(Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
12-05-2025 |
प्रात:मुरली
ओम् शान्ति
“बापदादा”‘
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मधुबन |
“मीठे बच्चे – धंधा आदि करते भी सदा अपनी गॉडली स्टूडेण्ट लाइफ और स्टडी याद रखो, स्वयं भगवान हमको पढ़ाते हैं इस नशे में रहो” | |
प्रश्नः- | जिन बच्चों को ज्ञान अमृत हज़म करना आता है, उनकी निशानी क्या होगी? |
उत्तर:- | उन्हें सदा रूहानी नशा चढ़ा रहेगा और उस नशे के आधार पर सबका कल्याण करते रहेंगे। कल्याण करने के सिवाए दूसरी कोई बात करना भी उन्हें अच्छा नहीं लगेगा। कांटों को फूल बनाने की ही सेवा में बिजी रहेंगे। |
ओम् शान्ति। अब तुम बच्चे यहाँ बैठे हो और यह भी जानते हो कि अभी हम पार्टधारी हैं। 84 जन्मों का चक्र पूरा किया है। यह तुम बच्चों की स्मृति में आना चाहिए। जानते हो कि बाबा आया हुआ है, हमको फिर से राज्य प्राप्त कराने वा तमोप्रधान से सतोप्रधान बनाने। यह बातें सिवाए बाप के और कोई नहीं समझायेंगे। तुम जब यहाँ बैठते हो तो तुम जैसे स्कूल में बैठे हो। बाहर हो तो स्कूल में नहीं हो। जानते हो यह ऊंच ते ऊंच रूहानी स्कूल है। रूहानी बाप बैठ पढ़ाते हैं। पढ़ाई तो बच्चों को याद आनी चाहिए ना। यह भी बच्चा ठहरा। इनको अथवा सभी को सिखलाने वाला वह बाप है। सब मनुष्य मात्र की आत्माओं का बाप वह है। वह आकर शरीर का लोन लेकर तुमको समझा रहे हैं। रोज़ समझाते हैं, यहाँ जब बैठते हो तो बुद्धि में स्मृति रहनी चाहिए कि हमने 84 जन्म लिए। हम विश्व के मालिक थे, देवी-देवता थे फिर पुनर्जन्म लेते-लेते आकर पट पड़े हैं। भारत कितना सालवेन्ट था। सारी स्मृति आई है। भारत की ही कहानी है, साथ-साथ अपनी भी। अपने को फिर भूल न जाओ। हम स्वर्ग में राज्य करते थे फिर हमको 84 जन्म लेने पड़े। यह सारा दिन स्मृति में लाना पड़े। धंधा आदि करते स्टडी तो याद आनी चाहिए ना। कैसे हम विश्व के मालिक थे फिर हम नीचे उतरते आये, बहुत सहज है परन्तु यह याद भी कोई को रहती नहीं है। आत्मा पवित्र न होने कारण याद खिसक जाती है। हमको भगवान पढ़ाते हैं यह याद खिसक जाती है। हम बाबा के स्टूडेन्ट हैं। बाबा कहते रहते हैं – याद की यात्रा पर रहो। बाप हमको पढ़ाकर यह बना रहे हैं। सारा दिन यह स्मृति आती रहे। बाप ही स्मृति दिलाते हैं, यही भारत था ना। हम सो देवी-देवता थे, सो अब असुर बने हैं। पहले तुम्हारी भी बुद्धि आसुरी थी। अब बाप ने ईश्वरीय बुद्धि दी है। परन्तु फिर भी कोई-कोई की बुद्धि में बैठता नहीं है। भूल जाते हैं। बाप कितना नशा चढ़ाते हैं। तुम फिर से देवता बनते हो