Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
21-02-2025 |
प्रात:मुरली
ओम् शान्ति
“बापदादा”‘
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मधुबन |
“मीठे बच्चे – पास विद् ऑनर होना है तो बुद्धियोग थोड़ा भी कहीं न भटके, एक बाप की याद रहे, देह को याद करने वाले ऊंच पद नहीं पा सकते” | |
प्रश्नः- | सबसे ऊंची मंजिल कौन-सी है? |
उत्तर:- | आत्मा जीते जी मरकर एक बाप की बने और कोई याद न आये, देह-अभिमान बिल्कुल छूट जाये – यही है ऊंची मंजिल। निरन्तर देही-अभिमानी अवस्था बन जाये – यह है बड़ी मंजिल। इसी से कर्मातीत अवस्था को प्राप्त करेंगे। |
गीत:- | तू प्यार का सागर है………… |
ओम् शान्ति। अब यह गीत भी राँग है। प्यार के बदले होना चाहिए ज्ञान का सागर। प्यार का कोई लोटा नहीं होता। लोटा, गंगा जल आदि का होता है। तो यह है भक्ति मार्ग की महिमा। यह है राँग और वह है राइट। बाप पहले-पहले तो ज्ञान का सागर है। बच्चों में थोड़ा भी ज्ञान है तो बहुत ऊंच पद प्राप्त करते हैं। बच्चे जानते हैं कि अब इस समय हम बरोबर चैतन्य देलवाड़ा मन्दिर के भाती हैं। वह है जड़ देलवाड़ा मन्दिर और यह है चैतन्य देलवाड़ा। यह भी वण्डर है ना। जहाँ जड़ यादगार है वहाँ तुम चैतन्य आकर बैठे हो। परन्तु मनुष्य कुछ समझते थोड़ेही है। आगे चलकर समझेंगे कि बरोबर यह गॉड फादरली युनिवर्सिटी है, यहाँ भगवान पढ़ाते हैं। इससे बड़ी युनिवर्सिटी और कोई हो न सके। और यह भी समझेंगे कि यह तो बरोबर चैतन्य देलवाड़ा मन्दिर है। यह देलवाड़ा मन्दिर तुम्हारा एक्यूरेट यादगार है। ऊपर छत में सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी हैं, नीचे आदि देव आदि देवी और बच्चे बैठे हैं। इनका नाम है – ब्रह्मा, फिर सरस्वती है ब्रह्मा की बेटी। प्रजापिता ब्रह्मा है तो जरूर गोप-गोपियाँ भी होंगे ना। वह है जड़ चित्र। जो पास्ट होकर गये हैं उन्हों के फिर चित्र बने हुए हैं। कोई मरता है तो झट उनका चित्र बना देते हैं, उनकी पोज़ीशन, बायोग्राफी का तो पता है नहीं। आक्यूपेशन नहीं लिखें तो वह चित्र कोई काम का न रहे। मालूम पड़ता है फलाने ने यह-यह कर्तव्य किया है। अब यह जो देवताओं के मन्दिर हैं, उन्हों के आक्यूपेशन, बायोग्राफी का किसको पता नहीं है। ऊंच ते ऊंच शिवबाबा को कोई भी नहीं जानते हैं। इस समय तुम बच्चे सबकी बायोग्राफी को जानते हो। मुख्य कौन-कौन होकर गये हैं जिन्हों को पूजते हैं? ऊंच ते ऊंच है भगवान। शिवरात्रि भी मनाते हैं तो जरूर उनका अवतरण हुआ है परन्तु कब हुआ, उसने क्या आकर किया – यह किसको भी पता नहीं है। शिव के साथ है ही ब्रह्मा। आदि देव और आदि देवी कौन हैं, उन्हों को इतनी भुजायें क्यों दी हैं? क्योंकि वृद्धि तो होती है ना। प्रजापिता