Avyakta Murli-05/10-01-1982

अव्यक्त मुरली-(05)“स्वराज्य अधिकारी आत्माओं का आसन-कर्मातीत स्टेज

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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“स्वराज्य अधिकारी आत्माओं का आसन – कर्मातीत स्टेज | Powerful Avyakt Speech | Brahma Kumaris”


 “स्वराज्य अधिकारी आत्माओं का आसन – कर्मातीत स्टेज”

 भूमिका:
ओम् शान्ति।
आज हम एक अत्यंत दिव्य और उन्नत आत्मिक स्थिति की चर्चा करेंगे — स्वराज्य अधिकारी आत्माओं की कर्मातीत स्टेज। यह वह अवस्था है जहाँ आत्मा कर्म करती है, लेकिन कर्म के बन्धन में नहीं बंधती — वह कर्म की अधिकारी बन जाती है, वशीभूत नहीं।


 1. कर्मातीत स्टेज: सिंहासन पर आरूढ़ आत्मा

वर्तमान संगमयुग में जो आत्माएँ स्वराज्य अधिकारी बनती हैं, उनका सिंहासन है कर्मातीत अवस्था

  • ये आत्माएं शरीर में रहते हुए भी, हर कर्म को एक योगयुक्त अधिकारी भाव से करती हैं।

  • कर्मेन्द्रियाँ इनके अधीन हैं, ना कि ये कर्मों के अधीन।

 बापदादा कहते हैं — तुम सभी नम्बरवार तख्तनशीन हो। कोई सर्व अधिकारी है, कोई अधिकारी। जैसे भविष्य में महाराजा और विश्व महाराजा का अन्तर होता है, वैसा ही यहां आत्माओं का अंतर है।

 2. मस्तक की मणियां: दिव्य गुणों की झलक

हर स्वराज्य आत्मा के मस्तक पर दिव्य गुणों की मणियां हैं।

  • जितना जितना गुणधारी, उतनी ही मणियां और उतनी ही चमक।

  • हर आत्मा के मस्तक पर उसका संस्कारिक चित्र दिख रहा है — क्या हमने कभी अपने इस चित्र को ज्ञान-दर्पण में देखा?

बापदादा की दृष्टि में यह राज्यसभा दिव्य सौंदर्य से भरपूर है।


 3. ईष्ट देव आत्मा बनो: अनुभूति के केन्द्र बनो

स्वराज्य अधिकारी आत्माएं ही विश्व की ईष्ट देव आत्माएं बनती हैं।

  • लोग यही अनुभव करें — “यही हैं… और वही हैं…”

  • जो आत्माएं ईश्वर की खोज में थीं, वे कहें — “जो पाना था, इन्हीं से पाया।”

  • यह आत्मा ही हमारी गाइड, एंजेल, मैसेंजर हैं।

 बापदादा का निर्देश: “अब इस वर्ष यह लक्ष्य रखो कि हर आत्मा अनुभव करे – हमारे अपने मिल गये हैं।”


 4. शक्ति माँ बनो: प्रेम और पालना से सेवा

बापदादा कहते हैं — केवल शक्ति स्वरूप नहीं, शक्ति माँ बनो।

  • माँ ही बच्चे को बाप से मिलाती है।

  • माँ के पास हो तो बच्चा सुरक्षित, सन्तुष्ट और शक्तिशाली बनता है।

 पालना द्वारा बच्चों को योग्य बनाओ, योगी बनाओ। केवल फॉलोअर मत बनाओ, वारिस बनाओ।

  • जैसे लौकिक माँ पालती है, वैसे आप जगत माँ बन, आत्माओं को पालो।


 5. कर्मातीत सेवा: बन्धनों से परे सेवा भाव

स्वराज्य अधिकारी आत्मा के लिए सेवा भी बन्धन नहीं बनती।

  • “हमारा स्थान”, “हमारी सेवा” — यह भी सूक्ष्म अहंकार है।

  • बापदादा कहते हैं: इस सेवा के बन्धन से भी कर्मातीत बनो।

सच्चा सेवाधारी वह है जो आत्मा को बाप तक पहुँचाने वाला सेतु बने।


 6. माँ बनो, श्रृंगार बनो, गुलदस्ते लाओ

बापदादा कहते हैं:

  • आप सभी बाप के घर का श्रृंगार हो।

  • आप एक-एक आत्मा को गुलदस्ता बनाकर बाप के आगे लाओ।

  • हर आत्मा कहे: “यह मेरी माँ है”, “यह मेरी शुभचिंतक आत्मा है।”

ऐसा मेरेपन की भावना वाला वायुमण्डल बनाओ कि हर आत्मा बाबा से जुड़ जाए।


 7. चलने और चलाने का युग – संगमयुग

यह संगमयुग — चलने और चलाने का युग है।

  • किसी भी बात में रुकना नहीं।

  • चलते रहो, सेवा करते रहो।

  • “याद किया और बाबा हाज़िर!” — यह अनुभूति संगमयुग की विशेषता है।


निष्कर्ष और प्रेरणा:

स्वराज्य अधिकारी आत्मा वह है जो कर्म, सेवा, वायुमण्डल, पालना, और संबंध सबमें मास्टर ईष्ट देव बन सामने आये।

 अपने आत्म-चित्र को ज्ञान के दर्पण में देखो
 कर्मातीत स्टेज को लक्ष्य बनाओ
 प्रेम और पालना से आत्माओं को ईश्वर तक पहुँचाओ
 शक्ति माँ बन, जगत का कल्याण करो


समापन वाक्य:

स्वराज्य अधिकारी आत्माओं के सिंहासन पर आरूढ़ हो जाओ।
अपने अंदर छिपी मणियों को उजागर करो।
और ऐसी अनुभूति कराओ कि हर आत्मा के मुख से निकले —
“यही हैं और वही हैं। मिल गये, मिल गये।”

ओम् शान्ति।

“स्वराज्य अधिकारी आत्माओं का आसन – कर्मातीत स्टेज”

Questions & Answers | Powerful Avyakt Realization | Brahma Kumaris


प्रश्न 1:कर्मातीत स्टेज किसे कहते हैं और यह स्वराज्य से कैसे जुड़ी है?

