Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
12-03-2025 |
प्रात:मुरली
ओम् शान्ति
“बापदादा”‘
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मधुबन |
“मीठे बच्चे – बाप अभी तुम्हारी पालना कर रहे हैं, पढ़ा रहे हैं, घर बैठे राय दे रहे हैं, तो कदम-कदम पर राय लेते रहो तब ऊंच पद मिलेगा” | |
प्रश्नः- | सजाओं से छूटने के लिए कौन-सा पुरूषार्थ बहुत समय का चाहिए? |
उत्तर:- | नष्टोमोहा बनने का। किसी में भी ममत्व न हो। अपने दिल से पूछना है – हमारा किसी में मोह तो नहीं है? कोई भी पुराना सम्बन्ध अन्त में याद न आये। योगबल से सब हिसाब-किताब चुक्तू करने हैं तब ही बिगर सजा ऊंच पद मिलेगा। |
ओम् शान्ति। अभी तुम किसके सम्मुख बैठे हो? बापदादा के। बाप भी कहना पड़े तो दादा भी कहना पड़े। बाप भी इस दादा के द्वारा तुम्हारे सम्मुख बैठे हैं। बाहर में तुम रहते हो तो वहाँ बाप को याद करना पड़ता है। चिट्ठी लिखनी पड़ती है। यहाँ तुम सम्मुख हो। बातचीत करते हो – किसके साथ? बापदादा के साथ। यह है ऊंच ते ऊंच दो अथॉरिटी। ब्रह्मा है साकार और शिव है निराकार। अभी तुम जानते हो ऊंच ते ऊंच अथॉरिटी, बाप से कैसे मिलना होता है! बेहद का बाप जिसको पतित-पावन कह बुलाते हैं, अभी प्रैक्टिकल में तुम उनके सम्मुख बैठे हो। बाप बच्चों की पालना कर रहे हैं, पढ़ा रहे हैं। घर बैठे भी बच्चों को राय मिलती है कि घर में ऐसे-ऐसे चलो। अब बाप की श्रीमत पर चलेंगे तो श्रेष्ठ से श्रेष्ठ बनेंगे। बच्चे जानते हैं हम ऊंच ते ऊंच बाप की मत से ऊंच ते ऊंच मर्तबा पाते हैं। मनुष्य सृष्टि में ऊंच ते ऊंच यह लक्ष्मी-नारायण का मर्तबा है। यह पास्ट में होकर गये हैं। मनुष्य जाकर इन ऊंच को नमस्ते करते हैं। मुख्य बात है ही पवित्रता की। मनुष्य तो मनुष्य ही हैं। परन्तु कहाँ वह विश्व के मालिक, कहाँ अभी के मनुष्य! यह तुम्हारी बुद्धि में ही है – भारत बरोबर 5 हज़ार वर्ष पहले ऐसा था, हम ही विश्व के मालिक थे। और किसकी बुद्धि में यह नहीं है। इनको भी पता थोड़ेही था, बिल्कुल घोर अन्धियारे में थे। अभी बाप ने आकर बताया है ब्रह्मा सो विष्णु, विष्णु सो ब्रह्मा कैसे होते हैं? यह बड़ी गुह्य रमणीक बातें हैं जो और कोई समझ न सके। सिवाए बाप के यह नॉलेज कोई पढ़ा न सके। निराकार बाप आकर पढ़ाते हैं। श्रीकृष्ण भगवानुवाच नहीं है। बाप कहते हैं मैं तुमको पढ़ाकर सुखी बनाता हूँ। फिर मैं अपने निर्वाणधाम में चला आता हूँ। अभी तुम बच्चे सतोप्रधान बन रहे हो, इसमें खर्चा कुछ भी नहीं है। सिर्फ अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना है। बिगर कौड़ी खर्चा 21 जन्म के लिए तुम विश्व के मालिक बनते हो। पाई-पैसा भेज देते हैं, वह भी अपना भविष्य बनाने। कल्प पहले जिसने जितना खजाने में डाला है, उतना ही अब डालेंगे। न जास्ती, न