तो वह नशा रहना चाहिए ना। हम अपना राज्य ले रहे हैं। हम अपना राज्य करेंगे, कोई को तो बिल्कुल नशा चढ़ता नहीं है। ज्ञान अमृत हज़म ही नहीं होता है। जिन्हें नशा चढ़ा हुआ होगा, उन्हें किसका कल्याण करने के सिवाए दूसरी कोई बात करना भी अच्छा नहीं लगेगा। फूल बनाने की सर्विस में ही लगे रहेंगे। हम पहले फूल थे फिर माया ने कांटा बना दिया। अब फिर फूल बनते हैं। ऐसी-ऐसी बातें अपने से करनी चाहिए। इस नशे में रह तुम किसको भी समझायेंगे तो झट कोई को तीर लगेगा। भारत गार्डन ऑफ अल्लाह था। अब पतित बन गया है। हम ही सारे विश्व के मालिक थे, कितनी बड़ी बात है! अभी फिर हम क्या बन गये हैं! कितना गिर गये! हमारे गिरने और चढ़ने का यह नाटक है। यह कहानी बाप बैठ सुनाते हैं। वह है झूठी, यह है सच्ची। वह सत्य नारायण की कथा सुनाते हैं, समझते थोड़ेही है कि हम कैसे चढ़े फिर कैसे गिरे हैं। यह बाप ने सच्ची सत्य नारायण की कथा सुनाई है। राजाई कैसे गंवाई, यह सारी है अपने ऊपर। आत्मा को अभी मालूम पड़ा है कि हम कैसे अब बाप से राजाई ले रहे हैं। बाप यहाँ पूछते हैं तो कहते हैं – हाँ, नशा है फिर बाहर जाने से कुछ भी नशा नहीं रहता। बच्चे खुद समझते हैं भल हाथ तो उठाते हैं परन्तु चलन ऐसी है जो नशा रह न सके। फीलिंग तो आती है ना।
बाप बच्चों को स्मृति दिलाते हैं – बच्चे, तुमको मैंने राजाई दी थी फिर तुमने गँवा दी। तुम नीचे उतरते आये हो क्योंकि यह नाटक है चढ़ने और उतरने का। आज राजा है, कल उसको उतार देते हैं। अखबार में बहुत ऐसी-ऐसी बातें पड़ती हैं, जिसका रेस्पॉन्ड दिया जाए तो कुछ समझें। यह नाटक है, यह याद रहे तो भी सदैव खुशी रहे। बुद्धि में है ना – आज से 5 हज़ार वर्ष पहले शिव-बाबा आया था, आकर राजयोग सिखाया था। लड़ाई लगी थी। अभी यह सब राइट बातें बाप सुनाते हैं। यह है पुरुषोत्तम युग। कलियुग के बाद यह पुरुषोत्तम युग आता है। कलियुग को पुरुषोत्तम युग नहीं कहेंगे। सतयुग को भी नहीं कहेंगे। आसुरी सम्प्रदाय और दैवी सम्प्रदाय कहते हैं, उनके बीच का है यह संगमयुग, जबकि पुरानी दुनिया से नई दुनिया बनती है। नई से पुरानी होने में सारा चक्र लग जाता है। अभी है संगमयुग। सतयुग में देवी-देवताओं का राज्य था। अब वह है नहीं। बाकी अनेक धर्म आ गये हैं। यह तुम्हारी बुद्धि में रहता है। बहुत हैं जो 6-8 मास, 12 मास पढ़कर फिर गिर पड़ते हैं। फेल हो पड़ते हैं। भल पवित्र बनते हैं परन्तु पढ़ाई नहीं करते तो फँस पड़ते हैं। सिर्फ पवित्रता भी काम नहीं आती। ऐसे बहुत सन्यासी भी हैं, वह सन्यास धर्म छोड़ जाए गृहस्थी बन जाते हैं, शादी आदि कर