अव्यक्त मुरली-(04)लण्डन ग्रुप के साथअव्यत्क बापदादा की मुलाकात” रिवाइज: 08-01-1982
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
08-01-1982 “लण्डन ग्रुप के साथ अव्यक्त बापदादा की मुलाकात”
आज विशेष लण्डन निवासी बच्चों से मिलन मनाने के लिए आये हैं। वैसे तो सभी बापदादा के लिए सदा प्रिय हैं, सभी को विशेष मिलने का चांस मिला है लेकिन आज निमित्त लण्डन निवासियों से मिलना है। लण्डन निवासी बच्चों ने सेवा में दिल व जान, सिक व प्रेम से अपना सहयोग दिया है और देते ही रहेंगे। स्व के उड़ती कला में भी अच्छा अटेन्शन है। नम्बरवार तो हैं ही। फिर भी पुरुषार्थ की रफ्तार अच्छी है। (एक पक्षी उड़ता हुआ क्लास में आ गया) सभी उड़ना देख करके खुश हो रहे हो। ऐसे ही स्वयं की भी उड़ती कला कितनी प्रिय होगी। जब उड़ते हो तो फ्री हो, स्वतन्त्र हो। और उड़ने के बजाए नीचे आ जाते हो तो बन्धन में आ जाते हो। उड़ती कला अर्थात् बन्धनमुक्त, योगयुक्त। तो लण्डन निवासी क्या समझते हैं? उड़ती कला है ना? नीचे तो नहीं आते हो? अगर नीचे आते भी हो तो नीचे वालों को ऊपर ले जाने के लिए आते हो, वैसे नहीं आते। जो नीचे की स्टेज पर स्थित हैं उन्हों को हिम्मत और उल्लास दिलाकर उड़ाने के लिए सेवा के प्रति नीचे आये और फिर ऊपर चले गये, ऐसी प्रैक्टिस है? क्या समझते हो? लण्डन निवासी ग्रुप सदा देह और देह के दुनिया की आकर्षण से न्यारे और सदा बाप के प्यारे हैं। इसको कहा जाता है कमल-पुष्प समान। सेवा अर्थ रहते हुए भी न्यारे और प्यारे। तो न्यारा-प्यारा ग्रुप है ना? लण्डन से सारे विदेश के सेवाकेन्द्रों का सम्बन्ध है। तो लण्डन निवासी इस सेवा के वृक्ष का फाउण्डेशन हो गये। फाउण्डेशन कमजोर तो सारा वृक्ष कमजोर हो जायेगा। इसलिए फाउण्डेशन को सदा अपने ऊपर सेवा की जिम्मेवारी सहित अटेन्शन रखना है। वैसे तो हरेक के ऊपर अपनी और विश्व के सेवा की जिम्मेवारी है। उस दिन सुनाया था कि सब जिम्मेवारी के ताजधारी हैं। फिर भी आज लण्डन निवासी बच्चों को विशेष अटेन्शन दिला रहे हैं। यह जिम्मेवारी का ताज सदा के लिए डबल लाइट बनाने वाला है। बोझ वाला ताज नहीं है। सर्व प्रकार के बोझ को मिटाने वाला है। अनुभवी भी हो कि जब तन-मन-धन, मंसा-वाचा-कर्मणा सब रुप से सेवाधारी बन सेवा में बिजी रहते हो तो सहज ही मायाजीत, जगतजीत बन जाते हो। देह का भान स्वत: ही, सहज ही भूला हुआ होता है, मेहनत नहीं करनी पड़ती। अनुभव है ना? सेवा के समय बाप और सेवा के सिवाए और कुछ नहीं सूझता। खुशी में नाचते रहते हो। तो यह जिम्मेवारी का ताज हल्का है ना? अर्थात् हल्का बनाने वाला है। इसलिए बापदादा सभी बच्चों को रुहानी सेवाधारी का टाइटल विशेष याद दिलाते हैं। बापदादा भी रुहानी सेवाधारी बन करके आते हैं। तो जो बाप का स्वरुप वह बच्चों का स्वरुप। तो सभी डबल विदेशी ताजधारी हो ना? बाप समान सदा रुहानी सेवाधारी। आंख खुली, मिलन