आत्मा-पदम(45)स्वच्छा से देह त्याग और जीवघात:पूण्यात्मा और पापात्मा काअंतरः?
A-P(45)Sacrifice of body and death of soul through cleanliness: difference between virtuous soul and sinful soul?
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
ओम शांति:कौन बनेगा पद्मा-पद्म पति?
“हर कर्म हमारा पद्म हो न्यारा और प्यारा।” ऐसे कर्म करने के लिए परमात्मा के ज्ञान का गहरा मंथन अत्यंत आवश्यक है। यह मंथन हमें सत्य और श्रेष्ठ मार्ग पर चलने में सहायता करता है।
आज हम स्वेच्छा से देह त्याग और जीवघात पर चर्चा करेंगे। साथ ही पुण्य आत्मा और पाप आत्मा का अंतर समझने का प्रयास करेंगे।
स्वेच्छा से देह त्याग का अर्थ
सतयुग में आत्मा देह का त्याग स्वेच्छा और विधि-विधान के साथ करती है। यह एक स्वाभाविक और श्रेष्ठ प्रक्रिया होती है।
सतयुग में देह त्याग की विधि-विधान:
- जिम्मेदारियों की पूर्ति:
आत्मा अपनी सभी जिम्मेदारियों को पूर्ण करके, सभी की जानकारी में देह त्याग करती है। - शांति और संतोष:
संतोषपूर्ण अवस्था में, शांति के साथ देह त्याग किया जाता है। - कर्म और धर्म का पालन:
अपने कर्म और धर्म का पालन करते हुए, आत्मा समय आने पर संतुलित अवस्था में शरीर का त्याग करती है।
जीवघात का अर्थ
जीवघात का तात्पर्य है मानसिक तनाव, दबाव, या नकारात्मक परिस्थितियों के कारण आत्मा का शरीर त्यागना।
जीवघात के कारण:
- जिम्मेदारियों से भागना:
जब आत्मा जिम्मेदारियों का सामना करने में असमर्थ होती है और समस्याओं या कष्टों से बचने के लिए शरीर का त्याग कर देती है। - कर्म बंधन से परेशान होना:
आत्मा अपने कर्मों का भोग सहन नहीं कर पाती और दुख से परेशान होकर देह त्याग करती है। - दूसरों को दुखी करके त्याग:
चोरी-छिपे या किसी को दुखी छोड़कर आत्मा अपने शरीर का त्याग करती है।
पुण्य आत्मा और पाप आत्मा का अंतर
पहलू | पुण्य आत्मा | पाप आत्मा |
---|---|---|
अवस्था | संतुलित और शांति से भरी। | अशांत और तनावपूर्ण। |
जिम्मेदारी | सभी जिम्मेदारियों को पूर्ण करने के बाद। | जिम्मेदारियों से भागते हुए। |
प्रक्रिया | विधि-विधान और संतोष के साथ। | दबाव, तनाव और कष्ट में। |
दूसरों पर प्रभाव | सभी को सुखी और संतोषी छोड़कर। | दूसरों को दुख और परेशान छोड़कर। |
समझने योग्य मुख्य बिंदु
- आत्मा और ड्रामा का नियम:
आत्मा ड्रामा के अनुसार अपने समय पर देह त्याग करती है। चाहे विधि कोई भी हो, यह कर्म और हिसाब-किताब के अनुसार होता है। - दोषी कौन?
बाबा की शिक्षा के अनुसार, किसी को दोष देना उचित नहीं है। हर आत्मा अपने कर्म और ड्रामा के नियम अनुसार ही कार्य करती है।
निष्कर्ष
स्वेच्छा से देह त्याग और जीवघात के बीच बड़ा अंतर है।
- पुण्य आत्मा जिम्मेदारियों को पूर्ण करते हुए संतोषपूर्ण और विधिवत देह त्याग करती है।
- पाप आत्मा मानसिक दबाव, समस्याओं से भागने, या दूसरों को दुखी करके देह त्याग करती है।
बाबा सिखाते हैं कि प्रत्येक आत्मा को अपने कर्मों का निरीक्षण करना चाहिए। सत्य ज्ञान, योग, और सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाकर आत्मा स्वयं को सशक्त बना सकती है और जीवन के सभी कष्टों का सामना कर सकती है।
यदि कोई संशय हो, तो अवश्य पूछें। ओम शांति।