A-p 24 “Are sanskaras in the soul or in the body?

आत्मा-पदम (24)संस्कार आत्मा में हैं या शरीर में

A-p 24 “Are sanskaras in the soul or in the body?

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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संस्कार आत्मा में हैं या शरीर में?

ओम शांति

कौन बनेगा पद्मा पदम पति?

हम सभी पद्मा पदम पति बनेगे, यह तब संभव है कि हमारे प्रत्येक कर्म पवित्र हो और अकर्म हो जाए ताकि हम सतयुग स्वर्ग की योग्य में जाने के लायक बनें और वहां पर ऊच्च पद प्राप्त कर सकें।

संस्कार कहां हैं – आत्मा में या शरीर में?

यह प्रश्न पूछने वाला है कि संस्कार आत्मा में है या शरीर में? जोति लोग इस पर क्लियर कर सकेने वाले हैं, वास्तविक तर पर समझने की आवश्यकता है।

पुरुषत्व और स्त्रीत्व का वास्तविक आधार

पुरुषत्व और स्त्रीत्व का वास्तविक आधार क्या है? एक आत्मा पुरुष बनती है या स्त्रीरी? किसी संस्कार के आधार पर समझी कर सकते हैं?

संस्कार का मर्ज और इमर्ज का खेल

हर आत्मा के अंदर प्रतिबिम्बित संस्कार मौजूद होते हैं जो विशेष के औसार आत्मा में निर्मित होते रहते हैं। यह मर्ज और इमर्ज का खेल एक संचालित प्रकिरिया है।

कर्मों की गति और ड्रामा

हर कर्म की एक गति होती है, जो ड्रामा के अनुसार नियमित होती है।

आत्मा, कर्म और संस्कार: एक आध्यात्मिक दृष्टिकोण

1. क्रोध और कर्मों का चुकता होना

जब कोई व्यक्ति हमारे साथ क्रोध में आकर हमें हानि पहुँचाता है, तो क्या हमें भी उसी प्रकार प्रतिक्रिया देनी चाहिए? यह प्रश्न अक्सर हमारे मन में उठता है। आध्यात्मिक दृष्टिकोण से, यदि किसी ने हमें हानि पहुँचाई है, तो उसका प्रतिकार करना आवश्यक नहीं है। कर्मों का चुकता होना केवल प्रतिशोध से नहीं होता, बल्कि समझदारी और धैर्य से भी संभव है।

2. आत्मा का शरीर परिवर्तन और पुनर्जन्म

आत्मा को अपने अगले जन्म के माता-पिता के बारे में पूर्वज्ञान नहीं होता। जैसे ही आत्मा शरीर छोड़ती है, वह अपने पूर्व कर्मों के अनुसार नए शरीर में प्रवेश कर लेती है। कुछ लोग मानते हैं कि आत्मा शरीर छोड़ने के बाद 13 दिन तक नया शरीर नहीं लेती, लेकिन बाबा के अनुसार आत्मा तुरंत ही नया शरीर धारण कर लेती है और कर्म चक्र में प्रविष्ट हो जाती है।

3. आत्मा और शरीर का संबंध

आत्मा न तो पुरुष होती है, न ही स्त्री। शरीर ही पुरुष या स्त्री होता है, क्योंकि वह पंचतत्वों से निर्मित होता है। आत्मा को केवल अपने संस्कारों के आधार पर कार्य करना होता है। आत्मा का कार्य अपने पूर्व निर्धारित संस्कारों के अनुसार होता है, न कि शरीर के आधार पर।

4. आत्मा के स्तर पर लिंग परिवर्तन

आत्मा के स्तर पर लिंग परिवर्तन का कोई अर्थ नहीं है। आत्मा का काम अपने संस्कारों के अनुसार चलना है। शरीर एक वाहन की तरह है – यदि साइकिल मिले, तो साइकिल चलानी होगी, यदि कार मिले, तो कार चलानी होगी।

