सतयुग-(36)सतयुग की स्वच्छता सुंदरता और दिव्य देह का रहस्य
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
“सतयुग की स्वच्छता, सुंदरता और दिव्य देह का रहस्य | The Secret of Divine Bodies in Golden Age”
प्रस्तावना: सतयुग – जहाँ आत्मा और शरीर दोनों दिव्य होते हैं
आज हम जानेंगे उस सतयुग की दिव्यता को, जहाँ न केवल मन शुद्ध होता है, बल्कि शरीर भी —
सुंदर
रोगरहित
और पूर्णतः सुसंस्कृत होता है।
1. सतयुग की प्रथम श्रेणी की स्वच्छता
सतयुग को स्वच्छता की राजधानी कहा जा सकता है।
वहाँ के रास्ते स्वर्ण से बने होते हैं
हर दिशा में फूलों से भरे उद्यान होते हैं
वातावरण सुगन्धित और पावन होता है
“वहाँ फर्स्टक्लास सफाई रहती है।”
लेकिन वहाँ “मेहतर” जैसे नाम नहीं होते — सेवा होती है, पर सम्मानपूर्वक।
2. शरीर छोड़ने की प्रक्रिया — बिना दुःख की विदाई
सतयुग में जब आत्मा देह छोड़ती है,
तो यह कोई शोक या दुःख का विषय नहीं होता।
“बिजली पर रखा और खलास।”
न हड्डियाँ जलाना
न शव उठाना
न शोक मनाना
➡ वहाँ मृत्यु भी सम्मान और शांति से होती है — क्योंकि आत्मा जानती है, अगली देह और भी सुंदर होगी।
3. नई देह, नया रक्त, नई ऊर्जा
इस पतित दुनिया में:
शरीर पुराने हैं
रक्त भी दूषित है
लेकिन सतयुग में:
आत्मा सतोप्रधान होती है
शरीर नया और दिव्य होता है
रक्त भी शुद्ध, ऊर्जा-युक्त होता है
“नई बॉडी मिलेगी तो ब्लड भी नया होगा।”
4. दिव्य चेहरे और नैचुरल ब्यूटी
सतयुग में जन्मने वाले हर बच्चे के फीचर्स नैचुरल, सुंदर और संतुलित होते हैं।
“कृष्ण के वही फीचर्स फिर कभी मिल न सकें।”
यह सौंदर्य ईश्वर प्रदत्त होता है, न कि श्रृंगार से अर्जित।
न विकृति
न अपंगता
न रोग
सिर्फ दिव्यता, संतुलन और सौंदर्य।
5. चण्डाल जैसी भाषा या पहचान नहीं होती
सतयुग में कोई अपवित्र, नीच, या पतित नहीं होता।
“मेहतर”, “चण्डाल”, “गरीब”, “विकलांग” जैसे नाम या पद वहाँ नहीं होते।
सभी आत्माएँ समान रूप से सम्मानजनक जीवन जीती हैं।
हर आत्मा राजयोगी होती है, हर जीवन दिव्य होता है।
6. संगम युग पर तैयार हो रही है वही दुनिया
आज, संगम युग पर —
परमात्मा शिव हमें फिर से वही सतयुगी देह और जीवन देने के लिए राजयोग सिखा रहे हैं।
पवित्रता
श्रीमत पर चलना
श्रेष्ठ कर्म करना
यही है वापसी का मार्ग।
7. निष्कर्ष: जन्म भी सौंदर्यपूर्ण, मरण भी शांतिपूर्ण
सतयुग वह स्थान है जहाँ:
हर शरीर सुंदर, दिव्य और रोगमुक्त होता है
आत्मा शांत, शक्तिशाली और आनंदमयी होती है
मृत्यु कोई दुःख नहीं, बल्कि नई शुरुआत होती है
यही है सतयुग की स्वच्छता, सुंदरता और दिव्य देह का रहस्य।
(Q&A Format — प्रश्नोत्तर शैली में गहराई से समझिए सतयुग की विशेषताओं को)
प्रश्न 1:सतयुग की स्वच्छता कैसी होती है? क्या वहाँ सफाई करने वाले होते हैं?