लेते हैं। तो अब बाप बच्चों को समझाते हैं – तुम स्कूल में बैठे हो। यह स्मृति में है हमने अपनी राजाई कैसे गँवाई, कितने जन्म लिए। अब फिर बाप कहते हैं विश्व के मालिक बनो। पावन जरूर बनना है। जितना जास्ती याद करेंगे उतना पवित्र होते जायेंगे क्योंकि सोने में खाद पड़ती है, वह निकले कैसे? तुम बच्चों की बुद्धि में है हम आत्मा सतोप्रधान थी, 24 कैरेट थी फिर गिरते-गिरते ऐसी हालत हो गई है। हम क्या बन गये! बाप तो ऐसे नहीं कहते कि हम क्या थे। तुम मनुष्य ही कहते हो हम देवता थे। भारत की महिमा तो है ना। भारत में कौन आते हैं, क्या ज्ञान देते हैं, यह कोई नहीं जानते। यह तो पता होना चाहिए ना कि लिबरेटर कब आते हैं। भारत प्राचीन गाया जाता है तो जरूर भारत में ही रीइनकारनेशन होता होगा अथवा जयन्ती भी भारत में ही मनाते हैं। जरूर फादर यहाँ आता है। कहते भी हैं भागीरथ। तो मनुष्य शरीर में आया होगा ना। फिर घोड़े गाड़ी भी दिखाई है। कितना फ़र्क है। श्री कृष्ण और रथ दिखाया है। मेरा किसको पता नहीं है। अभी तुम समझते हो बाबा इस रथ पर आते हैं, इनको ही भाग्यशाली रथ कहा जाता है। ब्रह्मा सो विष्णु, चित्र में कितना क्लीयर है। त्रिमूर्ति के ऊपर शिव, यह शिव का परिचय किसने दिया। बाबा ने ही बनवाया ना। अभी तुम समझते हो बाबा इस ब्रह्मा रथ में आये हैं। ब्रह्मा सो विष्णु, विष्णु सो ब्रह्मा। यह भी बच्चों को समझाया है, कहाँ 84 जन्म के बाद विष्णु सो ब्रह्मा बनते, कहाँ ब्रह्मा सो विष्णु एक सेकेण्ड में। वन्डरफुल बातें है ना बुद्धि में धारण करने की। पहले-पहले समझाना होता है बाप का परिचय। भारत स्वर्ग था जरूर। हेविनली गॉड फादर ने स्वर्ग बनाया होगा। यह चित्र तो बड़ा फर्स्टक्लास है, समझाने का शौक रहता है ना। बाप को भी शौक है। तुम सेन्टर्स पर भी ऐसे समझाते रहते हो। यहाँ तो डायरेक्ट बाप है। बाप आत्माओं को बैठ समझाते हैं। आत्माओं के समझाने और बाप के समझाने में फ़र्क तो जरूर रहता है इसलिए यहाँ सम्मुख आते हैं सुनने लिए। बाप ही घड़ी-घड़ी बच्चे-बच्चे कहते हैं। भाई-भाई का इतना असर नहीं रहता जितना बाप का रहता है। यहाँ तुम बाप के सम्मुख बैठे हो। आत्मायें और परमात्मा मिलते हैं तो इसको मेला कहा जाता है। बाप सम्मुख बैठ समझाते हैं तो बहुत नशा चढ़ता है। समझते हैं बेहद का बाप कहते हैं, हम उनका नहीं मानेंगे! बाप कहते हैं हमने तुमको स्वर्ग में भेजा था फिर तुम 84 जन्म लेते-लेते पतित बने हो। फिर तुम पावन नहीं बनेंगे! आत्माओं को कहते हैं। कोई समझते हैं, बाबा सच कहते हैं, कोई तो झट कहते बाबा हम पवित्र क्यों नहीं बनेंगे!