5. भौतिक संपत्ति और आत्मा का स्वामित्व

इस संसार में बहुत से गरीब लोग बड़े-बड़े विला में रहते हैं, लेकिन वे उनके स्वामी नहीं होते। वे ट्रस्टी के रूप में उन संपत्तियों का उपयोग करते हैं। इसी प्रकार, आत्मा भी शरीर का स्वामी नहीं होती, बल्कि वह केवल अपने कर्मों के अनुसार शरीर का उपयोग करती है।

6. आत्मा और संस्कार: अनादि और अविनाशी

संस्कार आत्मा में स्थित होते हैं और वे अनादि तथा अविनाशी होते हैं। आत्मा मूलतः शुद्ध होती है, लेकिन जन्म-जन्मांतर के संस्कार उसमें जमा होते रहते हैं। पुरुष और स्त्री के संस्कारों में मौलिक अंतर होता है, लेकिन यदि ड्रामा का सही ज्ञान हो, तो यह कठिनाई सहज हो जाती है।

7. बाबा का दृष्टिकोण: आत्मा, लिंग और संस्कार

बाबा हमें यह सिखाते हैं कि आत्मा को अपने संस्कारों के आधार पर ही कार्य करना है। आत्मा चाहे स्त्री शरीर में हो या पुरुष शरीर में, उसे अपने भाग्य के अनुसार अपना पार्ट निभाना है। बाबा का ज्ञान हमें यह समझाता है कि हम आत्मा हैं, न कि यह शरीर, और हमें अपने संस्कारों के आधार पर जीवन को सहज रूप से स्वीकार करना चाहिए।

बाबा की विशेष शिक्षाएं

लिंग और संस्कारों पर दृष्टिकोण

बाबा के अनुसार आत्मा ही शरीर का आधार लेकर सभी क्रियाएँ करती है

आत्मा के अच्छे और बुरे संस्कार उसके अगले जन्म का निर्धारण करते हैं। आत्मा ही तन का आधार लेकर सब कुछ करती है। संस्कार आत्मा में होते हैं, न कि शरीर में।

बाबा के विचार

आत्मा ही तन का आधार लेकर सब कुछ करती है। पुनर्जन्म और लिंग परिवर्तन के परिप्रेक्ष्य में, यज्ञ में आत्माओं के पुनर्जन्म के कई उदाहरण मिलते हैं। उदाहरण के लिए, बहनों का पुरुष रूप में जन्म लेने का उल्लेख किया जाता है, जैसे दादी प्रकाशमणि पुरुष रूप में जन्म लेती हैं। वहीं, भाइयों का स्त्री रूप में जन्म लेने का अभाव रहा है। बाबा के अनुसार, जिसका पार्ट स्त्री का है, वह स्त्री बनेगा और जिसका पार्ट पुरुष का है, वह पुरुष बनेगा।

साक्षात्कार और पुनर्जन्म

सरकार बाबा (10-09-2007) रिवाइज बाबा बताते हैं कि जब प्रिंस का साक्षात्कार होता है, तो आत्माएँ प्रेरित होती हैं। सतयुग में कोई भेद नहीं रहता कि कौन स्त्री है और कौन पुरुष, सभी को समान ताज मिलता है। पतित दुनिया में पुरुष प्रधान समाज स्त्री और पुरुष में भेद रखता है, लेकिन सतयुग में यह भेद समाप्त हो जाता है।

सरकार बाबा (21-01-2008) रिवाइज बाबा बताते हैं कि आत्मा अच्छे-बुरे संस्कारों के आधार पर जन्म लेती है। जब कोई बहन शरीर छोड़ती है, तो कहा जाता है कि वह अमुक पुरुष रूप में जन्मी। जैसे दादी प्रकाशमणि मेल बनीं। लेकिन किसी भाई के संदर्भ में यह नहीं कहा गया कि उसने स्त्री रूप में जन्म लिया। दीदी और विश्व किशोर भाऊ के पुनर्जन्म पर चर्चा हुई, लेकिन उनमें लिंग परिवर्तन की बात नहीं कही गई।

