A-P 35 “The spiritual secret of the external state

आत्मा-पदम (35)विदेही स्थिति का आध्यात्मिक रहस्य

A-P 35 “The spiritual secret of the external state

 (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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विदेही सति का आध्यात्मिक रहस्य

विदेही सति का अर्थ और महत्त्व

विदेही सति क्या होती है, इसे आध्यात्मिक रूप से समझना अति आवश्यक है। यह आत्मा की उस स्थिति को दर्शाता है जिसमें वह देह से परे, शुद्ध और दिव्य अवस्था में स्थित होती है। विदेही का अर्थ होता है “बिना देह के,” अर्थात आत्मा अपनी मूल स्थिति में स्थित होकर परमात्मा के समान बनती है।


1. विदेही सति का अनुभव

परमात्मा और आत्मा का योगदान

परमात्मा और आत्मा के बीच यह प्रक्रिया तभी संभव होती है जब आत्मा परमात्मा के ज्ञान और योगबल से स्वयं को विदेही बना लेती है। परमात्मा तो सदा विदेही हैं, परंतु आत्मा इस संसार में आकर देह को अपनाने के कारण देह-अभिमान में आ जाती है। अतः परमात्मा ही आत्मा को विदेही बनाने की शक्ति प्रदान करते हैं।

विदेही स्थिति की परिभाषा

विदेही का अर्थ है विशेष देह वाला—जिसका स्वरूप अत्यंत विचित्र और अवर्णनीय हो। इसका तात्पर्य यह है कि आत्मा की वास्तविक स्थिति “पॉइंट ऑफ लाइट” की होती है, जिसे हम बना या देख नहीं सकते। बाबा हमें यह अनुभव कराते हैं कि जैसे परमात्मा विदेही हैं, वैसे ही आत्मा भी विदेही है।


2. आत्मा की शक्ति और अनुभव

अनुभव आत्मा का स्वाभाविक गुण

अनुभव करना आत्मा का एक स्वाभाविक गुण है। चाहे वह शांति का अनुभव हो, खुशी का हो, अथवा पवित्रता का—ये सभी आत्मा की शक्तियों से जुड़े होते हैं। जब आत्मा परमात्मा द्वारा प्रदत्त सत्य ज्ञान को धारण करती है, तब वह स्वयं को विदेही स्थिति में अनुभव कर सकती है।

परमात्मा और आत्मा का सामंजस्य

परमात्मा प्रेरक शक्ति हैं, जबकि आत्मा उस प्रेरणा को आत्मसात करने वाली शक्ति है। परमात्मा द्वारा दिए गए ज्ञान को आत्मा जब अपने जीवन में लागू करती है, तब विदेही स्थिति का वास्तविक अनुभव प्राप्त होता है।


3. विदेही स्थिति को स्थायी बनाने का पुरुषार्थ

पुरुषार्थ का महत्व

विदेही स्थिति का अनुभव केवल क्षणिक नहीं होना चाहिए, बल्कि इसे स्थायी बनाना ही वास्तविक पुरुषार्थ है। बाबा कहते हैं कि यदि एक सेकंड का भी अनुभव हो जाए, तो इसे धीरे-धीरे बढ़ाया जा सकता है।

अभ्यास और एकाग्रता

  • जब भी समय मिले, आत्मा को स्वयं को विदेही स्थिति में देखने का अभ्यास करना चाहिए।

  • चलते-फिरते, बैठते, किसी भी स्थिति में यह स्मृति धारण की जा सकती है कि “मैं इस देह से अलग आत्मा हूं।”

  • निरंतर अभ्यास से यह स्थिति स्थायी बन सकती है।


4. विदेही स्थिति का व्यवहारिक स्वरूप

कर्म और विदेही स्थिति का संबंध

बाबा हमें सिखाते हैं कि देह में रहते हुए भी विदेही स्थिति में स्थित रहना ही सच्चा पुरुषार्थ है। इसका अर्थ है कि हम अपने कर्तव्यों को निभाते हुए भी आत्मिक स्थिति में स्थित रहें।

दृष्टा भाव और साक्षी दृष्टा बनना

बाबा कहते हैं कि कर्म करते समय यदि हम दृष्टा और सुपरवाइजर बनकर कार्य करें, तो थकान नहीं होगी और कार्य भी श्रेष्ठ होगा। इस दृष्टि से विदेही स्थिति का अर्थ है:

  1. साक्षी भाव में रहना – कर्म करते हुए भी स्वयं को आत्मा रूप में अनुभव करना।

  2. कर्तव्य का पालन करना – लेकिन उसमें आसक्ति न रखना।


5. बापदादा का उद्देश्य

बापदादा का मार्गदर्शन

बापदादा हमें यह सिखाते हैं कि देह में रहते हुए भी विदेही स्थिति को बनाए रखना आवश्यक है। यह शिक्षा आत्मा को देह-अभिमान से मुक्त कर आत्मिक स्थिति में कर्म करने की योग्यता प्रदान करती है।

विदेही बनने का अर्थ

  • विदेही स्थिति का अर्थ है कि आत्मा को इस देह का आधार लेते हुए भी स्वयं को इससे परे अनुभव करना।

  • कर्म करते हुए भी आत्मा अपनी मूल स्थिति में स्थित रहे और स्वयं को करनकरावनहार अनुभव करे।


6. निष्कर्ष

विदेही स्थिति का अनुभव परमात्मा की शक्ति और आत्मा के स्वाभाविक गुणों का परिणाम है। आत्मा को अपने पुरुषार्थ द्वारा इस अनुभव को चिरस्थायी बनाना आवश्यक है।