कम डाल सकते। यह बुद्धि में ज्ञान है इसलिए फिक्र की कोई बात नहीं रहती। बिगर कोई फिक्र के हम अपनी गुप्त राजधानी स्थापन कर रहे हैं। यह बुद्धि में सिमरण करना है। तुम बच्चों को बहुत खुशी में रहना चाहिए और फिर नष्टोमोहा भी बनना है। यहाँ नष्टोमोहा होने से फिर तुम वहाँ मोहजीत राजा-रानी बनेंगे। तुम जानते हो यह पुरानी दुनिया तो अब खत्म होनी है, अब वापिस जाना है फिर इसमें ममत्व क्यों रखें। कोई बीमार होता है, डॉक्टर कह देते हैं, केस होपलेस है तो फिर उनसे ममत्व निकल जाता है। समझते हैं आत्मा एक शरीर छोड़ जाए दूसरा लेती है। आत्मा तो अविनाशी है ना। आत्मा चली गई, शरीर खत्म हो गया फिर उनको याद करने से फायदा क्या! अभी बाप कहते हैं तुम नष्टोमोहा बनो। अपनी दिल से पूछना है – हमारा किसी में मोह तो नहीं है? नहीं तो वह पिछाड़ी में याद जरूर आयेंगे। नष्टोमोहा होंगे तो यह पद पायेंगे। स्वर्ग में तो सब आयेंगे – वह कोई बड़ी बात नहीं है। बड़ी बात है सज़ा न खाकर, ऊंच पद पाना। योगबल से हिसाब-किताब चुक्तू करेंगे तो फिर सज़ा नहीं खायेंगे। पुराने सम्बन्धी भी याद न पड़ें। अभी तो हमारा ब्राह्मणों से नाता है फिर हमारा देवताओं से नाता होगा। अभी का नाता सबसे ऊंच है।
अभी तुम ज्ञान सागर बाप के बने हो। सारी नॉलेज बुद्धि में है। आगे थोड़ेही यह जानते थे कि सृष्टि चक्र कैसे फिरता है? अभी बाप ने समझाया है। बाप से वर्सा मिलता है तब तो बाप के साथ लॅव है ना। बाप द्वारा स्वर्ग की बादशाही मिलती है। उनका यह रथ मुकरर है। भारत में ही भागीरथ गाया हुआ है। बाप आते भी भारत में हैं। तुम बच्चों की बुद्धि में अभी 84 जन्मों की सीढ़ी का ज्ञान है। तुम जान चुके हो यह 84 का चक्र हमको लगाना ही है। 84 के चक्र से छूट नहीं सकते हैं। तुम जानते हो कि सीढ़ी उतरने में बहुत टाइम लगता है, चढ़ने में सिर्फ यह अन्तिम जन्म लगता है इसलिए कहा जाता है तुम त्रिलोकीनाथ, त्रिकालदर्शी बनते हो। पहले तुमको यह पता था क्या कि हम त्रिलोकीनाथ बनने वाले हैं? अभी बाप मिला है, शिक्षा दे रहे हैं तब तुम समझते हो। बाबा के पास कोई आते हैं बाबा पूछते हैं – आगे इस ड्रेस में इसी मकान में कभी मिले हो? कहते हैं – हाँ बाबा, कल्प-कल्प मिलते हैं। तो समझा जाता है ब्रह्माकुमारी ने ठीक समझाया है। अभी तुम बच्चे स्वर्ग के झाड़ सामने देख रहे हो। नजदीक हो ना। मनुष्य बाप के लिए कहते हैं – नाम-रूप से न्यारा है, तो फिर बच्चे कहाँ से आयेंगे! वह भी नाम-रूप से न्यारे हो जाएं! अक्षर जो कहते हैं बिल्कुल रांग। जिन्होंने कल्प पहले समझा होगा, उनकी ही बुद्धि में बैठेगा। प्रदर्शनी में देखो कैसे-कैसे आते हैं। कोई तो सुनी सुनाई बातों पर लिख देते हैं कि यह सब कल्पना है। तो समझा जाता है यह अपने कुल के नहीं हैं। अनेक प्रकार के मनुष्य हैं। तुम्हारी