बाप कहते हैं मुझे याद करो तो तुम्हारे पाप कट जायेंगे। तुम सच्चा सोना बन जायेंगे। मैं सभी का पतित-पावन बाप हूँ तो बाप की समझानी और आत्माओं की (बच्चों की) समझानी में कितना फ़र्क है। समझो कोई नये आ जाते हैं, उनमें भी जो यहाँ का फूल होगा तो उनको टच होगा। यह कहते ठीक हैं। जो यहाँ का नहीं होगा तो समझेगा नहीं। तो तुम भी समझाओ हम आत्माओं को बाप कहते हैं तुम पावन बनो। मनुष्य पावन बनने के लिए गंगा स्नान करते हैं, गुरू करते हैं। परन्तु पतित-पावन तो बाप ही है। बाप आत्माओं को कहते हैं कि तुम कितने पतित बन गये हो इसलिए आत्मा याद करती है कि आकर पावन बनाओ। बाप कहते हैं मैं कल्प-कल्प आता हूँ, तुम बच्चों को कहता हूँ यह अन्तिम जन्म पवित्र बनो। यह रावण राज्य खत्म होना है। मुख्य बात है ही पावन बनने की। स्वर्ग में विष होता नहीं। जब कोई आते हैं तो उनको यह समझाओ कि बाप कहते हैं – अपने को आत्मा समझ मुझ बाप को याद करो तो पावन बन जायेंगे, खाद निकल जायेगी। मनमनाभव अक्षर याद है ना। बाप निराकार है हम आत्मा भी निराकार हैं। जैसे हम शरीर द्वारा सुनते हैं, बाप भी इस शरीर में आकर समझाते हैं। नहीं तो कैसे कहें कि मामेकम् याद करो। देह के सभी सम्बन्ध छोड़ो। जरूर यहाँ आते हैं, ब्रह्मा में प्रवेश करते हैं। प्रजापिता अब प्रैक्टिकल में है, इन द्वारा हमको बाप ऐसे कहते हैं, हम बेहद के बाप की ही मानते हैं। वह कहते पावन बनो। पतितपना छोड़ो। पुरानी देह के अभिमान को छोड़ो। मुझे याद करो तो अन्त मती सो गति हो जायेगी, तुम लक्ष्मी-नारायण बन जायेंगे।
बाप से बेमुख करने वाला मुख्य अवगुण है – एक दूसरे का परचिंतन करना। ईविल बातें सुनना और सुनाना। बाप का डायरेक्शन है तुम्हें ईविल बातें सुननी नहीं है। इनकी बात उनको, उनकी बात इनको सुनाना यह धूतीपना तुम बच्चों में नहीं होना चाहिए। इस समय दुनिया में सभी विप्रीत बुद्धि हैं ना। सिवाए राम के दूसरी कोई बात सुनाना, उसको धूतीपना कहा जाता है। अब बाप कहते हैं – यह धूतीपना छोड़ो। तुम सभी आत्माओं को बताओ कि हे सीतायें तुम एक राम से योग लगाओ। तुम हो मैसेन्जर, यह मैसेज दो कि बाप ने कहा है मुझे याद करो, बस। इस बात के सिवाए बाकी सब है धूतीपना। बाप सब बच्चों को कहते हैं – धूतीपना छोड़ दो। सभी सीताओं का एक राम से योग जुड़वाओ। तुम्हारा धंधा ही यह है। बस, यह पैगाम देते रहो। बाप आया हुआ है, कहते हैं तुमको गोल्डन एज में जाना है। अब इस आइरन एज को छोड़ना है। तुमको वनवास मिला हुआ है, जंगल में बैठे हो ना। वन जंगल को कहा जाता है। कन्या की जब शादी होती है तो वन में बैठती है फिर महल में जाती है। तुम भी जंगल में बैठे हो। अब ससुर घर जाना है, इस पुरानी देह को छोड़ना है। एक बाप को याद करो। जिनकी विनाश काले प्रीत बुद्धि है वह तो महल में जायेंगे, बाकी विप्रीत का है वनवास। जंगल में वास है। बाप तुम बच्चों को भिन्न-भिन्न रीति से समझाते हैं। जिस बाप से इतनी बेहद की बादशाही ली है, उनको भूल गये हो तो वनवास में चले गये हो। वनवास और गॉर्डन वास। बाप का नाम ही है बागवान। परन्तु जब कोई की बुद्धि में आये। भारत में ही हमारा राज्य था। अभी नहीं है। अभी तो वनवास