भी निश्चयबुद्धि, वाणी में भी निश्चय, कभी भी कोई बोल हिम्मतहिन का नहीं |  उसको कहा जाता है महारथी |  महारथी का अर्थ ही है महान |

आपस में क्या-क्या प्लान बनाया है ?  ऐसा प्लैन बनाया जो इस प्लैन से नयी दुनिया का प्लैन प्रैक्टिकल में हो जाए |  नयी दुनिया का प्लैन प्रैक्टिकल में आना अर्थात् पुराणी दुनिया की कोई भी बात फिर से प्रैक्टिकल में न आये |  सब लोग कहते हैं |  फिर कोई मन में कहते हैं, कोई मुख से कहते हैं कि प्लैन्स तो बहुत बनते हैं, अब प्रैक्टिकल में देखें |  लेकिन यह संकल्प भी सदा के लिए मिटाना यह महारथी का काम है |  सभी की नज़र अभी भी मधुबन में विशेष मुख्य रत्नों पर है |  तो उस नज़र में ऐसे दिखाना है जो उनको नज़र आप लोगों की बदली हुयी नज़रों को ही देखें |  तो अब वह पुरानी नज़र नहीं, पुरानी वृत्ति नहीं |  तब अन्तिम नगाड़ा बजेगा |  यह संगठन कॉमन नहीं है, यह संगठन कमाल का है |  इस संगठन से ऐसा स्वरुप बनकर निकलना है जो सभी को साक्षात् बापदादा के ही बोल महसूस हों |  बापदादा के संस्कार सभी के संस्कारों में देखने में आयें |  अपने संस्कार नहीं |  सभी संस्कारों को मिटाकर कौन से संस्कार भरने हैं ?  बापदादा के |  तो सभी को साक्षात्कार हो कि यह साक्षात् बापदादा बनकर ही निकले हैं |  ऐसा सभी को कराना है |  कोई भी पुराना संकल्प वा संस्कार सामने आये ही नहीं |  पहले यह भेंट करो, यह बापदादा के संस्कार हैं ?  अगर बापदादा के संस्कार नहीं तो उन संस्कारों को टच भी नहीं करो |  बुद्धि में संकल्प रूप से ही टच न हो |  जैसे क्रिमिनल चीज़ को टच नहीं करते हो वैसे ही अगर बापदादा के समान संस्कार नहीं है तो उन संस्कारों को भी टच नहीं करना है |  जैसे नियम रखते हो ना कि यह नहीं करना है तो फिर भल क्या भी परिस्थिति आती है लेकिन वह आप नहीं करते हो |  परिस्थिति का सामना करते हो, क्योंकि लक्ष्य है यह करना है |  वैसे ही जो अपने संस्कार बापदादा के समान नहीं है उनको बिलकुल टच करना नहीं है |  ऐसे समझो |  देह और देह के सम्बन्ध यह सीढ़ी तो चढ़ चुके हो |  लेकिन अब बुद्धि में भी संस्कार इमर्ज न हों |  जैसे संस्कार होंगे वैसा स्वरुप होगा |  किसके संस्कार सरल, मधुर होते हैं तो वह संस्कार स्वरुप में आते हैं |

जब संस्कार बापदादा के समान बन जायेंगे तो बापदादा के स्वरुप सभी को देखने आएंगे |  जैसे बापदादा वैसे हूबहू वाही गुण, वाही कर्त्तव्य, वे ही बोल, वे ही संकल्प होने चाहिए फिर सभी के मुख से निकलेगा यह तो वाही लगते हैं |  सूरत अलग होगी, सीरत वही होगी |  लेकिन सूरत में सीरत आणि चाहिए |  अब बापदादा बच्चों से यही  उम्मीद रखते हैं |  सभी हैं ही स्नेही सफलता के सितारे |  पुरुषार्थी सितारे |  सर्विसएबुल बच्चों का पुरुषार्थ सफलता सहित होता है |  निमित्त पुरुषार्थ करेंगे लेकिन सफलता है ही है |  अब समझा क्या करना है ?  जो सोचेंगे, जो कहेंगे वही करेंगे |  जब ऐसे शब्द सुनते हैं कि सोचेंगे, देखेंगे, विचार तो ऐसा है |  तो हँसते हैं अब तक यह क्यों ?  अब यह बातें ऐसी लगती है जैसे बुज़ुर्ग होने की बाद कोई गुड्डियों का खेल करे तो क्या लगता है ?  तो बापदादा भी मुस्कुराते हैं – बुज़ुर्ग होते भी कभी-कभी बचपन का खेल करने में लग जाते हैं |

आज बोलना है वा बोलने से परे जाना है?