बुद्धि में सारा झाड़, ड्रामा, 84 का चक्र आ गया है। अभी पुरूषार्थ करना है। वह भी ड्रामा अनुसार ही होता है। ड्रामा में नूँध है। ऐसे भी नहीं, ड्रामा में पुरूषार्थ करना होगा तो करेंगे, यह कहना रांग है। ड्रामा को पूरा नहीं समझा है, उनको फिर नास्तिक कहा जाता है। वे बाप से प्रीत रख न सकें। ड्रामा के राज़ को उल्टा समझने से गिर पड़ते हैं, फिर समझा जाता है इनकी तकदीर में नहीं है। विघ्न तो अनेक प्रकार के आयेंगे। उनकी परवाह नहीं करनी है। बाप कहते हैं जो अच्छी बातें तुमको सुनाते हैं वह सुनो। बाप को याद करने से खुश बहुत रहेंगे। बुद्धि में है अब 84 का चक्र पूरा होता है, अब जाना है अपने घर। ऐसे-ऐसे अपने साथ बातें करनी हैं। तुम पतित तो जा नहीं सकते हो। पहले जरूर साजन चाहिए, पीछे बरात। गाया हुआ भी है भोलानाथ की बरात। सबको नम्बरवार जाना तो है, इतना आत्माओं का झुण्ड कैसे नम्बरवार जाता होगा! मनुष्य पृथ्वी पर कितनी जगह लेते हैं, कितना फर्नीचर जागीर आदि चाहिए। आत्मा तो है बिन्दी। आत्मा को क्या चाहिए? कुछ भी नहीं। आत्मा कितनी छोटी जगह लेती है। इस साकारी झाड़ और निराकारी झाड़ में कितना फर्क है! वह है बिन्दियों का झाड़। यह सब बातें बाप बुद्धि में बिठाते हैं। तुम्हारे सिवाए ये बातें दुनिया में और कोई सुन न सके। बाप अभी अपने घर और राजधानी की याद दिलाते हैं। तुम बच्चे रचयिता को जानने से सृष्टि चक्र के आदि-मध्य-अन्त को जानते हो। तुम त्रिकालदर्शी, आस्तिक हो गये। दुनिया भर में कोई आस्तिक नहीं। वह है हद की पढ़ाई, यह है बेहद की पढ़ाई। वह अनेक टीचर्स पढ़ाने वाले, यह एक टीचर पढ़ाने वाला। जो फिर वन्डरफुल है। यह बाप भी है, टीचर भी है तो गुरू भी है। यह टीचर तो सारे वर्ल्ड का है। परन्तु सबको तो पढ़ना नहीं है। बाप को सभी जान जायें तो बहुत भागें, बापदादा को देखने लिए। ग्रेट ग्रेट ग्रैन्ड फादर एडम में बाप आया है, तो एकदम भाग आये। बाप की प्रत्यक्षता तब होती है जब लड़ाई शुरू होती है, फिर कोई आ भी नहीं सकते हैं। तुम जानते हो यह अनेक धर्मों का विनाश भी होना है। पहले-पहले एक भारत ही था और कोई खण्ड नहीं था। अभी तुम्हारी बुद्धि में भक्ति मार्ग की भी बातें हैं। बुद्धि से कोई भूल थोड़ेही जाता है। परन्तु याद रहते हुए भी यह ज्ञान है, भक्ति का पार्ट पूरा हुआ अब तो हमको वापिस जाना है। इस दुनिया में रहना नहीं है। घर जाने लिए तो खुशी होनी चाहिए ना। तुम बच्चों को समझाया है तुम्हारी अब वानप्रस्थ अवस्था है। तुम दो पैसे इस राजधानी स्थापन करने में लगाते हो, वह भी जो करते हो, हूबहू कल्प पहले मिसल। तुम भी हूबहू कल्प पहले वाले हो। तुम कहते हो बाबा आप भी कल्प पहले वाले हो। हम कल्प-कल्प बाबा से पढ़ते हैं। श्रीमत पर चल श्रेष्ठ बनना है। यह बातें और कोई की बुद्धि में नहीं होंगी। तुमको