ब्रह्मा से कितनी वृद्धि होती है। ब्रह्मा के लिए ही कहते हैं – 100 भुजायें, हज़ार भुजाओं वाला। विष्णु वा शंकर के लिए इतनी भुजायें नहीं कहेंगे। ब्रह्मा के लिए क्यों कहते हैं? यह प्रजापिता ब्रह्मा की ही सारी वंशावली है ना। यह कोई बाहों की बात नहीं है। वह भल कहते हैं हज़ार भुजाओं वाला ब्रह्मा, परन्तु अर्थ थोड़ेही समझते हैं। अब तुम प्रैक्टिकल में देखो ब्रह्मा की कितनी भुजायें हैं। यह है बेहद की भुजायें। प्रजापिता ब्रह्मा को तो सब मानते हैं परन्तु आक्यूपेशन को नहीं जानते। आत्मा की तो बाहें नहीं होती, बाहें शरीर की होती हैं। इतने करोड़ ब्रदर्स हैं तो उन्हों की भुजायें कितनी हुई? परन्तु पहले जब कोई पूरी रीति ज्ञान को समझ जाये, तब बाद में यह बातें सुनानी हैं। पहली-पहली मुख्य बात है एक, बाप कहते हैं मुझे याद करो और वर्से को याद करो फिर ज्ञान का सागर भी गाया हुआ है। कितनी अथाह प्वाइन्ट्स सुनाते हैं। इतनी सब प्वाइन्ट्स तो याद रह न सकें। तन्त (सार) बुद्धि में रह जाता है। पिछाड़ी में तन्त हो जाता है – मन्मनाभव।
ज्ञान का सागर श्रीकृष्ण को नहीं कहेंगे। वह है रचना। रचता एक ही बाप है। बाप ही सबको वर्सा देंगे, घर ले जायेंगे। बाप का तथा आत्माओं का घर है ही साइलेन्स होम। विष्णुपुरी को बाप का घर नहीं कहेंगे। घर है मूलवतन, जहाँ आत्मायें रहती हैं। यह सब बातें सेन्सीबुल बच्चे ही धारण कर सकते हैं। इतना सारा ज्ञान कोई की बुद्धि में याद रह न सके। न इतने कागज लिख सकते हैं। यह मुरलियाँ भी सबकी सब इकट्ठी करते जायें तो इस सारे हाल से भी जास्ती हो जायें। उस पढ़ाई में भी कितने ढेर किताब होते हैं। इम्तहान पास कर लिया फिर तन्त बुद्धि में बैठ जाता है। बैरिस्टरी का इम्तहान पास कर लिया, एक जन्म लिए अल्प-काल सुख मिल जाता है। वह है विनाशी कमाई। तुमको तो यह बाप अविनाशी कमाई कराते हैं – भविष्य के लिए। बाकी जो भी गुरु-गोसाई आदि हैं वह सब विनाशी कमाई कराते हैं। विनाश के नजदीक आते जाते हैं, कमाई कम होती जाती है। तुम कहेंगे कमाई तो बढ़ती जाती है, परन्तु नहीं। यह तो सब खत्म हो जाना है। आगे राजाओं आदि की कमाई चलती थी। अभी तो वे भी नहीं हैं। तुम्हारी कमाई तो कितना समय चलती है। तुम जानते हो यह बना बनाया ड्रामा है, जिसको दुनिया में कोई नहीं जानते हैं। तुम्हारे में भी नम्बरवार हैं, जिनको धारणा होती है। कई तो बिल्कुल कुछ भी समझा नहीं सकते हैं। कोई कहते हैं हम मित्र-सम्बन्धियों आदि को समझाते हैं, वह भी तो अल्पकाल हुआ ना। औरों को प्रदर्शनी आदि क्यों नहीं समझाते? पूरी धारणा नहीं है। अपने को मिया मिठ्ठू तो नहीं समझना है ना। सर्विस का शौक है तो जो अच्छी रीति समझाते हैं, उनका सुनना चाहिए। बाप ऊंच पद प्राप्त