MURLI 25-05-2025/BRAHMAKUMARIS

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(Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

25-05-25
प्रात:मुरली
ओम् शान्ति
”अव्यक्त-बापदादा”
रिवाइज: 04-09-05 मधुबन

शिक्षा के साथ क्षमा और रहम को अपना लो, दुआयें दो, दुआयें लो तो आपका घर आश्रम बन जायेगा

आज बापदादा सर्व बच्चों के मस्तक में प्युरिटी की रेखायें देख रहे हैं क्योंकि ब्राह्मण जीवन का फाउण्डेशन ही है पवित्रता। पवित्रता की रेखायें कौन सी हैं, जानते हो? पवित्रता सर्व को प्रिय है। पवित्रता सुख, शान्ति, प्रेम, आनंद की जननी है। पवित्रता मानव का सच्चा श्रृंगार है। पवित्रता नहीं तो मानव जीवन का मूल्य नहीं। जैसे देखते हो देवतायें पवित्र हैं, इसलिए ही माननीय और पूज्यनीय हैं। पवित्रता नहीं तो मानव जीवन को आजकल देख रहे हो। बापदादा ने आप सभी बच्चों को ब्राह्मण जन्म का वरदान यही दिया – पवित्र भव, योगी भव। जिस आत्मा में पवित्रता है, उसकी चाल, चलन, चेहरा चमकता है इसलिए पवित्रता ही जीवन को श्रेष्ठ बनाने वाली है। वास्तव में आप सब बच्चों का आदि स्वरूप ही पवित्रता है। अनादि स्वरूप भी पवित्रता है। ऐसी पवित्र आत्माओं की विशेषतायें उनकी जीवन में सदा पवित्रता की पर्सनैलिटी दिखाई देती है। पवित्रता की रीयल्टी, पवित्रता की रॉयल्टी चेहरे और चाल में दिखाई देती है। यह रेखायें जीवन का श्रृंगार हैं। रीयल्टी है – मैं अनादि आदि स्वरूप इस स्मृति से समर्थ बन जाता है। रॉयल्टी है – स्वयं भी स्वमान में और हर एक को सम्मान देकर चलने वाला। पर्सनैलिटी है – सदा सन्तुष्टता और प्रसन्नता। स्वयं भी सन्तुष्ट और अन्य को भी सन्तुष्ट करने वाले। पवित्रता से प्राप्तियां भी बहुत हैं। बापदादा ने आप सभी बच्चों को क्या-क्या प्राप्ति कराई है, वह जानते हो ना! कितने खजानों से भरपूर किया है, अगर प्राप्तियों को स्मृति में रखें तो भरपूर हो जाएं।

सबसे पहला खजाना दिया है – ज्ञान का खजाना। जिससे जीवन में रहते दु:ख अशान्ति से मुक्त हो जाते। व्यर्थ संकल्प, निगे-टिव संकल्प, विकल्प, विकर्म से मुक्त हो जाते हैं। अगर कोई भी व्यर्थ संकल्प वा विकल्प आता भी है, तो ज्ञान के बल से विजयी बन जाते हैं।

दूसरा खजाना है – याद, योग। जिससे शक्तियों की प्राप्ति होती है और शक्तियों के आधार से सर्व समस्याओं को, सर्व विघ्नों को सहज पार कर लेते हैं।

तीसरा खजाना है – धारणाओं का, जिससे सर्व गुणों की प्राप्ति होती है। और चौथा खजाना है – सेवा का, जिससे सेवा करने से, जिसकी सेवा करते हो उसकी दुआयें मिलती हैं, खुशी प्राप्त होती है।

