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A-p 48- the first birth and bondage of the soul

February 15, 2025June 3, 2025omshantibk07@gmail.com

आत्मा-पदम(48)आत्मा का प्रथम जन्म और बंधन

A-p 48 “the first birth and bondage of the soul

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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अर्थात न्यारे और प्यारे कर्मों का स्वामी – अकर्म के खाते का स्वामी

जिसके पास अकर्म का खाता जितना अधिक होगा, उतना ही अधिक समय सतयुग में रहने का उसे मौका मिल सकता है। इसलिए पदम कर्म को अपनाने के लिए हमें बाबा के ज्ञान का गहन मंथन करना चाहिए। ज्ञान से सच्चाई को समझकर, उसे यथार्थ रीति से जानकर, हम अकर्म के खाते को बढ़ा सकते हैं।

आत्मा का प्रथम जन्म और बंधन

आत्मा पृथ्वी पर कैसे आती है?

आत्मा का इस धरती पर पहला जन्म एक दिव्य प्रक्रिया के रूप में होता है। जब आत्मा परमधाम से नीचे आती है, तो वह पूर्व निर्धारित ड्रामा के अनुसार अपने पहले जन्म के लिए एक विशिष्ट परिवार का चयन करती है।

कृष्ण की आत्मा और सतयुग की शुरुआत

सतयुग की शुरुआत में कृष्ण की आत्मा जब शरीर छोड़ती है, तो वह रेडीमेड शरीर में प्रवेश करती है। जब कृष्ण का जन्म होता है, तो आत्मा गर्भ में प्रवेश करती है। यह प्रक्रिया दिव्य विधान के अनुसार संचालित होती है।

आत्मा का जन्म और परिवार का चयन

आत्मा के पहले जन्म के पीछे कई कारक कार्यरत होते हैं:

  1. ड्रामा का भाग: प्रत्येक आत्मा को उसका प्रारंभिक स्थान और परिवार ड्रामा के अनुसार मिलता है।
  2. संस्कारों की समानता: आत्मा जिन संस्कारों को धारण किए हुए होती है, वे उसे समान संस्कार वाले परिवार में जन्म लेने के लिए प्रेरित करते हैं।
  3. संगम युग में आत्माओं का परस्पर हिसाब-किताब: जो आत्माएं संगम युग में विशेष सेवा या संबंध स्थापित करती हैं, वे सतयुग में उसी के अनुसार अपना स्थान प्राप्त करती हैं।

कर्म का चक्र और जीवन का हिसाब

हम हर पल पिछले कार्मिक अकाउंट को बराबर कर रहे हैं और नया अकाउंट बना रहे हैं। उदाहरण के रूप में, यदि संगम युग में किसी आत्मा ने विशेष सेवा की है, तो सतयुग में उसे उसका फल प्राप्त होता है। यही प्रक्रिया हर कल्प में पुनः दोहराई जाती है।

न्यूटन का कर्म सिद्धांत और आध्यात्मिक दृष्टिकोण

न्यूटन के तीसरे नियम के अनुसार, हर क्रिया की समान और विपरीत प्रतिक्रिया होती है। आध्यात्मिक दृष्टि से भी यह सिद्धांत लागू होता है—जितना सुख-दुख हम देते हैं, उतना ही हमें लौटकर मिलता है। हमारा ड्रामा और कर्म चक्र हूबहू रिपीट होता है।

जन्म, परिवार और कर्म का बंधन

हम किस माता-पिता या परिवार में जन्म लेते हैं, यह हमारे पूर्व जन्मों के कर्मों और संबंधों पर निर्भर करता है। यह जन्म कोई संयोग नहीं, बल्कि एक पूर्व निर्धारित प्रक्रिया है, जो कर्मों के हिसाब-किताब के अनुसार संचालित होती है। इसलिए, हमें अपने कर्मों को अत्यंत शुद्ध और सकारात्मक बनाना चाहिए, ताकि हमारा भविष्य श्रेष्ठ बन सके।

अर्थात न्यारे और प्यारे कर्मों का स्वामी – अकर्म के खाते का स्वामी

प्रश्न और उत्तर

1.प्रश्न-अकर्म का खाता क्या होता है?

