Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
29-03-2025 |
प्रात:मुरली
ओम् शान्ति
“बापदादा”‘
|
मधुबन |
“मीठे बच्चे – तुम्हें ज्ञान से अच्छी जागृति आई है, तुम अपने 84 जन्मों को, निराकार और साकार बाप को जानते हो, तुम्हारा भटकना बंद हुआ” | |
प्रश्नः- | ईश्वर की गत मत न्यारी क्यों गाई हुई है? |
उत्तर:- | 1. क्योंकि वह ऐसी मत देते हैं जिससे तुम ब्राह्मण सबसे न्यारे बन जाते हो। तुम सबकी एक मत हो जाती है, 2. ईश्वर ही है जो सबकी सद्गति करते हैं। पुजारी से पूज्य बनाते हैं इसलिए उनकी गत मत न्यारी है, जिसे तुम बच्चों के सिवाए कोई समझ नहीं सकता। |
ओम् शान्ति। तुम बच्चे जानते हो, बच्चों की अगर तबियत ठीक नहीं होगी तो बाप कहेंगे भल यहाँ सो जाओ। इसमें कोई हर्जा नहीं क्योंकि सिकीलधे बच्चे हैं अर्थात् 5 हज़ार वर्ष बाद फिर से आकर मिले हैं। किसको मिले हैं? बेहद के बाप को। यह भी तुम बच्चे जानते हो, जिनको निश्चय है बरोबर हम बेहद के बाप से मिले हैं क्योंकि बाप होता ही है एक हद का और दूसरा बेहद का। दु:ख में सब बेहद के बाप को याद करते हैं। सतयुग में एक ही लौकिक बाप को याद करते हैं क्योंकि वहाँ है ही सुखधाम। लौकिक बाप उसको कहा जाता है जो इस लोक में जन्म देता है। पारलौकिक बाप तो एक ही बार आकर तुमको अपना बनाते हैं। तुम रहने वाले भी बाप के साथ अमरलोक में हो – जिसको परलोक, परमधाम कहा जाता है। वह है परे ते परे धाम। स्वर्ग को परे ते परे नहीं कहेंगे। स्वर्ग नर्क यहाँ ही होता है। नई दुनिया को स्वर्ग, पुरानी दुनिया को नर्क कहा जाता है। अभी है पतित दुनिया, पुकारते भी हैं – हे पतित-पावन आओ। सतयुग में ऐसे नहीं कहेंगे। जब से रावण राज्य होता है तब पतित बनते हैं, उनको कहेंगे 5 विकारों का राज्य। सतयुग में है ही निर्विकारी राज्य। भारत की कितनी जबरदस्त महिमा है। परन्तु विकारी होने के कारण भारत की महिमा को जानते नहीं। भारत सम्पूर्ण निर्विकारी था, जब यह लक्ष्मी-नारायण राज्य करते थे। अभी वह राज्य नहीं है। वह राज्य कहाँ गया – यह पत्थर बुद्धियों को मालूम नहीं। और सभी अपने-अपने धर्म स्थापक को जानते हैं, एक ही भारतवासी हैं जो न अपने धर्म को जानते, न धर्म स्थापक को जानते हैं। और धर्म वाले अपने धर्म को तो जानते हैं परन्तु वह फिर कब स्थापन करने आयेंगे, यह नहीं जानते। सिक्ख लोगों को भी यह पता नहीं है कि हमारा सिक्ख धर्म पहले था नहीं। गुरुनानक ने आकर स्थापन किया तो जरूर फिर सुखधाम में नहीं रहेगा, तब ही गुरुनानक आकर फिर स्थापन करेंगे क्योंकि वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट होती है ना। क्रिश्चियन धर्म भी नहीं था फिर स्थापना हुई। पहले नई दुनिया थी, एक धर्म था। सिर्फ तुम भारतवासी ही थे, एक धर्म था फिर तुम 84 जन्म लेते-लेते यह भी भूल गये हो कि हम ही देवता थे। फिर हम ही 84 जन्म लेते हैं तब बाप कहते हैं तुम अपने जन्मों को नहीं जानते हो, मैं बतलाता हूँ। आधाकल्प रामराज्य था फिर रावण राज्य हुआ है। पहले है सूर्यवंशी घराना फिर चन्द्रवंशी घराना रामराज्य। सूर्य-वंशी लक्ष्मी-नारायण के घराने का राज्य था जो सूर्यवंशी लक्ष्मी-नारायण के घराने के थे, सो 84 जन्म ले अभी रावण के घराने के बने हैं। आगे पुण्य आत्माओं के घराने के थे, अभी पाप आत्माओं के घराने के बने हैं। 