“Abandoning the foundation of destiny”

(22)“भाग्य का आधार त्याग”

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

YouTube player

“त्याग का पदमगुणा भाग्य! ब्राह्मण जीवन की सच्ची सम्पत्ति | 


“त्याग का पदमगुणा भाग्य – भाग्यविधाता की नज़र में”


 1. भाग्यविधाता की दिव्य दृष्टि

आज भाग्यविधाता बापदादा अपने सर्व बच्चों की आत्मा के भीतर झाँक कर देख रहे हैं – कौन कितना त्याग कर रहा है, और उसके बदले में कौन सा पदमगुणा भाग्य पा रहा है।

त्याग और भाग्य – ये दो शब्द हैं, लेकिन इनके पीछे एक पूरा ब्रह्मांड छिपा है। एक भी गुणा त्याग करें, तो रिटर्न में पदमगुणा भाग्य प्राप्त होता है। यह ईश्वरीय गारंटी है।


2. त्याग की सूक्ष्म परिभाषा

त्याग का अर्थ केवल घर-परिवार या संसार छोड़ना नहीं है।
त्याग का अर्थ है – “मन, बुद्धि और संकल्पों में ईश्वर को प्रथम स्थान देना।”

इसलिए ब्राह्मण जीवन स्वयं में ही त्याग का वरदान है।
लेकिन सब ब्रह्माकुमार-कुमारी एक जैसे क्यों नहीं बनते? क्योंकि त्याग भी नंबरवार होता है – कोई नम्बरवन माला का दाना बनता है, कोई लास्ट।


 3. ट्रस्टी और सेवाधारी – दोनों ही भाग्यशाली

चाहे आप प्रवृत्ति में रहकर ट्रस्टी बनें, या सेवा केंद्र पर रहकर सेवाधारी – दोनों ही “ब्रह्माकुमार-कुमारी” कहलाते हैं।
सरनेम एक ही है, लेकिन कर्म और संकल्पों के आधार पर भाग्य अलग-अलग बनते हैं।

 बापदादा स्पष्ट करते हैं – भाग्य की लकीर खींचने का आधार है “श्रेष्ठ संकल्प और श्रेष्ठ कर्म।”


 4. जन्मसिद्ध अधिकार – लेकिन संभाल कौन रहा?

ब्रह्मण जन्म मिलते ही भाग्य का सितारा मस्तक पर चमकने लगता है।
लेकिन क्या हम उस सितारे को और अधिक चमकाते हैं या समय के साथ फीका कर देते हैं?

भाग्यविधाता सबको समान टाइटल देते हैं – सिकीलधे लाडले बच्चे
लेकिन प्रॉपर्टी को सम्भालना या गंवाना, यह हरेक की व्यक्तिगत जिम्मेदारी है।


 5. सेवा – दिल से या सिर्फ ड्यूटी?

सेवा करने वाले भी दो प्रकार के होते हैं:

  • सच्चे दिल से सेवा करने वाले – जो दिलाराम के बन जाते हैं, आत्माओं में लगन लगाते हैं।

  • ड्यूटी के आधार पर सेवा करने वाले – जो कोर्स करा देंगे, बोल देंगे, लेकिन आत्मा को स्पर्श नहीं कर सकेंगे।

 याद रखो – लगन वाले ही दूसरों की आत्मा में लगन जगा सकते हैं।


 6. गुणों और शक्तियों की धारणा – नम्बरवार क्यों?

सब गुण-संपन्न तो बनना है, लेकिन कोई सदा धारण करते हैं, कोई समय-समय पर।
कोई सहनशक्ति रखता है लेकिन समाने की शक्ति नहीं।
 एक ही गुण को धारण करके यदि दूसरे गुण को न अपनाया, तो धारणा अधूरी रह जाती है।

खजाना मिला लेकिन सम्भाला नहीं – तो वह खजाना खत्म हो जाएगा।


 7. त्याग की लीला और भाग्य की पहचान

सेवा सब करते हैं – लेकिन कोई सच्चे दिल से, कोई केवल नामधारी बनकर।
 कोई सेवा से आत्मा को “प्राप्ति का अनुभव” कराता है, कोई सिर्फ “प्रशंसा” पाता है।