यह खुशी है कि हम अपनी राजधानी स्थापन कर रहे हैं श्रीमत पर। बाप सिर्फ कहते हैं पवित्र बनो। तुम पवित्र बनेंगे तो सारी दुनिया पवित्र बनेंगी। सब वापिस चले जायेंगे। बाकी और बातों की हम फिक्र ही क्यों करें। कैसे सजा खायेंगे, क्या होगा, इसमें हमारा क्या जाता है। हमको अपना फिक्र करना है। और धर्म वालों की बातों में हम क्यों जायें। हम हैं आदि सनातन देवी-देवता धर्म के। वास्तव में इनका नाम भारत है फिर हिन्दुस्तान नाम रख दिया है। हिन्दू कोई धर्म नहीं है। हम लिखते हैं कि हम देवता धर्म के हैं तो भी वह हिन्दू लिख देते हैं क्योंकि जानते ही नहीं कि देवी-देवता धर्म कब था। कोई भी समझते नहीं हैं। अभी इतने बी.के. हैं, यह तो फैमिली हो गई है ना! घर हो गया ना! ब्रह्मा तो है प्रजापिता, सबका ग्रेट-ग्रेट ग्रैन्ड फादर। पहले-पहले तुम ब्राह्मण बनते हो फिर वर्णों में आते हो।
तुम्हारा यह कॉलेज अथवा युनिवर्सिटी भी है, हॉस्पिटल भी है। गाया जाता है ज्ञान अंजन सतगुरू दिया, अज्ञान अंधेर विनाश…….। योगबल से तुम एवरहेल्दी एवरवेल्दी बनते हो। नेचर-क्योर कराते हैं ना। अभी तुम्हारी आत्मा क्योर होने से फिर शरीर भी क्योर हो जायेगा। यह है स्प्रीचुअल नेचर-क्योर। हेल्थ वेल्थ हैप्पीनेस 21 जन्मों के लिए मिलती है। ऊपर में नाम लिख दो रूहानी नेचर-क्योर। मनुष्यों को पवित्र बनाने की युक्तियाँ लिखने में कोई हर्जा नहीं है। आत्मा ही पतित बनी है तब तो बुलाते हैं ना। आत्मा पहले सतोप्रधान पवित्र थी फिर अपवित्र बनी है फिर पवित्र कैसे बने? भगवानुवाच – मनमनाभव, मुझे याद करो तो मैं गैरन्टी करता हूँ तुम पवित्र हो जायेंगे। बाबा कितनी युक्तियां बतलाते हैं – ऐसे-ऐसे बोर्ड लगाओ। परन्तु कोई ने भी ऐसे बोर्ड लगाया नहीं है। चित्र मुख्य रखे हों। अन्दर कोई भी आये तो बोलो तुम आत्मा परमधाम में रहने वाली हो। यहाँ यह आरगन्स मिले हैं पार्ट बजाने के लिए। यह शरीर तो विनाशी है ना। बाप को याद करो तो विकर्म विनाश हो जायेंगे। अभी तुम्हारी आत्मा अपवित्र है फिर पवित्र बनो तो घर चले जायेंगे। समझाना तो बहुत सहज है। जो कल्प पहले वाला होगा वही आकर फूल बनेंगे। इसमें डरने की कोई बात नहीं है। तुम तो अच्छी बात लिखते हो। वह गुरू लोग भी मंत्र देते हैं ना। बाप भी मनमनाभव का मंत्र दे फिर रचयिता और रचना का राज़ समझाते हैं। गृहस्थ व्यवहार में रहते सिर्फ बाप को याद करो। दूसरे को भी परिचय दो, लाइट हाउस भी बनो।