विश्व किशोर भाऊ पहले श्रीकृष्ण के पिता और बाद में श्रीनारायण के पुत्र के रूप में जन्म लेने की चर्चा में आए। बाबा बताते हैं कि आत्मा लगातार दो-तीन जन्म तक मेल या फीमेल बनी रह सकती है, लेकिन बाद में परिवर्तन संभव है।

सूक्ष्म वतन और आत्मा का वास्तविक अनुभव

अभियुक्त मुरली (02-02-1969) बाबा ने कहा कि सूक्ष्म वतन का अस्तित्व है। आत्मा के अविनाशी संस्कार उसमें होते हैं। सूक्ष्म वतन का महत्व बच्चों की कमाई से जुड़ा है। बाबा की शिक्षाएँ बच्चों को समझने और आत्मा की उन्नति के मार्ग को स्पष्ट करती हैं।

पुरुषत्व और स्त्रीत्व के संस्कार

आत्मा या शरीर का आधार चाहे पुरुष हो या स्त्री, आत्मा को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। शरीर की रचना शरीर के आधार पर होती है, लेकिन आत्मा सदैव अपनी स्थायी स्थिति में रहती है। पुरुष और स्त्री के गुण धर्म आत्मा से ही जुड़े हुए हैं, जिससे सृष्टि का संतुलन बना रहता है। आत्मा के मूल संस्कारों में परिवर्तन अति दुर्लभ है।

बाबा कहते हैं कि सृष्टि की फैमिली प्लानिंग परमात्मा के अधीन है, इसमें कोई मानवीय हस्तक्षेप नहीं हो सकता। सृष्टि का संतुलन ड्रामा अनुसार निर्धारित है, इसमें कोई अनबैलेंस चीज नहीं हो सकती।

निष्कर्ष

संस्कार आत्मा में होते हैं और वे अनादि एवं अविनाशी हैं। कोई भी उन्हें बदल नहीं सकता। पुरुषत्व और स्त्रीत्व के संस्कार आत्मा के स्तर पर स्थिर रहते हैं। बाबा की शिक्षाएँ इस विषय पर गहन चिंतन और विश्लेषण की प्रेरणा देती हैं।

संस्कार आत्मा में हैं या शरीर में? – प्रश्नोत्तर श्रृंखला

प्रश्न 1: संस्कार आत्मा में होते हैं या शरीर में?

उत्तर: संस्कार आत्मा में होते हैं, शरीर में नहीं। आत्मा अनादि और अविनाशी है, और उसके संस्कार जन्म-जन्मांतर में संचित होते रहते हैं। शरीर तो केवल एक माध्यम है जिसके द्वारा आत्मा अपने संस्कारों के अनुसार कर्म करती है।

प्रश्न 2: यदि संस्कार आत्मा में होते हैं, तो क्या जन्म के साथ ही आत्मा के पुराने संस्कार सक्रिय हो जाते हैं?

उत्तर: हाँ, आत्मा अपने पूर्व जन्मों के संस्कार लेकर नए शरीर में प्रवेश करती है। जैसे बीज में वृक्ष की संपूर्ण विशेषताएँ छिपी होती हैं, वैसे ही आत्मा में उसके संस्कार छिपे होते हैं, जो समय आने पर उभरकर कर्मों में प्रकट होते हैं।

प्रश्न 3: क्या आत्मा के संस्कार बदले जा सकते हैं

उत्तर: हाँ, बाबा के अनुसार, सच्ची ज्ञान-योग की साधना और श्रेष्ठ कर्मों द्वारा आत्मा के संस्कार बदले जा सकते हैं। यह परिवर्तन एक आध्यात्मिक प्रक्रिया के माध्यम से संभव है, जहाँ आत्मा स्वयं को परमात्मा के साथ जोड़कर अपने पुराने विकर्मों को समाप्त कर देती है।

प्रश्न 4: पुरुषत्व और स्त्रीत्व का आधार क्या है?