84 जन्म लिए हैं, वे तो 84 लाख कह देते। अब 84 लाख का कौन बैठ विचार करेंगे इसलिए कोई का विचार चलता ही नहीं। अभी तुमको बाप ने समझाया है, तुम बाप के आगे बैठे हो, निराकार बाप और साकार बाप दोनों ही भारत में नामीग्रामी हैं। गाते भी हैं परन्तु बाप को जानते नहीं हैं, अज्ञान नींद में सोये पड़े हैं। ज्ञान से जागृति होती है। रोशनी में मनुष्य कभी धक्का नहीं खाते। अन्धियारे में धक्के खाते रहते। भारतवासी पूज्य थे, अब पुजारी हैं। लक्ष्मी-नारायण पूज्य थे ना, यह किसकी पूजा करेंगे। अपना चित्र बनाए अपनी पूजा तो नहीं करेंगे। यह हो नहीं सकता। तुम बच्चे जानते हो – हम ही पूज्य, सो फिर कैसे पुजारी बनते हैं। यह बातें और कोई समझ नहीं सकते। बाप ही समझाते हैं इसलिए कहते भी हैं ईश्वर की गत मत न्यारी है।
अभी तुम बच्चे जानते हो बाबा ने हमारी सारी दुनिया से गत मत न्यारी कर दी है। सारी दुनिया में अनेक मत-मतान्तर हैं, यहाँ तुम ब्राह्मणों की है एक मत। ईश्वर की मत और गत। गत अर्थात् सद्गति। सद्गति दाता एक ही बाप है। गाते भी हैं सर्व का सद्गति दाता राम। परन्तु समझते नहीं कि राम किसको कहा जाता है। कहेंगे जिधर देखो राम ही राम रहता है, इसको कहा जाता है अज्ञान अन्धियारा। अन्धियारे में है दु:ख, सोझरे में है सुख। अन्धियारे में ही पुकारते हैं ना। बंदगी करना माना बाप को बुलाना, भीख मांगते हैं ना। देवताओं के मन्दिर में जाकर भीख मांगना हुआ ना। सतयुग में भीख मांगने की दरकार नहीं। भिखारी को इनसालवेन्ट कहा जाता है। सतयुग में तुम कितने सालवेन्ट थे, उसको कहा जाता है सालवेन्ट। भारत अभी इनसालवेन्ट है। यह भी कोई समझते नहीं। कल्प की आयु उल्टी-सुल्टी लिख देने से मनुष्यों का माथा ही फिर गया है। बाप बहुत प्यार से बैठ समझाते हैं। कल्प पहले भी बच्चों को समझाया था, मुझ पतित-पावन बाप को याद करो तो तुम पावन बन जायेंगे। पतित कैसे बने हो, विकारों की खाद पड़ी है। सब मनुष्य जंक खाये हुए हैं। अब वह जंक कैसे निकले? मुझे याद करो। देह-अभिमान छोड़ देही-अभिमानी बनो। अपने को आत्मा समझो। पहले तुम हो आत्मा फिर शरीर लेते हो। आत्मा तो अमर है, शरीर मृत्यु को पाता है। सतयुग को कहा जाता है अमरलोक। कलियुग को कहा जाता है मृत्युलोक। दुनिया में यह कोई भी नहीं जानते कि अमरलोक था फिर मृत्युलोक कैसे बना। अमरलोक अर्थात् अकाले मृत्यु नहीं होती। वहाँ आयु भी बड़ी रहती है। वह है ही पवित्र दुनिया।