उत्तर:कर्मातीत स्टेज वह अवस्था है जहाँ आत्मा कर्म करती है पर कर्म के बन्धनों में नहीं बंधती। यह तभी संभव है जब आत्मा स्वराज्य अधिकारी हो — अर्थात् अपनी इन्द्रियों, संकल्पों और संस्कारों की मालिक। यह अवस्था आत्मा को कर्मेन्द्रियों का मालिक बनाती है, वशीभूत नहीं।


प्रश्न 2:‘तख्तनशीन आत्मा’ का क्या अर्थ है?

उत्तर:‘तख्तनशीन आत्मा’ वह होती है जो आत्मिक अधिकार में स्थित होकर कर्मातीत स्थिति पर विराजमान हो। वह आत्मा स्वराज्य अधिकारी है, यानी आत्म-राज्य की रानी। बापदादा के अनुसार, सभी आत्माएँ नम्बरवार तख्तनशीन हैं — कोई सर्व अधिकारी, कोई अधिकारी।


प्रश्न 3:मस्तक की ‘दिव्य गुणों की मणियां’ का क्या अर्थ है?

उत्तर:यह मणियां आत्मा के दिव्य गुणों का प्रतीक हैं — जैसे शांति, प्रेम, करुणा, पवित्रता आदि। आत्मा जितनी गुणधारी होती है, उतनी ही उसकी मणियां चमकती हैं। यह बापदादा की दृष्टि में आत्मा के सिर पर एक दिव्य चित्र के रूप में प्रत्यक्ष होता है।


प्रश्न 4:‘ईष्ट देव आत्मा’ बनने का क्या अर्थ है?

उत्तर:ईष्ट देव आत्मा वह है जो दूसरों की अनुभूति का केन्द्र बन जाए। लोग उसके पास आकर कहें — “यही हैं, और वही हैं…” यह आत्मा बाबा की प्रतिनिधि बनकर दूसरों को ईश्वर की अनुभूति कराए। वह गाइड, एंजिल और मैसेंजर बन जाती है।


प्रश्न 5:‘शक्ति माँ’ बनने का क्या गूढ़ अर्थ है?

उत्तर:‘शक्ति माँ’ वह आत्मा है जो केवल शक्ति स्वरूप न होकर, प्रेम और पालना के माध्यम से आत्माओं को सशक्त बनाती है। वह आत्माओं को बाबा से मिलाने वाली माध्यम बनती है — जैसे लौकिक माँ बच्चे को बाप से मिलाती है। शक्ति माँ बनकर आत्माओं को फॉलोअर नहीं, वारिस बनाना ही सच्ची सेवा है।


प्रश्न 6:सेवा में भी कर्मातीत स्थिति क्यों आवश्यक है?

उत्तर:सेवा करते हुए ‘हमारी सेवा’, ‘हमारा स्थान’ जैसे सूक्ष्म अहंकार आ सकते हैं। ये सेवा के भी बन्धन हैं। बापदादा कहते हैं, सेवा भी बन्धन बन सकती है यदि उसमें ‘मैंपन’ आ जाए। इसलिए सेवा करते हुए कर्मातीत बनना आवश्यक है — ताकि आत्मा केवल सेतु बने, मालिक नहीं।


प्रश्न 7:“माँ बनो, श्रृंगार बनो, गुलदस्ते लाओ” — इसका अर्थ क्या है?

उत्तर:इसका भाव यह है कि ब्राह्मण आत्माएं बाप के घर की शोभा बनें और हर आत्मा को बाप के सामने सुंदर गुलदस्ते के रूप में प्रस्तुत करें। ऐसा वायुमंडल बनाएं जिसमें हर आत्मा कहे — “यह मेरी माँ है”, “यह मेरी शुभचिंतक है” — जिससे बाबा से संबंध सहज जुड़ जाए।


प्रश्न 8:संगमयुग को ‘चलने और चलाने’ का युग क्यों कहा गया है?

उत्तर:संगमयुग स्थिर या निष्क्रिय बैठने का नहीं, निरंतर आत्मिक उन्नति और सेवा का युग है। यह वह समय है जब हर आत्मा को जागरूक होकर कर्म, सेवा, और अनुभव के क्षेत्र में आगे बढ़ते रहना है। याद करते ही बाबा की उपस्थिति का अनुभव होना — यही संगमयुग की विशेषता है।


प्रश्न 9:स्वराज्य अधिकारी आत्मा की पहचान क्या है?

उत्तर:स्वराज्य अधिकारी आत्मा की पहचान है —

  • कर्म के ऊपर अधिकार

  • सेवा में निर्लिप्तता

  • प्रेम और पालना की शक्ति

  • वायुमंडल द्वारा बाबा से जोड़ने की योग्यता

  • और ऐसा तेजस्वी स्वरूप जिससे हर आत्मा कहे — “यही हैं और वही हैं…”

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