मनाया और सेवा के क्षेत्र पर उपस्थित हुए। गुडमार्निंग से सेवा शुरु होती है और गुडनाइट तक सेवा ही सेवा है। जैसे निरन्तर योगी, ऐसे ही निरन्तर रुहानी सेवाधारी। चाहे कर्मणा सेवा भी करते हो तो कर्मणा द्वारा भी रुहों को रुहानियत की शक्ति भरते हो क्योंकि कर्मणा के साथ-साथ मन्सा सेवा भी करते हो। तो कर्मणा सेवा में भी रुहानी सेवा। भोजन बनाते हो तो रुहानियत का बल भोजन में भर देते हो, इसलिए भोजन ब्रह्माभोजन बन जाता है, शुद्ध अन्न बन जाता है। प्रसाद के समान बन जाता है। तो स्थूल सेवा में भी रुहानी सेवा भरी है। ऐसे निरन्तर सेवाधारी, निरन्तर मायाजीत हो जाते हैं। विघ्न-विनाशक बन जाते हैं। तो लण्डन निवासी क्या हैं? निरन्तर सेवाधारी। लण्डन में माया तो नहीं आती है ना कि माया को भी लण्डन अच्छा लगता है? अच्छा।
लण्डन निवासी अभी क्या करना चाहते हैं? अच्छे-अच्छे रत्न हैं लण्डन के। जगह-जगह पर गये हैं। वैसे सभी विदेश के सेवाकेन्द्र एक से दूसरे, दूसरे से तीसरे, ऐसे खुलते हैं। अभी टोटल कितने सेवाकेन्द्र हैं? (50) तो 50 जगह का फाउण्डेशन लण्डन है। तो वृक्ष सुन्दर हो गया ना। जिस तना से 50 टाल-टालियां निकलें, वह वृक्ष कितना सुन्दर हुआ। तो विदेश का वृक्ष भी विस्तार वाला अच्छा फलीभूत हो गया है। बापदादा भी बच्चों के, सिर्फ लण्डन नहीं सभी बच्चों के सेवा का उंमग-उत्साह देख खुश होते हैं। विदेश में लगन अच्छी है। याद की भी और सेवा की भी, दोनों की लगन अच्छी है। सिर्फ एक बात है कि माया के छोटे रुप से भी घबराते जल्दी हैं। जैसे यहाँ इण्डिया में कई ब्राह्मण जो हैं, वे चूहे से भी घबराते हैं, काकरोच से भी घबराते हैं। तो सिर्फ विदेशी बच्चे इससे घबरा जाते हैं। छोटे को बड़ा समझ लेते हैं। लेकिन है कुछ नहीं। कागज के शेर को सच्चा शेर समझ लेते हैं। जितनी लगन है ना उतना घबराने के संस्कार थोड़ा-सा मैदान पर आ जाते हैं। तो विदेशी बच्चों को माया से घबराना नहीं चाहिए, खेलना चाहिए। कागज के शेर से खेलना होता है या घबराना होता है? खिलौना हो गया ना? खिलौने से घबराने वाले को क्या कहेंगे? जितनी मेहनत करते हो उस हिसाब से, डबल विदेशी सभी नम्बरवन सीट ले सकते हो क्योंकि दूसरे धर्म के पर्दे के अन्दर, डबल पर्दे के अन्दर बाप को पहचान लिया है। एक तो साधारण स्वरुप का पर्दा और दूसरा धर्म का भी पर्दा है। भारतवासियों को तो एक ही पर्दे को जानना होता है लेकिन विदेशी बच्चे दोनों पर्दे के अन्दर जानने वाले हैं। हिम्मत वाले भी बहुत हैं, असम्भव को सम्भव भी किया है। जो क्रिश्चियन या अन्य धर्म वाले समझते हैं कि हमारे धर्म वाले ब्राह्मण कैसे बन सकते, असम्भव है। तो असम्भव को सम्भव किया है, जानने में भी होशियार, मानने में भी होशियार हैं। दोनों में नम्बरवन हो। बाकी बीच में चूहा आ जाता है तो घबरा जाते हो। है सहज मार्ग लेकिन अपने व्यर्थ सकंल्पों को मिक्स करने से सहज मुश्किल हो