बापदादा की शिक्षाएं

  1. आत्मा को जीवन में विदेही स्थिति को व्यावहारिक रूप से अपनाना चाहिए।

  2. यह स्थिति आत्मा को उच्च चेतना में स्थापित कर उसके कर्मों को सशक्त और दिव्य बनाती है।

  3. बाबा हमें सिखाते हैं कि जैसे वे विदेही स्थिति में स्थित रहते हैं, वैसे ही हम भी अपने कर्मों में रहते हुए विदेही स्थिति धारण करें।

विदेही स्थिति की प्राप्ति

विदेही स्थिति ही आत्मा को सच्चे सुख, शांति, और शक्ति का अनुभव कराती है। यही सच्चा पुरुषार्थ है और यही आध्यात्मिक उत्थान की सर्वोच्च अवस्था है।

विदेही सति का आध्यात्मिक रहस्य

1. प्रश्न-विदेही सति क्या है और इसका आध्यात्मिक अर्थ क्या है?

उत्तर: विदेही सति का अर्थ है आत्मा की वह अवस्था जब वह देह से परे अपनी शुद्ध, दिव्य और मूल स्थिति में स्थित होती है। यह स्थिति आत्मा को परमात्मा के समान विदेही बनने का अनुभव कराती है, जिससे वह शरीर के बंधनों से मुक्त होकर आत्मिक चेतना में स्थित रहती है।

2.प्रश्न-विदेही स्थिति को प्राप्त करने के लिए आत्मा को क्या करना चाहिए?

उत्तर: आत्मा को विदेही स्थिति प्राप्त करने के लिए परमात्मा के ज्ञान और योगबल को धारण करना आवश्यक है। नियमित रूप से आत्मा को स्वयं को शरीर से अलग ‘शुद्ध प्रकाश बिंदु’ के रूप में अनुभव करना चाहिए।

3.प्रश्न-परमात्मा और आत्मा के बीच विदेही स्थिति की क्या भूमिका है?

उत्तर: परमात्मा सदा विदेही हैं, जबकि आत्मा इस संसार में आकर देह-अभिमान में आ जाती है। परमात्मा ही आत्मा को अपनी शक्ति और ज्ञान द्वारा विदेही स्थिति का अनुभव कराते हैं, जिससे आत्मा देह से परे रहकर अपने शुद्ध स्वरूप को प्राप्त कर सकती है।

4.प्रश्न-विदेही स्थिति का अनुभव आत्मा के लिए क्यों आवश्यक है?

उत्तर: विदेही स्थिति आत्मा को वास्तविक शांति, शक्ति, और आनंद का अनुभव कराती है। यह आत्मा को संसार के बंधनों से मुक्त कर, उसे साक्षी दृष्टा और कर्मयोगी बनने में सहायक बनाती है।

5.प्रश्न-विदेही स्थिति को स्थायी बनाने के लिए कौन-से अभ्यास आवश्यक हैं?

उत्तर:

  • स्मृति का अभ्यास: स्वयं को देह से परे आत्मा रूप में अनुभव करना।

  • योगबल: परमात्मा से निरंतर जुड़कर आत्मा को शक्ति प्रदान करना।

  • निरंतर अभ्यास: चलते-फिरते, कार्य करते हुए भी विदेही स्थिति में स्थित रहने का अभ्यास।

6.प्रश्न-विदेही स्थिति का कर्मों से क्या संबंध है?

उत्तर: विदेही स्थिति में स्थित रहते हुए भी आत्मा को अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए, लेकिन उसमें आसक्ति नहीं रखनी चाहिए। जब आत्मा साक्षी भाव में रहकर कर्म करती है, तब वह बंधनों से मुक्त रहती है और श्रेष्ठ कर्म कर सकती है।

7.प्रश्न-बापदादा हमें विदेही स्थिति के विषय में क्या सिखाते हैं?

उत्तर: बापदादा हमें सिखाते हैं कि देह में रहते हुए भी आत्मा को विदेही स्थिति को धारण करना चाहिए। यह स्थिति आत्मा को देह-अभिमान से मुक्त कर, कर्म करते हुए भी योगयुक्त बनाए रखती है।

8.प्रश्न- विदेही स्थिति में रहने से आत्मा को क्या लाभ होता है?

उत्तर:

  • आत्मा को परम शांति और शक्ति की अनुभूति होती है।

  • जीवन में संतुलन, सहजता और आनंद बना रहता है।

  • कर्म बंधनों से मुक्ति मिलती है और आत्मा श्रेष्ठ कर्म कर सकती है।

  • परमात्मा से सहज रूप से संबंध जुड़ता है, जिससे दिव्य गुण और शक्तियाँ आत्मा में विकसित होती हैं।

9.प्रश्न-विदेही स्थिति का व्यवहारिक स्वरूप कैसा होता है?

उत्तर: विदेही स्थिति का व्यवहारिक स्वरूप यह है कि आत्मा अपने कर्मों को निभाते हुए भी साक्षी और दृष्टा बनी रहे। वह शरीर के माध्यम से कर्म करे, लेकिन स्वयं को शरीर से अलग अनुभव करे।

10.प्रश्न-निष्कर्ष: विदेही स्थिति को क्यों अपनाना चाहिए?

उत्तर: विदेही स्थिति ही आत्मा को सच्चे सुख, शांति और शक्ति का अनुभव कराती है। यह आत्मा को उच्च चेतना में स्थित कर, उसे दिव्य और सशक्त बनाती है। यही सच्चा आध्यात्मिक उत्थान और आत्मा की मूल स्थिति है, जिसे प्राप्त करना ही जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य है

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