तुम बच्चों को देही-अभिमानी बनने की बहुत गुप्त मेहनत करनी है। जैसे बाप जानते हैं मैं आत्माओं को पढ़ा रहा हूँ, ऐसे तुम बच्चे भी आत्म-अभिमानी बनने की मेहनत करो। मुख से शिव-शिव भी कहना नहीं है। अपने को आत्मा समझ बाप को याद करना है क्योंकि सिर पर पापों का बोझा बहुत है। याद से ही तुम पावन बनेंगे। कल्प पहले जैसे-जैसे जिन्होंने वर्सा लिया होगा, वही अपने-अपने समय पर लेंगे। अदली बदली कुछ हो नहीं सकती। मुख्य बात है ही देही-अभिमानी हो बाप को याद करना तो फिर माया का थप्पड़ नहीं खायेंगे। देह-अभिमान में आने से कुछ न कुछ विकर्म होगा फिर सौ गुणा पाप बन जाता है। सीढ़ी उतरने में 84 जन्म लगे हैं। अब फिर चढ़ती कला एक ही जन्म में होती है। बाबा आया है तो लिफ्ट की भी इन्वेन्शन निकली है। आगे तो कमर को हाथ देकर सीढ़ी चढ़ते थे। अभी सहज लिफ्ट निकली है। यह भी लिफ्ट है जो मुक्ति और जीवनमुक्ति में एक सेकण्ड में जाते हैं। जीवनबंध तक आने में 5 हज़ार वर्ष, 84 जन्म लगते हैं। जीवनमुक्ति में जाने में एक जन्म लगता है। कितना सहज है। तुम्हारे से भी जो पीछे आयेंगे वो भी झट चढ़ जायेंगे। समझते हैं खोई हुई चीज़ बाप देने आये हैं। उनकी मत पर जरूर चलेंगे। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बिगर कोई फिक्र (चिंता) के अपनी गुप्त राजधानी श्रीमत पर स्थापन करनी है। विघ्नों की परवाह नहीं करनी है। बुद्धि में रहे कल्प पहले जिन्होंने मदद की है वह अभी भी अवश्य करेंगे, फिक्र की बात नहीं।
2) सदा खुशी रहे कि अभी हमारी वानप्रस्थ अवस्था है, हम वापस घर जा रहे हैं। आत्म-अभिमानी बनने की बहुत गुप्त मेहनत करनी है। कोई भी विकर्म नहीं करना है।
वरदान:- | किसी भी विकराल समस्या को शीतल बनाने वाले सम्पूर्ण निश्चयबुद्धि भव जैसे बाप में निश्चय है वैसे स्वयं में और ड्रामा में भी सम्पूर्ण निश्चय हो। स्वयं में यदि कमजोरी का संकल्प उत्पन्न होता है तो कमजोरी के संस्कार बन जाते हैं, इसलिए व्यर्थ संकल्प रूपी कमजोरी के जर्म्स अपने अन्दर प्रवेश होने नहीं देना। साथ-साथ जो भी ड्रामा की सीन देखते हो, हलचल की सीन में भी कल्याण का अनुभव हो, वातावरण हिलाने वाला हो, समस्या विकराल हो लेकिन सदा निश्चयबद्धि विजयी बनो तो विकराल समस्या भी शीतल हो जायेगी। |
स्लोगन:- | जिसका बाप और सेवा से प्यार है उसे परिवार का प्यार स्वत:मिलता है। |
अव्यक्त इशारे – सत्यता और सभ्यता रूपी क्लचर को अपनाओ
जैसे परमात्मा एक है यह सभी भिन्न-भिन्न धर्म वालों की मान्यता है। ऐसे यथार्थ सत्य ज्ञान एक ही बाप का है अथवा एक ही रास्ता है, यह आवाज जब बुलन्द हो तब आत्माओं का अनेक तिनकों के सहारे तरफ भटकना बन्द हो। अभी यही समझते हैं कि यह भी एक रास्ता है। अच्छा रास्ता है। लेकिन आखिर भी एक बाप का एक ही परिचय, एक ही रास्ता है। यह सत्यता के परिचय की वा सत्य ज्ञान के शक्ति की लहर फैलाओ तब प्रत्यक्षता के झण्डे के नीचे सर्व आत्मायें सहारा ले सकेंगी।
मीठे बच्चे – बाप अभी तुम्हारी पालना कर रहे हैं, पढ़ा रहे हैं, घर बैठे राय दे रहे हैं, तो कदम-कदम पर राय लेते रहो तब ऊंच पद मिलेगा
1. सजाओं से छूटने के लिए कौन-सा पुरुषार्थ बहुत समय का चाहिए?