कराने आये हैं तो पुरूषार्थ करना चाहिए ना। परन्तु तकदीर में नहीं है तो श्रीमत भी नहीं मानते, फिर पद भ्रष्ट हो जाता है। ड्रामा प्लेन अनुसार राजधानी स्थापन हो रही है। उसमें तो सब प्रकार के चाहिए ना। बच्चे समझ सकते हैं कोई अच्छी प्रजा बनने वाले हैं, कोई कम। बाप कहते हैं हम तुमको राजयोग सिखलाने आया हूँ। देलवाड़ा मन्दिर में राजाओं के चित्र हैं ना। जो पूज्य बनते हैं वही फिर पुजारी बनते हैं। राजा-रानी का मर्तबा तो ऊंच है ना। फिर वाम मार्ग में आते हैं तब भी राजाई अथवा बड़े-बड़े साहूकार तो हैं। जगन्नाथ के मन्दिर में सबको ताज दिखाया है। प्रजा को तो ताज नहीं होगा। ताज वाले राजायें भी विकार में दिखाते हैं। सुख सम्पत्ति तो उन्हों को बहुत होगी। सम्पत्ति कम जास्ती तो होती है। हीरे के महल और चाँदी के महलों में फर्क तो होता है। तो बाप बच्चों को कहेंगे – अच्छा पुरूषार्थ कर ऊंच पद पाओ। राजाओं को सुख जास्ती होता है, वहाँ सब सुखी होते हैं। जैसे यहाँ सबको दु:ख है, बीमारी आदि तो सबको होती ही है। वहाँ सुख ही सुख है, फिर भी मर्तबे तो नम्बरवार हैं। बाप सदैव कहते हैं पुरूषार्थ करते रहो, सुस्त मत बनो। पुरूषार्थ से समझा जाता है ड्रामा अनुसार इनकी सद्गति इस प्रकार इतनी ही होती है।
अपनी सद्गति के लिए श्रीमत पर चलना है। टीचर की मत पर स्टूडेन्ट न चलें तो कोई काम के नहीं। नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार तो सब हैं। अगर कोई कहते हैं कि हम यह नहीं कर सकेंगे तो बाकी क्या सीखेंगे! सीखकर होशियार होना चाहिए, जो कोई भी कहे यह समझाते तो बहुत अच्छा हैं परन्तु आत्मा जीते जी मरकर एक बाप की बनें, और कोई याद न आये, देह-अभिमान छूट जाये – यह है ऊंची मंजिल। सब कुछ भूलना है। पूरी देही-अभिमानी अवस्था बन जाये – यह बड़ी मंजिल है। वहाँ आत्मायें हैं ही अशरीरी फिर यहाँ आकर देह धारण करती हैं। अब फिर यहाँ इस देह में होते हुए अपने को अशरीरी समझना है। यह मेहनत बड़ी भारी है। अपने को आत्मा समझ कर्मातीत अवस्था में रहना है। सर्प को भी अक्ल है ना – पुरानी खाल छोड़ देते हैं। तो तुमको देह-अभिमान से कितना निकलना है। मूलवतन में तो तुम हो ही देही-अभिमानी। यहाँ देह में होते अपने को आत्मा समझना है। देह-अभिमान टूट जाना चाहिए। कितना भारी इम्तहान है। भगवान को खुद आकर पढ़ाना पड़ता है। ऐसे और कोई कह न सके कि देह के सब सम्बन्ध छोड़ मेरा बनो, अपने को निराकार आत्मा समझो। कोई भी चीज का भान न रहे। माया एक-दो की देह में बहुत फँसाती है इसलिए बाबा कहते हैं इस साकार को भी याद नहीं करना है। बाबा कहते तुमको तो अपनी देह को भी भूलना है, एक बाप को याद करना है। इसमें बहुत मेहनत है। माया अच्छे-अच्छे बच्चों को भी