A-P 54″ आत्मा का परिवार विशेष में या किसी भी रूप में शरीर धारण करने का आधार
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
ओम शांति
प्रिय आत्माओं,
आज हम एक गहन और अत्यंत आवश्यक प्रश्न पर चिंतन करेंगे:
“आत्मा का परिवार विशेष में या किसी भी रूप में शरीर धारण करने का आधार क्या है?”
इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए हमें आत्मा की अनंत यात्रा, उसके संस्कार और उसके कर्मों को गहराई से समझना होगा।
आत्मा की अनादि यात्रा
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आत्मा एक शुद्ध ऊर्जा स्वरूप है, जो अनादि काल से अपनी यात्रा कर रही है।
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जन्म-जन्मांतरों में आत्मा अनेक अनुभवों, संस्कारों और कर्मों को संचित करती है।
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प्रत्येक जन्म आत्मा के कर्मों और संस्कारों के आधार पर निर्धारित होता है।
1. संस्कार और कर्म: आत्मा का असली निर्धारक
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आत्मा के संस्कार उसके पूर्व जन्मों के कर्मों का परिणाम होते हैं।
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यदि आत्मा ने श्रेष्ठ कर्म किए हैं, तो उसे श्रेष्ठ परिवार और श्रेष्ठ शरीर प्राप्त होता है।
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यदि बुरे कर्म अधिक हैं, तो आत्मा को संघर्षमय जीवन की परिस्थितियाँ मिलती हैं।
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इसलिए, हमारे वर्तमान कर्म ही भविष्य के परिवार और जन्म का बीज हैं।
2. पूर्व जन्म के संकल्प और इच्छाएँ
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आत्मा की गहरी इच्छाएँ और संकल्प अगले जन्म को आकार देते हैं।
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जो आत्मा जिस भाव, विचार और वातावरण में अधिक समय तक रहती है, वही उसकी अगली जन्मभूमि बन जाती है।
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इसलिए कहा जाता है —
“जैसी भावना, वैसी सृष्टि।“
3. कर्मों के अनुसार आत्मा की गति
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मृत्यु के पश्चात आत्मा की गति उसके कर्मों द्वारा तय होती है।
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पवित्र और पुण्य कर्मों से आत्मा ऊँचे लोकों और श्रेष्ठ कुलों में जन्म लेती है।
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अशुद्ध कर्मों से आत्मा नीचे गिरती है, और दुख भोगने वाले परिवारों में जन्म लेती है।
4. गुरुत्वाकर्षण शक्ति और संकल्प का आकर्षण
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आत्मा जिन चीजों, विचारों या गुणों की ओर आकर्षित होती है, वही उसकी अगली यात्रा को निर्धारित करते हैं।
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यदि आत्मा में आध्यात्मिकता, सेवा, शांति का आकर्षण है, तो वह ऐसे परिवार में जन्म लेती है जहाँ इन गुणों की कद्र होती है।
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यदि आत्मा लोभ, वासना, क्रोध जैसी निचली प्रवृत्तियों में फंसी है, तो वह उसी स्तर का जन्म प्राप्त करती है।
5. ईश्वर और प्रकृति का दिव्य न्याय
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प्रकृति और परमात्मा का न्याय अचूक और पूर्णतया सटीक है।
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हर आत्मा को उसके कर्मों और संस्कारों के अनुसार सही स्थान, सही शरीर और सही वातावरण मिलता है।
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कोई भी जन्म संयोग नहीं, बल्कि एक दिव्य न्याय प्रणाली का सटीक परिणाम है।
निष्कर्ष: श्रेष्ठ कर्मों द्वारा श्रेष्ठ जन्म सुनिश्चित करें
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आत्मा का किसी विशेष परिवार में जन्म लेना केवल एक इत्तफाक नहीं, बल्कि गहरी योजना और कर्मों का फल है।
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हमें समझना चाहिए कि आज के विचार, भावना, और कर्म ही हमारे भविष्य का निर्माण कर रहे हैं।
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यदि हम श्रेष्ठ जन्म, सुखमय परिवार और उन्नत जीवन चाहते हैं, तो आज ही अपने कर्मों को पवित्र, श्रेष्ठ और सेवा-भावना से भर दें।
समापन
आइए प्रतिज्ञा करें:
“मैं आत्मा हूँ।
मैं श्रेष्ठ विचार करूँगा।
श्रेष्ठ कर्म करूँगा।
और अपने भावी जीवन को श्रेष्ठतम बनाऊँगा।”
ओम शांति।