भूमिका: क्या हमें परमात्मा से साक्षात्कार हुआ?
ओम शांति।
आज हम एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न पर चर्चा करेंगे – “क्या हमें परमात्मा से साक्षात्कार हुआ?”
और यदि हुआ… तो उसके बाद क्या हुआ?
सिर्फ भगवान से मिलना ही नहीं, बल्कि उस मिलन के बाद जीवन में क्या परिवर्तन आया, वह ज्यादा महत्वपूर्ण है।
क्योंकि ईश्वर और उनके नियमों को कोई मानव आत्मा अपने बल पर नहीं समझ सकती।
ईश्वर का सही परिचय और उनके कार्य का रहस्य केवल वही बता सकता है जो स्वयं उनसे मिला हो।
आज मैं वही अनुभव आपसे साझा करूंगा – उस मिलन के बाद मेरी यात्रा कैसे शुरू हुई और कहां तक पहुंची।
✨ परमात्मा से पहली बार मिलन – असीम खुशी की अनुभूति
जैसे ही मुझे परमात्मा का परिचय मिला –
वह क्षण अविस्मरणीय था।
एक गहन आत्मिक अनुभव हुआ, और मन में एक ही उमंग जागी –
“जिसे भगवान मिल जाए, क्या वह अकेला रह सकता है?”
नहीं! मैं भी नहीं रह पाया।
मैंने तुरंत चार जनों को तैयार किया – दो मेरे दोस्त थे और दो रिश्तेदार।
मैं उन्हें भी उस अनुभव की ओर ले जाना चाहता था।
भगवान मिलते ही बांटने की भावना सबसे पहले जागती है।
🏔️ माउंट आबू की दूसरी यात्रा – नियमों की सीख
जब हम दूसरी बार माउंट आबू पहुंचे, तब नियमों का सही पालन न होने के कारण हमें कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
हम बिना लेटर के पहुंचे थे और इंचार्ज बहन जी का नाम भी भूल गए थे।
इस कारण हमें थोड़ी फटकार भी मिली और सौगात भी वापस ले ली गई।
यह अनुभव मेरे लिए बहुत बड़ा सबक था – परमात्मा तक पहुंचने के लिए उनके नियमों का पालन आवश्यक है।
🛤️ एक साथी की आध्यात्मिक जागृति
हालांकि इस बार हम सभी बाबा से नहीं मिल सके, परंतु एक साथी टीचर को परमात्मा की उपस्थिति का गहन अनुभव हुआ।
उनका जीवन ही बदल गया –
खानपान शुद्ध, जीवन शुद्ध, और सेवा का भाव जागृत।
यही परमात्मा की शक्ति है –
जो आत्मा तैयार होती है, उसे वह स्वयं खींच लेते हैं।
📚 ज्ञान की गहराई में उतरना
उसके बाद मैंने स्वयं को इस ज्ञान में पूरी तरह समर्पित कर दिया।
सेंटर पर नियमित रूप से जाना,
हर प्रकार की ट्रेनिंग लेना,
प्रदर्शनियों का आयोजन करना –
सेवा का सिलसिला शुरू हो गया।
मॉडल्स बनाना, टेंट लगाना, लोगों को समझाना – यह सब मेरे जीवन का हिस्सा बन गया।
🏛️ जेल सेवा की शुरुआत – “जेल नहीं, आश्रम लगता है”
एक बार हमारी बहन जी जेल में राखी बांधने गईं, और मैंने वहीं सेवा का बीड़ा उठाया।
मैंने जेल सुपरिटेंडेंट से बात की और रोज वहां जाकर ज्ञान सुनाना शुरू कर दिया।
एक लेख भी आया –
“जेल, जेल नहीं… आश्रम लगता है” – जो ‘ज्ञान मंथन’ में प्रकाशित हुआ।
📖 कुरान की शिक्षा – सबको छूने वाली सेवा
वहां मुसलमान भाई ज्ञान में नहीं बैठते थे।
मैंने उनसे कहा – “मैं आपको कुरान सुनाऊंगा।”
हिंदी में कुरान लेकर मैंने उन्हें कुरान की गूढ़ बातें समझानी शुरू की।
वे भी प्रभावित हुए और सेवा का नया द्वार खुला।
👩🦱 बहनों की सेवा – महिला वार्ड में प्रवेश