है। फिर गॉर्डन में चलते हैं। तुम यहाँ बैठे हो तो भी बुद्धि में है – हम बेहद के बाप से अपना राज्य ले रहे हैं। बाप कहते हैं मेरे साथ प्रीत रखो फिर भी भूल जाते हैं। बाप उल्हना देते हैं – तुम मुझ बाप को कहाँ तक भूलते रहेंगे। फिर गोल्डन एज में कैसे जायेंगे। अपने से पूछो हम कितना समय बाबा को याद करते हैं? हम जैसेकि याद की अग्नि में पड़े हैं, जिससे विकर्म विनाश होते हैं। एक बाप से प्रीत बुद्धि होना है। सबसे फर्स्टक्लास माशूक है जो तुमको भी फर्स्टक्लास बनाते हैं। कहाँ थर्ड क्लास में बकरियों मिसल ट्रेवल करना, कहाँ एयरकन्डीशन में। कितना फ़र्क है। यह सब विचार सागर मंथन करना है तो तुमको मजा आयेगा। यह बाबा भी कहते हैं मैं भी बाबा को याद करने लिए बहुत माथा मारता हूँ। सारा दिन ख्यालात चलती रहती हैं। तुम बच्चों को भी यही मेहनत करनी है। अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) किसी को भी एक राम (बाप) की बातों के सिवाए दूसरी कोई भी बातें नहीं सुनानी है। एक की बात दूसरे को सुनाना, परचिंतन करना यह धूतीपना है, इसे छोड़ देना है।
2) एक बाप के साथ प्रीत रखनी है। पुरानी देह का अभिमान छोड़ एक बाप की याद से स्वयं को पावन बनाना है।
वरदान:- | समाने की शक्ति द्वारा रांग को भी राइट बनाने वाले विश्व परिवर्तक भव दूसरे की गलती को देखकर स्वयं गलती नहीं करो। अगर कोई गलती करता है तो हम राइट में रहें, उसके संग के प्रभाव में न आयें, जो प्रभाव में आ जाते हैं वह अलबेले हो जाते हैं। हर एक सिर्फ यह जिम्मेवारी उठा लो कि मैं राइट के मार्ग पर ही रहूंगा, अगर दूसरा रांग करता है तो उस समय समाने की शक्ति यूज करो। किसी की गलती को नोट करने के बजाए उसको सहयोग का नोट दो अर्थात सहयोग से भरपूर कर दो तो विश्व परिवर्तन का कार्य सहज ही हो जायेगा। |
स्लोगन:- | निरन्तर योगी बनना है तो हद के मैं और मेरेपन को बेहद में परिवर्तन करो। |
अव्यक्त इशारे – रूहानी रॉयल्टी और प्युरिटी की पर्सनैलिटी धारण करो
वर्तमान समय के प्रमाण फरिश्ते-पन की सम्पन्न स्टेज के वा बाप समान स्टेज के समीप आ रहे हो, उसी प्रमाण पवित्रता की परिभाषा भी अति सूक्ष्म होती जाती है। सिर्फ ब्रह्मचारी बनना ही पवित्रता नहीं लेकिन ब्रह्मचारी के साथ ब्रह्मा बाप के हर कर्म रूपी कदम पर कदम रखने वाले ब्रह्माचारी बनो।
“मीठे बच्चे – धंधा आदि करते भी सदा अपनी गॉडली स्टूडेण्ट लाइफ और स्टडी याद रखो, स्वयं भगवान हमको पढ़ाते हैं इस नशे में रहो”
❓प्रश्न 1:जिन बच्चों को ज्ञान अमृत हज़म करना आता है, उनकी निशानी क्या होगी?
✅ उत्तर:वे सदा रूहानी नशे में रहेंगे और दूसरों का कल्याण करने में तल्लीन रहेंगे। उन्हें कोई भी व्यर्थ बात करना अच्छा नहीं लगेगा, कांटों को फूल बनाने की सेवा में सदा व्यस्त रहेंगे।
❓प्रश्न 2:गॉडली स्टूडेन्ट्स को अपनी पढ़ाई कैसे याद रखनी चाहिए?
✅ उत्तर:जैसे कोई ऊँच स्कूल में पढ़ता है, वैसे ही यह याद रखना है कि हम भगवान के स्टूडेन्ट हैं और स्वयं शिवबाबा हमें पढ़ा रहे हैं। यह स्मृति सदा बनी रहनी चाहिए, चाहे धंधा आदि करते रहें।
❓प्रश्न 3:भले हाथ उठाते हैं, फिर भी ज्ञान का नशा क्यों नहीं रहता?