जाता है। तो इसमें भी जम्प लगाओ। माया को परखने की आंख तेज करो। मिसअन्डस्टैन्ड कर लेते हो। कागज को रीयल समझ लेना मिसअन्डरस्टैडिंग हो गई ना। नहीं तो डबल विदेशियों की विशेषता भी बहुत है। सिर्फ एक यह कमजोरी है, बस। फिर अपने ऊपर हंसते भी बहुत हैं, जब जान लेते हैं कि यह कागज का शेर है, रीयल नहीं है तो हंसते हैं। चेक भी कर लेते, चेन्ज भी कर लेते लेकिन उस समय घबराने के कारण नीचे आ जाते हैं या बीच में आ जाते हैं। फिर ऊपर जाने के लिए मेहनत करते, तो सहज के बजाए मेहनत का अनुभव होता है। वैसे जरा भी मेहनत नहीं है। बाप के बने, अधिकारी आत्मा बने, खजाने के, घर के, राज्य के मालिक बने और क्या चाहिए। तो अभी क्या करेंगे? घबराने के संस्कारों को यहाँ ही छोड़कर जाना। समझा! बापदादा भी खेल देखते रहते हैं, हंसते रहते हैं। बच्चे गहराई में भी जाते हैं लेकिन गहराई के साथ-साथ कहाँ-कहाँ घबराते भी हैं। लास्ट सो फास्ट के भी संस्कार हैं। पहले विदेशियों में विशेष फंसने के संस्कार थे, अभी हैं फास्ट जाने के संस्कार। एक में नहीं फंसते हैं लेकिन अनेकों में फंस जाते हैं। एक ही लाइफ में कितने पिंजरे होते हैं। एक पिंजरे से निकलते दूसरे में फंसते, दूसरे से निकलते तीसरे में फंसते। तो जितना ही फंसने के संस्कार थे उतना ही फास्ट जाने के संस्कार हैं। सिर्फ एक बात है, छोटी चीज़ को बड़ा नहीं बनाओ। बड़े को छोटा बनाओ। यह भी होता है क्या? यह क्वेश्चन नहीं। यह क्या हुआ? ऐसे भी होता है? इसके बजाए जो होता है कल्याणकारी है। क्वेश्चन खत्म होने चाहिए। फुलस्टाप। बुद्धि को इसमें ज्यादा नहीं चलाओ, नहीं तो एनर्जी वेस्ट चली जाती है और अपने को शक्तिशाली नहीं अनुभव करते। क्वेश्चन मार्क ज्यादा होते हैं। तो अब मधुबन की वरदान भूमि में क्वेश्चन मार्क खत्म करके, फुलस्टाप लगाके जाओ। क्वेश्चनमार्क मुश्किल है फुलस्टाप सहज है। तो सहज को छोड़कर मुश्किल को क्यों अपनाते हो! उसमें एनर्जी वेस्ट है और फुलस्टाप में लाइफ ही बेस्ट हो जायेगी। वहाँ वेस्ट वहाँ बेस्ट। तो क्या करना चाहिए? अभी वेस्ट नहीं करना। हर संकल्प बेस्ट, हर सेकेण्ड बेस्ट। अच्छा, लण्डन निवासियों के साथ रुह-रुहान हो गई।
लण्डन के सभी सिकीलधे बच्चों को बापदादा का पद्मापद्मगुणा यादप्यार स्वीकार हो। साकार में मधुबन में नहीं पहुंचे हैं लेकिन बापदादा सदा बच्चों को सम्मुख देखते हैं।
जो भी सर्विसएबुल बच्चे हैं, एक-एक का नाम क्या लें, जो भी सभी हैं, सभी सहयोगी आत्मायें हैं, सभी बेफिकर बन फखुर में रहना क्योंकि सबका साथी स्वयं बाप है।
अच्छा, सभी को यादप्यार स्वीकारम्।
अध्याय: लण्डन ग्रुप के साथ अव्यक्त बापदादा की मुलाकात
1. विशेष मिलन — बापदादा की लण्डन ग्रुप के साथ रुहानी मुलाकात
बापदादा आज विशेष रूप से लण्डन निवासियों से मिलन मनाने आये। यद्यपि सभी बच्चे प्रिय हैं, लेकिन आज की मुलाकात लण्डन ग्रुप के विशेष सेवा, प्रेम और समर्पण को सम्मान देने के लिए है।