इतने खजाने बाप द्वारा सभी बच्चों को प्राप्त होते हैं। बाप सभी को एक जैसे ही खजाने देते हैं, कोई को कम, कोई को ज्यादा नहीं देते हैं। लेकिन लेने वालों में फ़र्क हो जाता है। कोई बच्चे तो खजाने को प्राप्त कर खाते, पीते, मौज करते और फिर मौज में खत्म कर देते हैं। और कोई बच्चे खाते, पीते, मौज करते जमा भी करते हैं। और कोई बच्चे कार्य में भी लगाते लेकिन बढ़ाते जाते हैं। बढ़ाने की चाबी है – खजाने को स्व के प्रति और दूसरों के प्रति यूज़ करना। जो यूज़ करता है वह बढ़ाता है। तो अपने आपसे पूछो कि यह विशेष खजाने जमा हैं? जमा हैं, क्या कहेंगे? हाँ या थोड़ा-थोड़ा? जिसके पास यह खजाने जमा है वह सदा भरपूर रहता है। देखो कोई भी चीज़ भरपूर रहती है ना, तो हलचल नहीं होती है। अगर भरपूर नहीं होती तो हलचल होती है, हिलती है। कोई भी चीज़ को अगर पूरी रीति से भर नहीं दो तो वह हिलती है तो यहाँ भी अगर सर्व खजानों से भरपूर नहीं हैं, तो हलचल होती है। सदा यह नशा रहे कि बाप के खजाने मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है। बाप ने दिया, आपने लिया तो सब खजाने किसके हुए? आपके हो गये ना। तो जिसके पास खजाने हैं, वह कितना नशे में रहता है? जैसे छोटा सा राजा का लड़का राज-कुमार होता है, पता भी नहीं होता है कि बाप के पास क्या-क्या खजाना है लेकिन नशा रहता है कि बाप के खजाने मेरे खजाने हैं और खजाने की खुशी में रहता है। अगर खुशी कम रहती है तो उसका कारण क्या होता है? बाप ने तो खजाने दिये हैं, सुना। लेकिन एक हैं सुनने वाले, दूसरे हैं समाने वाले, जो समाने वाले हैं वह नशे में रहते हैं।

आज नये-नये बच्चे भी आये हैं। बापदादा आप लक्की बच्चों को आप सबके भाग्य की मुबारक दे रहे हैं। अपने भाग्य को पहचाना! पहचाना है? परमात्म प्यार, अविनाशी प्यार जो सिर्फ एक जन्म नहीं चलता, अनेक जन्म सदा ही प्यार कायम रहता है क्योंकि यह जो समय चल रहा है, यह समय भी संगमयुग भाग्यवान युग है। सतयुग को भी भाग्यवान कहते हैं लेकिन वर्तमान संगमयुग का समय उससे भी भाग्यवान है। क्यों? इस संगमयुग में ही बाप द्वारा अखण्ड भाग्य का वरदान, वर्सा प्राप्त होता है। तो ऐसे संगमयुग में, भाग्यवान समय में आप सभी अपना भाग्य लेने के लिए पहुंच गये हो। बापदादा बच्चों को बहुत एक सहज पुरुषार्थ की विधि सुनाते हैं – सहज चाहते हो ना! मुश्किल तो नहीं चाहते हो ना! इन बच्चों को (पुरानों को) तो भाग्य की सहज विधि मिल गई है। मिली है ना? सबसे सहज, और कुछ भी नहीं करना, सिर्फ एक बात करना, एक बात तो कर सकते हो ना! हाँ करो या ना करो! कहो हाँ जी। तो सबसे सहज विधि है – अमृतवेले से लेके सबको जो भी मिले, उससे दुआयें लो और दुआयें दो। चाहे क्रोधी भी आवे, लेकिन आप उसको भी दुआयें दो और दुआयें लो क्योंकि दुआयें तीव्र पुरुषार्थ का बहुत सहज यंत्र हैं। जैसे साइंस में रॉकेट है ना – तो कितना जल्दी कार्य कर लेता है। ऐसे दुआयें देना और दुआयें लेना, यह भी एक बहुत सहज साधन है आगे बढ़ने का। अमृतवेले बाप से सहज याद से दुआयें लो और सारा दिन दुआयें दो और दुआयें लो, यह कर सकते हो? कर सकते हो तो हाथ उठाओ। कोई बद्दुआ दे तो क्या करेंगे? आपको बार-बार तंग करे तो? देखो, आप परमात्मा के बच्चे दाता के बच्चे दाता हो ना! मास्टर दाता तो हो। तो दाता का काम क्या होता है? देना। तो सबसे अच्छी चीज़ है दुआयें देना। कैसा भी व्यक्ति हो, लेकिन है तो आपका भाई, बहन। परमात्मा के बच्चे तो भाई-बहन हो ना! तो परमात्मा का बच्चा है, मेरा ईश्वरीय भाई है, ईश्वरीय बहन है, उसको क्या देंगे! बद्दुआ देंगे क्या? बाप कभी बद्दुआ देता है! देगा? देता है? हाँ या ना? हाँ-ना करो। बहुत खुश रहेंगे। क्यों? अगर बद्दुआ वाले को भी आप दुआ देंगे, वह दे न दे, लेकिन आप दुआ लेंगे, तो दु:ख क्यों होगा। बापदादा आप आये हुए बच्चों को एक वरदान देता है – वरदान याद रखेंगे तो सदा खुश रहेंगे। वरदान सुनायें? सुनेंगे!