नाम-रूप में लटका देती है। यह आदत बड़ी खराब है। शरीर को याद करना – यह तो भूतों की याद हो गई। हम कहते हैं एक शिवबाबा को याद करो। तुम फिर 5 भूतों को याद करते रहते हो। देह से बिल्कुल लगाव नहीं होना चाहिए। ब्राह्मणी से भी सीखना है, न कि उनके नाम-रूप में लटकना है। देही-अभिमानी बनने में ही मेहनत है। बाबा के पास भल चार्ट बहुत बच्चे भेज देते हैं परन्तु बाबा उस पर विश्वास नहीं करता है। कोई तो कहते हैं हम शिवबाबा के सिवाए और किसको याद नहीं करते हैं, परन्तु बाबा जानते हैं – पाई भी याद नहीं करते हैं। याद की तो बड़ी मेहनत है। कहाँ न कहाँ फँस पड़ते हैं। देहधारी को याद करना, यह तो 5 भूतों की याद है। इनको भूत पूजा कहा जाता है। भूत को याद करते हैं। यहाँ तो तुमको एक शिवबाबा को याद करना है। पूजा की तो बात नहीं। भक्ति का नाम-निशान गुम हो जाता है फिर चित्रों को क्या याद करना है। वह भी मिट्टी के बने हुए हैं। बाप कहते हैं यह भी सब ड्रामा में नूँध है। अब फिर तुमको पुजारी से पूज्य बनाता हूँ। कोई भी शरीर को याद नहीं करना है, सिवाए एक बाप के। आत्मा जब पावन बन जायेगी तो फिर शरीर भी पावन मिलेगा। अभी तो यह शरीर पावन नहीं है। पहले आत्मा जब सतोप्रधान से सतो, रजो, तमो में आती है तो शरीर भी उस अनुसार मिलता है। अभी तुम्हारी आत्मा पावन बनती जायेगी लेकिन शरीर अभी पावन नहीं होगा। यह समझने की बातें हैं। यह प्वाइन्ट्स भी उनकी बुद्धि में बैठेंगी जो अच्छी रीति समझकर समझाते रहते हैं। सतोप्रधान आत्मा को बनना है। बाप को याद करने की ही बड़ी मेहनत है। कइयों को तो ज़रा भी याद नहीं रहती है। पास विद् ऑनर बनने के लिए बुद्धियोग थोड़ा भी कहीं न भटके। एक बाप की ही याद रहे। परन्तु बच्चों का बुद्धियोग भटकता रहता है। जितना बहुतों को आप समान बनायेंगे उतना ही पद मिलेगा। देह को याद करने वाले कभी ऊंच पद पा न सकें। यहाँ तो पास विद् ऑनर होना है। मेहनत बिगर यह पद कैसे मिलेगा! देह को याद करने वाले कोई पुरूषार्थ नहीं कर सकते। बाप कहते हैं पुरूषार्थ करने वाले को फालो करो। यह भी पुरूषार्थी है ना।
यह बड़ा विचित्र ज्ञान है। दुनिया में किसको भी पता नहीं है। किसकी भी बुद्धि में नहीं बैठेगा कि आत्मा की चेन्ज कैसे होती है। यह सारी गुप्त मेहनत है। बाबा भी गुप्त है। तुम राजाई कैसे प्राप्त करते हो, लड़ाई-झगड़ा कुछ भी नहीं है। ज्ञान और योग की ही बात है। हम कोई से लड़ते नहीं हैं। यह तो आत्मा को पवित्र बनाने के लिए मेहनत करनी है। आत्मा जैसे-जैसे पतित बनती जाती है तो शरीर भी पतित लेती है फिर आत्मा को पावन बनकर जाना है, बहुत मेहनत है। बाबा समझ सकते हैं – कौन-कौन पुरूषार्थ करते हैं! यह है शिवबाबा का भण्डारा। शिवबाबा के भण्डारे में