तुम राजऋषि हो। ऋषि पवित्र को कहा जाता है। तुमको पवित्र किसने बनाया? उनको बनाते हैं शंकराचार्य, तुमको बना रहे हैं शिवाचार्य। यह कोई पढ़ा हुआ नहीं है। इन द्वारा तुमको शिवबाबा आकर पढ़ाते हैं। शंकराचार्य ने तो गर्भ से जन्म लिया, कोई ऊपर से अवतरित नहीं हुआ। बाप तो इनमें प्रवेश करते हैं, आते हैं, जाते हैं, मालिक हैं, जिसमें चाहे उनमें जा सकते हैं। बाबा ने समझाया है कोई का कल्याण करने अर्थ मैं प्रवेश कर लेता हूँ। आता तो पतित तन में ही हूँ ना। बहुतों का कल्याण करता हूँ। बच्चों को समझाया है – माया भी कम नहीं है। कभी-कभी ध्यान में माया प्रवेश कर उल्टा-सुल्टा बुलवाती रहती है इसलिए बच्चों को बहुत सम्भाल करनी है। कइयों में जब माया प्रवेश कर लेती है तो कहते हैं मैं शिव हूँ, फलाना हूँ। माया बड़ी शैतान है। समझदार बच्चे अच्छी रीति समझ जायेंगे कि यह किसका प्रवेश है। शरीर तो उनका मुकरर यह है ना। फिर दूसरे का हम सुनें ही क्यों! अगर सुनते हो तो बाबा से पूछो यह बात राइट है वा नहीं? बाप झट समझा देंगे। कई ब्राह्मणियां भी इन बातों को समझ नहीं सकती कि यह क्या है। कोई में तो ऐसी प्रवेशता होती है जो चमाट भी मार देते, गालियां भी देने लग पड़ते। अब बाप थोड़ेही गाली देंगे। इन बातों को भी कई बच्चे समझ नहीं सकते। फर्स्टक्लास बच्चे भी कहाँ-कहाँ भूल जाते हैं। सब बातें पूछनी चाहिए क्योंकि बहुतों में माया प्रवेश कर लेती है। फिर ध्यान में जाकर क्या-क्या बोलते रहते हैं। इसमें भी बड़ा सम्भालना चाहिए। बाप को पूरा समाचार देना चाहिए। फलाने में मम्मा आती है, फलाने में बाबा आते हैं – इन सब बातों को छोड़ बाप का एक ही फ़रमान है कि मामेकम् याद करो। बाप को और सृष्टि चक्र को याद करो। रचयिता और रचना का सिमरण करने वाले की शक्ल सदैव हर्षित रहेगी। बहुत हैं जिनका सिमरण होता नहीं है। कर्म-बन्धन बड़ा भारी है। विवेक कहता है – जबकि बेहद का बाप मिला है, कहते हैं मुझे याद करो तो फिर क्यों न हम याद करें। कुछ भी होता है तो बाप से पूछो। बाप समझायेंगे कर्मभोग तो अभी रहा हुआ है ना। कर्मातीत अवस्था हो जायेगी तो फिर तुम सदैव हर्षित रहेंगे। तब तक कुछ न कुछ होता है। यह भी जानते हो मिरूआ मौत मलूका शिकार। विनाश होना है। तुम फरिश्ते बनते हो। बाकी थोड़े दिन इस दुनिया में हो फिर तुम बच्चों को यह स्थूलवतन भासेगा नहीं। सूक्ष्मवतन और मूलवतन भासेगा। सूक्ष्मवतनवासियों को कहा जाता है फरिश्ते। वह बहुत थोड़ा समय बनते हो जबकि तुम कर्मातीत अवस्था को पाते हो। सूक्ष्मवतन में हड्डी मांस होता नहीं। हड्डी मांस नहीं तो बाकी क्या रहा? सिर्फ सूक्ष्म शरीर होता है! ऐसे नहीं कि निराकार बन जाते हैं। नहीं, सूक्ष्म आकार रहता है। वहाँ की भाषा मूवी चलती है। आत्मा आवाज़ से परे है। उसको कहा जाता है सटिल वर्ल्ड। सूक्ष्म आवाज़ होता है। यहाँ है टाकी। फिर मूवी फिर है साइलेन्स। यहाँ टॉक चलती है। यह ड्रामा का बना बनाया पार्ट है। वहाँ है