इसलिए बापदादा कहते हैं – सबको भाग्य मिला, लेकिन कोई कमाने वाले बने, कोई गंवाने वाले।


 8. फरिश्ता बनने की तैयारी

अब समय है ब्राह्मण से फरिश्ता बनने का।
फरिश्ता वह है जो शरीर में रहते हुए भी बुद्धि से सदा ऊँची स्टेज पर रहता है।

फरिश्ता बनना अर्थात् –

“देहभान से पूर्ण मुक्त, सदा ज्योति स्वरूप में स्थित।”

जिस दिन देह के नहीं, देहभान के रिश्ते समाप्त हो जाएँ – उस दिन सच्चा फरिश्ता बन जाएंगे।


 निष्कर्ष:

त्याग और भाग्य – यह ईश्वरीय सौदा है, जिसमें हानि नहीं, केवल लाभ ही लाभ है।
जो जितना त्याग करता है, उतना श्रेष्ठ भाग्य प्राप्त करता है।

तो आज खुद से प्रश्न पूछो – क्या मैं सच्चा त्यागी और सच्चा भाग्यवान ब्राह्मण बन पाया हूँ?
या केवल नामधारी ब्राह्मण?

“त्याग का पदमगुणा भाग्य – भाग्यविधाता की नज़र में”


प्रश्न 1: त्याग और भाग्य का क्या संबंध है?

उत्तर:त्याग और भाग्य दोनों गहराई से जुड़े हुए हैं। बापदादा कहते हैं – एक गुणा त्याग करो, तो पदमगुणा भाग्य मिलता है।
त्याग जितना सच्चा होगा, उतना ही श्रेष्ठ भाग्य तैयार होता है। यह ईश्वरीय रिटर्न प्रणाली है – त्याग के बदले असीम प्राप्तियाँ।


प्रश्न 2: क्या त्याग का अर्थ घर-परिवार छोड़ना है?

उत्तर:नहीं, त्याग का अर्थ संसार छोड़ना नहीं, स्मृति परिवर्तन है।
त्याग का सही अर्थ है – मन, बुद्धि और संकल्पों में परमात्मा को पहला स्थान देना।
जो भीतर से माया, अहंकार, राग-द्वेष को छोड़ देता है, वही सच्चा त्यागी है।


प्रश्न 3: ब्रह्मण बनने से भाग्य मिल गया – तो फिर सबकी अवस्था अलग क्यों?

उत्तर:सभी को भाग्य की चाबी मिलती है, लेकिन उसका प्रयोग कौन कैसे करता है, वह भिन्न होता है।
त्याग और पुरुषार्थ के आधार पर माला बनती है – कोई नम्बरवन दाना बनता है, कोई अन्तिम।
 भाग्य मिला है, पर उसे संभालना हर आत्मा की अपनी जिम्मेदारी है।


प्रश्न 4: ट्रस्टी और सेवाधारी में कौन श्रेष्ठ है?

उत्तर:दोनों श्रेष्ठ हैं, अगर सच्चे दिल से कर्म कर रहे हैं।
ट्रस्टी वही है जो परिवार में रहते हुए भी देही-अभिमानी रहता है।
सेवाधारी वही है जो सेवा को लगन और निस्वार्थता से करता है।
संकल्प और कर्म की श्रेष्ठता ही भाग्य की लकीर बनाती है।


प्रश्न 5: सेवा करते हुए भी कोई आत्मा क्यों पीछे रह जाती है?

उत्तर:क्योंकि सेवा दो प्रकार की होती है:

  1. दिल से की गई सेवा, जो आत्मा को स्पर्श करती है।

  2. ड्यूटी की सेवा, जो केवल कर्मपूर्ति होती है।
    दिल से सेवा करने वाले ही दिलों में बैठते हैं और सच्चा भाग्य बनाते हैं।


प्रश्न 6: गुण और शक्तियाँ तो सभी को मिलती हैं – फिर नम्बरवार क्यों?