उत्तर:सतयुग में स्वच्छता स्वाभाविक होती है। वहाँ का वातावरण, रास्ते, उद्यान सब दिव्यता से परिपूर्ण होते हैं।
रास्ते स्वर्ण से बने होते हैं
हवा सुगंधित व पावन होती है
स्वच्छता वहाँ का धर्म होती है
हाँ, सफाई की सेवा करने वाले होते हैं, पर उन्हें मेहतर या सफाईकर्मी नहीं कहा जाता। वहाँ हर कार्य सम्मानजनक होता है, बिना हीनता के।
प्रश्न 2:सतयुग में मृत्यु या शरीर छोड़ने की प्रक्रिया कैसी होती है?
उत्तर:सतयुग में शरीर छोड़ना दुःखद नहीं होता, बल्कि यह एक शांत, सम्मानजनक अनुभव होता है।
कोई दाह-संस्कार नहीं
न कोई रोना-धोना
न कोई शारीरिक पीड़ा
“शरीर का मूल्य नहीं रहता, बिजली पर रखा और खलास।”
आत्मा जानती है कि अब नई, दिव्य देह मिलने वाली है — इसलिए कोई शोक या कष्ट नहीं होता।
प्रश्न 3:क्या हर जन्म में शरीर और रक्त भी नया होता है?
उत्तर:हाँ, सतयुग में हर जन्म एक नई शुरुआत होती है।
आत्मा सतोप्रधान होती है
शरीर दिव्य और नया होता है
रक्त भी शुद्ध, ऊर्जावान व रोगरहित होता है
यहाँ, कलियुग में शरीर और रक्त दोनों पुराने होते हैं, इसलिए बीमारियाँ होती हैं।
प्रश्न 4:क्या सतयुग में चेहरों की सुंदरता भी विशेष होती है?
उत्तर:जी हाँ, सतयुग में चेहरों की दिव्यता और नैचुरल सुंदरता अद्भुत होती है।
श्रीकृष्ण जैसे दिव्य चेहरे के फीचर्स फिर कभी नहीं मिल सकते।
हर जन्म में भिन्न-भिन्न पर सुंदर, सजीव और आकर्षक रूप मिलते हैं।
विकृति नहीं
अपंगता नहीं
पूर्ण संतुलित व दिव्य शरीर
प्रश्न 5:क्या सतयुग में कोई ‘चण्डाल’ या अपवित्र जातियाँ होती हैं?
उत्तर:नहीं। सतयुग में चण्डाल, नीच, हीन जैसी कोई पहचान या शब्दावली नहीं होती।
हर आत्मा पवित्र होती है।
हर जीवन, हर सेवा सम्मानजनक होती है।
भाषा और व्यवहार में कोई गिरावट या तिरस्कार नहीं होता।
प्रश्न 6:क्या ऐसी दिव्य दुनिया फिर से संभव है?
उत्तर:हाँ, संगम युग पर परमात्मा शिव स्वयं आकर हमें फिर से सतयुगी दुनिया की तैयारी करवा रहे हैं।
पवित्र बनकर
श्रेष्ठ कर्म करते हुए
श्रीमत पर चलते हुए
हम पुनः वही दिव्यता, वही शरीर और वही स्वर्ग पुनः प्राप्त करेंगे।
निष्कर्ष:सतयुग एक ऐसा समय है जहाँ शरीर दिव्य, मृत्यु शांत, और जीवन स्वच्छता और सुंदरता से परिपूर्ण होता है।
यह सब हमें आज, संगम युग पर मिल रही ईश्वरीय शिक्षा के आधार पर फिर से प्राप्त करना है।
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