उत्तर: आत्मा न तो पुरुष होती है और न ही स्त्री। शरीर ही पुरुष या स्त्री होता है। आत्मा अपने कर्मों के अनुसार किसी भी शरीर में जन्म ले सकती है। बाबा के अनुसार, आत्मा के मूल संस्कार शुद्ध होते हैं, लेकिन जन्म-जन्मांतर के प्रभाव से उसमें कुछ विशेष गुण विकसित हो जाते हैं।

प्रश्न 5: क्या आत्मा पिछले जन्म के आधार पर स्त्री या पुरुष बनती है?

उत्तर: बाबा के अनुसार, आत्मा दो-तीन जन्म तक एक ही प्रकार का शरीर धारण कर सकती है, लेकिन आगे चलकर उसका शरीर परिवर्तन हो सकता है। उदाहरण के लिए, दादी प्रकाशमणि ने अपने अगले जन्म में पुरुष शरीर धारण किया, लेकिन पुरुष आत्माओं के स्त्री शरीर में जन्म लेने के उदाहरण बहुत कम मिलते हैं।

प्रश्न 6: संस्कारों का मर्ज और इमर्ज कैसे होता है?

उत्तर: आत्मा के संस्कार समय-समय पर उभरते और दबते रहते हैं। कुछ संस्कार परिस्थितियों के अनुसार जाग्रत हो जाते हैं, जबकि कुछ सुप्तावस्था में चले जाते हैं। यह मर्ज और इमर्ज का खेल आत्मा की आध्यात्मिक स्थिति और उसके संचित कर्मों पर निर्भर करता है।

प्रश्न 7: क्या भौतिक संपत्ति आत्मा की होती है?

उत्तर: नहीं, आत्मा किसी भी भौतिक वस्तु की स्वामिनी नहीं होती। शरीर, संपत्ति, संबंध—सब नश्वर हैं। आत्मा केवल अपने कर्मों के आधार पर इनका उपयोग करती है, लेकिन इनका वास्तविक स्वामित्व नहीं रखती।

प्रश्न 8: क्या आत्मा को अपने अगले जन्म के बारे में पूर्वज्ञान होता है?

उत्तर: नहीं, आत्मा को अपने अगले जन्म के बारे में कोई पूर्वज्ञान नहीं होता। जब आत्मा शरीर छोड़ती है, तो वह अपने कर्मों के अनुसार नए शरीर में प्रवेश कर लेती है।

प्रश्न 9: क्या संस्कार ड्रामा के अनुसार निश्चित होते हैं?

उत्तर: हाँ, बाबा बताते हैं कि संस्कार ड्रामा के अनुसार ही चलते हैं। हर आत्मा को अपने संचित संस्कारों के अनुसार अपने कर्म करने पड़ते हैं, और यही उसके भविष्य का निर्माण करते हैं।

प्रश्न 10: बाबा के अनुसार, पुरुषत्व और स्त्रीत्व के संस्कारों का क्या महत्व है?


उत्तर: बाबा कहते हैं कि सृष्टि की योजना परमात्मा द्वारा बनाई गई है और इसमें कोई असंतुलन नहीं हो सकता। आत्मा अपने संस्कारों के अनुसार ही जन्म लेती है, और इस प्रक्रिया में मनुष्य का कोई हस्तक्षेप नहीं होता। आत्मा को अपने मूल स्वरूप में स्थित रहकर केवल श्रेष्ठ कर्म करने चाहिए।

निष्कर्ष:

संस्कार आत्मा में होते हैं, न कि शरीर में। आत्मा अपने संस्कारों के आधार पर जन्म लेती है और कर्म करती है। आध्यात्मिक ज्ञान और योग से आत्मा अपने संस्कारों को शुद्ध कर सकती है और श्रेष्ठ कर्मों द्वारा अपने भाग्य को ऊंचा बना सकती है।

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