(10) सच्ची गीता का पुन: सृजन
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
“सच्ची गीता का पुनः सृजन | दादा लेखराज के माध्यम से ईश्वर का गुप्त गीत”
भूमिका: सच्ची गीता – एक पुनर्जन्म
प्रिय आत्माओं,
आज हम एक अत्यंत पावन और गूढ़ रहस्य की चर्चा करेंगे –
कैसे सच्ची गीता का पुनः सृजन हुआ, न किसी युद्ध के मैदान में, न किसी मंदिर में, बल्कि चुपचाप, दादा लेखराज के हृदय में।
यह वह गीता है जिसे स्वयं भगवान ने गाया –
नाटकीय ग्रंथ नहीं, बल्कि आत्मा के जागरण का गीत।
ईश्वर की गीता – भीतर जागृत होती है
दादा लेखराज अब सामान्य नहीं रहे।
उनके भीतर एक सूक्ष्म, परन्तु शक्तिशाली प्रक्रिया आरम्भ हुई।
ईश्वर स्वयं उनके अंतर्मन में अपना दिव्य ज्ञान – सच्ची गीता – गा रहे थे।
हर अनुभव, हर संकल्प में एक गूढ़ता थी।
जैसे कोई अदृश्य सारथी उन्हें आत्म-ज्ञान की ओर ले जा रहा हो।
विकृत गीता और खोया सत्य
दादा को बोध हुआ कि:
भगवद्गीता, वह ग्रंथ जिसमें स्वयं भगवान ने बात की थी – वह आज मानव द्वारा विकृत हो चुकी है।
सदियों में मूल भाव गायब हो गया था।
दादा ने अनुभव किया –
वही गीता, वही ज्ञान – अब फिर से, शुद्ध रूप में, उनके भीतर जागृत हो रहा है।
अर्जुन और शरीर का रथ
दादा ने स्वयं को अर्जुन के रूप में अनुभव किया –
और उनके शरीर को भगवान ने सारथी बनकर अपनाया।
अब युद्ध बाहर नहीं, भीतर हो रहा था –
आत्मा और पुराने संस्कारों के बीच का युद्ध।
शिव बाबा – गुप्त रूप से उन्हें सच्चा ज्ञान दे रहे थे।
आदि देव का बोध – मनुष्य का पहला स्वरूप
इन दिव्य रहस्यों के माध्यम से,
दादा को यह भी अनुभव हुआ कि:
वह आदि देव हैं – पहला मनुष्य, श्रीकृष्ण का ही प्रारंभिक जन्म।
5,000 वर्ष पहले जो देवता थे,
अब वही आत्मा फिर से
स्वर्ग की स्थापना के लिए माध्यम बन रही है।
“तुम आत्मा हो” – भगवान का सरल संदेश
दादा ने ज्ञान को कोई दर्शनशास्त्र नहीं बनाया।
उन्होंने सिर्फ यह कहा – “तुम आत्मा हो।”
उनकी आँखों से प्रेम बहता था।
उनके शब्दों में आत्मा को जागृत करने की शक्ति थी।
वे लिखते रहे –
“मैं आत्मा हूँ, जशोदा आत्मा है, राधिका आत्मा है…”
जब तक यह सत्य हर दिल में उतर नहीं गया।
परिवर्तन की लहर
इस सत्य की शक्ति से,
धनी, निर्धन, युवा, वृद्ध – सबमें एक परिवर्तन आने लगा।
सभी ने स्वयं को “प्रकाश का प्राणी” अनुभव किया।
उनका जीवन पवित्र बनता गया – भोजन, व्यवहार, विचार – सब कुछ शुद्ध होता गया।
और भगवान शिव,
दादा के शरीर को लेकर अनगिनत आत्माओं को साक्षात्कार कराते गए।
प्रश्न 1:सच्ची गीता का पुनः सृजन कब और कैसे हुआ?