तुम सर्विस करते हो। सर्विस नहीं करेंगे तो पाई पैसे का पद जाकर पायेंगे। बाप के पास सर्विस के लिए आये और सर्विस नहीं की तो क्या पद मिलेगा! यह राजधानी स्थापन हो रही है, इसमें नौकर-चाकर आदि सब बनेंगे ना। अभी तुम रावण पर जीत पाते हो, बाकी और कोई लड़ाई नहीं है। यह समझाया जाता है, कितनी गुप्त बात है। योगबल से विश्व की बादशाही तुम लेते हो। तुम जानते हो हम अपने शान्तिधाम के रहने वाले हैं। तुम बच्चों को बेहद का घर ही याद है। यहाँ हम पार्ट बजाने आये हैं फिर जाते हैं अपने घर। आत्मा कैसे जाती है यह भी कोई समझते नहीं हैं। ड्रामा प्लैन अनुसार आत्माओं को आना ही है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) किसी भी देहधारी से लगाव नहीं रखना है। शरीर को याद करना भी भूतों को याद करना है, इसलिए किसी के नाम-रूप में नहीं लटकना है। अपनी देह को भी भूलना है।
2) भविष्य के लिए अविनाशी कमाई जमा करनी है। सेन्सीबुल बन ज्ञान की प्वाइन्ट्स को बुद्धि में धारण करना है। जो बाप ने समझाया है वह समझकर दूसरों को सुनाना है।
वरदान:- | कल्प-कल्प के विजय की स्मृति के आधार पर माया दुश्मन का आह्वान करने वाले महावीर विजयी भव महावीर विजयी बच्चे पेपर को देखकर घबराते नहीं क्योंकि त्रिकालदर्शी होने के कारण जानते हैं कि हम कल्प-कल्प के विजयी हैं। महावीर कभी ऐसे नहीं कह सकते कि बाबा हमारे पास माया को न भेजो – कृपा करो, आशीर्वाद करो, शक्ति दो, क्या करूं कोई रास्ता दो….यह भी कमजोरी है। महावीर तो दुश्मन का आह्वान करते हैं कि आओ और हम विजयी बनें। |
स्लोगन:- | समय की सूचना है – समान बनो सम्पन्न बनो। |
अव्यक्त इशारे:- एकान्तप्रिय बनो एकता और एकाग्रता को अपनाओ
कोई भी सिद्धि के लिए एक तो एकान्त दूसरी एकाग्रता दोनों की विधि द्वारा सिद्धि को पाते हैं। जैसे आपके यादगार चित्रों द्वारा सिद्धि प्राप्त करने वालों की विशेष दो बातों की विधि अपनाते हैं – एकान्तवासी और एकाग्रता। यही विधि आप भी साकार में अपनाओ। एकाग्रता कम होने के कारण ही दृढ़ निश्चय की कमी होती है। एकान्तवासी कम होने के कारण ही साधारण संकल्प बीज को कमजोर बना देते हैं इसलिए इस विधि द्वारा सिद्धि-स्वरुप बनो।
मीठे बच्चे – पास विद ऑनर होना है तो बुद्धियोग थोड़ा भी कहीं न भटके, एक बाप की याद रहे, देह को याद करने वाले ऊंच पद नहीं पा सकते
प्रश्न 1: सबसे ऊंची मंजिल कौन-सी है?
उत्तर: सबसे ऊंची मंजिल यह है कि आत्मा जीते जी मरकर एक बाप की बन जाए और कोई भी याद न आए। जब देह-अभिमान पूरी तरह से समाप्त हो जाए और निरंतर देही-अभिमानी अवस्था बनी रहे, तभी कर्मातीत अवस्था प्राप्त होगी। यही सबसे ऊंची मंजिल है।
प्रश्न 2: बाप को “ज्ञान का सागर” क्यों कहा जाता है?