वरदान है – अगर आपको कोई दु:ख दे तो भी आप दु:ख लेना नहीं, वह दे लेकिन आप नहीं लेना। क्योंकि देने वाले ने दे दिया, लेकिन लेने वाले तो आप हो ना! देने वाला, लेने वाला नहीं है। अगर वह बुरी चीज़ देता है, दु:ख देता है, अशान्ति देता है, तो बुरी चीज़ है ना। आपको दु:ख पसन्द है? नहीं पसन्द है ना! तो बुरी चीज़ हो गई ना। तो बुरी चीज़ ली जाती है क्या? कोई आपको बुरी चीज़ देवे तो आप ले लेंगे? लेंगे? नहीं लेंगे। तो लेते क्यों हो? ले तो लेते हो ना! अगर दु:ख ले लेते हो तो दु:खी कौन होता है? आप होते हो या वह होता है? लेने वाला ज्यादा दु:खी होता है। अगर अभी से दु:ख लेंगे नहीं तो आधा दु:ख तो आपका दूर हो गया, लेंगे ही नहीं ना! और आप दु:ख के बजाए उसको सुख देंगे तो दुआयें मिलेगी ना। तो सुखी भी रहेंगे और दुआओं का खजाना भी भरपूर होता जायेगा। हर आत्मा से, कैसी भी हो आप दुआयें लो। शुभ भावना, शुभ कामना रखो। कभी-कभी क्या होता है? कोई ऐसा काम करता है ना, तो कोशिश करते हैं शिक्षा देने की। इसको ठीक कर दूं, शिक्षा देते हो। शिक्षा दो लेकिन शिक्षा देने की सर्वोत्तम विधि है कि क्षमा का रूप बनके शिक्षा दो। सिर्फ शिक्षा नहीं दो, रहम क्षमा भी करो और शिक्षा भी दो। दो शब्द याद रखो – शिक्षा और क्षमा, रहम। अगर रहमदिल बनके उसको शिक्षा देंगे तो आपकी शिक्षा काम करेगी। अगर रहमदिल बनके नहीं देंगे, तो शिक्षा एक कान से सुनेंगे दूसरे कान से निकल जायेगी। शिक्षा धारण नहीं होगी। ऐसे है ना? अनुभव है? आप भी किसका शिक्षक तो नहीं बन जाते? शिक्षक बनना जल्दी आता है लेकिन क्षमा करना, दोनों साथ-साथ चाहिए। अभी से रहम, रहम करने की विधि है शुभ भावना, शुभ कामना। जैसे कहते हैं ना सच्चा प्यार, पत्थर को भी पानी कर देता है… ऐसे ही क्षमा स्वरूप से शिक्षा देने से आपका कार्य जो चाहते हो यह नहीं करे, यह नहीं हो, वह प्रत्यक्ष दिखाई देगा। आपके रहमदिल बन शिक्षा देने का प्रभाव उसकी कठोर दिल भी परिवर्तन हो जायेगी। तो क्या वरदान मिला? न दु:ख देना, न दु:ख लेना। पसन्द है? पसन्द है तो अभी लेना नहीं। गलती नहीं करना। जब बाप दु:ख नहीं देता तो फॉलो फादर तो करना है ना? कर रहे हैं! कभी-कभी थोड़ा डांट देते हो। डांटना नहीं। रहम करो। रहम के साथ शिक्षा दो। बार-बार किसको डांटने से और ही आत्मा जो है ना, वह दुश्मन बन जाती है। घृणा आ जाती है। परमात्म बच्चे हो ना! तो जैसे बाप पतित को भी पावन बनाने वाला है, तो आप दु:खी को सुख नहीं दे सकते हो? अभी जाकर ट्रायल करना, ट्रायल करेंगे ना! तो पहले चैरिटी बिगन्स एट होम, परिवार में अगर कोई दु:ख देवे, तो भी दु:ख लेना नहीं। दुआयें देना, रहमदिल बनना, पहले घर वालों को करो। आपके घर का प्रभाव मोहल्ले में पड़ेगा, मोहल्ले का प्रभाव देश में पड़ेगा, देश का प्रभाव विश्व में पड़ेगा। सहज है ना! अपने परिवार में शुरू करो क्योंकि देखो एक भी अगर क्रोध करता है तो घर का वातावरण क्या हो जाता है? घर लगता है या युद्ध का मैदान लगता है? उस समय अच्छा लगता है? नहीं लगता है ना!