उत्तर:सच्ची गीता का पुनः सृजन 1936 में दादा लेखराज के माध्यम से हुआ, जब शिव परमात्मा ने उनके हृदय में दिव्य ज्ञान का गीत गाया। यह कोई युद्ध के मैदान या मंदिर में नहीं, बल्कि गुप्त रूप से, मौन और आंतरिक अनुभूति के रूप में हुआ।
प्रश्न 2:दादा लेखराज के भीतर क्या विशेष अनुभव हो रहे थे?
उत्तर:दादा लेखराज भीतर से गहन शांति, दिव्य प्रेम और आत्म-साक्षात्कार का अनुभव कर रहे थे। उनके विचारों में स्पष्टता आई और उन्हें लगा कि भगवान स्वयं उनके अंदर सच्चा ज्ञान प्रकट कर रहे हैं।
प्रश्न 3:भगवद्गीता के वास्तविक अर्थ को दादा ने कैसे समझा?
उत्तर:दादा ने महसूस किया कि मूल भगवद्गीता 5,000 वर्ष पहले भगवान ने बोली थी, लेकिन बाद में उसे मानवों द्वारा संशोधित कर दिया गया था। असली गीता आत्मा और परमात्मा के बीच का सजीव संवाद है, जो आज फिर से पुनः जागृत हो रहा है।
प्रश्न 4:असली युद्धक्षेत्र कौन-सा है, जिसे गीता में वर्णित किया गया है?
उत्तर:असली युद्धक्षेत्र बाहरी नहीं, बल्कि आत्मा के भीतर है—जहाँ आत्मा और उसके पुराने संस्कारों के बीच लड़ाई चलती है। यह आत्मिक परिवर्तन का युद्ध है, जिसमें भगवान सारथी बनकर आत्मा का मार्गदर्शन करते हैं।
प्रश्न 5:“आदि देव” बनने का बोध दादा को कैसे हुआ?
उत्तर:भगवान के ज्ञान से दादा ने जाना कि वे ही आदिपुरुष (आदि देव) हैं—पहला शुद्ध मानव, जो नई सतोप्रधान दुनिया (स्वर्ग) में प्रवेश करेगा। उन्होंने समझा कि उनका भविष्य श्रीकृष्ण के रूप में जन्म लेना है।
प्रश्न 6:दादा ने किस सरल सत्य को सबसे पहले सभी के साथ साझा किया?
उत्तर:दादा ने सबसे पहले यह गहरा और सरल सत्य साझा किया—“आप एक आत्मा हैं।” इस सत्य ने लोगों के भीतर गहरा परिवर्तन उत्पन्न किया और उन्हें आत्मिक जागृति की ओर ले गया।
प्रश्न 7:सच्ची गीता का आज क्या महत्व है?
उत्तर:आज सच्ची गीता एक जीवित अनुभूति है—भगवान शिव द्वारा आत्माओं के हृदय में गाया गया ज्ञान-संगीत। इसके माध्यम से एक नई, पवित्र और सुखमय दुनिया की स्थापना हो रही है, जिसमें हम सब सहयोगी बन सकते हैं।
प्रश्न 8:हम इस दिव्य पुनः निर्माण में कैसे भागीदार बन सकते हैं?
उत्तर:हम स्वयं को “आत्मा” समझकर, शुद्ध संकल्प, पवित्र कर्म और ईश्वर की याद में स्थित होकर इस नए स्वर्ग के निर्माण में सहयोगी बन सकते हैं। आत्म-परिवर्तन द्वारा ही विश्व-परिवर्तन संभव है।
सच्ची गीता आज कोई पुराना ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवित अनुभव है, जो भगवान शिव ने दादा लेखराज के माध्यम से पुनः सृजित किया है। इस ज्ञान से हम सभी आत्माओं को फिर से शांति, प्रेम और शक्ति का अनुभव हो रहा है।
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