उत्तर: बाप को “ज्ञान का सागर” इसलिए कहा जाता है क्योंकि वे अनंत ज्ञान के स्रोत हैं। वे ही सच्चा ज्ञान देकर आत्माओं को सतोप्रधान बनाते हैं और भविष्य के लिए अविनाशी कमाई कराते हैं। श्रीकृष्ण को ज्ञान का सागर नहीं कह सकते क्योंकि वे रचना हैं, जबकि ज्ञान देने वाला रचयिता केवल बाप ही है।
प्रश्न 3: चैतन्य देलवाड़ा मंदिर का क्या अर्थ है?
उत्तर: चैतन्य देलवाड़ा मंदिर का अर्थ है वह दिव्य स्थान, जहाँ आत्मायें जीते जी पवित्रता और तपस्या में स्थित होती हैं। जड़ देलवाड़ा मंदिर इसका यादगार है, जिसमें दिखाया गया है कि पहले ये आत्माएँ पूज्य थीं और अब पुनः उन्हीं बनने के लिए पुरूषार्थ कर रही हैं।
प्रश्न 4: प्रजापिता ब्रह्मा को “हजार भुजाओं वाला” क्यों कहा जाता है?
उत्तर: प्रजापिता ब्रह्मा को “हजार भुजाओं वाला” इसलिए कहा जाता है क्योंकि उनसे ही अनेक आत्माओं की वृद्धि होती है। यह बाहों की बात नहीं, बल्कि ब्रह्मा की संतान रूपी अनेक आत्माओं की वृद्धि का प्रतीक है।
प्रश्न 5: शिवबाबा का घर कौन-सा है?
उत्तर: शिवबाबा का घर मूलवतन (शांतिधाम) है। वह ही आत्माओं का परमधाम है, जहाँ से आत्माएँ इस सृष्टि पर आकर पार्ट बजाती हैं। विष्णुपुरी को बाप का घर नहीं कह सकते, क्योंकि वह स्थूल सृष्टि का हिस्सा है।
प्रश्न 6: कौन-से बच्चे ऊंच पद प्राप्त कर सकते हैं?
उत्तर: वे बच्चे जो निरंतर बाप की याद में रहकर बुद्धियोग को कहीं भी भटकने नहीं देते, वे ऊंच पद प्राप्त कर सकते हैं। देह को याद करने वाले कभी ऊंच पद प्राप्त नहीं कर सकते, क्योंकि उनकी बुद्धि बार-बार माया में चली जाती है।
प्रश्न 7: पास विद ऑनर होने के लिए कौन-सी विशेषता जरूरी है?
उत्तर: पास विद ऑनर होने के लिए बुद्धियोग को केवल एक बाप में लगाना जरूरी है। किसी भी देहधारी से लगाव नहीं होना चाहिए, यहाँ तक कि अपनी देह को भी भूल जाना चाहिए।
प्रश्न 8: बाप बच्चों को कौन-सी विशेष मेहनत कराते हैं?
उत्तर: बाप बच्चों को यह मेहनत कराते हैं कि वे अपने को आत्मा समझें और देह-अभिमान से मुक्त हों। देही-अभिमानी बनना सबसे बड़ी मेहनत है, क्योंकि आत्मा को शरीर में रहते हुए भी अशरीरी स्थिति में टिकना सीखना है।
प्रश्न 9: देह को याद करना क्यों भूत पूजा के समान है?
उत्तर: देह को याद करना इसलिए भूत पूजा के समान है क्योंकि यह 5 विकारों (काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार) की याद को बढ़ावा देता है। बाप कहते हैं कि तुम्हें सिर्फ एक शिवबाबा को याद करना है, अन्य किसी शरीर को नहीं।
प्रश्न 10: राजाई कैसे प्राप्त होती है?