आप लोगों के लिए भी है (आज वी.आई.पीज़ के साथ मधुबन वाले समर्पित भाई बहिनें भी सामने बैठे हैं) अपने-अपने साथियों से, अपने अपने कार्य कर्ताओं से न दु:ख लेना, न दु:ख देना। दुआयें देना और दुआयें लेना। अगर आप अधिकार से ऐसे समय पर भी दिल से मेरा बाबा कहेंगे, परमात्मा बाबा, मेरा बाबा… तो कहावत है कि भगवान सदा हाज़िर है। अगर आपने दिल से, अधिकार रूप में ऐसे समय पर मेरा बाबा कहा, तो बाप हज़ूर हाज़िर हो जायेगा, क्योंकि बाप किसलिए है? बच्चों के लिए तो है। और अधिकारी बच्चे को बाप सहयोग नहीं दे, यह हो ही नहीं सकता है। असम्भव। तो परिवर्तन करके जाना। जैसे आये, वैसे नहीं जाना। परिवर्तन करके ही जाना क्योंकि देखो, इतना खर्चा करके आये हो, टिकेट तो लगी ना। खर्चा भी किया, समय भी दिया तो उसकी वैल्यु तो रखेंगे ना! तो वैल्यु है – स्व परिवर्तन से पहले घर का परिवर्तन, फिर विश्व का, देश का परिवर्तन। आपका घर आश्रम बन जाये। घर नहीं, आश्रम। वैसे शास्त्र भी कहते हैं गृहस्थ आश्रम, लेकिन आज आश्रम नहीं हैं। आश्रम अलग हैं, घर अलग हैं। तो घर को आश्रम बनाना। दुआयें देना और लेना यह आश्रम का कार्य है। आपका घर मन्दिर बन जायेगा। मन्दिर में मूर्ति क्या करती है? दुआयें देती है ना! मूर्ति के आगे जाकर क्या कहते हैं? दुआ दो। मर्सी, मर्सी कहके चिल्लाते हैं। तो आपको भी क्या देना है? दुआ। ईश्वरीय प्यार दो, आत्मिक प्यार। शरीर का प्यार नहीं आत्मिक प्यार। आज प्यार है तो स्वार्थ का प्यार है। सच्ची दिल का प्यार नहीं है। स्वार्थ होगा तो प्यार देंगे, स्वार्थ नहीं होगा तो डोंट केयर। तो आप क्या करेंगे? आत्मिक प्यार देना, दुआ देना, दु:ख न लेना, न दु:ख देना। देखो आपको चांस मिला है, बापदादा को भी खुशी है। इतने जो भी सब आये हैं, (भारत के करीब 250 वी.आई.पीज् रिट्रीट में आये हुए हैं) इतने घर तो आश्रम बनेंगे ना। बनायेंगे ना? पक्का? कि थोड़ा-थोड़ा कच्चा? जो समझते हैं कुछ भी हो जाए, थोड़ा सहन तो करना पड़ेगा, समाने की शक्ति कार्य में लगानी पड़ेगी, लेकिन सहनशक्ति का फल बड़ा मीठा होता है। सहन करना पड़ता है लेकिन फल बड़ा मीठा होता है। तो जो पक्का वायदा करते हैं, घर-घर को स्वर्ग बनायेंगे, मन्दिर बनायेंगे, आश्रम बनायेंगे, वह हाथ उठाओ। देखा-देखी में नहीं उठाना क्योंकि बापदादा हिसाब लेगा ना फिर। देखकर नहीं उठाना। सच्चा-सच्चा मन का हाथ, मन से हाथ उठाओ। अच्छा। दादियां, इनको इसकी क्या प्राइज़ देंगे? हाँ बोलो, दादी इतने मन्दिर बन जायेंगे तो आप उसको क्या प्राइज देंगी? (अपने घर वालों को ले आवें) यह तो प्राइज नहीं दी, यह तो काम सुना दिया। (बाबा जो आज्ञा करेंगे) देखो प्राइज तो आपको मिल जायेगी, कोई बड़ी बात नहीं है, लेकिन… लेकिन है? लेकिन बोलें। आप जाने के बाद अपनी धारणा से परिवर्तन करना और 15 दिन के बाद, मास के बाद अपनी रिजल्ट लिखना, जो एक मास भी दु:ख नहीं लेगा, न देगा, उसको बहुत अच्छी प्राइज़ देंगे। अगर आप आयेंगे तो मुबारक है, अगर नहीं आ सकेंगे तो भी सेन्टर पर भेजेंगे। अच्छा।