“लण्डन निवासी बच्चों ने सेवा में दिल, जान, सिक और प्रेम से सहयोग दिया है और देते रहेंगे।”
2. उड़ती कला — सेवा में स्वतन्त्रता और योगयुक्त स्थिति
क्लास में उड़ते हुए पक्षी का दृश्य सभी को आनंदित करता है। बापदादा ने उसे उड़ती कला की मिसाल बनाकर कहा:
“उड़ना अर्थात् बन्धनमुक्त और योगयुक्त होना। नीचे आओ भी तो सिर्फ दूसरों को ऊपर उठाने के लिए।”
यह संकेत है कि लण्डन निवासी आत्माएँ स्व-स्थिति में उड़ती कला की अभ्यासरत हैं।
3. कमल-पुष्प समान — सेवा में न्यारे और प्यारे
बापदादा ने लण्डन ग्रुप की विशेषता बताई — सेवा में रहते हुए भी देह और देह के सम्बन्धों से न्यारे रहना। यही उनकी “कमल-पुष्प” समान स्थिति है।
“सेवा में व्यस्त रहो, लेकिन बाप में मस्त रहो। यही है न्यारा-प्यारा बनना।”
4. लण्डन – विदेश सेवा का फाउण्डेशन
लण्डन से 50 से अधिक सेवा केन्द्रों का विस्तार हुआ। यह लण्डन को सेवा-वृक्ष का तना बनाता है। बापदादा ने इसे सेवा का शक्तिशाली फाउण्डेशन बताया।
“फाउण्डेशन कमजोर तो वृक्ष कमजोर। इसलिए लण्डन ग्रुप को डबल अटेन्शन चाहिए।”
5. जिम्मेवारी का ताज – डबल लाइट बनो
सेवा की जिम्मेवारी को “ताज” कहा गया है — लेकिन यह बोझ नहीं, बल्कि आत्मा को डबल लाइट बनाने वाला ताज है।
“सेवा में बिज़ी आत्मा सहज ही मायाजीत और देह के भान से मुक्त हो जाती है।”
6. रुहानी सेवाधारी – निरन्तर सेवा का स्वरूप
बापदादा ने बच्चों को ‘रुहानी सेवाधारी’ कहा। जैसे बाप निराकार सेवाधारी बन आते हैं, वैसे ही बच्चे भी मंसा, वाचा, कर्मणा द्वारा निरन्तर सेवा करते रहें।
“भोजन बनाते भी हो तो उसमें भी रुहानी शक्ति भर देते हो – यही ब्रह्माभोजन है।”
7. माया से खेलने वाले बनो — कागज़ के शेर से मत डरना
लण्डन ग्रुप की एक कमी पर भी बापदादा ने प्यार से ध्यान दिलाया — छोटी बातों से घबराना।
“कभी-कभी छोटे चूहों या कागज़ के शेर से डर जाते हो। लेकिन ये तो खिलौने हैं, डरने योग्य नहीं।”
बापदादा ने कहा कि अब इन डरने के संस्कारों को यहीं छोड़ देना है।
8. असम्भव को सम्भव बनाने वाले — डबल पर्दे पार करने वाले
डबल विदेशियों की विशेषता यह है कि इन्होंने दो पर्दे पार किए — साधारण रूप का और धर्म का।
इसलिए वे हिम्मतवाले हैं, तेजस्वी हैं।
“क्रिश्चियन या अन्य धर्म में जन्म लेने के बावजूद ब्राह्मण बनना – यह असम्भव को सम्भव करना है।”
9. क्वेश्चन मार्क नहीं, फुलस्टॉप लगाओ
अंत में बापदादा ने कहा कि मन में बार-बार उठने वाले “क्यों?” या “कैसे?” जैसे सवाल — यह ऊर्जा की बर्बादी हैं।
अब समय है फुलस्टॉप लगाने का।
“हर संकल्प बेस्ट, हर सेकेण्ड बेस्ट। वेस्ट नहीं, बेस्ट बनाओ।”
10. बाप समान फखुर में रहो – सेवा में सहयोगी बनो
बापदादा ने सभी लण्डन सेवाभावी बच्चों को पद्मापद्मगुणा यादप्यार दिया। वे भले ही मधुबन में शारीरिक रूप से उपस्थित नहीं, लेकिन बापदादा की दृष्टि सदा उन पर है।