साइलेन्स। वह मूवी और यह है टाकी। इन तीन लोकों को भी याद करने वाले कोई विरले होंगे। बाप समझाते हैं – बच्चे, सजाओं से छूटने के लिए कम से कम 8 घण्टा कर्मयोगी बन कर्म करो, 8 घण्टा आराम करो और 8 घण्टा बाप को याद करो। इसी प्रैक्टिस से तुम पावन बन जायेंगे। नींद करते हो, वह कोई बाप की याद नहीं है। ऐसे भी कोई न समझे कि बाबा के तो हम बच्चे हैं ना फिर याद क्या करें। नहीं, बाप तो कहते हैं मुझे वहाँ याद करो। अपने को आत्मा समझ मुझे याद करो। जब तक योगबल से तुम पवित्र न बनो तब तक घर में भी तुम जा नहीं सकते। नहीं तो फिर सजायें खाकर जाना होगा। सूक्ष्मवतन मूलवतन में भी जाना है फिर आना है स्वर्ग में। बाबा ने समझाया है आगे चल अखबारों में भी पड़ेगा, अभी तो बहुत टाइम है। इतनी सारी राजधानी स्थापन होती है। साउथ, नार्थ, इस्ट, वेस्ट भारत का कितना है। अब अखबारों द्वारा ही आवाज़ निकलेगा। बाप कहते हैं मुझे याद करो तो तुम्हारे पाप कट जायेंगे। बुलाते भी हैं – हे पतित-पावन, लिबरेटर हमको दु:ख से छुड़ाओ। बच्चे जानते हैं ड्रामा प्लैन अनुसार विनाश भी होना है। इस लड़ाई के बाद फिर शान्ति ही शान्ति होगी, सुखधाम हो जायेगा। सारी उथल पाथल हो जायेगी। सतयुग में होता ही है एक धर्म। कलियुग में हैं अनेक धर्म। यह तो कोई भी समझ सकते हैं। सबसे पहले आदि सनातन देवी-देवता धर्म था, जब सूर्यवंशी थे तो चन्द्रवंशी नहीं थे फिर चन्द्रवंशी होते हैं। पीछे यह देवी-देवता धर्म प्राय:लोप हो जाता है। पीछे फिर और धर्म वाले आते हैं। वह भी जब तक उन्हों की संस्था वृद्धि को पाये तब तक मालूम थोड़ेही पड़ता है। अभी तुम बच्चे सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त को जानते हो। तुमसे पूछेंगे सीढ़ी में सिर्फ भारतवासियों को क्यों दिखाया है? बोलो, यह खेल है भारत पर। आधाकल्प है उन्हों का पार्ट, बाकी द्वापर, कलियुग में अन्य सब धर्म आते हैं। गोले में यह सारी नॉलेज है। गोला तो बड़ा फर्स्टक्लास है। सतयुग-त्रेता में है श्रेष्ठाचारी दुनिया। द्वापर-कलियुग है भ्रष्टाचारी दुनिया। अभी तुम संगम पर हो। यह ज्ञान की बातें हैं। यह 4 युगों का चक्र कैसे फिरता है – यह किसको पता नहीं है। सतयुग में इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य होता है। इन्हों को भी यह थोड़ेही पता रहता कि सतयुग के बाद फिर त्रेता होना है, त्रेता के बाद फिर द्वापर कलियुग आना है। यहाँ भी मनुष्यों को बिल्कुल पता नहीं। भल कहते हैं परन्तु कैसे चक्र फिरता है, यह कोई नहीं जानते इसलिए बाबा ने समझाया है – सारा गीता पर जोर रखो। सच्ची गीता सुनने से स्वर्गवासी बनते हैं। यहाँ शिवबाबा खुद सुनाते हैं, वहाँ मनुष्य पढ़ते हैं। गीता भी सबसे पहले तुम पढ़ते हो। भक्ति में भी पहले-पहले तो तुम जाते हो ना। शिव के पुजारी पहले तुम बनते हो। तुमको पहले-पहले पूजा करनी होती है अव्यभिचारी, एक शिवबाबा की। सोमनाथ मन्दिर और किसकी ताकत थोड़ेही है बनाने की। बोर्ड पर कितने प्रकार की बातें लिख सकते हैं। यह भी लिख सकते हैं भारतवासी सच्ची गीता सुनने से सचखण्ड के मालिक बनते हैं।