चारों ओर के देश विदेश के बच्चों की याद बापदादा को मिली है। चाहे फोन द्वारा याद भेजी है, चाहे पत्र द्वारा, चाहे दिल में याद किया है, तो बापदादा सभी बच्चों को चाहे भारत के, चाहे विदेश के रिटर्न में दुआयें और यादप्यार पदमगुणा दे रहे हैं।

चारों ओर के परमात्म प्यार के अधिकारी बच्चों को, चारों ओर सर्व खजानों से भरपूर, निर्विघ्न, निर्विकल्प, निरव्यर्थ संकल्प रहने वाली श्रेष्ठ आत्माओं को, साथ-साथ सर्व परिवर्तन करने और कराने के उमंग-उत्साह में उड़ने वाले बच्चों को, साथ-साथ बापदादा को सच्ची दिल का समाचार देने वाले सच्चे दिल वाले बच्चों को विशेष दिलाराम के रूप में, बाप के रूप में, शिक्षक के रूप में, सतगुरू के रूप में पदमगुणा यादप्यार और नमस्ते।

वरदान:- भटकती हुई आत्माओं को यथार्थ मंजिल दिखाने वाले चैतन्य लाइट-माइट हाउस भव
किसी भी भटकती हुई आत्मा को यथार्थ मंजिल दिखाने के लिए चैतन्य लाइट-माइट हाउस बनो। इसके लिए दो बातें ध्यान पर रहें -1-हर आत्मा की चाहना को परखना, जैसे योग्य डाक्टर उसे कहा जाता है जो नब्ज को जानता है, ऐसे परखने की शक्ति को सदा यूज़ करना। 2-सदा अपने पास सर्व खजानों का अनुभव कायम रखना। सदा यह लक्ष्य रखना कि सुनाना नहीं है लेकिन सर्व सम्बन्धों का, सर्व शक्तियों का अनुभव कराना है।
स्लोगन:- दूसरों की करेक्शन करने के बजाए एक बाप से ठीक कनेक्शन रखो।

 

अव्यक्त इशारे – रूहानी रॉयल्टी और प्युरिटी की पर्सनैलिटी धारण करो

अपना निजी-स्वरूप व वरदानी स्वरूप सदा स्मृति में रहे तो अपवित्रता और विस्मृति का नाम-निशान समाप्त हो जायेगा। विस्मृति व अपवित्रता क्या होती है, अब इसकी अविद्या होनी चाहिए क्योंकि यह संस्कार व स्वरूप आपका नहीं है बल्कि आपके पूर्व जन्म का था। अभी आप ब्राह्मण हो, ये तो शूद्रों के संस्कार व स्वरूप है, ऐसे अपने से भिन्न अर्थात् दूसरे के संस्कार अनुभव होना, इसको कहा जाता है – न्यारा और प्यारा।

📜 शीर्षक: “शिक्षा के साथ क्षमा और रहम को अपना लो, दुआयें दो, दुआयें लो – तो आपका घर आश्रम बन जायेगा”

❓प्रश्न 1: ब्राह्मण जीवन का मुख्य आधार क्या है?

✅उत्तर:ब्राह्मण जीवन का फाउंडेशन है पवित्रता। यह जीवन का श्रृंगार है और सुख, शांति, प्रेम, आनंद की जननी है। पवित्रता के बिना मानव जीवन का कोई मूल्य नहीं।

❓प्रश्न 2: पवित्रता की कौन-कौन सी विशेषताएं जीवन में दिखाई देती हैं?