✅ उत्तर:क्योंकि आत्मा पूरी पवित्र नहीं बनी है, इसलिए याद टिकती नहीं। जब देह-अभिमान और विकर्मों की स्मृति रहती है, तो ईश्वरीय नशा उतर जाता है।
❓प्रश्न 4:बाप बच्चों को बार-बार क्या स्मृति दिलाते हैं?
✅ उत्तर:कि बच्चे, तुमने 84 जन्म लिए हैं, स्वर्ग के मालिक थे, फिर नीचे आकर तमोप्रधान बने हो। अब फिर से बाप राजाई दे रहे हैं, इस स्मृति में रहो और याद की यात्रा पर चलो।
❓प्रश्न 5:एक बाप से प्रीत बुद्धि और वनवास में वास – इनमें क्या फ़र्क है?
✅ उत्तर:जो बच्चे बाप से सच्ची प्रीत रखते हैं, वे गॉर्डन (स्वर्ग) के वासी बनते हैं। जो बाप को भूल जाते हैं और माया में फँसे रहते हैं, वे वनवास (जंगल) में वास करने वाले बन जाते हैं।
❓प्रश्न 6:बाप का मुख्य संदेश क्या है जो सबको देना चाहिए?
✅ उत्तर:बाप का मुख्य पैगाम है – “हे आत्माओं! अपने को आत्मा समझ, मुझे याद करो तो पावन बन जाओगे।” यह मैसेज देते रहो, बाकी सब बातें धूतीपना कहलाती हैं।
❓प्रश्न 7:बाप और आत्माओं (बच्चों) के समझाने में क्या फ़र्क है?
✅ उत्तर:बाप की बात में बेहद का बल और सच्चाई होती है, जिससे आत्मा को गहराई से टच होता है। जबकि बच्चों के द्वारा समझाने में वह शक्ति नहीं होती। इसलिए बाप स्वयं आकर सम्मुख समझाते हैं।
❓प्रश्न 8:बाबा कहते हैं – “धंधा करते भी स्टडी याद रहनी चाहिए”, इसका क्या अर्थ है?
✅ उत्तर:इसका अर्थ है कि चाहे कोई कितना भी व्यस्त हो, उन्हें यह याद रहना चाहिए कि वह भगवान के स्टूडेन्ट हैं और भगवान स्वयं उन्हें पढ़ा रहे हैं। यह स्मृति उन्हें हर कर्म में श्रेष्ठता देगी।
मीठे बच्चे, गॉडली स्टूडेन्ट लाइफ, स्वयं भगवान पढ़ाते हैं, ज्ञान अमृत, रूहानी नशा, कल्याणकारी सेवा, आत्मा की स्मृति, 84 जन्मों का चक्र, रूहानी स्कूल, याद की यात्रा, स्वर्ग की स्मृति, पतित से पावन, देवता बनने की यात्रा, संगमयुग की पहचान, ब्रह्मा सो विष्णु, परमात्मा का रथ, भाग्यशाली रथ, सत्य नारायण की सच्ची कथा, आत्मा की आवाज़, मनमनाभव, बाप का डायरेक्शन, परचिंतन का त्याग, धूतीपना छोड़ो, एक राम से योग, गॉर्डन ऑफ अल्लाह, वनवास से गॉर्डन वास, बेहद की बादशाही, प्रीत बुद्धि, याद की अग्नि, विकर्म विनाश, गोल्डन एज की तैयारी
Sweet children, Godly student life, God Himself teaches, Amrit of knowledge, spiritual intoxication, benevolent service, remembrance of the soul, cycle of 84 births, spiritual school, journey of remembrance, remembrance of heaven, pure from impure, journey to become deities, identity of the Confluence Age, Brahma becomes Vishnu, Chariot of the Supreme Soul, fortunate chariot, true story of Satya Narayan, voice of the soul, Manmanaabhav, Father’s direction, renounce thinking about others, give up foolishness, yoga with the one Ram, Garden of Allah, from exile to garden residence, unlimited kingship, loving intellect, fire of remembrance, destruction of sins, preparation for the Golden Age.