  1. बोलने से परे अवस्था कैसी होती है?
    • यह एक शांत और एकाग्र अवस्था है, जहाँ विचार और शब्द एक नहीं होते।
  2. क्या बोलने की स्थिति भी अच्छी हो सकती है?
    • हाँ, जब हम शब्दों के माध्यम से उद्देश्यपूर्ण सेवा कर रहे होते हैं।
  3. क्या बोलते हुए भी बोले से परे की स्थिति हो सकती है?
    • हाँ, जब हम ध्यान और आत्म-निग्रह में रहते हुए बात करते हैं।
  4. बोलते हुए परे अवस्था कब हो सकती है?
    • यह तब हो सकता है जब हमारा मन, वचन, और कर्म एक सूत्र में बंधे हों।
  5. परिस्थितियों के अनुसार, परे अवस्था में आने के लिए कितने समय की जरूरत है?
    • यह प्रत्येक व्यक्ति की मानसिक स्थिति और अभ्यास पर निर्भर करता है।
  6. क्या अब से प्रैक्टिस शुरू की जा सकती है?
    • हाँ, अब से ही प्रैक्टिस शुरू हो सकती है।
  7. महारथी बनने के लिए प्रैक्टिस और प्रैक्टिकल साथ-साथ होना चाहिए?
    • हाँ, महारथी वही होते हैं जो प्रैक्टिस और प्रैक्टिकल दोनों में सिद्ध होते हैं।
  8. क्या संकल्प और कर्म में कोई अंतर होना चाहिए?
    • नहीं, संकल्प और कर्म एक जैसे होने चाहिए।
  9. महारथी बनने के क्या गुण और कर्त्तव्य होते हैं?
    • महारथी का कार्य है पूर्णता की ओर बढ़ना, निश्चयबुद्धि से संकल्प करना, और अपने कर्मों में समर्पण रखना।
  10. क्या बच्चों को भी बाबा के संस्कारों को अपनाना चाहिए?
    • हाँ, बच्चों को बाबा के संस्कारों को आत्मसात करना चाहिए।
  11. क्या हमें बापदादा के संस्कारों को अपनाकर ही अपने संस्कारों को बदलना चाहिए?
    • हाँ, बापदादा के संस्कारों को ही आत्मसात करना चाहिए और पुराने संस्कारों को मिटाना चाहिए।
  12. क्या बापदादा की वाणी और कर्म में समानता होनी चाहिए?
    • हाँ, बापदादा की वाणी और कर्म में पूरी समानता होनी चाहिए।
  13. क्या कोई भी पुरानी बातें या संस्कार हमारे जीवन में आए तो क्या करना चाहिए?
    • उन पुरानी बातों और संस्कारों को तुरंत मिटा देना चाहिए।
  14. क्या बच्चे हर स्थिति में बाबा की याद में स्थिर रह सकते हैं?
    • हाँ, बच्चों को बाबा की याद में स्थिर रहना चाहिए, चाहे कोई भी परिस्थिति हो।
  15. क्या हमारी स्थिति पर हमारी वृत्ति और दृष्टि का असर पड़ता है?
    • हाँ, हमारी वृत्ति और दृष्टि हमारी स्थिति को प्रभावित करती हैं।
  16. सम्पूर्णता का क्या रहस्य है?
    • सम्पूर्णता का रहस्य है उपराम अवस्था, जहाँ हम अपनी बुद्धि और संस्कारों से भी उपराम रहते हैं।
  17. क्या बापदादा का स्वरूप बच्चों के जीवन में स्पष्ट होना चाहिए?
    • हाँ, बच्चों को बापदादा के स्वरूप को पूरी तरह आत्मसात करना चाहिए।
  18. क्या संकल्प में बदलाव लाने से हमारी स्थिति में सुधार होगा?
    • हाँ, संकल्पों में बदलाव से हम अपनी स्थिति को बेहतर बना सकते हैं।
  19. हमारे संस्कारों में परिवर्तन कैसे लाया जा सकता है?
    • अपने संकल्पों और कर्मों को बापदादा के संस्कारों के अनुसार ढालकर।
  20. क्या हमें अपने पुराने संस्कारों से बचना चाहिए?
    • हाँ, हमें पुराने संस्कारों को छोड़कर नये और उच्चतम संस्कारों को अपनाना चाहिए।

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