उत्तर: अकर्म का खाता वह आध्यात्मिक खाता होता है, जिसमें आत्मा ऐसे कर्म संचित करती है जो निष्काम, श्रेष्ठ और शुभ होते हैं। यह खाता जितना अधिक होगा, उतना ही अधिक समय आत्मा को सतयुग में रहने का अवसर मिलेगा।

2.प्रश्न-आत्मा इस पृथ्वी पर कैसे आती है?

उत्तर: आत्मा का पृथ्वी पर आगमन एक दिव्य प्रक्रिया के रूप में होता है। जब आत्मा परमधाम से नीचे आती है, तो वह पूर्व निर्धारित ड्रामा के अनुसार अपने पहले जन्म के लिए एक विशिष्ट परिवार का चयन करती है।

3.प्रश्न-सतयुग की शुरुआत में कृष्ण की आत्मा का क्या होता है?

उत्तर: सतयुग के आरंभ में जब कृष्ण की आत्मा शरीर छोड़ती है, तो वह एक रेडीमेड शरीर में प्रवेश करती है। जन्म के समय आत्मा गर्भ में प्रवेश करती है, और यह प्रक्रिया दिव्य विधान के अनुसार संचालित होती है।

4.प्रश्न-आत्मा अपने जन्म और परिवार का चयन कैसे करती है?

उत्तर: आत्मा का जन्म और परिवार का चयन निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करता है:

  • ड्रामा का भाग: आत्मा को उसका प्रारंभिक स्थान और परिवार ड्रामा के अनुसार मिलता है।
  • संस्कारों की समानता: आत्मा जिस संस्कार को धारण करती है, उसे वैसा ही परिवार मिलता है।
  • संगम युग के कर्मों का प्रभाव: संगम युग में की गई विशेष सेवा या संबंध सतयुग में आत्मा की स्थिति को निर्धारित करते हैं।

5.प्रश्न-कर्म का चक्र जीवन को कैसे प्रभावित करता है?

उत्तर: कर्म का चक्र हर आत्मा के जीवन को नियंत्रित करता है। हर पल हम अपने पिछले कर्मों का हिसाब चुकता कर रहे होते हैं और नए कर्मों का खाता बना रहे होते हैं। संगम युग में विशेष सेवा करने वाली आत्माओं को सतयुग में उसी के अनुसार श्रेष्ठ फल प्राप्त होता है।

6.प्रश्न-न्यूटन के कर्म सिद्धांत का आध्यात्मिक दृष्टिकोण से क्या अर्थ है?

उत्तर: न्यूटन के तीसरे नियम के अनुसार, “प्रत्येक क्रिया की समान और विपरीत प्रतिक्रिया होती है।” आध्यात्मिक दृष्टि से भी यह सिद्धांत लागू होता है—जितना हम दूसरों को सुख या दुख देते हैं, उतना ही हमें लौटकर मिलता है।

7.प्रश्न-जन्म, परिवार और कर्म का क्या संबंध है?

उत्तर: हमारा जन्म, माता-पिता और परिवार हमारे पूर्व जन्मों के कर्मों और संबंधों पर आधारित होते हैं। यह कोई संयोग नहीं, बल्कि पूर्व निर्धारित प्रक्रिया है, जो हमारे कर्मों के हिसाब-किताब के अनुसार संचालित होती है। इसलिए हमें अपने कर्मों को शुद्ध और सकारात्मक बनाना चाहिए ताकि हमारा भविष्य श्रेष्ठ बन सके।

8.प्रश्न-पदम कर्म क्या होता है और इसे कैसे अपनाया जा सकता है?

उत्तर: पदम कर्म वह कर्म हैं जो बिल्कुल न्यारे और प्यारे होते हैं—कमल के समान, जिससे किसी को दुख न हो बल्कि सभी को आत्मिक सुख प्राप्त हो। इसे अपनाने के लिए हमें बाबा के ज्ञान का गहन मंथन करना चाहिए और अपने कर्मों को शुद्ध, निष्काम और सेवा भाव से भरपूर बनाना चाहिए।

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A-p 27″Do the thoughts and vibrations of one soul affect another soul
(01) “A pillar of Shivaratri light

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