अभी तुम बच्चे जानते हो हम सच्ची गीता सुनकर स्वर्गवासी बन रहे हैं। जिस समय तुम समझाते हो तो कहते हैं – हाँ, बरोबर ठीक है, बाहर गये खलास। वहाँ की वहाँ रही। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) रचयिता और रचना का ज्ञान सिमरण कर सदा हर्षित रहना है। याद की यात्रा से अपने पुराने सब कर्मबन्धन काट कर्मातीत अवस्था बनानी है।
2) ध्यान दीदार में माया की बहुत प्रवेशता होती है, इसलिए सम्भाल करनी है, बाप को समाचार दे राय लेनी है, कोई भी भूल नहीं करनी है।
वरदान:- |
अपनी शुभ भावना द्वारा निर्बल आत्माओं में बल भरने वाले सदा शक्ति स्वरूप भवसेवाधारी बच्चों की विशेष सेवा है – स्वयं शक्ति स्वरूप रहना और सर्व को शक्ति स्वरूप बनाना अर्थात् निर्बल आत्माओं में बल भरना, इसके लिए सदा शुभ भावना और श्रेष्ठ कामना स्वरूप बनो। शुभ भावना का अर्थ यह नहीं कि किसी में भावना रखते-रखते उसके भाववान हो जाओ। यह गलती नहीं करना। शुभ भावना भी बेहद की हो। एक के प्रति विशेष भावना भी नुकसानकारक है इसलिए बेहद में स्थित हो निर्बल आत्माओं को अपनी प्राप्त हुई शक्तियों के आधार से शक्ति स्वरूप बनाओ। |
स्लोगन:- |
अलंकार ब्राह्मण जीवन का श्रृंगार हैं – इसलिए अलंकारी बनो देह अहंकारी नहीं। |
अव्यक्त इशारे – सत्यता और सभ्यता रूपी क्लचर को अपनाओ
कई बच्चे कहते हैं वैसे क्रोध नहीं आता है, लेकिन कोई झूठ बोलता है तो क्रोध आ जाता है। उसने झूठ बोला, आपने क्रोध से बोला तो दोनों में राइट कौन? कई चतुराई से कहते हैं कि हम क्रोध नहीं करते हैं, हमारा आवाज ही बड़ा है, आवाज ही ऐसा तेज है लेकिन जब साइन्स के साधनों से आवाज को कम और ज्यादा कर सकते हैं तो क्या साइलेन्स की पॉवर से अपने आवाज की गति को धीमी या तेज नहीं कर सकते हो?
मीठे बच्चे – तुम्हें ज्ञान से अच्छी जागृति आई है, तुम अपने 84 जन्मों को, निराकार और साकार बाप को जानते हो, तुम्हारा भटकना बंद हुआ
प्रश्न-उत्तर
प्रश्न: ईश्वर की गत मत न्यारी क्यों गाई हुई है?
उत्तर:
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क्योंकि वह ऐसी मत देते हैं जिससे तुम ब्राह्मण सबसे न्यारे बन जाते हो। तुम सबकी एक मत हो जाती है।
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ईश्वर ही है जो सबकी सद्गति करते हैं। पुजारी से पूज्य बनाते हैं, इसलिए उनकी गत मत न्यारी है, जिसे तुम बच्चों के सिवाए कोई समझ नहीं सकता।
प्रश्न: परमधाम को परे ते परे धाम क्यों कहा जाता है?
उत्तर: क्योंकि वह आत्माओं का मूल घर है, वहाँ कोई स्थूल देह नहीं होती। स्वर्ग को परे ते परे नहीं कहा जाता क्योंकि वह भी सृष्टि का ही एक भाग है।
प्रश्न: भारत की महिमा इतनी महान क्यों है?