✅उत्तर:पवित्र आत्मा की चाल, चलन, चेहरा तेजस्वी होता है। उसमें संतुष्टता, प्रसन्नता और दूसरों को सम्मान देने की भावना होती है। उसके जीवन में रीयल्टी (स्मृति), रॉयल्टी (सम्मान), और पर्सनैलिटी (संतुष्टता) स्पष्ट दिखाई देती हैं।

❓प्रश्न 3: बापदादा ने ब्राह्मण बच्चों को कौन-कौन से चार खजाने दिए हैं?

✅उत्तर:

  1. ज्ञान का खजाना – जो दुख, अशांति, व्यर्थ संकल्पों से मुक्त करता है।

  2. योग का खजाना – जिससे आत्मा को शक्तियाँ प्राप्त होती हैं।

  3. धारणाओं का खजाना – जिससे श्रेष्ठ गुणों की प्राप्ति होती है।

  4. सेवा का खजाना – जिससे दूसरों की सेवा करके दुआएं प्राप्त होती हैं।

❓प्रश्न 4: दुआएं देना और लेना क्यों आवश्यक है?

✅उत्तर:दुआएं तीव्र पुरुषार्थ का सहज साधन हैं। दुआएं देना और लेना आत्मा को शक्ति देता है और सेवा का श्रेष्ठ फल दिलाता है। इससे घर का वातावरण पवित्र, शांत और प्रेममय बनता है।

❓प्रश्न 5: अगर कोई व्यक्ति हमें दुख देता है, तो हमें क्या करना चाहिए?

✅उत्तर:हमें दुख लेना नहीं है, बल्कि क्षमा और शुभ भावना से उसे दुआ देना है। जैसे बापदादा कभी दुख नहीं देते, वैसे हमें भी “दाता” बनकर देना है – सिर्फ प्यार और दुआएं।

❓प्रश्न 6: शिक्षा किस प्रकार देनी चाहिए ताकि उसका प्रभाव पड़े?

✅उत्तर:शिक्षा रहम और क्षमा के साथ देनी चाहिए। अगर कोई गलती करता है, तो सिर्फ शिक्षक मत बनो, रहमदिल शिक्षक बनो। तब ही शिक्षा प्रभावशाली होगी और आत्मा परिवर्तन के लिए तैयार होगी।

❓प्रश्न 7: अपने घर को ‘आश्रम’ या ‘मंदिर’ कैसे बनाएं?

✅उत्तर:घर को आश्रम बनाने के लिए आवश्यक है कि:

  • हर सदस्य दुआएं दे और ले।

  • शांति, सहनशीलता और पवित्रता को जीवन में धारण करें।

  • घर के हर सदस्य को आत्मिक दृष्टि से भाई-बहन समझें

  • क्रोध, दुःख, और शिकायतों को त्यागकर शुभ भावना रखें।

❓प्रश्न 8: जब कोई बद्दुआ दे, अपशब्द बोले या तंग करे, तब क्या करना चाहिए?

✅उत्तर:हमें दाता के बच्चे बनकर सिर्फ दुआ देनी चाहिए। बद्दुआ देना या लेना हमें बापदादा की श्रेणी से नीचे ले आता है। बुराई के बदले शुभकामना देने से आत्मा की शक्ति और आत्म-सम्मान दोनों बढ़ते हैं।

❓प्रश्न 9: अगर हम स्वयं दुख नहीं लेते, तो क्या लाभ होता है?

✅उत्तर:जब हम दुख नहीं लेते, तो हमारी शक्ति बचती है, हम सुखी रहते हैं और दूसरों को भी सुख देने योग्य बन जाते हैं। साथ ही, हम आत्मा के रूप में मजबूत होते हैं और दुआओं का खजाना भरता चला जाता है।

❓प्रश्न 10: घर में परिवर्तन कहां से शुरू करना चाहिए?

✅उत्तर:“चैरिटी बिगिन्स एट होम” – यानी सबसे पहले अपने परिवार से शुरुआत करें। घर का एक सदस्य भी अगर आत्मिक दृष्टि से प्रेम, शांति, दुआओं और क्षमा की भावना रखे तो पूरा घर स्वर्ग बन सकता है।

निष्कर्ष / प्रेरणा

तो क्या आप यह परिवर्तन आज से शुरू करने के लिए तैयार हैं?
👉 हाँ! घर को आश्रम बनाएंगे, सबको दुआएं देंगे और सबकी दुआएं लेंगे।

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