उत्तर: राजाई ज्ञान और योग के बल से प्राप्त होती है। यह कोई युद्ध या झगड़े से नहीं मिलती, बल्कि आत्मा को पवित्र बनाने की गुप्त मेहनत से मिलती है। जब आत्मा सतोप्रधान बनती है, तभी उसे भविष्य में विश्व की बादशाही प्राप्त होती है।
प्रश्न 11: माया से डरना क्यों कमजोरी है?
उत्तर: माया से डरना कमजोरी है क्योंकि महावीर आत्माएँ कभी माया से घबराती नहीं हैं। वे तो माया का आह्वान करते हैं ताकि जीत हासिल कर सकें। वे यह नहीं कहते कि बाबा कृपा करो, शक्ति दो, बल्कि वे जानते हैं कि वे कल्प-कल्प के विजयी हैं।
प्रश्न 12: कौन-से बच्चे बाप को पसंद आते हैं?
उत्तर: वे बच्चे जो सेवा में तत्पर रहते हैं, जो स्वयं भी सीखते हैं और दूसरों को भी सिखाते हैं। बाप ऐसे बच्चों को पसंद करते हैं जो अपना और दूसरों का कल्याण करने में लगे रहते हैं, न कि मियाँ मिठ्ठू बनकर स्वयं को ही श्रेष्ठ समझते हैं।
प्रश्न 13: आत्मा का सतोप्रधान बनने का उपाय क्या है?
उत्तर: आत्मा सतोप्रधान बनने के लिए निरंतर बाप को याद करे, ज्ञान को धारण करे, और देह-अभिमान से मुक्त हो। जब आत्मा पावन बन जाएगी, तब उसका शरीर भी पावन मिलेगा।
प्रश्न 14: बाप की श्रीमत पर न चलने का परिणाम क्या होता है?
उत्तर: जो बच्चे बाप की श्रीमत पर नहीं चलते, वे ऊंच पद प्राप्त नहीं कर सकते और उनका पद भ्रष्ट हो जाता है। श्रीमत पर चलना ही आत्मा की सद्गति का एकमात्र मार्ग है।
प्रश्न 15: एकांत और एकाग्रता का क्या महत्व है?
उत्तर: एकांत और एकाग्रता से ही सिद्धि प्राप्त होती है। यदि मन एकाग्र नहीं होगा तो दृढ़ निश्चय में कमी आ जाएगी। एकांतप्रिय बनकर आत्मा को परमात्मा में स्थिर करने से ही सच्ची सफलता मिलती है।
स्लोगन:“समय की सूचना है – समान बनो सम्पन्न बनो।”
मीठे बच्चे, पास विद ऑनर, बुद्धियोग, एक बाप की याद, ऊंच पद, ऊंची मंजिल, देही-अभिमानी अवस्था, कर्मातीत अवस्था, ज्ञान का सागर, बापदादा, गॉड फादरली युनिवर्सिटी, चैतन्य देलवाड़ा, प्रजापिता ब्रह्मा, श्रीमत, मन्मनाभव, अविनाशी कमाई, ड्रामा प्लान, पुरूषार्थ, राजयोग, योगबल, भविष्य की कमाई, आत्मा पावन, देह-अभिमान, माया पर जीत, शिवबाबा का भंडारा, समान बनो, सम्पन्न बनो, एकान्तप्रिय, एकाग्रता, महावीर विजयी, त्रिकालदर्शी, आत्म-साक्षात्कार
Sweet children, pass with honours, yoga of the intellect, remembrance of the one Father, high position, high destination, soul conscious stage, karmateet stage, Ocean of Knowledge, BapDada, God Fatherly University, Chaitanya Delwara, Prajapita Brahma, shrimat, Manmanaabhav, imperishable earnings, drama plan, effort, Rajayoga, power of yoga, future earnings, purify the soul, body consciousness, victory over Maya, ShivBaba’s treasure house, become equal, become complete, love for solitude, concentration, Mahavir victorious, trikaldarshi (one who sees the three periods), self-realisation.