उत्तर:
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भारत सम्पूर्ण निर्विकारी था, जब यहाँ लक्ष्मी-नारायण का राज्य था।
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यहीं परमपिता परमात्मा स्वयं अवतरित होकर नई दुनिया की स्थापना करते हैं।
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भारत में ही आत्माएं अपने 84 जन्म पूरे कर फिर से पवित्र बनने की शिक्षा पाती हैं।
प्रश्न: भारतवासी अपने धर्म और धर्म-स्थापक को क्यों भूल गए?
उत्तर:
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84 जन्मों की यात्रा में वे अपने सच्चे स्वरूप को भूल गए।
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अज्ञान अंधकार में पड़कर उन्होंने बाहरी आडम्बरों को ही धर्म मान लिया।
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सत्य ज्ञान के अभाव में वे यह भी भूल गए कि वे पहले देवता थे।
प्रश्न: माया की प्रवेशता से बचने के लिए क्या करना चाहिए?
उत्तर:
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सदैव बाप से राय लेनी चाहिए और अपनी स्थिति पर नज़र रखनी चाहिए।
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ध्यान में यदि कोई उल्टी-सुल्टी बातें आए तो बाप से पूछकर स्पष्टता प्राप्त करनी चाहिए।
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सिर्फ बाप को और सृष्टि चक्र को याद करना चाहिए, जिससे बुद्धि स्थिर और शांत रहे।
प्रश्न: हमें कितने घंटे बाप की याद में रहना चाहिए?
उत्तर: बाप ने कहा है कि 8 घंटे कर्मयोगी बन कर्म करो, 8 घंटे आराम करो और 8 घंटे बाप को याद करो। इससे पावन बनने की प्रैक्टिस सहज हो जाती है।
प्रश्न: परमधाम, सूक्ष्मवतन और स्थूलवतन में क्या अंतर है?
उत्तर:
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परमधाम – यहाँ आत्माएं शुद्ध, शांत, निर्विकार रूप में रहती हैं, वहाँ कोई आकार नहीं होता।
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सूक्ष्मवतन – यहाँ देवताओं के सूक्ष्म शरीर होते हैं, यह मूवी की दुनिया जैसी है।
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स्थूलवतन – यह भौतिक दुनिया है, जहाँ आत्माएं स्थूल शरीर धारण कर कर्म करती हैं।
प्रश्न: सत्य ज्ञान का मुख्य स्रोत कौन है?
उत्तर: सत्य ज्ञान का मुख्य स्रोत परमपिता परमात्मा शिवबाबा हैं, जो स्वयं आकर गीता का सत्य ज्ञान सुनाते हैं, जिससे हम स्वर्गवासी बन सकते हैं।
प्रश्न: स्वर्ग और नर्क का क्या रहस्य है?
उत्तर:
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स्वर्ग और नर्क इस धरती पर ही होते हैं।
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जब सतयुग-त्रेता में देवताओं का राज्य होता है, तब स्वर्ग कहलाता है।
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जब द्वापर-कलियुग में विकारों का राज्य होता है, तब इसे नर्क कहा जाता है।
प्रश्न: आत्मा की अमरता का क्या प्रमाण है?
उत्तर:
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आत्मा शरीर को छोड़ती है, लेकिन स्वयं कभी नष्ट नहीं होती।
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सतयुग को अमरलोक कहा जाता है, क्योंकि वहाँ आत्मा पवित्र होती है और अकाल मृत्यु नहीं होती।
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आत्मा की यात्रा चक्रानुक्रम चलती रहती है, इसी कारण पुनर्जन्म का सिद्धांत कार्य करता है।
प्रश्न: हमें क्रोध से क्यों बचना चाहिए?
उत्तर:
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क्रोध करने से आत्मा की शक्ति नष्ट होती है और शांति भंग होती है।
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अगर कोई झूठ बोलता है और हम क्रोध करते हैं, तो फिर दोनों में सही कौन हुआ?