उत्तर:क्योंकि कोई आत्मा गुणों को सदा धारण करती है, कोई समय-समय पर।
जैसे कोई सहनशील है, पर निर्णय शक्ति कम है – तो पूर्ण धारणा नहीं कहलाएगी।
 गुणों का संतुलन और निरंतरता ही नम्बरवन बनाती है।


प्रश्न 7: क्या त्याग का मूल्य सेवा से अधिक है?

उत्तर:त्याग और सेवा दोनों ही आवश्यक हैं। लेकिन
बिना त्याग की सेवा, कभी-कभी केवल दिखावा बन जाती है।
त्याग के आधार पर ही सेवा में आत्मिक गहराई आती है।
त्यागयुक्त सेवा ही आत्माओं को सच्चा अनुभव कराती है।


प्रश्न 8: फरिश्ता बनने का क्या अर्थ है?

उत्तर:फरिश्ता वह आत्मा है जो

  • देहभान से मुक्त होती है,

  • सदा प्रकाशमयी अवस्था में स्थित रहती है,

  • और सभी आत्माओं को निस्वार्थ प्रेम से देखती है।

फरिश्ता बनने के लिए देह के नहीं, देहभान के संबंधों से छुटकारा पाना पड़ता है।


प्रश्न 9: अगर सबको भाग्य मिला है, तो कोई गंवा कैसे देता है?

उत्तर:भाग्य का आधार सिर्फ मिलना नहीं, बल्कि उसे संभालना और बढ़ाना है।
जो संकल्प, समय और साधनों को व्यर्थ करता है, वह भाग्य को खो देता है।
 भाग्यविधाता तो सबको देते हैं, लेकिन उपयोग की जिम्मेदारी हमारी है।


प्रश्न 10: आज का सबसे महत्वपूर्ण आत्मचिंतन क्या है?

उत्तर:हमें स्वयं से पूछना चाहिए –
“क्या मैं सच्चा त्यागी और सच्चा भाग्यशाली ब्राह्मण हूँ?”
या मैं केवल नामधारी हूँ?

जो आत्मा इस प्रश्न का उत्तर सच्चाई से देती है, वही अपने भाग्य को दिव्यता तक पहुँचा सकती है।

डिस्क्लेमर:
यह वीडियो ब्रह्माकुमारीज़ की आध्यात्मिक शिक्षाओं पर आधारित है और BK डॉ सुरेन्दर शर्मा द्वारा व्यक्त विचार आध्यात्मिक शोध, अनुभव और मुर्लियों पर आधारित हैं। यह किसी भी धर्म, पंथ या व्यक्ति की आलोचना नहीं करता, बल्कि आत्मिक जागृति और ईश्वर-प्राप्ति की प्रेरणा देने का प्रयास करता है।

यह वीडियो BK संस्थान के आधिकारिक Murli Use Affidavit (13 जून 2025, BK करुणा) के अनुरूप है।

आधिकारिक वेबसाइट: https://brahmakumarisbkomshanti.com

यह वीडियो केवल आत्मा की उन्नति और अध्यात्मिक चिंतन के उद्देश्य से है।

#BKDrSurenderSharma #ब्रह्माकुमारी #त्यागकापद्मगुणभाग्य
#ओमशांतिज्ञान #बीकेमुरलीज्ञान #फरिश्तेबनानेकीतैयारी #ब्राह्मणजीवनकासुख
#त्यागऔरसेवा #आध्यात्मिक प्रेरणा #ईश्वरीयबुद्धि #बापदादाज्ञान #बीकेवीडियोहिंदी
#BKOfficialMurliUse #BKTyagBajya #SpiritualTransformation #MurliGyanSeries
#ब्रह्माकुमारीओमशांतिज्ञान #DrSurenderSharmaBK #मुरलीविचार

 #BKDrSurenderSharma #BrahmaKumaris #TyagKaPadmagunaBhagya
#OmShantiGyan #BKMurliGyan #FarishteBananeKiTayyari #BrahmanJeevanKaSukh
#TyagAurSeva #SpiritualMotivation #GodlyWisdom #BapdadaGyan #BKVideoHindi
#BKOfficialMurliUse #BKTyagBhagya #SpiritualTransformation #MurliGyanSeries
#BrahmaKumarisOmShantiGyan #DrSurenderSharmaBK #MurliVichar