उत्तर: नष्टोमोहा बनने का। किसी में भी ममत्व न हो, कोई भी पुराना संबंध अंतिम समय में याद न आए। योगबल से सारे हिसाब चुक्तू करने हैं, तभी बिना सजा ऊंच पद मिलेगा।
2. अभी हम किसके सम्मुख बैठे हैं?
उत्तर: बापदादा के सम्मुख। बाप भी कहना पड़ता है और दादा भी। बाप इस दादा के द्वारा हमें पढ़ा रहे हैं और पालना कर रहे हैं।
3. ऊंच पद पाने के लिए मुख्य बात क्या है?
उत्तर: पवित्रता। मनुष्य तो सभी हैं, लेकिन विश्व के मालिक बनने के लिए पवित्रता ही मुख्य आधार है।
4. क्या योगबल से ही पुराने कर्मों के हिसाब चुक्तू हो सकते हैं?
उत्तर: हां, योगबल से ही पुराने हिसाब चुक्तू होंगे। अगर हिसाब चुक्तू नहीं हुआ तो सजा खानी पड़ेगी, जिससे ऊंच पद नहीं मिलेगा।
5. क्या 84 जन्मों के चक्र से छूट सकते हैं?
उत्तर: नहीं, 84 जन्मों का चक्र लगाना ही पड़ेगा। हम जानते हैं कि सीढ़ी उतरने में बहुत समय लगता है, लेकिन चढ़ने में यह अंतिम जन्म ही लगता है।
6. बाप का वर्सा प्राप्त करने के लिए क्या करना है?
उत्तर: बाप को याद कर योगबल से आत्मा को सतोप्रधान बनाना है। इससे हम 21 जन्मों के लिए विश्व के मालिक बन सकते हैं।
7. बाप की श्रीमत पर चलने का क्या लाभ है?
उत्तर: श्रीमत पर चलने से श्रेष्ठ से श्रेष्ठ आत्मा बनेंगे और ऊंच पद पाएंगे।
8. क्या बाप की पहचान सबको हो सकती है?
उत्तर: नहीं, केवल वे आत्माएं जो कल्प पहले बाप को पहचान चुकी हैं, वे ही इस बार भी पहचानेंगी।
9. बापदादा को प्रत्यक्ष देखने का समय कब आएगा?
उत्तर: जब महाविनाश शुरू होगा, तब बापदादा की प्रत्यक्षता होगी, लेकिन तब कोई भी आ नहीं सकेगा।
10. आत्मा को पवित्र बनने के लिए मुख्य उपाय क्या है?
उत्तर: मनमनाभव—बाप को याद करने से आत्मा के विकर्म विनाश होंगे और वह पवित्र बन जाएगी।
11. क्या बाप के बिना कोई और इस ज्ञान को पढ़ा सकता है?
उत्तर: नहीं, यह ज्ञान सिर्फ बाप ही पढ़ाते हैं। निराकार बाप ही आकर सृष्टि चक्र का रहस्य समझाते हैं।
12. अभी हमें अपने भविष्य की क्या चिंता करनी चाहिए?
उत्तर: हमें अपने भविष्य की कोई चिंता नहीं करनी चाहिए। हमें सिर्फ बाप की श्रीमत पर चलकर अपनी गुप्त राजधानी स्थापन करनी है।
13. क्या संसार की समस्याएं हमें प्रभावित कर सकती हैं?
उत्तर: नहीं, अगर हम सम्पूर्ण निश्चयबुद्धि हैं तो कोई भी विकराल समस्या हमें हिला नहीं सकती। हमें सिर्फ कल्याण के अनुभव में रहना है।
14. जीवनमुक्ति में जाने और 84 जन्मों के बंधन में आने में कितना समय लगता है?
उत्तर: जीवनमुक्ति में जाने में एक सेकंड लगता है, जबकि जीवनबंध में आने में 5000 वर्ष और 84 जन्म लगते हैं।
15. हमें अपनी स्थिति कैसी रखनी चाहिए?
उत्तर: हमें सदा खुशी में रहना चाहिए कि हमारी वानप्रस्थ अवस्था है और हम अब अपने घर जा रहे हैं।
स्लोगन:
“जिसका बाप और सेवा से प्यार है, उसे परिवार का प्यार स्वतः मिलता है।”
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