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साइन्स की शक्तियों से जैसे आवाज़ को धीमा-तेज़ किया जा सकता है, वैसे साइलेन्स की शक्ति से हमें अपने स्वभाव को मधुर बनाना चाहिए।
प्रश्न: सेवा का मुख्य स्वरूप क्या है?
उत्तर:
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स्वयं शक्ति स्वरूप बनना और दूसरों को भी शक्ति स्वरूप बनाना।
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निर्बल आत्माओं में शुभ भावना और श्रेष्ठ कामनाओं द्वारा बल भरना।
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बेहद की शुभ भावना रखना, न कि किसी एक के प्रति विशेष भावना रखना।
प्रश्न: संगमयुग पर बाप की विशेष शिक्षाएँ क्या हैं?
उत्तर:
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मुझ निराकार बाप को याद करो, जिससे विकारों की जंक हटे।
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कर्मबन्धन काटने के लिए सदा बाप की याद में रहो।
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आत्मा को देह-अभिमान से मुक्त कर सदा आत्म-अभिमानी स्थिति में रहो।
प्रश्न: ब्राह्मण जीवन में अलंकार क्या हैं?
उत्तर:
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ब्राह्मण जीवन के अलंकार सच्चाई, पवित्रता, नम्रता और दिव्यता हैं।
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इन्हीं अलंकारों से आत्मा का श्रृंगार होता है, जिससे वह श्रेष्ठ कर्म कर सकती है।
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अलंकारी बनो, न कि देह-अहंकारी।
प्रश्न: वर्तमान समय भारत की स्थिति क्या है?
उत्तर:
-
भारत अब इनसालवेन्ट (अर्थिक, धार्मिक, नैतिक रूप से कमजोर) हो गया है।
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विकारों के कारण भारत की महिमा भुला दी गई है।
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परमपिता परमात्मा फिर से आकर भारत को स्वर्णिम बनाने के लिए ज्ञान दे रहे हैं।
प्रश्न: हमें अंतिम समय कौन-सा अभ्यास करना चाहिए?
उत्तर:
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हर परिस्थिति में आत्म-अभिमानी स्थिति बनाए रखना।
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बाप और सृष्टि चक्र को सदा याद करना, जिससे बुद्धि सदा हर्षित रहे।
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मामेकम् याद करो – बाप के सिवाए किसी और को याद न करो।
प्रश्न: गीता का सत्य ज्ञान क्या है?
उत्तर:
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गीता का ज्ञान स्वयं शिवबाबा सुनाते हैं, जिससे आत्मा को सद्गति मिलती है।
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गीता से स्वर्गवासी बना जाता है, इसलिए इसे सच्ची गीता कहा जाता है।
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मनुष्य जब स्वयं गीता पढ़ते हैं, तब उसमें मिलावट हो जाती है, जिससे वे स्वर्गवासी नहीं बन पाते।
प्रश्न: संगमयुग पर सबसे बड़ी सेवा क्या है?
उत्तर:
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बाप का सत्य ज्ञान सबको सुनाना, जिससे वे पावन बन सकें।
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अपने कर्मों द्वारा श्रेष्ठ आचरण का उदाहरण प्रस्तुत करना।
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सच्ची गीता ज्ञान से विश्व परिवर्तन में सहयोग देना।
प्रश्न: 84 जन्मों का रहस्य क्या है?
उत्तर:
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सिर्फ भारतवासी ही पूरे 84 जन्म लेते हैं, क्योंकि यही आदि सनातन धर्म के देवता थे।
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आधाकल्प तक रामराज्य था, फिर रावण राज्य शुरू हुआ।
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यह चक्र 5000 वर्षों का है, जो बार-बार दोहराया जाता है।
प्रश्न: विनाश के बाद क्या होगा?
उत्तर:
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विनाश के बाद शांति और सुख की दुनिया होगी।
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संगमयुग पर ही आत्माएं अपने नए जन्म के लिए तैयार होती हैं।
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सतयुग में एक धर्म, एक भाषा और एक कुल होगा।
सार:
ज्ञान से जागृति प्राप्त कर अपने जीवन को श्रेष्ठ बनाना ही संगमयुग की सबसे बड़ी सेवा है। 🚩
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