जेल में बहनों को समझाना कठिन था, परंतु वहां भी सेवा हुई।
एक बहन को तैयार किया, जो रोज मेरे साथ जाती और बहनों को ज्ञान देती।
🏡 गांवों और स्कूलों में सेवा – 101 पाठशालाएं
फिर गांव-गांव जाकर पाठशालाएं खोलनी शुरू कीं।
बाबा कहते हैं – “एक-एक को दस-दस पाठशालाएं संभालनी हैं।”
मैंने वह वाक्य जीवन में उतार लिया।
हर जगह सेवा, हर आत्मा तक परमात्मा का संदेश पहुंचाना – यही मेरा लक्ष्य बन गया।
🌍 ईश्वर कैसे काम कराते हैं – और हम कैसे उनके सहयोगी बनते हैं
ईश्वर आकर हर आत्मा को खींचते हैं, उन्हें छूते हैं, और अपना कार्य करवाते हैं।
हम केवल उनके निमित्त हैं –
परंतु जब हम उनकी योजना का हिस्सा बन जाते हैं,
तो जीवन का उद्देश्य ही बदल जाता है।
🙏 समापन: आप भी इस यज्ञ के सहयोगी बनें
आप सभी, जो यह सुन रहे हैं,
आप भी इस महान कार्य में सहयोगी हैं।
ईश्वर का कार्य हम सब मिलकर कर सकते हैं – एक समर्पण, एक संकल्प, और एक विश्वास से।
भूमिका: क्या हमें परमात्मा से साक्षात्कार हुआ?
प्र.1: क्या आपको वास्तव में परमात्मा से साक्षात्कार हुआ?
उत्तर: हाँ, जब मुझे परमात्मा का सही परिचय मिला, तो एक अविस्मरणीय आत्मिक अनुभव हुआ – जैसे आत्मा को उसका घर मिल गया हो।
प्र.2: उस अनुभव के बाद आपके जीवन में क्या परिवर्तन आया?
उत्तर: सबसे पहले तो बांटने की भावना जागी – मैंने तुरंत अपने चार करीबियों को साथ जोड़ा। फिर सेवा का सिलसिला शुरू हुआ।
प्र.3: माउंट आबू की यात्रा से क्या सीखा?
उत्तर: यह समझ में आया कि परमात्मा तक पहुंचने के लिए उनके नियमों का पालन आवश्यक है – बिना नियम के मिलन भी रुक सकता है।
प्र.4: क्या सबको वही अनुभव होता है?
उत्तर: नहीं, लेकिन जो आत्मा तैयार होती है, उसे परमात्मा स्वयं खींच लेते हैं – जैसे हमारे एक साथी टीचर को हुआ।
प्र.5: आपने सेवा कैसे शुरू की?
उत्तर: केंद्र पर जाकर प्रशिक्षण लिया, मॉडल्स बनाए, प्रदर्शनियां लगाईं और हर आत्मा तक संदेश पहुँचाने का बीड़ा उठाया।
प्र.6: जेल सेवा कैसे शुरू हुई?
उत्तर: राखी सेवा में जाकर प्रेरणा मिली। फिर रोज जेल जाकर ज्ञान देना शुरू किया – जिससे जेल, आश्रम जैसा लगने लगा।
प्र.7: मुसलमान भाई सेवा में कैसे जुड़े?
उत्तर: मैंने उन्हें कुरान सुनाकर समझाया कि ज्ञान सर्वधर्म के लिए है – इससे सेवा का नया द्वार खुल गया।
प्र.8: महिला वार्ड में सेवा कैसे हुई?
उत्तर: एक बहन को तैयार किया, जो हर दिन साथ जाती – और धीरे-धीरे बहनों के दिल तक भी ज्ञान पहुँचा।
प्र.9: गांवों में सेवा का क्या स्वरूप था?
उत्तर: 101 पाठशालाएं खोलीं – बाबा की बात ‘एक-एक को दस-दस पाठशालाएं’ को मैंने जीवन में उतार लिया।
प्र.10: ईश्वर कैसे सेवा कराते हैं?
उत्तर: वे आत्माओं को छूते हैं, प्रेरणा देते हैं – और अपने कार्य के लिए हमें निमित्त बना लेते हैं।
प्र.11: क्या हम भी इस कार्य में सहभागी बन सकते हैं?
उत्तर: बिल्कुल! यह ईश्वरीय कार्य हम सबका है – बस समर्पण, संकल्प और विश्वास होना चाहिए।
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