“जो भी सेवायोग्य बच्चे हैं, सभी बेफिकर होकर फखुर में रहो – क्योंकि तुम्हारा साथी स्वयं बाप है।”
निष्कर्ष: लण्डन ग्रुप की विशेषता और बापदादा का संदेश
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सेवा में अग्रणी: लण्डन सेवा-विस्तार का आधार है।
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रुहानी सेवाधारी: सेवा के हर कार्य में साइलेंस और योग की शक्ति भरते हैं।
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कमल-पुष्प समान: आकर्षण से न्यारे, बाप से प्यारे।
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डर नहीं, खेल: माया से डरने के बजाय, उसे पहचानकर हल्का बनाओ।
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फुलस्टॉप: व्यर्थ संकल्प और सवालों को विराम देकर, श्रेष्ठ स्थिति में स्थित हो जाओ।
संदेश:
“डबल लाइट बनो, डबल ताजधारी बनो, और बाप समान बन सदा सेवाधारी बनो।”
“लण्डन ग्रुप के साथ अव्यक्त बापदादा की मुलाकात – प्रश्नोत्तर श्रृंखला”
(LONDON GROUP SPECIAL – Spiritual Q&A Summary)
संक्षिप्त प्रश्नोत्तर:
1. बापदादा ने लण्डन ग्रुप को विशेष रूप से क्यों सम्मान दिया?
क्योंकि उन्होंने सेवा में दिल, जान, सिक और प्रेम से समर्पण किया और विश्व सेवा में आधार बने।
2. उड़ती कला किसे कहा गया और उसका संकेत क्या है?
उड़ती कला = बन्धनमुक्त, योगयुक्त स्थिति।
संकेत: स्वयं ऊपर उड़ना और दूसरों को भी ऊपर उठाना।
3. “कमल-पुष्प समान” स्थिति का क्या अर्थ है?
सेवा में व्यस्त रहते हुए भी देह और देही संबंधों से न्यारे रहना।
4. लण्डन को सेवा-वृक्ष का फाउण्डेशन क्यों कहा गया?
क्योंकि वहां से 50+ सेवा केन्द्रों का विस्तार हुआ, जो आधारभूत तना है।
5. “सेवा की जिम्मेवारी = ताज” का क्या गूढ़ अर्थ है?
यह ताज बोझ नहीं बल्कि आत्मा को डबल लाइट और मायाजीत बनाने का साधन है।
6. रुहानी सेवाधारी कौन होता है?
जो हर कर्म में, भोजन बनाते समय भी, योग शक्ति और साइलेंस भर देता है।
7. बापदादा ने “कागज़ के शेर” से क्या सन्दर्भ दिया?
यह डर प्रतीकात्मक है — छोटी बातों से घबराना नहीं, उनसे खेलना सीखो।
8. डबल पर्दे पार करने वाले कौन हैं?
डबल विदेशियों ने धर्म और साधारण रूप – दोनों पर्दे पार करके ब्राह्मण जीवन अपनाया।
9. बापदादा ने “क्वेश्चन मार्क नहीं, फुलस्टॉप” क्यों कहा?
क्योंकि “क्यों-कैसे” जैसे संकल्प आत्म-ऊर्जा की बर्बादी हैं। हर संकल्प में फुलस्टॉप लगाओ।
10. बाप समान फखुर में कैसे रहें?
बाप की संगति का फखुर रखो। सेवा में सहयोगी बन, बेफिकर और श्रेष्ठ स्थिति में रहो।
निष्कर्ष व प्रेरणा:
लण्डन ग्रुप की विशेषता — सेवा में अग्रणी, आत्मा में स्थिर, बाप समान।
“डबल लाइट बनो, फुलस्टॉप लगाओ, सेवा में उड़ो और बाप समान फखुर में रहो।”
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